जानिए सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी की जयंती पर उनके बारे में कुछ विशेष

श्री गुरु नानक देव जी का 550 वां पर्व 27 नवंबर को मनाया जा रहा है। सिख संप्रदाय के इस पर्व को मनाने की तैयारियां ज़ोर-शोर से चल रही है। श्री गुरु नानक देव जी के प्रकाश पर्व को देखते हुए पूरे उत्साह के साथ समाज, संगत के लोग भव्य तैयारियों में लग गए हैं। सिख धर्म में  यह त्यौहार बहुत ही श्रद्धा व ख़ुशी के साथ मनाया जाता है । इस मौके पर शब्द  कीर्तन,  अटूट लंगर एवं गुरु की जीवनी पर प्रकाश डाला जाएगा।

गुरु नानक देव जी का बचपन

गुरु नानक देव के चेहरे पर बचपन से ही अजीब सा तेज दिखाई देता था। उनका जन्म लाहौर के पास तलवंडी नामक गांव में कार्तिक पूर्णिमा के दिन हुआ। उनका परिवार कृषि करके अपना गुजरा करता था। गुरु नानक देव जी का जन्म  जहां हुआ था, वह स्थान आज उन्हीं के नाम से जाना जाता है। जिसे अब ननकाना साहिब कहा जाता है। ननकाना अब पाकिस्तान में है। बचपन से तीव्र बुद्धिवाले नानक देव जी सिख धर्म के संस्थापक रहे  हैं।  शादी के 16वें वर्ष के बाद नानक देव जी अपनी पत्नी और दोनों पुत्रों को छोड़कर धर्म के मार्ग पर निकल पड़ें। बचपन से ही उनका मन धर्म और अध्यात्म में लगता था।

गुरु नानक देव जी के आध्यात्म एवं बुद्धिमता की कुछ किस्से

गुरु देव जी की महानता के दर्शन उनके बचपन से ही होने लगे थे। कहा जाता है, की जब बचपन में उनका जनेऊ संस्कार किया जाने लगा और पंडितजी नानक देव जी के गले में जनेऊ धारण करवाने लगे तब गुरु देव जी ने उनका हाथ पकड़कर कहा- ‘पंडितजी, जनेऊ पहनने से हम लोगों का दूसरा जन्म होता है, जिसको आप आध्यात्मिक जन्म कहते हैं l तो इसके लिए जनेऊ भी किसी और किस्म का होना चाहिए, जो हमारी आत्मा को बांध सके। क्यूंकि आप जो जनेऊ मुझे दे रहे हो वह तो कपास के धागे का है, जो कि मैला हो जाएगा, टूट जाएगा, मरते समय शरीर के साथ चिता में जल जाएगा। तो फिर यह जनेऊ आत्मिक जन्म के लिए कैसे सहायक होगा? बालक नानक का यह जवाब सुनकर पंडितजी कुछ नहीं कह पाए और नानक जी ने जनेऊ धारण करने से इनकार कर दिया।

सच्चा सौदा

जब गुरु नानक देव जी बड़े हुए तो एक दिन  नानक देव जी के  पिता ने व्यापार करने के लिए उन्हें  20 रुपए दिए और कहा- ‘इन 20 रुपए से सच्चा सौदा करके आओ।  जब नानक देव जी सौदा करने  के लिए निकले तो रास्ते में उन्हें साधु-संतों की मंडली मिली। नानकदेव जी ने उस साधु मंडली को 20 रुपए का भोजन करवाया और  घर वापस लौट आए। जब घर आ कर पिताजी ने पूछा- क्या सौदा करके आए? उन्होंने  कहा-  ‘साधुओं को भोजन करवाया। यही तो सच्चा सौदा है।’

गुरु नानक देव जी दवारा प्रसिद्ध दोहे

अंतर मैल जे तीर्थ नावे तिसु बैकुंठ न जाना।

लोग पतीणे कछु ना होई नाही राम अजाना।।

इसका अर्थ यह है कि अगर मन के अंदर मैल हो तो तीर्थ नाहाने , वैकुंड जाने का क्या फायदा है ? सिर्फ तीर्थ नाहाने से मन साफ नहीं हो सकता। तीर्थयात्रा की महानता चाहे कितनी भी क्यों न हो। यह तीर्थयात्रा सफल हुई है या नहीं, इसका निर्णय हमारे कर्मो पर निर्भर करता है। इसके लिए प्रत्येक  मनुष्य को अपने अंदर झांककर देखना चाहिए कि, तीर्थ सनान करने के बाद भी मन में निंदा, ईर्ष्या, धन-लालसा, काम, क्रोध आदि कितने कम हुए हैं।

भेद भाव की भावना

गुरु नानक देव जी किसी भी व्यक्ति में फर्क नहीं करते थे। वे कहते हैं कि एक बार कुछ लोगों ने नानक देव जी से पूछा- आप हमें यह बताइए कि आपके मत अनुसार हिन्दू बड़ा है या मुसलमान। उन्होंने उत्तर दिया-

अवल अल्लाह नूर उपाइया कुदरत के सब बंदे।

एक नूर से सब जग उपजया को भले को मंदे।।

इसका मतलब यह है कि ईश्वर के सामने सभी एक समान है। न तो हिन्दू कहलाने वाला ईश्वर की नज़र में बड़ा है, न मुसलमान कहलाने वाला। ईश्वर की नज़र  में वही इंसान बड़ा है जिसका मन सच्चा और नेक ईमान हो।

