ओरछा मंदिर : भगवान् राम का एक ऐसा मंदिर जहाँ मुस्लिम भी करते हैं पूजा

रामराजा मन्दिर मध्य प्रदेश के ओरछा नगर में स्थित है। यह एक पवित्र हिंदू तीर्थ स्थल है। यहाँ नियमित रूप से बड़ी संख्या में भक्त आते हैं। इसे आमतौर पर ओरछा मंदिर के रूप में भी जाना जाता है।

यह भारत का एकमात्र मंदिर है जहां भगवान राम की पूजा एक राजा के रूप में की जाती है। रामराजा मंदिर की एक और खासियत है कि एक राजा के रूप में विराजने होने की वजह से उन्हें 4 बार की आरती में सशस्त्र सलामी यानी ‘गार्ड ऑफ ऑनर’ दिया जाता है। मंदिर में भगवान को दिया जाने वाला भोजन और अन्य सभी सुविधाएं शाही हैं।

इस मंदिर में भगवान राम अपने दाहिने हाथ में तलवार और दूसरे हाथ में ढाल रखते हैं। श्री राम पद्मासन में बैठे हैं, उनका बायां पैर उनकी दाहिनी जांघ के ऊपर है। अयोध्या से मध्य प्रदेश के ओरछा की दूरी तकरीबन साढ़े चार सौ किलोमीटर है, लेकिन इन दोनों ही जगहों के बीच गहरा संबंध है।

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जिस तरह अयोध्या में ‘राम नाम’ की गूंज हर समय व हर चीज में गूंजती है, वैसे ही ओरछा की धड़कन में भी राम विराजमान हैं। इस मंदिर की सबसे बड़ी व अहम विशेषता है कि यहां हिंदुओं के साथ मुसलमान भी राजाराम की आराधना करते हैं। अयोध्या और ओरछा का करीब 650 साल पुराना रिश्ता है।

यहाँ पर हर साल भारत के कोने कोने से पर्यटक आते है जिनकी संख्या लगभग 650,000 है और वहीं विदेशी पर्यटकों संख्या लगभग 25,000 है। मंदिर में दैनिक आगंतुकों की संख्या 1500 से 3000 तक होती है और मकर संक्रांति, वसंत पंचमी, शिवरात्रि, राम नवमी, कार्तिक पूर्णिमा और विवाह पंचमी जैसे कुछ महत्वपूर्ण हिंदू त्योहारों पर ओरछा में आने वाले भक्तों की संख्या कई गुणा बढ़ जाती है।

इतिहास

कई स्थानीय लोगों के अनुसार राम राजा मंदिर की एक कहानी प्रचलित है। ओरछा के राजा मधुकर शाह जू देव (1554 से1592 ) (मधुकर शाह जू देव) बृंदावन के बांके बिहारी (भगवान कृष्ण) के भक्त थे जबकि उनकी पत्नी रानी गणेश कुँवरि, जिन्हें कमला देवी भी कहा जाता है, भगवान राम की भक्त थीं।

इस बात को लेकर हमेशा दोनों में विवाद की स्थिति रहती थी। एक बार मधुकर शाह ने रानी को वृंदावन जाने का प्रस्ताव दिया लेकिन उन्होंने मना कर दिया और अयोध्या जाने की जिद पकड़ ली।

तब राजा ने रानी पर व्यंग्य किया कि अगर तुम्हारे राम सच में हैं तो उन्हें अयोध्या से ओरछा लाकर दिखाओ। इस बात को रानी ने इतनी गंभीरता से ले लिया कि वह राम को लाने सन् 1573 के आषाढ़ माह में अयोध्या के लिए निकल पड़ीं।

श्रीराम की प्रतिमा को लेकर रानी गणेश कुंवरि साधु-संतों और महिलाओं के बड़े जत्थे के साथ अयोध्या से ओरछा की यात्रा पर निकल पड़ीं। साढ़े आठ माह में प्रण पूरा करके रानी सन् 1574 की रामनवमी को ओरछा पहुंचीं।

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यह सब देख कर राजा बेहद आश्चर्यचकित हो गए। महारानी कुंवरि गणेश ने ही श्रीराम को अयोध्या से ओरछा लाकर विराजित किया था। उनके लिए यह विशाल मंदिर बनाया गया परंतु कहते हैं कि उन्हें सुरक्षा कारणों से मंदिर की बजाए रसोई में विराजमान किया गया। इसके पीछे तर्क था कि रजवाड़ों की महिलाओं की रसोई से अधिक सुरक्षा और कहीं नहीं हो सकती।

ओरछा में भगवन राम की पूजा हिन्दु और मुसलमान दोनों करते हैं। ओरछा निवासी मुन्ना खान जो सिलाई का काम करते हैं, कहते हैं कि में रोज दरबार सजदा करता हूं। हमारे तो सब यही हैं।

वहीँ ओरछा के ही नईम बेग भी राम को उतना ही मानते हैं जितना रहीम को, वह कहते हैं कि आपसी भाईचारा ऐसा ही रहे, जैसा मंदिर में रामराज ओरछा के राम राजा दरबार में है।

ओरछा के राम श्रद्धा चाहते हैं इसलिए उन्होंने विशाल चतुर्भुज मन्दिर त्याग कर वात्सल्य भक्ति की प्रतिमूर्ति महारानी कुंवरि गणेश की रसोई में बैठना स्वीकार किया था। राम भक्तों के भावों में बसते हैं, भवनों की भव्यता में नहीं।

वडोदरा रियासत की समृद्धि का प्रतीक ‘बड़ौदा हाऊस’

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बड़ौदा हाऊस, लुटियंस दिल्ली की एक शानदार इमारत है, जिसका निर्माण बड़ौदा के महाराजा सयाजीराव गायकवाड़ तृतीय ने कराया था। यह दिल्ली में सयाजीराव तृतीय का महल था, जो फरीदकोट के पास कस्तूरबा गांधी मार्ग पर स्थित है।

