Monday, December 2, 2024
17.9 C
Chandigarh

जीवनदायिनी नदियों पर गहराता संकट

प्राचीन काल में नदियों के किनारे ही मानव सभ्यताओं का जन्म व विकास हुआ थाl नदियां केवल धरती के प्राण ही नहीं हैं बल्कि मानव संस्कृतियों की जननी भी हैं।

हमारे पूर्वज नदियों को देवी मानकर उनकी पूजा किया करते थे नदियों की महानता से प्रसन्न होकर ऐतिहासिक काल में कई महा ऋषियों ने नदी व पुराण ग्रंथों की रचना भी की है।

उस समय नदियों के बिना जीवन की कल्पना संभव नहीं थी क्योंकि प्राचीन काल में नदियों का केवल धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व ही नहीं था बल्कि यह सामाजिक और आर्थिक महत्व को भी समेटे हुए थीं, जिन्हें उजागर करने के लिए कई मेलों और त्यौहारों का आयोजन भी नदियों को केंद्र में रखकर किया जाता था।

प्राचीन समय में भारत अपनी कई महान नदियों के कारण विश्व विख्यात था। भारत की धरती पर कई नदियां इठलाती थीं और उनके जल से हजारों खेतों में फसलें लहलहाती थीं।

प्राचीन भारत को सोने की चिड़िया का गौरव भी इन्हीं नदियों की बदौलत हासिल था लेकिन बदलते दौर में नदियों के मूल्यों और अस्मिता के साथ छेड़छाड़ हुई।

उनके निर्मल पवित्र जल में जहर घोल गया और उन्हें मृतप्राय सा बना कर छोड़ दिया गया। यही कारण है कि पूरी दुनिया में ऐसी नदियों की संख्या में तेजी से गिरावट आई है।

इसका असर इन नदियों में रहने वाले जीवों की प्रजातियों पर भी पड़ा है। एक नए अध्ययन में कहा गया है कि दुनिया में केवल 17 फीसदी नदियां ऐसी बची हैं, जिनमें बह रहा पानी साफ व ताजा है।

ये नदियां भी इसलिए बची हैं, क्योंकि उन क्षेत्रों को संरक्षित घोषित किया जा चुका है। चिंताजनक बात है कि मछली, कछुए जैसी सैंकड़ों प्रजातियां जो साफ और ताजे पानी वाली नदियों में रहती हैं, उनकी संख्या में भी बेहद कमी दर्ज की गई है।

एक अध्ययन बताता है कि उसे 1970 के बाद से इन जीवों की आबादी में औसतन 84 फ़ीसदी की कमी आई है क्योंकि इन सालों के दौरान नदियों पर बांध बनाने, प्रदूषण, नदियों की धाराओं को मोड़ देने जैसी घटनाएं बढ़ी हैं।

आज देश में तकरीबन 223 नदियों का पानी इतना प्रदूषित हो चुका है कि उनके पानी में नहाने या पीने पर बीमारी का खतरा हो सकता है। देश की 62 फीसदी नदियां भयंकर रूप से प्रदूषित हो चुकी हैं।

इनमें गंगा और यमुना समेत इनकी सहायक नदियां भी शामिल हैं। निश्चित ही शहरीकरण और औद्योगीकरण ने नदियों के प्राण हरने का कार्य किया है। कृषि अपशिष्ट, रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों ने नदियों के जल को सर्वाधिक क्षति पहुंचाई है।

औद्योगिक अपशिष्ट, भारी धातु, प्लास्टिक की थैलियां व ठोस अपशिष्ट जैसी वस्तुओं के कारण नदियों की अविरल धारा में रुकावट आई है। वहीं पशुओं के नहाने, मानव द्वारा मल-मूत्र त्यागने के कारण नदियों का जल प्रदूषित हुआ है।

आज देश में नदियों को स्वच्छ बनाने के लिए तो कई योजनाएं और परियोजनाओं के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च किए जा रहे हैं पर नदियों को प्रदूषित करने वाले कारकों पर किसी तरह की रोक लगाने को लेकर प्रयास होते नहीं दिख रहे।

इसी वजह से जहां एक और नदियां साफ हो रही हैं तो दूसरी और डाला जा रहा कचरा उन्हें फिर से गंदी कर रहा है।
असल में देश में नदी संरक्षण का कार्य नदी प्रबंधन सिद्धांत के बिना ही चल रहा है।

क्या केवल कार्य योजनाओं के बूते देश की नदियों का जल स्वच्छ हो जाएगा? हमारे लिए नदी प्रबंधन का सिद्धांत यह होना चाहिए कि नदी को कोई खराब ही नहीं करे। यदि ऐसा होगा तो नदी को स्वच्छ करने के नाम पर करोड़ों का धन व्यय करने की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।

नदियों में जैव विविधता लौटाने के लिए नदियों के पानी में जैव ऑक्सीजन की मांग घटानी होगी ताकि नदियों को साफ करने वाले जलीय जीव जिंदा रह सकें।

नदियों के पानी में औषधीय गुण फिर आएं इसके लिए किनारों पर औषधीय पेड़ रोपित किए जाएं। इसके अतिरिक्त खेतों और घरों में डिटर्जेंट आदि में इस्तेमाल हो रहे खतरनाक रसायन और कीटनाशक से नदियों को बचाना होगा।

मुक्त रूप से बहने वाली नदियां और अन्य प्राकृतिक रूप से काम करने वाले तेज ताजे पानी के पारिस्थितिक तंत्र, जैव विविधता और खाद्य आपूर्ति श्रृंखला, पेयजल, अर्थव्यवस्था और दुनिया भर के अरबों लोगों की संस्कृतियों को बनाए रखते हैं इसलिए मूल्यों को बनाए रखने के लिए उनकी सुरक्षा महत्वपूर्ण है।

अस्तित्व के लिए जूझ रही नदियों को जीवित नदी का दर्जा देने से अधिक जरूरी है उन्हें जीवित रखना। यह काम केवल खानापूर्ति से नहीं होगा बल्कि इसके लिए मजबूत इच्छाशक्ति व ईमानदारी से प्रयास करने की जरूरत है।

पंजाब केसरी से साभार…।

यह भी पढ़ें :-

Related Articles

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

15,988FansLike
0FollowersFollow
110FollowersFollow
- Advertisement -

MOST POPULAR