जानिए गुरु नानक देव जी और उनके उपदेशों के बारे में

सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव के जन्म दिवस के दिन गुरु पर्व या प्रकाश पर्व मनाया जाता है। गुरु नानक जयंती के दिन सिख समुदाय के लोग ‘वाहे गुरु, वाहे गुरु’ जपते हुए सुबह-सुबह प्रभात फेरी निकालते हैं।

गुरुद्वारे में शबद-कीर्तन करते हैं, प्रशाद चढ़ाते हैं और शाम के वक्त लोगों को लंगर खिलाते हैं। गुरु पर्व के दिन सिख धर्म के लोग अपनी श्रृद्धा के अनुसार सेवा करते हैं और गुरु नानक जी के उपदेशों यानी गुरुवाणी का पाठ करते हैं।

गुरु नानक जयंती कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। इस दिन देवों की दीवाली यानी देव दीपावली भी होती है। नानक जी का जन्म 15 अप्रैल, 1469 को पाकिस्तान के लाहौर के पास तलवंडी में कार्तिक पूर्णिमा के दिन हुआ था। इस गांव को अब ननकाना साहिब के नाम से जाता है।

 

गुरु नानक जी बचपन से ही धार्मिक थे। गुरु नानक जी ने अपने पूरे जीवन में सभी धर्मों के लोगों को एकता का संदेश दिया। गुरु नानक जी का मानवतावाद में दृढ़ विश्वास था।

उनके विचार धर्म के सच्चे और शाश्वत मूल्यों में निहित थे, इसीलिए वह चाहते थे कि हर कोई जाति और धर्म से परे जाकर सभी एक साथ आए।

उनका कहना था, “कोई भी एक हिंदू नहीं है और कोई भी मुसलमान नहीं है, हम सभी मनुष्य हैं।” केवल एक ही भगवान है जिसने इस दुनिया को बनाया है। उनका मानना ​​था कि धर्म एक दर्शन है, दिखावा नहीं।

गुरु नानक जी के उपदेश

  • ईश्वर एक है, वह सर्वत्र विद्यमान है। हम सबका “पिता” वही है इसलिए सबके साथ प्रेम पूर्वक रहना चाहिए।
    तनाव मुक्त रहकर अपने कर्म को निरंतर करते रहना चाहिए तथा सदैव प्रसन्न रहना चाहिए।
  • गुरु नानक देव पूरे संसार को एक घर मानते थे जबकि संसार में रहने वाले लोगों को परिवार का हिस्सा।
  • किसी भी तरह के लोभ को त्याग कर अपने हाथों से मेहनत कर एवं न्यायोचित तरीकों से धन का अर्जन करना चाहिए।
  • कभी भी किसी का हक नहीं छीनना चाहिए बल्कि मेहनत और ईमानदारी की कमाई में से ज़रुरतमंद को भी कुछ देना चाहिए।
  • लोगों को प्रेम, एकता, समानता, भाईचारा और आध्यत्मिक ज्योति का संदेश देना चाहिए।
  • धन को जेब तक ही सीमित रखना चाहिए। उसे अपने हृदय में स्थान नहीं बनाने देना चाहिए।
  • स्त्री-जाति का आदर करना चाहिए। वह सभी स्त्री और पुरुष को बराबर मानते थे।
  • संसार को जीतने से पहले स्वयं अपने विकारों पर विजय पाना अति आवश्यक है।
  • अहंकार मनुष्य को मनुष्य नहीं रहने देता अतः अहंकार कभी नहीं करना चाहिए बल्कि विनम्र हो सेवाभाव से जीवन गुजारना चाहिए।

गुरु नानक देव जी और उनके महत्वपूर्ण सिद्धांत

भारतीय संस्कृति में आध्यात्मिक गुरु को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। यहां तक कि हमारी वैदिक संस्कृति के कई मंत्रों  ‘गुरुर्परमब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवे नम:’ में भी महत्वपूर्ण स्थान जाता है, इसका मतलब है कि गुरु को भगवान का दर्जा दिया जाता है। आध्यात्मिक गुरु जीवन की कठिनाइयों को दूर करने के लिए रास्ता बताते है, साथ ही हमारी बुराइयों को नष्ट करने में  मदद करते है।

गुरु का अर्थ

गुरु वह होता है जो सामाजिक भेदभाव को मिटाकर समाज में मिलजुल कर रहने का पाठ पढ़ाये और सभी को एकता के साथ रहने का रास्ता दिखाए।  एक ऐसे ही धर्मगुरु हुए गुरु नानक देव जिन्होंने मूर्ति पूजा को त्यागकर निर्गुण भक्ति का पक्ष लिया l उनके अनुसार ईश्वर की भक्ति मन से होनी चाहिए। गुरु नानक देव के व्यक्तित्व में दार्शनिक, योगी, गृहस्थ, धर्म सुधारक, समाज सुधारक, कवि, देशभक्त और विश्वबंधु के सारे गुण मिलते हैं। गुरु नानक देव का जन्म 15वीं सदी में 15 अप्रैल 1469 को उत्तरी पंजाब के तलवंडी गांव (वर्तमान पाकिस्तान में ननकाना) के एक हिन्दू परिवार में हुआ था। किंतु प्रचलित तिथि कार्तिक पूर्णिमा ही है, जो अक्टूबर-नवंबर में दीपावली के 15 दिन बाद पड़ती है।