अब यहां उत्तर रेलवे का जोनल मुख्यालय स्थापित है। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में, इमारत में रेलवे कार्यालयों की आवश्यकताओं के अनुसार काफी बदलाव किया गया है लेकिन इमारत की भव्यता आज भी बड़ौदा रियासत की समृद्धि की याद दिलाती है।

इमारत के बाहर एक छोटे से भूभाग में एक नैरो गेज एम. टी. आर. क्लास का भाप से चलने वाला रेल का इंजन खड़ा है, जो लोगों का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट कर लेता है।

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महल की वास्तुकला

बड़ौदा के गायकवाड़ शासक, जो इंगलैंड में शिक्षित थे, वे चाहते थे कि नई दिल्ली में उनका महल एंग्लो-सैक्सन शैली का हो। इसके लिए उन्होंने इमारत के डिजाइन की जिम्मेदारी सर एडविन लुटियंस को दी। ऐसा कहा जाता है कि लुटियंस ने इसे 1921 में एक ट्रेन के सफर के दौरान डिजाइन किया था।

वहीं, इमारत का निर्माण अक्तूबर, 1928 में शुरू हुआ जो 15 साल में बनकर तैयार हुई थी। यह इमारत भी लुटियंस दिल्ली की अन्य इमारतों की तर्ज पर यानी तितली आकार में बनाई गई है लेकिन इसका गुंबद सांची स्तूप से प्रेरित है और मेहराब अर्ध गोलाकार हैं। इसमें छतें, भव्य गलियारे, कूलिंग आर्केड, सुंदर उद्यान के साथ बड़े पैमाने पर सजाए गए लिविंग रूम भी शामिल हैं।

यूँ पड़ा वडोदरा नाम

बड़ौदा शहर को कभी इसके शासक राजा चंदन के नाम पर चंद्रावती कहा जाता था, फिर वीरावती यानी वीरों का निवास स्थान और फिर विश्वामित्री नदी के तट पर बरगद के पेड़ों की प्रचुरता के कारण वडपत्रा कहा जाने लगा।

वडपत्रा से इसका वर्तमान नाम बड़ौदा या वडोदरा पड़ा। वर्तमान में यह ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी‘ के लिए ही नहीं बल्कि अपने अनूठे गरबा नृत्य के कारण विदेश में भी प्रसिद्ध है।

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इंजन की कहानी

बड़ौदा हाऊस के बाहर लगे नैरो गेज इंजन का निर्माण साल 1910 में हुआ था, जिसे सबसे पहले कराची पोर्ट ट्रस्ट (वर्तमान पाकिस्तान) के लिए चलाया गया था। 1922 में इंजन को ढिलवां क्रेओसोटिंग प्लांट में स्थानांतरित कर दिया गया, जो 1947 के विभाजन के बाद पंजाब का भारतीय क्षेत्र बन गया।

इसे 1990 में अमृतसर में उत्तर रेलवे की कार्यशाला में पुनर्निर्मित किया गया। अंततः इस विरासत इंजन को बड़ौदा हाऊस में सड़क किनारे स्थापित कर दिया गया। इसके चारों ओर छोटा-सा उद्यान भी बनाया गया है।

उत्तर रेलवे (एन.आर.) भारत के 19 रेलवे जोनों में से एक और भारतीय रेलवे का सबसे बड़ा जोन है । इसका मुख्यालय नई दिल्ली में बड़ौदा हाऊस में है । इसे आधिकारिक तौर पर 14 अप्रैल, 1952 को एक नए रेलवे जोन के रूप में अधिसूचित किया गया था ।

 

मानवीय शरीर के बारे में कुछ रोचक तथ्य

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मानव शरीर की संरचना जितनी अद्भुत है उतनी ही जटिल भी है। मानव शरीर कई सारे कोशिकाएँ, ऊतक और अलग-अलग अंगों से बनता है। आइये जानते हैं मानवीय शरीर के बारे में कुछ रोचक तथ्य:

  • मानव शरीर की सबसे बड़ी हड्डी फीमर (जांध की हड्डी) है, और यह स्टील से भी मजबूत होती है l
  • मनुष्य का दिमाग दिन के मुकाबले रात को ज़्यादा सक्रिय होता है।
  • औरतों का दिल पुरुषों के दिल से ज़्यादा जल्दी धड़कता हैं।
  • एक वयस्क मानव में, उसकी हड्डियों का 25% हिस्सा पैरों में होता है।
  • बच्चे हमेशा नीली आँखों के साथ पैदा होते हैं। उनकी आँखों में मेलेनिन को जमने में समय लगता है।
  • शरीर का एकमात्र हिस्सा जिसमे कोई रक्त की आपूर्ति नहीं है, वह आंख का कॉर्निया है। यह हवा से सीधे ऑक्सीजन ग्रहण करता है।
  • दुनिया में जितने लोग हैं, उससे कहीं अधिक मानव मुंह में बैक्टीरिया मौजूद हैं
  • मनुष्य की बहुत ज़्यादा खाने के बाद सुनने की क्षमता कम हो जाती है।
  • हमारी Middle Finger (बड़ी उंगली) का नाखून बाकी सभी नाखुनों से ज़्यादा तेजी से बढ़ता है।
  • क्या आप जानते हैं हमारी खोपड़ी 29 अलग-अलग हड्डीयों से बनी हैं।
  • हमारे शरीर की अस्सी प्रतिशत गरमाहट, हमारे सिर से निकलती है।
  • जन्म के बाद आँखों का आकर नहीं बढ़ता लेकिन नाक और कान का विकास नहीं रुकता।
  • मानव मस्तिष्क में एक मेमोरी क्षमता होती है जो हार्ड ड्राइव पर चार से अधिक टेराबाइट्स के बराबर होती है।
  • मानव शरीर में 900 पेंसिल बनाने के लिए पर्याप्त कार्बन, एक खिलौना तोप को चलाने के लिए पर्याप्त पोटेशियम, साबून के 7 बार बनाने के लिए पर्याप्त वसा और 50 लीटर बैरल भरने के लिए पर्याप्त पानी होता हैं।
  • एक औसत जीवन काल में मानव का दिल तीन बिलियन से अधिक बार धड़कता है।
  • हमारे शरीर में 100 प्रकार से ज़्यादा वायरस पाए जाते हैं, जिसके कारण हमें सर्दी होने की सम्भावना होती है।
  • हमारी लम्बाई शाम की तुलना में सुबह 1 सेमी. ज़्यादा लम्बी होती है।
  • मानव मस्तिष्क में इतनी तंत्रिका कोशिकाएं होती हैं कि उन्हें गिनने में लगभग 3,000 साल लग जाते हैं।
  • मानव भ्रूण गर्भावस्था के तीन महीने के भीतर उंगलियों के निशान बनाना शुरू करता है।
  • यदि मनुष्य अपने पुरे जीवनकाल में अपने बाल नहीं कटवाएँगे तो बालों की लंबाई 725 किलोमीटर हो सकती हैं।
  • हमारे शरीर की सबसे मज़बूत मांसपेसी हमारी जीभ में पाई जाती है।
  • जब एक शिशु का जन्म होता है तो उसके शरीर में 300 हड्डियाँ होती हैं लेकिन जब वो बड़ा हो जाता है, तो उसके शरीर में सिर्फ 206 हड्डियाँ होती हैं।
  • मनुष्य का बायाँ फेफड़ा उसके दाएं फेफड़े से लगभग 10 प्रतिशत छोटा होता है।
  • मनुष्य के शरीर की आधी हड्डियाँ हाथ और पैर की हड्डियों में होती है।
  • मनुष्य की बाहरी त्वचा हर 27 दिन में नई हो जाती है।
  • एक पुरुष के शरीर में लगभग 8 लीटर रक्त होता है जबकि महिलाओं में लगभग 5 लीटर रक्त होता है।
  • हमारा दिल इतनी रफ्तार से खून पंप करता है, कि खून किसी इमारत के चौथे माले पर पहुँच सकता है।
  • इंसान के दांत शार्क के दांतों की तरह ही मजबूत होते हैं।
  • मानव शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि यकृत है।
  • मनुष्य ही केवल एक ऐसी प्रजाति है जिसके भावनमयी आंसु निकलते हैं।
  • शरीर में सबसे बड़ी कोशिका मादा अंडा है और सबसे छोटा नर शुक्राणु है।
  • रक्त पानी की तुलना में 6 गुणा मोटा होता हैं।
  • भौहों के बीच की जगह को “ग्लैबेला” कहा जाता है जो लैटिन शब्द ग्लैबेलस से निकला है जिसका अर्थ चिकनी।
  • एक वयस्क मानव की छोटी आंत लगभग 18 से 23 फीट लंबी होती है, जो कि एक वयस्क व्यक्ति की लम्बाई से लगभग चार गुना अधिक होती है।

हैंग सोन डूंग गुफा : दुनिया की सबसे बड़ी गुफा

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वियतनाम में हैंग सोन डूंग गुफा दुनिया की सबसे बड़ी गुफा है। माना जाता है कि यह गुफा लाखों साल पुरानी है। यह लाओस और वियतनाम की सीमा पर स्थित है और वियतनाम के क्वांग बिन्ह प्रांत में है।

यह गुफा नौ किलोमीटर लंबी, 200 मीटर चौड़ी और 150 मीटर ऊंची है। इस गुफा के अंदर पेड़-पौधों से लेकर जंगल, बादल और नदी तक है।

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खोज

हैंग सन डोंग का प्रवेश द्वार 1991 में हा खान्ह नाम के एक स्थानीय व्यक्ति को मिला , जब वह एक मूल्यवान लकड़ी अगरवुड की खोज कर रहा था। हालाँकि वह शुरू में आगे की जाँच करने गया था, लेकिन प्रवेश द्वार से बहते पानी की आवाज़ और तेज़ हवा के कारण वह डर हो गया।

इसे कोई खास महत्व न समझते हुए, जब तक वह अपने घर लौटा, वह प्रवेश द्वार का सही स्थान भूल चुका था। बाद में, उन्होंने ब्रिटिश गुफा अनुसंधान संघ (बीसीआरए) के दो सदस्यों को अपनी खोज का उल्लेख किया, जो स्थानीय क्षेत्र में खोज कर रहे थे।

उन्होंने उनसे प्रवेश द्वार को फिर से खोजने का प्रयास करने के लिए कहा, जिसे वे अंततः 2008 में करने में सफल रहे, और 2009 में, उन्होंने बीसीआरए से प्रवेश द्वार तक एक अभियान का नेतृत्व किया।

10 और 14 अप्रैल 2009 के बीच आयोजित इस अभियान ने गुफा का सर्वेक्षण किया और इसकी मात्रा 38,500,000 मीटर 3 (1.36 × 10 9 घन फीट) बताई। गुफा की पूरी लंबाई की खोज में उनकी प्रगति को एक बड़ी, 60-मीटर (200 फीट) ऊंची फ़्लोस्टोन -लेपित दीवार ने रोक दिया था, जिसे अभियान ने वियतनाम की महान दीवार का नाम दिया था।

अभियान मार्च 2010 में वापस लौटा और दीवार को सफलतापूर्वक पार कर गया, जिससे खोजकर्ताओं को गुफा मार्ग के अंत तक पहुंचने में मदद मिली। उनका अनुमान है कि गुफा प्रणाली की कुल लंबाई 9 किमी (5.6 मील) से अधिक है।

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नेशनल ज्योग्राफिक पत्रिका ने सोन डूंग गुफा को ग्रह पर सबसे बड़ी प्राकृतिक चूना पत्थर की गुफा घोषित किया था। उसके बाद 2013 में गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स संगठन ने इसे दुनिया की सबसे बड़ी प्राकृतिक गुफा के रूप में दर्ज किया।