उनका नाम नानक उनकी बड़ी बहन नानकी के नाम पर रखा गया था। वे अपनी माता तृप्ता व पिता मेहता कालू के साथ रहते थे। इनके पिता तलवंडी गांव में पटवारी थे। नानकदेव स्थानीय भाषा के साथ पारसी और अरबी भाषा में भी पारंगत थे। वे बचपन से ही अध्यात्म एवं भक्ति की तरफ आकर्षित थे। बचपन में नानक को पशु चराने का काम दिया गया था, और पशुओं को चराते समय वे कई घंटों ध्यान में रहते थे। एक दिन उनके पशुओं ने पड़ोसियों की फसल को बर्बाद कर दिया, तो उनको उनके पिता ने उनको बहुत डांटा। जब गांव का मुखिया राय बुल्लर वो फसल देखने गया तो फसल बिलकुल सही-सलामत थी। यही से उनके चमत्कार शुरू हो गए और इसके बाद वे संत बन गए।

दया भावना

जब नानक की आध्यात्मिकता अधिक बढ़ने लगी तो पिता मेहता कालू ने उन्हें व्यापार के धंधे में लगा दिया। परन्तु व्यापारी बनने के बाद भी उनका सेवा और परोपकार का भाव नहीं छूटा। वे अपनी कमाई के पैसों से भूखों को भोजन कराने लगे। यहीं से लंगर का इतिहास शुरू हुआ।

सिख धर्म के संस्थापक, महान दार्शनिक गुरु, गुरु नानक देव जी से आप सभी परिचित है। आइए जानते हैं उनके 10 महत्वपूर्ण सिद्धांत…
  • ईश्वर एक है।
  • सदैव एक ही ईश्वर की उपासना करो।
  • जगत का कर्ता सब जगह और सब प्राणी मात्र में मौजूद है।
  • सर्वशक्तिमान ईश्वर की भक्ति करने वालों को किसी का भय नहीं रहता।
  • ईमानदारी से मेहनत करके उदरपूर्ति करना चाहिए।
  • बुरा कार्य करने के बारे में न सोचें और न किसी को सताएं।
  • सदा प्रसन्न रहना चाहिए। ईश्वर से सदा अपने को क्षमाशीलता मांगना चाहिए।
  • भोजन शरीर को जिंदा रखने के लिए जरूरी है पर लोभ-लालच व संग्रहवृत्ति बुरी है।
  • सभी स्त्री और पुरुष बराबर हैं।
  • मेहनत और ईमानदारी से कमाई करके उसमें से जरूरतमंद को भी कुछ देना चाहिए।

मालचा महल – दिल्ली में स्थित एक भूतिया महल

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मालचा महल को विलायत महल के नाम से भी जाना जाता है। यह दिल्ली के चाणक्यपुरी क्षेत्र में स्थित है। इसका निर्माण 1325 में दिल्ली सल्तनत पर शासन करने वाले फ़िरोज़ शाह तुगलक द्वारा किया गया था।

इसे अवध की “बेगम विलायत महल” के नाम पर “विलायत महल” के नाम से जाना जाने लगा जिन्होंने खुद को अवध के शाही परिवार का सदस्य होने का दावा किया था।

वैसे तो दिल्ली के कई हॉन्टेड स्थानों के बारे में आपने सुना होगा पर मालचा महल (Malcha Mahal) की स्टोरी औरों से काफी दिलचस्प है।

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चाणक्यपुरी क्षेत्र स्थित मालचा महल में बेगम विलायत महल ने 10 सितंबर 1993 को, 62 वर्ष की आयु में आत्महत्या कर ली थी । कहा जाता है कि विलायत महल की आत्मा आज भी यहां भटकती है।

स्थानीय लोगो के अनुसार रात को यहां तरह-तरह की आवाजें सुनाई देती हैं। जंगल के बीच स्थित इस महल तक जाने का रास्ता भी काफी डरावना है।

करीब 1 किलोमीटर तक जंगल के बीच से होकर यहां पहुंचना होता है। घना जंगल की वजह से यहां बंदर, सियार, गाय-बैल आदि जानवर घूमते मिल जाते हैं।

चाणक्यपुरी क्षेत्र स्थित मालचा महल में बेगम विलायत महल ने 10 सितंबर 1993 को, 62 वर्ष की आयु में आत्महत्या कर ली थी । कहा जाता है कि विलायत महल की आत्मा आज भी यहां भटकती है।

स्थानीय लोगो के अनुसार रात को यहां तरह-तरह की आवाजें सुनाई देती हैं। जंगल के बीच स्थित इस महल तक जाने का रास्ता भी काफी डरावना है।

करीब 1 किलोमीटर तक जंगल के बीच से होकर यहां पहुंचना होता है। घना जंगल की वजह से यहां बंदर, सियार, गाय-बैल आदि जानवर घूमते मिल जाते हैं।

कौन थीं बेगम विलायत महल

इतिहास के अनुसार लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह को अंग्रेजों ने 1856 में सत्ता से बेदखल कर दिया था। उनको कोलकाता की जेल में डाल दिया गया, जहां उन्होंने अपनी जिंदगी के आखिरी 26 साल गुजारे थे।

उसके बाद वाजिद अली का परिवार बिखर गया था। बेगम विलायत महल अपने को वाजिद अली की आखिरी वारिस बताती थीं। जिसको देखते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने 1971 में कश्मीर में उन्हें रहने के लिए एक बंगला दिलवाया था।

कहा जाता है कि बाद में वह बंगला जल गया और उसके बाद बेगम विलायत महल रहने के लिए दिल्ली आ गईं। उनके साथ उनकी बेटी राजकुमारी सकीना महल, बेटे राजकुमार अली रजा उर्फ साइरस, 7 नौकर और 13 खूंखार कुत्ते भी आए थे।