सोन डूंग गुफा की अनूठी विशेषताएं

सोन डूंग गुफा की कुल लंबाई लगभग 9 किमी है जो इस गुफा को ग्रह पर सबसे बड़ी प्राकृतिक गुफा बनाती है। इस आयतन के साथ, हैंग सोन डूंग मलेशिया की हिरण गुफा से 5 गुना बड़ा है, जिसकी लम्बाई 2,160 मीटर (7,090 फीट) है (हैंग सोन डूंग की खोज से पहले) को सबसे बड़ी प्राकृतिक गुफा कहा जाता था।

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हालाँकि, जो चीज़ सोन डूंग को विशेष, मान्यता प्राप्त और दुनिया भर में प्रसिद्ध बनाती है, वह गुफा के अंदर छिपी अनोखी भूमिगत दुनिया है।

इसमें कई जटिल और विशाल स्टैलेक्टाइट्स (80 मीटर से अधिक ऊंचे), गुफा के अंदर उगने वाले आदिकालीन वर्षा वन, इसका अपना पारिस्थितिकी तंत्र, मौसम या एक रहस्यमय भूमिगत नदी है।

कई आगंतुकों ने स्वीकार किया कि हैंग सोन डूंग गुफा दूसरी दुनिया की तरह है, एबीसी न्यूज के जिंजर ज़ी – गुड मॉर्निंग अमेरिका ने कहा कि सोन डूंग में दृश्य अवतार फिल्म की तरह थे।

लाखों साल पुरानी इस गुफा को साल 2013 में पहली बार पर्यटकों के लिए खोला गया था। आपको जानकर हैरानी होगी कि हर साल सिर्फ 250-300 लोगों को ही यहां जाने की इजाजत मिलती है।

वायरल वीडियो : इस वीडियो को देखकर आप यही बोलोगे कि “लगता है भाई को यह आखिरी रिश्ता आया है”

सोशल मीडिया पर एक से एक मजेदार वीडियो वायरल होते रहते हैं। ऐसा ही एक वीडियो इन दिनों इंटरनेट पर वायरल हो रहा है जिसे देखकर आप अपनी हंसी नहीं रोक पाएंगे।

दरअसल इस वीडियो में एक शख्स माइक पर अजीब सा ऐलान कर कर रहा है जिसे सुनकर हंसी रोक पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है। अब चलिए ये भी जान लेते है कि आखिर ये शख्स ऐलान क्या कर रहा है। दरअसल यह व्यक्ति कह रहा है कि “मेरा रिश्ता आने वाला है, किसी ने अपनी टांग अड़ाई तो उसका ईलाज कर दूंगा” । यह वीडियो लोगों को बेहद पसंद आ रहा है और लोग बड़ी तदाद में इस वीडियो को शेयर और कमेंट कर रहे हैं।

इस मजेदार वीडियो को इंस्टाग्राम पर uppcl_anand_k नाम के यूजर ने शेयर किया है। वायरल वीडियो में आप देख सकते हैं कि शख्स गांव के मुख्य चौराहे पर अपनी कार रोकता है और एक माइक लेकर बाहर निकलता है। इसके बाद वह पूरे गांव में ऐलान करता है और वह गांव वालों को चेतावनी देते हुए नजर आता है।

शख्स कहता है कि कल उसे देखने के लिए लड़की वाले आने वाले हैं इसलिए उसके रिश्ते में मुश्किलें खड़ी न करें। इसके साथ ही शख्स पूरे गांव वालों को चेतावनी देता है और कहता है कि कल सभी लोग अपने घर में रहना नहीं तो इलाज कर दूंगा। शख्स के इस चेतावनी को सुनकर हर किसी की हंसी छूट जाएगी।

 

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दुनिया के सबसे खतरनाक कुत्तों में से एक है बॉक्सर नस्ल के कुत्ते

बॉक्सर जर्मनी में विकसित एक मध्यम आकार, छोटी बालों वाली नस्ल का कुत्ता है। बॉक्सर नस्ल को आमतौर पर  निगरानी, एथलेटिक और बहुत सारे खेलों के लिए जाना जाता है। बॉक्सर प्रजाति को शिकारी कुत्तो का वंशज भी कहा जाता है।

ये अपने मजबूत जबड़े से किसी को भी अपना शिकार बना सकते हैं। इनकी पहचान अड़ियल कुत्तों के रूप में भी की जाती है। बॉक्सर अंग्रेजी बुलडॉग और अब विलुप्त हो चुके बुलेनबीसर (Bullenbeisser) के संकरण से बनाई गयी नस्ल है और मोलोसर (Molosser), मासटिफ समूह (mastiff group) का हिस्सा है।

बॉक्सर को सबसे पहले 1895 में मुनिच में सेंट बर्नार्ड के लिए किये गए एक डॉग शो में प्रदर्शन के लिए लाया गया था, जो पहला बॉक्सर क्लब था।

यह नाम “बॉक्सर” इस नस्ल की प्रवृतियों से ही व्युत्पन्न हुआ है, क्योंकि ये कुत्ते अपनी पिछले टांगों पर खड़े हो जाते हैं और अपने सामने वाले पंजों से “बॉक्सिंग” कर सकते हैं।

इस पोस्ट में हम आज बॉक्सर नस्ल के कुत्ते के बारे में जानेंगे :

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रंग, आकार और स्वभाव

इनके सिर का आकार वर्गाकार होता है, चौड़ी और गहरी छाती होती है। कान मुड़े हुए होते हैं, इनके पंजे धनुषाकार और छोटी खाल होती है।

ये अधिकतर हलके पीले (Fawn) या चितकबरे रंग के होते हैं, अक्सर इनके पेट का नीचला हिस्सा, सामने वाला हिस्सा और सभी चारों पैर सफ़ेद होते हैं। ये सफ़ेद निशान जिन्हें फ्लैश कहा जाता है अक्सर गर्दन या चेहरे तक फैले होते हैं और जिन कुत्तों में ये निशान होते हैं, वे “फ्लैशी” कहलाते हैं।

बॉक्सर चंचल, उत्साही, जिज्ञासु, चौकस, प्रदर्शनकारी, समर्पित और मिलनसार होते हैं। यह कुत्ता एक सक्रिय परिवार के लिए एक आदर्श साथी है। बॉक्सर जिद्दी हो सकते हैं, लेकिन अपने मालिक के आदेशों के प्रति संवेदनशील और उत्तरदायी होते हैं। वे दूसरे कुत्तों के प्रति आक्रामक होते हैं, लेकिन आम तौर पर अन्य पारिवारिक कुत्तों और पालतू जानवरों के साथ अच्छे होते हैं।

नर बॉक्सर का औसतन कद 2 फीट और मादा का औसतन कद 1 फुट 80 इंच होता है। इस नस्ल के नर का औसतन भार 30-35 किलो और मादा का औसतन भार 22-30 किलो होता है। इस नस्ल का औसतन जीवन काल 8-10 वर्ष होता है।

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भोजन

भोजन की मात्रा और किस्म, कुत्ते की उम्र और उसकी नस्ल पर निर्भर करती है। छोटी नस्लों को बड़ी नस्ल के मुकाबले भोजन की कम मात्रा की आवश्यकता होती है। भोजन उचित मात्रा में दिया जाना चाहिए नहीं तो कुत्ते सुस्त और मोटे हो जाते हैं।

संतुलित आहार जिसमें कार्बोहाइड्रेट्स, फैट, प्रोटीन, विटामिन और ट्रेस तत्व शामिल हैं, पालतू जानवरों को स्वस्थ और अच्छे आकार में रखने के लिए आवश्यक होते हैं। कुत्ते को 6 आवश्यक तत्व जैसे फैट, खनिज, विटामिन, कार्बोहाइड्रेट्स, पानी और प्रोटीन की आवश्यकता होती है।

इसके साथ ही इन्हें सारा समय साफ पानी की आवश्यकता होती है। पिल्ले को 29 प्रतिशत प्रोटीन और प्रौढ़ कुत्ते को आहार में 18 प्रतिशत प्रोटीन की जरूरत होती है। हम उन्हें ये सारे आवश्यक तत्व उच्च गुणवत्ता वाले सूखा भोजन देकर दे सकते हैं।

स्वास्थ्य

प्रमुख स्वास्थ्य मुद्दे जो अक्सर बॉक्सर्स में देखे जाते हैं, उनमें शामिल हैं, कैंसर, ह्रदय रोग जैसे एओर्टिक स्टेनोसिस और एरिथ्मोजेनिक राईट वेंट्रिकुलर कार्डियोमायोपेथी, (तथाकथित “बॉक्सर कार्डियोमायोपेथी”) हाइपोथायरोइड, हिप डिसप्लाजिया और अपक्षयी माइलोपेथी और एपिलेप्सी; अन्य स्थितियां जो देखी जा सकती हैं, आमाशय का फैलाव और फूलना (ब्लोट), आन्त्रिय समस्याएं और एलर्जी।

ब्रिटेन के एक केनल क्लब स्वास्थ्य सर्वेक्षण के अनुसार, 38.5% बॉक्सर्स की मृत्यु कैंसर के कारण होती है, इसके बाद बड़ी उम्र के कारण (21.5%), ह्रदय रोगों के कारण (6.9%) और जठरांत्र सम्बंधित मुद्दों के कारण (6.9%) होती हैं।

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नस्ल की देख रेख

पिल्ले का चयन करते समय सावधानियां – पिल्ले का चयन आपकी जरूरत, उद्देश्य, उसके बालों की खाल, लिंग और आकार के अनुसार किया जाना चाहिए। पिल्ला वह खरीदें जो 8-12 सप्ताह का हो।

पिल्ला खरीदते समय उसकी आंखे, मसूड़े, पूंछ और मुंह की जांच करें। आंखे साफ और गहरी होनी चाहिए, मसूड़े गुलाबी होने चाहिए और पूंछ तोड़ी हुई नहीं होनी चाहिए और दस्त के कोई संकेत नहीं होने चाहिए।

आश्रय – कुत्ते को रहने के लिए अच्छी तरह से हवादार, साफ और सुरक्षित वातावरण प्रदान करें। आश्रय अत्याधिक बारिश और हवा और आंधी से सुरक्षित होना चाहिए। सर्दियों में कुत्तों को ठंड के मौसम से बचाने के लिए कंबल दें और गर्मियों में छाया और ठंडे स्थानों की आवश्यकता होती है।

पानी – कुत्ते के लिए 24 घंटे साफ पानी उपलब्ध होना चाहिए। पानी को साफ रखने के लिए प्रयोग किए जाने वाले बर्तन को आवश्यकतानुसार दिन में कम से कम दो बार या इससे अधिक समय में साफ करना चाहिए।

बालों की देख रेख – सप्ताह में दो बार बालों की देख रेख की जानी चाहिए। कंघी करने से अच्छा है प्रतिदिन ब्रशिंग करें। छोटे बालों वाली नस्ल के लिए सिर्फ ब्रशिंग की ही आवश्यकता होती है और लंबे बालों वाली नस्ल के लिए ब्रशिंग के बाद कंघी करनी चाहिए।

नहलाना – कुत्तों को 10-15 दिनों में एक बार नहलाना चाहिए। नहलाने के लिए औषधीय शैंपू की सिफारिश की जाती है।

ब्यांत समय में मादा की देखभाल – स्वस्थ पिल्लों के लिए गाभिन मादा की उचित देखभाल आवश्यक है। ब्यांत के समय या पहले उचित अंतराल पर टीकाकरण अवश्य देना चाहिए। ब्यांत का समय लगभग 55-72 दिन का होता है। उचित आहार, अच्छा वातावरण, व्यायाम और उचित जांच ब्यांत के समय के दौरान आवश्यक होती है।