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बेगम विलायत ने दिल्ली रेलवे स्टेशन के वीआईपी लाउंज में करीब 9 साल तक धरना दिया था। वह अपने लिए मुआवजे के तौर महल की मांग कर रही थीं। जब रेलवे के अफसर उनको हटाने आते, तो उनके खूंखार कुत्ते उन पर झपट पड़ते। कहा जात है वो अपने साथ सांप का ज़हर रखती थी और धमकी देतीं थी कि अगर कोई भी आगे आया, तो सांप का जहर पीकर वो जान दे देंगी।

अंततः तत्कालीन केंद्र सरकार द्वारा 1985 में बेगम विलायत महल को मालचा महल का मालिकाना हक दे दिया गया और इसके बाद वह यहां रहने लगीं।

महल में रहते हुए 10 सितंबर 1993 को बेगम विलायत महल ने 62 वर्ष की उम्र में आत्महत्या कर ली थी। उनका शव यहां 10 दिनों तक पड़ा रहा। बाद में उनके बेटे-बेटी ने उनके शव को महल परिसर में ही कब्र में दफना दिया।

24 जून 1994 को खजाने की खोज में कुछ लोग महल में घुस आए। बेगम विलायत महल के बेटे और बेटी को डर हो गया कहीं ये लोग उनकी मां की कब्र न खोद दें। फिर दोनों ने खुद उनकी कब्र को खोदकर उनके शरीर को जला दिया और उनकी राख को एक बर्तन में रख दिया। इस घटना के बाद दिल्ली के लेफ्टिनेंट गवर्नर ने उनको रिवॉल्वर मुहैया कराई।

बेगम विलायत महल की मौत के बाद से ही बेगम सकीना महल और प्रिंस अली रजा अपने कुत्तों और नौकरों के साथ रहने लगे। एक-एक कर कुत्ते और नौकर मरते गए। कुछ कुत्तों को तो उन लोगों ने मार दिया, जो अक्सर महल से खजाना लूटने की फिराक में लगे रहते थे। लोगों ने उनके महल से काफी सोना चांदी भी चुरा लिया था।

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बेगम सकीना महल और प्रिंस अली रजा बहुत पढ़े-लिखे थे। सकीना महल ने तो अपनी मां के ऊपर एक किताब भी लिखी थी। किताब का नाम है –‘प्रिंसेस विलायत महल : अनसीन प्रेजन्स’।

सकीना महल ने न्यूयॉर्क टाइम्स को इंटरव्यू देते हुए कहा था कि मुझे यह समझ आ गया है कि ये दुनिया कुछ नहीं है। ये क्रूर प्रकृति हमारी बर्बादी में खुश होती है। हम जिंदा लाशों के खानदान बन गए हैं। सकीना महल कहती थीं कि आम होना एक जुर्म ही नहीं है, बल्कि पाप है।

2017 को मालचा महल में प्रिंस अली रजा मृत पाए गए थे। इनके अंतिम संस्कार के लिए जब कोई नहीं आया तब कई दिन बाद दिल्ली पुलिस ने वक्फ बोर्ड की मदद से दिल्ली गेट के पास उनके शव को दफन करवा दिया था।

इससे कुछ महीने बाद बेगम सकीना महल की भी मृत्यु हो गई। इस तरह से नवाब के परिवार ने गुमनामी की जिंदगी जीते हुए दम तोड़ दिया। बेगम विलायत महल और उनके बेटे-बेटी अपने अतीत को भुला नहीं सके। वो मरने तक खुद को नवाब की तरह समझते रहे।

महल तक आने और मिलने को किसी को इजाजत नहीं थी। महल के गेट पर ही लिखा था कि यहां किसी बाहरी व्यक्ति को देखते ही गोली मार दी जाएगी। बेगम सकीना महल और प्रिंस अली रजा सिर्फ विदेशी पत्रकारों को छोड़कर किसी और से नहीं मिलते थे।

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हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के बारे में कुछ आश्चर्यजनक तथ्य

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दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित और प्रसिद्ध संस्थानों में से एक है हार्वर्ड विश्वविद्यालय। यह समृद्ध इतिहास और दिलचस्प तथ्यों का भंडार है। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी अमेरिका के मैसाचुसेट्स शहर के कैंब्रिज में स्थित है। इसकी शुरुआत में इसे न्यू कॉलेज और द कॉलेज ऑफ न्यू टाउन के नाम से जाना जाता था।

इस लेख में हम आपको हार्वर्ड विश्वविद्यालय के बारे में कुछ आश्चर्यजनक तथ्यों के बारे में बताने जा रहे हैं जिनके बारे में आप शायद ही जानते होंगे, तो चलिए जानते हैं।