नवजात पिल्लों की देखभाल – पिल्लों के जीवन के कुछ हफ्तों के लिए उनकी प्राथमिक गतिविधियों में अच्छे वातावरण, आहार और अच्छी आदतों का विकास शामिल है। कम से कम 2 महीने के नवजात पिल्ले को मां का दूध प्रदान करें और यदि मां की मृत्यु हो गई हो या किसी भी मामले में पिल्ला अपनी मां से अलग हो जाए तो शुरूआती फीड या पाउडरड दूध पिल्ले को दिया जाता है।

चिकित्सीय देखभाल – इंसानों की तरह, कुत्ते को भी हर 6-12 महीनों के बाद दांतों की जांच के लिए पशु चिकित्सक की आवश्यकता होती है। अपने कुत्ते के दांतों को नर्म ब्रश के साथ ब्रश करें और एक ऐसे पेस्ट का चयन करें जो फ्लोराइड मुक्त हो क्योंकि फ्लोराइड कुत्तों के लिए बहुत ही जहरीला होता है।

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टीकाकरण – पालतू जानवरों को नियमित टीकाकरण और डीवॉर्मिंग की आवश्यकता होती है ताकि उन्हें स्वास्थ्य समस्याएं ना हों।

6 सप्ताह के कुत्ते को canine distemper, canine hepatitis, corona viral enteritis, canine parainfluenza, parvo virus infection, leptospirosis का प्राथमिक टीकाकरण की आवश्यकता होती है और फिर दूसरा टीकाकरण 2-3 सप्ताह से 16 सप्ताह के कुत्ते को दें और फिर वार्षिक टीकाकरण देना चाहिए।

रेबीज़ बीमारी के लिए 3 महीने की उम्र के कुत्ते को पहला टीका लगवाना चाहिए, पहले टीके के 3 महीने बाद दूसरा टीका लगवाएं और फिर वार्षिक टीका लगवाना चाहिए।

हानिकारक परजीवियों से अपने पालतु जानवरों को बचाने के लिए डीवॉर्मिंग अवश्य करवानी चाहिए। 3 महीने और इससे कम उम्र के कुत्ते को प्रत्येक 15 दिनों के बाद डीवॉर्मिंग करवानी चाहिए।

6-12 महीने के बीच के कुत्ते को दो महीने में एक बार डीवॉर्मिंग करवानी चाहिए और फिर 1वर्ष या इससे ज्यादा उम्र के कुत्ते को प्रत्येक 3 सप्ताह बाद डीवॉर्मिंग करवानी चाहिए। डीवॉर्मिंग कुत्ते के भार के अनुसार विभिन्न होती है।

दुनिया की सबसे डरावनी जगहों में से एक है ऑस्ट्रेलिया में स्थित मोंटे क्रिस्टो रियासत

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मोंटे क्रिस्टो एक ऐतिहासिक रियासत है जोकि ऑस्ट्रेलिया में न्यू साउथ वेल्स के जुनी इलाके में स्थित है। क्रिस्टोफर विलियम क्रॉली ने पहली बार 1885 में इसका निर्माण किया था, जहां वह अपनी पत्नी एलिजाबेथ, उनके सात बच्चों और कई नौकरों के साथ रहते थे। क्रॉली (Crawley) एक धनी किसान और ज़मींदार थे। मोंटे क्रिस्टो होमस्टेड क्रॉली का समाज में काफी नाम था।

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इस हवेली को ऑस्ट्रेलिया के सबसे अधिक भुतहा और डरावनी जगहों में शुमार किया गया है। इसकी वजह वर्ष 1885 में इसके निर्माण के बाद से ही यहाँ हुई कई दुखद घटनाएँ हैं।

निर्माण के बाद मोंटे क्रिस्टो का मालिकाना हक क्रॉली परिवार के पास रहा और यह परिवार वर्ष 1948 तक यहाँ रहा। इस दौरान यहाँ कई अनहोनी घटनाएँ घटी, जिनमें से कईयों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था।

मोंटे क्रिस्टो का डरावना इतिहास यहाँ के कर्मचारियों के साथ शुरू हुआ। कहा जाता है कि एक युवा नौकरानी की  बालकनी में गिरकर मौत हो गई थी जिसके बाद यहाँ आधी रात में बालकनी पर कदमों की आवाज़ सुनाई देती है। कुछ लोग तो यह भी कहते हैं कि यहाँ किसी महिला की आत्मा भी दिखाई देती है।

कहा जाता है कि सामने की सीढ़ी पर अभी भी एक बड़ा सफेद निशान है जहां उन्होंने खून को हटाने के लिए ब्लीच का इस्तेमाल किया था।

Haunted Monte Cristo house New South Wales Australia

एक अन्य घटना के अनुसार मोंटे क्रिस्टो रियासत में एक लड़का रखवाली करता था, जिसका नाम हेरोल्ड था। कुछ समय के बाद वह पागल हो गया था और कभी-कभी हिंसक भी हो जाता था। इसलिए उसे लगभग 40 वर्षों तक लोहे के चेन से बांधकर घर में बंद रखा गया था।

एक दिन लोगों ने देखा कि वह अपनी मर चुकी माँ के शव के साथ लिपटा पड़ा है। इस घटना के बाद उसे पागलखाने भेज दिया गया, जहां कुछ दिनों बाद ही उसकी मौत हो गई।

अंततः लगातार हो रही अनहोनी और डरावनी घटनाओं से विचलित होकर क्रॉली परिवार ने वर्ष 1948 में उस जगह को छोड़ दिया। इस परिवार के जाने के बाद भी यहां हो रही अस्वाभाविक मौतों का सिलसिला नहीं थमा।

haunted-house Haunted Monte Cristo Australia

1948 में क्रॉली के चले जाने के बाद मोंटे क्रिस्टो होमस्टेड काफी समय तक खाली रहा। 1963 में, ओलिव और रेगिनाल्ड रयान ने जर्जर हो चुकी इस जागीर को खरीदा उनके साथ और भी लोग वहां रहने के लिए आये थे।

परन्तु कुछ दिनों के अंदर ही उनमें से एक की वहां हत्या हो गई। इस हत्या के बाद बाकी बचे लोगों ने उस जगह को छोड़ दिया और तब से मोंटे क्रिस्टो वीरान पड़ा हुआ है। हैरानी की बात तो यह है कि इस भूतिया हवेली को देखने के लिए दूर दूर से टूरिस्ट आते हैं।

जीभ के बारे में कुछ रोचक तथ्य

मानव शरीर अनेक अद्भुत और विस्मयकारी अंगों से युक्त है। हमारे शरीर के प्रत्येक अंग की अपनी एक महत्वपूर्ण भूमिका है। इन्हीं महत्वपूर्ण अंगों में से एक है हमारी “जीभ”। जीभ हमें भोजन का स्वाद अनुभव करने में मदद करती है और इसके अलावा भी कई महत्वपूर्ण कार्यों का निर्वाह करती है।

आज इस लेख के माध्यम से हम जीभ के बारे में कुछ तथ्यों को जानेगें, तो चलिए शुरू करते हैं।

जीभ के बारे में रोचक तथ्य

  • जीभ पर टेस्ट बड्स मौजूद होती हैं जो हमें हर तरह के स्वाद के बारे में बताती हैं। इन्हीं के कारण हमें खट्टे, मीठे, नमकीन, कड़वे जैसे स्वादों का पता चल पाता है।
  • खाना खाने के बाद दांतों में अन्न का कुछ हिस्सा फंसा रह जाता है जिसे निकालने का काम जीभ बहुत ही आसानी से कर देती है और ऐसा करने से दांत भी साफ हो जाते हैं और मुँह की भी सफाई हो जाती है इसलिए जीभ को नेचुरल क्लीनर कहा जा सकता है।

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  • अभी तक शायद आपको पता ना हो कि जीभ का लचीला हिस्सा उच्चारण करने में काफी सहायक होता है और इसके बिना सही उच्चारण करना संभव नहीं हो सकता।
  • लचीली जीभ का एक अहम काम ये भी है कि ये चोट लगने पर होने वाले घावों को शरीर के बाकी अंगों की तुलना में तेजी से भर लेती है क्योंकि इसका ज्यादातर हिस्सा स्केलटल मसल्स टिश्यूज से बनी होती है।
  • आपने ये अक्सर सुना होगा कि जीभ को साफ रखना चाहिए। ऐसा कहने के पीछे कारण ये है कि मुँह में बैक्टीरिया पाए जाते हैं जिनमें से लगभग 50% बैक्टीरिया तो हमारी जीभ पर ही होते हैं।
  • जीभ भले ही दिखने में सबसे नाजुक और लचीली होती है लेकिन हैरान करने वाली बात ये है कि जीभ हमारे शरीर की सबसे मजबूत मसल्स होती है।
  • आप अपनी स्वाद कलिकाएँ नहीं देख सकते, वे सूक्ष्मदर्शी होती हैं और जीभ पर उभार के ऊपर टिकी होती हैं। इन उभारों को पपीली कहा जाता है।
  • विशेषज्ञों ने सबसे लंबी जीभ लगभग 3.86 इंच लंबी और लगभग 3.1 इंच चौड़ी बताई है। पुरुषों की तुलना में  महिलाओं की जीभ की लंबाई कम होती है।
  • जीभ आपकी बॉडी में सबसे मजबूत मसल्स है और साथ ही यह बहुत लचीली भी है। यह अकेली ऐसी मांसपेशी है, जिसमें टेस्ट सेंसर मौजूद है और इस सेंसर में लगभग दस हजार से अधिक स्वाद मौजूद है।
  • सभी प्रकार के स्वाद आपकी जीभ पर स्थित नहीं होते। उनमें से लगभग दस प्रतिशत आपके गालों और मुंह के अन्दर ऊपर की तरफ मौजूद होते हैं।
  • पशु साम्राज्य में सबसे बड़ी जीभ ब्लू व्हेल की है, जिसका अनुमानित वजन 2.7 टन से अधिक है।
  • जानवरों के साम्राज्य में, जीभ केवल स्वाद लेने से कहीं अधिक दिलचस्प भूमिका निभाती है। उदाहरण के लिए, स्क्विड की जीभ पर छोटे-छोटे नुकीले दांतों की पंक्तियाँ होती हैं जो भोजन को टुकड़े-टुकड़े कर सकती हैं, बाघ और शेर जैसी बड़ी बिल्लियों की जीभ पर कई बार्ब जैसी संरचनाएँ होती हैं जो केवल चाटने से आपके मांस को छील सकती हैं।

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  • गिरगिट शिकार को पकड़ने के लिए अपनी लचीली जीभ का उपयोग करते हैं और संयोग से, जानवरों के साम्राज्य में इसकी सबसे तेज़ जीभ होती है।
  • जीभ खाने वाली जूं (एक आइसोपॉड) एक परजीवी है जो मछली की विभिन्न प्रजातियों की जीभ से चिपक जाती है। इस परजीवी व्यवहार का असामान्य हिस्सा यह है कि जूँ अनिवार्य रूप से मछली की जीभ को खाकर उसकी जगह ले लेती है।

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वायरल वीडियो : भुनी हुई दूध वाली चाय का ये वीडियो देखकर लोगों ने कहा “आता माझी सटकली”

कई लोगों के लिए चाय के बिना दिन की शुरूआत नहीं होती है। चाय एक ऐसा शब्द है जो हर भारतीय के चेहरे पर तुरंत मुस्कान ला सकता है। हम भारतीयों को चाय बहुत पसंद है और इसे बनाने का हर व्यक्ति का अपना अलग तरीका होता है।

भारत में चाय की विविध संस्कृति है और देश के कई हिस्सों में इसकी अलग-अलग किस्में उगाई जाती हैं। बाजार में आपको इसके कई अंतरराष्ट्रीय विकल्प भी मिल सकते हैं। हममें से अधिकांश लोगों ने अदरक चाय, मसाला चाय, हर्बल चाय, हरी चाय, कैमोमाइल चाय आदि के बारे में सुना होगा।