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  • हार्वर्ड विश्वविद्यालय की स्थापना 1636 में हुई थी जिससे यह संयुक्त राज्य अमेरिका में उच्च शिक्षा का सबसे पुराना संस्थान बन गया। इसका एक समृद्ध इतिहास है जो चार शताब्दियों तक फैला हुआ है। 13 मार्च 1639 को इसका नाम बदलकर हार्वर्ड कॉलेज रखा गया।
  • हार्वर्ड विश्वविद्यालय का नाम जॉन हार्वर्ड के सम्मान में रखा गया था, जिन्होंने अपनी लाइब्रेरी और अपनी संपत्ति का आधा हिस्सा संस्थान के लिए छोड़ दिया था। जॉन हार्वर्ड ने इस इंस्टीट्यूट को चार सौ किताबों की लाइब्रेरी और 779 डॉलर की राशि दान में दी थी।
  • इस यूनिवर्सिटी में 2100 से अधिक फैकल्टी हैं। हर साल यहां 21 हजार से ज्यादा स्टूडेंट्स एडमिशन लेते हैं। इनमें 7 हजार से ज्यादा विदेशी स्टूडेंट्स होते हैं।
  • हार्वर्ड यार्ड, जिसे विश्वविद्यालय का हृदय भी कहा जाता हैं परिसर का सबसे पुराना हिस्सा है। यह एक सुरम्य और ऐतिहासिक स्थान है जो छात्रों, शिक्षकों और आगंतुकों के लिए एक सभा स्थल के रूप में कार्य करता है।
  • जॉन हार्वर्ड प्रतिमा को “तीन झूठों की मूर्ति” का उपनाम दिया गया है।
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  • हार्वर्ड विश्वविद्यालय के पूर्व छात्रों की एक प्रभावशाली सूची है, जिसमें आठ अमेरिकी राष्ट्रपतियों के साथ-साथ कई व्यापारिक नेता, नोबेल पुरस्कार विजेता और पुलित्जर पुरस्कार विजेता शामिल हैं। (जॉन एफ कैनेडी, बराक ओबामा, विलियम हेनरी गेट्स, नताली पोर्टमैन, रूथ बेडर गिन्सबर्ग, मार्क जुकरबर्ग, मैट डेमन, टीएस एलियट, जॉर्ज बुश, रतन टाटा, हेलेन केलर, रॉबर्ट ओपेनहाइमर, आनंद महिंद्रा, मिशेल ओबामा, फ्रैंक डेलानो रूजवेल्ट, नील डेग्रसे टायसन, कॉनन ओ’ब्रायन, माइकल ब्लूमबर्ग, मार्गरेट एटवुड, टॉमी ली जोन्स)
  • हार्वर्ड क्रिमसन हार्वर्ड विश्वविद्यालय का छात्र समाचार पत्र है जिसकी स्थापना 1873 में हुई थी। यह पूरी तरह से हार्वर्ड कॉलेज के स्नातक छात्रों द्वारा चलाया जाता था, इसने कई वर्षों तक कैम्ब्रिज, मैसाचुसेट्स में एकमात्र दैनिक समाचार पत्र के रूप में कार्य किया।
  • हार्वर्ड विश्वविद्यालय में अत्यधिक प्रतिस्पर्धी प्रवेश प्रक्रिया है, जिसमें स्वीकृति दर 5% से कम है। हर साल, दुनिया भर से बड़ी संख्या में प्रतिभाशाली और निपुण छात्र हार्वर्ड के प्रतिष्ठित स्नातक कार्यक्रम में स्थान पाने के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं।
  • हार्वर्ड लाइब्रेरी प्रणाली में 70 से अधिक पुस्तकालय शामिल हैं, जो इसे दुनिया की सबसे बड़ी शैक्षणिक पुस्तकालय प्रणालियों में से एक बनाता है। इसमें पुस्तकों, पांडुलिपियों और डिजिटल संसाधनों का एक विशाल संग्रह है।
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  • $40 बिलियन से अधिक की एंडोमेंट (लाइफ़ इंश्योरेंस कवर) के साथ, हार्वर्ड विश्वविद्यालय के पास विश्व स्तर पर किसी भी विश्वविद्यालय की तुलना में सबसे बड़ी बंदोबस्ती होने का प्रतिष्ठित खिताब है। यह वित्तीय संसाधन अनुसंधान, छात्रवृत्ति और चल रही परियोजनाओं के लिए महत्वपूर्ण सहायता प्रदान करता है।
  • हार्वर्ड विश्वविद्यालय में एथलेटिक टीमों हार्वर्ड क्रिमसन के उपनाम से जाना जाता है। हार्वर्ड विश्वविद्यालय फुटबॉल, बास्केटबॉल और रोइंग सहित कई खेलों में एनसीएए डिवीजन स्तर पर प्रतिस्पर्धा करती हैं।
  • हार्वर्ड का परिसर मेमोरियल हॉल, वाइडनर लाइब्रेरी और हार्वर्ड कला संग्रहालय सहित प्रतिष्ठित स्थलों से भरा हुआ है।
  • हार्वर्ड विश्वविद्यालय छात्रों को छात्र क्लबों और संगठनों से लेकर सांस्कृतिक कार्यक्रमों और सामुदायिक सेवा पहलों तक ढेर सारे अवसर प्रदान करता है। ये गतिविधियाँ समग्र छात्र अनुभव को बढ़ाती हैं और व्यक्तिगत वृद्धि और विकास को बढ़ावा देती हैं।
  • हार्वर्ड लॉ स्कूल दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित लॉ स्कूलों में से एक है। इसे लगातार विश्व स्तर पर शीर्ष लॉ स्कूलों में स्थान दिया गया है।

नंबर सात के बारे में कुछ मज़ेदार रोचक तथ्य!

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नंबर्स का हमारे जीवन में एक महत्वपूर्ण स्थान है, फिर चाहे वो पैसे के रूप में हो या संख्या के रूप में। लेकिन क्या आपको पता है कि इन सभी नंबर्स में से 7 एक ऐसा नंबर है जो अन्य सभी में से यूनिक है।

वैसे तो सभी नंबर्स यूनिक ही होते हैं परंतु 7 नंबर को दुनिया का सबसे शुभ अंक माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि भगवान ने पूरी दुनिया को 6 दिनों में बनाकर 7 वें दिन ही आराम किया था।

आज की हमारी इस पोस्ट में हम आपको नंबर सात के बारे में कुछ मज़ेदार तथ्यों के बारे में बताने जा रहे हैं, तो चलिए शुरू करते हैं ।

facts about number seven

  • भारतीय संस्कृति में 7 की संख्या बहुत खास मानी गई है, जैसे संगीत के 7 सुर, इंद्रधनुष के 7 रंग, 7 ग्रह, 7 तल, 7 समुद्र, 7 ऋषि, सप्त लोक, सूर्य के 7 घोड़े, सप्त धातु, 7 द्वीप, 7 दिन आदि।
  • हिंदू धर्म में पाताल और स्वर्ग के बीच 7 डिविजन का महत्व बताया गया है।
  • बाइबल में 7 महान चर्च बताए गए हैं। इफिसुस, स्मिर्ना, पेरगाम, थुआतिरा, सार्डिस, फिलाडेल्फिया और लौदीकिया
  • इंसान की चमड़ी में 2 आंतरिक व 5 बाहरी यानी कुल 7 सतह होती है।
  • मान्यता है कि 7 फेरे जीवन की पूर्णता को दर्शाते हैं। इसमें जप, तप, व्रत, नियम, दान, कर्म एवं स्वाध्याय, ये 7 बिंदु ही विवाह परंपरा को पूरा करते हैं।
  • 7 फेरों का 7 जन्मों का भी प्रतीक माना जाता है, क्योंकि हिंदू धर्म में मान्यता है कि पति-पत्नी का संबंध सिर्फ एक जन्म का नहीं बल्कि 7 जन्मों का होता है।
  • वैसे तो धरती पर बहुत से अजूबे हैं लेकिन कुल महत्वपूर्ण 7 अजूबे हैं जिनमें शामिल है चीन की महान दीवार, ताजमहल, कोलोज़ीयम, माचू पिच्चू”, क्राइस्ट रिडीमर, चिचेन इत्जा, पेट्रा
  • वैज्ञानिकों के अनुसार मानव शरीर में 7 सालों बाद कुछ न कुछ परिवर्तन होता रहता है।
  • प्रबंधकों के अनुसार किसी देश की अर्थव्यवस्था हर 7 साल में चक्र परिवर्तन करती है।
  • Book Of Revaluation में 7 भगवान की आत्माओं के बारे में लिखा गया है।
  • हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के ज्योर्ज मिलर ने लिखा है कि एक सामान्य इंसान कम समय में केवल 7 चीजें ही एक साथ याद रख पाता है।
  • एक सबसे अच्छी होटल 7 स्टार होटल को माना जाता है।
  • शरीर में ऊर्जा के 7 केंद्र माने गए हैं। इन केंद्रो को चक्र कहा जाता है। इनके नाम हैं- मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्ध, आज्ञा और सहस्रार चक्र। ये चक्र ही हमें जीवनदायिनी शक्ति प्रदान करते हैं।
  • 7 को पूर्ण अंक माना गया है। यानी 7 किसी दूसरे अंक से पूरी तरह विभाजित नहीं होता। इसके पीछे मनोवैज्ञानिक पक्ष ये है कि जिस तरह अंक 7 अविभाजित है, उसी तरह पति-पत्नी का संबंध भी कभी अलग न हो।

खूनी दरवाज़ा : जिसका इतिहास है बेहद खौफनाक

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खूनी दरवाजा जिसे लाल दरवाजा भी कहा जाता है, दिल्ली में बहादुरशाह ज़फ़र मार्ग पर दिल्ली गेट के निकट स्थित है। यह दिल्ली के बचे हुए 13 ऐतिहासिक दरवाजों में से एक है। यह पुरानी दिल्ली के लगभग आधा किलोमीटर दक्षिण में, फ़िरोज़ शाह कोटला मैदान के सामने स्थित है।

इसके पश्चिम में मौलाना आज़ाद चिकित्सीय महाविद्यालय का द्वार है। भारतीय पुरातत्व विभाग ने इसे सुरक्षित स्मारक घोषित किया है।

शुरुआत में यह लाल दरवाजे के नाम से ही जाना जाता था, बाद में इस दरवाजे के पास कुछ दिल दहला देने वाली घटनाओं के कारण इसका नाम बदलकर खूनी दरवाजा कर दिया गया था। इस दरवाजे से जुड़े इतिहास में कई डरावने किस्से भी दर्ज हैं।

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कैसे पड़ा नाम खूनी दरवाजा

खूनी दरवाजे का यह नाम तब पड़ा जब यहाँ मुग़ल सल्तनत के तीन शहज़ादों – बहादुरशाह ज़फ़र के बेटों मिर्ज़ा मुग़ल और किज़्र सुल्तान और पोते अबू बकर – को ब्रिटिश जनरल विलियम हॉडसन ने 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के दौरान गोली मार कर हत्या कर दी।

बहादुरशाह जफर के आत्मसमर्पण के अगले ही दिन विलियम हॉडसन ने तीनों शहजादों को भी समर्पण करने पर मजबूर कर दिया था।

मगर 22 सितम्बर को जब वह इन तीनों को हुमायूं के मकबरे से लाल किले की ओर ले जा रहा था, तो उसने इन्हें इसी जगह पर रोक दिया और नग्न कर इसी दरवाजे के पास गोलियां दाग कर मार डाला था। इसके बाद शवों को इसी हालत में ले जाकर कोतवाली के सामने प्रदर्शित कर दिया गया।

 

औरंगजेब ने अपने भाई का सिर काटकर लटकाया था यहां

इस गेट से जुड़ा सबसे पहला खूनी इतिहास मुगल शासक औरंगजेब से जुड़ा है। यह बात 10 सितंबर 1659 की है, जब औरंगजेब ने दिल्ली की कुर्सी हासिल करने के लिए अपने परिवार को धोखा दिया था।

उसने अपने बड़े भाई दारा शिकोह का सिर कटवाकर उसकी हत्या कर दी थी। इसके बाद उसने इसी दरवाजे पर दारा शिकोह के सिर को लटका दिया था। भाई की हत्या करने के बाद औरंगजेब मुगल साम्राज्य का शासक बना था।