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लेकिन क्या आपने कभी “भुनी हुई दूध वाली चाय” के बारे में सुना है? अगर नहीं तो हमारे पास एक ऐसी ही अनोखी चाय का वीडियो है जिसमें चाय को एक अलग ही तरह से बनाया गया है।

इस चाय की रेसिपी में चाय की पत्ती को पानी में उबालने की बजाय उसे भूना गया है। जिसे देखकर टी लवर्स बोल रहें है “आता माझी सटकली” ।

दरअसल एक इंस्टाग्राम यूजर, @food_madness__ ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर एक रील साझा की। रील में एक शख्स को बेहद अनोखे तरीके से चाय बनाते हुए दिखाया गया है। उस व्यक्ति ने चाय, चीनी और कुचली हुई इलायची को भून लिया, फिर चीनी धीरे-धीरे पिघलती है और सभी सामग्रियों के साथ मिल जाती है। इसके बाद पैन में दूध डाला जाता है। फिर चाय को एक कप में छान लिया जाता है और परोसा जाता है।

@food_madness__ द्वारा पोस्ट किया गया वीडियो बेंगलुरु का है और इंस्टाग्राम पर इसे अब तक 13 मिलियन से अधिक बार देखा जा चुका है। सभी सामग्रियों को सूखा भूनकर चाय बनाने का यह अनोखा तरीका नेटिज़न्स को पसंद नहीं आया।

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एलिजाबेथ बाथरी : दुनिया की सबसे खतरनाक महिला सीरियल किलर जो जवान रहने के लिए नहाती थी जवान लड़कियों के खून से

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इतिहास के पन्नों में ऐसी कई खौफनाक कहानियां और रहस्य दबे हुए हैं, जो अगर सामने आ जाएं तो आप सहम जाएंगे। ऐसी ही एक खौफनाक कहानी आज हम आपको इस लेख में बताने जा रहे हैं जिसे जानने के बाद आपके रोंगटे खड़े हो जायेंगे।

दरअसल यह कहानी जुड़ी है रानी एलिजाबेथ बाथरी से। एलिजाबेथ बाथरी हंगरी की रहने वाली थी। एलिजाबेथ बाथरी को इतिहास की सबसे खतरनाक और वहशी महिला सीरियल किलर के नाम से भी जाना जाता है।

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साल 1585 से 1610 के बीच बाथरी ने 600 से भी ज्यादा लड़कियों की जान ले ली थी। कहा जाता है कि किसी ने एलिजाबेथ को खूबसूरती बरकरार रखने के लिए कुंवारी लड़कियों के खून से नहाने की सलाह दी थी। एलिजाबेथ को यह तरीका इतना पसंद आया कि इसके लिए उसने क्रूरता की सारी हदें पार कर दी।

एलिजाबेथ बाथरी की शादी 15 साल की उम्र में फेरेंक द्वितीय नाडास्डी नाम के एक व्यक्ति से हुई थी, जो 19 साल का था। वह तुर्कों के खिलाफ युद्ध में हंगरी का नायक था। एलिजाबेथ ने अपने पति के सामने ही यह अपराध करना शुरू कर दिया था। कुंवारी लड़कियों को मारना उसका शौक बन गया था।

शादी के लगभग 10 साल बाद एलिजाबेथ को तीन बेटियाँ और एक बेटा हुआ। एलिजाबेथ के पति की मृत्यु 1604 में 48 वर्ष की आयु में हो गई थी। अपने पति की मृत्यु के बाद, एलिज़ाबेथ उत्तर-पश्चिमी हंगरी में कास्टेल चली गईं, जिसे अब स्लोवाकिया के नाम से जाना जाता है।

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उसने अपने साथ कई नौकर रखे थे। कहा जाता है कि एलिजाबेथ बाथरी के इस भयानक अपराध में उसके तीन नौकर भी उसका साथ देते थे। चूँकि वह एक अत्यधिक कुशल महिला थी, इसलिए वह आस-पास के गाँवों की गरीब लड़कियों को अपने महल में अच्छे पैसे पर काम करने का लालच देकर बुलाती थी। लेकिन जैसे ही लड़कियां महल में आती थीं वो उन्हें अपना शिकार बना लेती थी।

कहा जाता है कि एलिजाबेथ पहले अपने शिकार पर अत्याचार करती थी। वह उन्हें मारती थी, यहां तक कि उनके हाथ जला देती थी या काट देती थी।

कई बार वह लड़कियों के चेहरे या शरीर के अन्य हिस्सों का मांस दांतों से काट लेती थी और अंत में उन्हें मारकर उनका खून एक टब में इकट्ठा कर लेती थी, जिसमें एलिजाबेथ बाथरी नहाती थी। इसका जिक्र बहुत सी किताबों में किया गया है। एलिजाबेथ बाथरी पर कई हॉलीवुड फ़िल्में भी बनाई गई हैं।

कहा जाता है कि जब इलाके में लड़कियों की संख्या काफी कम हो गई तो उसने ऊंचे घरानों की लड़कियों को अपना शिकार बनाना शुरू कर दिया।

जब हंगरी के राजा को इस बात का पता चला तो उन्होंने इस मामले की जांच करवाई। जांच टीम ने एलिजाबेथ के महल से कई लड़कियों के कंकाल और सोने-चांदी के आभूषण बरामद किए।

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साल 1610 में एलिजाबेथ बाथरी को उनके घृणित अपराध के लिए गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें उनके ही महल के एक कमरे में कैद कर दिया गया, जहां चार साल बाद 21 अगस्त 1614 को उनकी मृत्यु हो गई।

कहा जाता है कि एलिजाबेथ काफी खूबसूरत थीं और वह अपनी खूबसूरती बरकरार रखना चाहती थीं। इसीलिए उसने अपने महल में 600 से अधिक कुंवारी लड़कियों की हत्या कर दी थी। हालाँकि, यह भी कहा जाता है कि उनकी मृत्यु के समय वह बहुत बदसूरत हो गई थीं।