एक अन्य कहानी के अनुसार जब जंहागीर बादशाह बना था तब अकबर के नवरत्नों ने उसका विरोध किया था। जिसके कारण जंहागीर ने उनमें से एक अब्दुल रहीम खानखाना के दो बेटों को इस दरवाजे पर मरवा डाला और इनके शवों को यहीं सड़ने के लिए छोड़ दिया गया।

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1739 में जब नादिर शाह ने दिल्ली पर चढ़ाई की तो इस दरवाजे के पास बहुत खून बहाया था। लेकिन कुछ सूत्रों के अनुसार यह खून-खराबा चाँदनी चौक के दड़ीबा मुहल्ले में स्थित इसी नाम के दूसरे दरवाजे पर हुआ था। इसके अलावा 1947 में विभाजन के दौरान सैकड़ों शरणार्थियों की इसी दरवाजे पर हत्या भी कर दी गई थी।

दरवाजे के आसपास के इलाके में रहने वाले लोग यह भी बताते हैं कि रात में इस दरवाजे के पास से चीखने-पुकारने की आवाजें भी आती रहती हैं।

लोगों का कहना है कि जिन लोगों को यहां मारा गया था उनकी आत्माएं आज भी यहीं भटकती हैं। कुछ लोग यहां तक कहते हैं कि मॉनसून के मौसम में दरवाजे की छत से खून की बूंदें भी टपकती हैं। हालांकि इस तरह के दावे को सिद्ध करने के लिए आजतक कोई भी ऐसा सबूत नहीं मिला है।

 

वास्तु टिप्स – घर बनवाते या खरीदते समय रखें इन बातों का ध्यान

वास्तु टिप्स – घर खरीदना जीवन के लिए बहुत महत्वपूर्ण फैसलों में से एक होता है। घर खरीदना एक सपने के पूरा होने जैसा होता है। ज्योतिष में वास्तु का विशेष महत्व होता है। अगर घर का वास्तु ठीक होता है, तो घर पर हमेशा सकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश होता है।

वहीं अगर घर के वास्तु में कोई कमी होती है, तो घर के सदस्यों को तमाम तरह की परेशानियों से जूझना पड़ता है। घर बनवाते और खरीदते समय आपको वास्तु के कुछ नियमों का ध्यान रखना चाहिए।

इस पोस्ट के माध्यम से हम आपको घर बनवाते या खरीदते समय किन बातों का ध्यान रखना चाहिए के बारे में बताने जा रहे हैं तो चलिए जानते हैं।

  • घर में पूजा स्थान का विशेष महत्व होता है, क्योंकि पूजा स्थान ही होता है, जहां से सबसे ज्यादा सकारात्मक ऊर्जा आती है। पूजा स्थान को उत्तर-पूर्व दिशा में ही बनवाएं। भगवान के कैलेंडर या तस्‍वीरें या फिर धार्मिक आस्‍था से जुड़ी वस्‍तुएं सिर्फ पूजा स्थान पर ही रखें, इन वस्तुओं को बेडरूम में ना रखें।
  • घर का मुख्य दरवाज़ा अंदर की तरफ खुलने को वास्तु शास्त्र में शुभ माना जाता है। घर का मुख्‍य दरवाज़ा दक्षिण मुखी नहीं होना चाहिए। मुख्य दरवाज़े के सामने बिजली का खंभा, वृक्ष आदि नहीं होना चाहिए।
  • बाथरूम घर के मध्य में या मुख्य दरवाज़े के सामने अशुभ होते हैं। अगर बाथरूम मुख्य दरवाज़े के सामने हैं, तो इसके दरवाज़े को बंद रखें।
  • किचन की दिशा ईशान कोण में नहीं होनी चाहिए।
  • बेडरूम हमेशा नैऋत्य कोण में होना चाहिए। सभी कमरों में प्राकृतिक प्रकाश और हवा का संचार होना चाहिए।
  • घर बनवाते या खरीदते समय इस बात का भी ध्यान रखें कि सामने की तरफ सीढ़ियां या लिफ्ट न हों।
  • आपके घर में पैसे रखने का स्थान दक्षिण दिशा में हो और उस तिजोरी का खुलने वाला हिस्सा उत्तर दिशा की ओर होना चाहिए।
  • ईशान कोण अधिक से अधिक खुला और हवादार होना चाहिए। घर का निर्माण कार्य कराते समय ईशान कोण को हमेशा गहरा या नीचा रखना चाहिए और नैऋत्य कोण यानी दक्षिण और पश्चिम का कोना हमेशा बाकी कोनों से ऊंचा होना चाहिए।
  • घर का आकार सदैव आयताकार या वर्गाकार होना चाहिए। हमेशा ध्यान रखें कि घर कभी भी L या C आकार का नहीं होना चाहिए। इस तरह के आकार के घर शुभ नहीं माने जाते।
  • बच्चों के पढ़ने का कमरा उत्तर पूर्व दिशा में होना चाहिए। बच्चे इस दिशा की और देख कर पढ़ाई करें, इस से उन्हें लाभ होगा।

भाई दूज पर तिलक करते समय इस दिशा में होना चाहिए भाई का मुंह, बहनें भी रखें इन बातों का ध्यान

भाई दूज का पर्व कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। इस साल भाई दूज का पर्व 14 और 15 नवंबर 2023 को मनाया जाएगा। रक्षाबंधन की तरह यह पर्व भी हर भाई-बहन के लिए बेहद खास है।

इस त्यौहार को भाई दूज, भाई टीका और यम द्वितीया के नाम से भी जाना जाता है। हर साल भाई दूज दिवाली के दो दिन बाद मनाया जाता है। कहा जाता है कि भाई दूज के दिन तिलक लगाने से भाई को लंबी उम्र के साथ सुख-समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है।

मान्यताओं के अनुसार बहनों को भाई का तिलक करते समय शुभ मुहूर्त के अलावा कुछ अन्य नियमों का भी विशेष ध्यान रखना चाहिए। आइए जानते हैं इन नियमों के बारे में…

तिलक लगाते समय इन बातों का रखें ध्यान

भाई दूज के दिन बहन रोली का तिलक लगाकर अपने भाई की पूजा करती है, लेकिन तिलक लगाते समय दिशा का ध्यान रखना चाहिए।

वास्तु विशेषज्ञों के अनुसार तिलक करते समय भाई का मुख या तो उत्तर या उत्तर-पश्चिम दिशा में होना चाहिए और बहन का मुख उत्तर-पूर्व या पूर्व में होना चाहिए। साथ ही भाई दूज के दिन बहन को अपने भाई का तिलक करने से पहले कुछ भी खाना-पीना नहीं चाहिए।

भाई दूज पर ऐसे करें तिलक

भाई दूज के दिन सबसे पहले आटे की लोई बना लें। इसके बाद चौकोर पर लकड़ी की एक डंडी रख दें और उस पर भाई को बिठा दें। ध्यान रहे कि भाई का मुख पूर्व दिशा की ओर हो।

फिर भाई के माथे पर तिलक करें। तिलक लगाने के बाद भाई के हाथ पर कलावा बांधें। इसके बाद दीप जलाकर भाई की आरती करें और उनकी लंबी आयु की कामना करें।

बहन-भाई को भूल कर भी न करें ये गलतियां

  • भाई दूज के दिन बहन और भाई को आपस में बहस या झगड़ा नहीं करना चाहिए।
  • बहन को भाई से मिले उपहार का अनादर नहीं करना चाहिए।
  • भाई दूज के दिन बहन को भाई का तिलक करने से पहले कुछ भी खाना-पीना नहीं चाहिए।
  • इस दिन भूलकर भी बहन और भाई को एक दूसरे से झूठ नहीं बोलना चाहिए।
  • भाइयों को तिलक लगाते समय बहनों को इस दिन भी काले कपड़े नहीं पहनने चाहिए।

जानिए कब है भाई दूज, शुभ मुहूर्त और तिलक करने की विधि

भाई दूज का त्यौहार भाई बहन के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है। भाई दूज का त्यौहार दिवाली के दो दिन बाद कार्तिक शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है।

इस दिन बहनें अपने भाइयों के हाथ पर कलावा बांधती है और माथे पर तिलक लगाकर एवं देवता से उसकी लंबी उम्र की कामना करती है।

दिवाली के 2 दिन बाद आने वाले इस पर्व का महत्व माना जाता है कि इस पर्व को सबसे पहले यमराज और उसकी बहन यमुना द्वारा बनाया गया था।

तो आइये जानते हैं भाई दूज का शुभ मुहूर्त और तिलक करने की विधि:-

भाई दूज तिलक शुभ मुहूर्त

इस साल भाई दूज का त्योहार दो दिन यानी 14 और 15 नवंबर 2023 को मनाया जाएगा। पंचांग के अनुसार कार्तिक माह के शुक्ल द्वितीया तिथि की शुरुआत 14 नवंबर 2023 को दोपहर 02 बजकर 36 से शुरू हो रही है। इसका समापन 15 नवंबर 2023 को दोपहर 01 बजकर 47 पर होगा।

bhai dooj 2023

तिलक करने की विधि

भाईदूज के दिन सुबह स्नान करें। उसके बाद भगवान् की पूजा करनी चाहिए। फिर सूर्य देव को अर्द्ध दें और सूर्य देव की  पूजा करें और कहें कि मेरे भाई को चिरंजीवी होने का वरदान दें।

इसी वरदान के साथ भाई को टीका लगाने की विधि शुरू करनी चाहिए। इसके लिए आप पिसे हुए चावल के आटे या घोल से चौक बनाएं और शुभ मुहूर्त में इस चौक पर भाई को बिठाएं।

फिर भाई के माथे पर चावल का तिलक लगाएं, हाथ में कलावा बांधें और उन्हें सूखा नारियल, पान सुपारी, कुछ पैसे देकर मुंह मीठा करें और उन्हें भोजन कराएं।

भाईदूज से जुड़ी पौराणिक कथा

कई ऐसी पौराणिक कहानियां प्रचलित हैं, जिन्हें भाईदूज की शुरुआत का कारण मानते हैं। जिनमें से एक भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ी है।

एक पौराणिक कथा के अनुसार, जब वह राक्षस नरकासुर को मारने के बाद घर लौटे तो उनका स्वागत उनकी बहन (सुभद्रा) ने फूल, फल और मिठाई से किया।

सुभद्रा ने दीया जलाकर और भगवान श्रीकृष्ण के माथे पर तिलक लगाकर एक हजार से ज्यादा सालों तक भाई के जीवित रहने की कामना की। कहते हैं कि इसके बाद ही भाईदूज मनाने की परपंरा बन गई।

भाई का बहन के घर जाकर भोजन करना काफी शुभ माना जाता है अगर वह शादीशुदा हो तो वह अपने भाई को अपने हाथों से बनाकर भोजन कराएं। भाई अपनी बहन को अपने सामर्थ्य के अनुसार कुछ ना कुछ भेंट अवश्य दे।