अयोध्या नगरी में भगवान राम मंदिर के निर्माण और श्री रामलला की प्राण प्रतिष्ठा को लेकर देश में हर तरफ एक अलग ही खुशी का माहौल है। ऐसे में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उस्मान मीर के एक राम भजन को लेकर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर तारीफभरा पोस्ट किया।
पीएम मोदी ने एक्स पर अपने पोस्ट में लिखा, “अयोध्या नगरी में श्री रामजी के पधारने को लेकर हर ओर उमंग और उल्लास है। उस्मान मीर जी का यह मधुर राम भजन सुनकर आपको इसी की दिव्य अनुभूति होगी।”
अयोध्या नगरी में श्री रामजी के पधारने को लेकर हर ओर उमंग और उल्लास है। उस्मान मीर जी का यह मधुर राम भजन सुनकर आपको इसी की दिव्य अनुभूति होगी। #ShriRamBhajanhttps://t.co/EcYGH8UaP6
इससे पहले भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विकास और महेश कुकरेजा के एक राम भजन लेकर एक्स पर पोस्ट किया था। उन्होंने पोस्ट में लिखा था, “अयोध्या के साथ देशभर में आज हर ओर प्रभु श्री राम के स्वागत में मंगलगान हो रहा है।
इस पुण्य अवसर पर राम लला की भक्ति से ओतप्रोत विकास जी और महेश कुकरेजा जी के राम भजन को आप भी जरूर सुनिए।”
अयोध्या के साथ देशभर में आज हर ओर प्रभु श्री राम के स्वागत में मंगलगान हो रहा है। इस पुण्य अवसर पर राम लला की भक्ति से ओतप्रोत विकास जी और महेश कुकरेजा जी के राम भजन को आप भी जरूर सुनिए।#ShriRamBhajanhttps://t.co/yHYgEqiSt8
फोर्ब्स पत्रिका के अनुसार दुनिया में अरबपतियों की संख्या 2,640 बताई है। उनमें से सबसे धनी व्यक्ति एलोन मस्क हैं जोकि टेस्ला और स्पेसएक्स के सीईओ और एक्स (पूर्व में ट्विटर) के मालिक हैं। फोर्ब्स पत्रिका के अनुसार, इस साल की सूची में कुल मिलाकर “भारी उथल-पुथल” देखी गई है।
विश्व के सबसे अमीर लोगों की सूची इस प्रकार हैं।
एलन मस्क
एलन मस्क दुनिया के सबसे अमीर व्यक्तियों की सूची में शीर्ष पर हैं। मस्क इलेक्ट्रिक कार कंपनी टेस्ला, रॉकेट फर्म स्पेसएक्स और सोशल मीडिया कंपनी एक्स, जिसे पहले ट्विटर के नाम से जाना जाता था, के सीईओ हैं।
इनकी कुल संपत्ति 251.3 बिलियन डॉलर है। फिलहाल टेस्ला में उनकी 23% हिस्सेदारी है। उन्होंने स्पेसएक्स (रॉकेट निर्माता), टेस्ला (इलेक्ट्रिक कार निर्माता) और बोरिंग कंपनी (टनलिंग स्टार्टअप ) जैसी कंपनियों की सह-स्थापना की। उनकी संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा टेस्ला की सफलता से जुड़ा है।
बर्नार्ड अरनॉल्ट
बर्नार्ड अरनॉनिल्ट, दुनिया के दूसरे सबसे अमीर आदमी हैं। एलवीएमएच के सीईओ और अध्यक्ष बर्नार्ड अरनॉल्ट ने लगभग 70 फैशन और सौंदर्य प्रसाधन ब्रांडों के साथ दुनिया की सबसे बड़ी लक्जरी सामान कंपनी बनाई।
इसके सबसे उल्लेखनीय हैं: लुई वुइटन, क्रिश्चियन डायर, मोएट और चंदन और सेफोरा। जनवरी 2021 में, LVMH ने 15.8 बिलियन डॉलर में ज्वैलर टिफ़नी एंड कंपनी का अधिग्रहण किया। फोर्ब्स के अनुसार, जनवरी 2024 तक अरनॉल्ट की अनुमानित कुल संपत्ति 200.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर है।
जेफ बेजोस
जेफरी प्रेस्टन बेजोस एक अमेरिकी व्यवसायी और निवेशक हैं। वह दुनिया की सबसे बड़ी ई-कॉमर्स और क्लाउड कंप्यूटिंग कंपनी अमेज़ॅन के संस्थापक, कार्यकारी अध्यक्ष और पूर्व अध्यक्ष और सीईओ हैं।
ब्लूमबर्ग बिलियनेयर्स इंडेक्स और फोर्ब्स दोनों के अनुसार, नवंबर 2023 तक लगभग 168.4 बिलियन अमेरिकी डॉलर की कुल संपत्ति के साथ, बेजोस दुनिया के तीसरे सबसे अमीर व्यक्ति हैं और 2017 से 2021 तक सबसे अमीर थे।
लैरी एलिसन
लैरी एलिसन एक अमेरिकी व्यवसायी और उद्यमी हैं, जिन्होंने सॉफ्टवेयर कंपनी Oracle Corporation की सह-स्थापना की। वह 1977 से 2014 तक ओरेकल के मुख्य कार्यकारी अधिकारी थे और अब इसके मुख्य प्रौद्योगिकी अधिकारी और कार्यकारी अध्यक्ष हैं।
Larry Ellison
नवंबर 2023 तक, ब्लूमबर्ग बिलियनेयर्स इंडेक्स द्वारा उन्हें $135. 3 बिलियन की अनुमानित संपत्ति के साथ दुनिया के पांचवें सबसे धनी व्यक्ति के रूप में सूचीबद्ध किया गया था। एलिसन को हवाई द्वीप के छठे सबसे बड़े द्वीप लानाई के 98% हिस्से पर स्वामित्व के लिए भी जाना जाता है।
मार्क जुकरबर्ग
जुकरबर्ग ने 2004 में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में छात्र रहते हुए फेसबुक – जिसे अब मेटा प्लेटफॉर्म कहा जाता है की सह-स्थापना की। यह 3.88 बिलियन मासिक उपयोगकर्ताओं के साथ दुनिया का सबसे बड़ा सोशल नेटवर्क बन गया है।
mark zuckerberg
कंपनी के पास इंस्टाग्राम और व्हाट्सएप का भी स्वामित्व भी है, जिसका उसने अधिग्रहण किया और काफी विस्तार किया। दिसंबर 2023 तक लगभग 123.3 बिलियन डॉलर संपत्ति के साथ वह दुनिया के सबसे अमीर व्यक्तियों की लिस्ट में शामिल हैं।
दुनिया के सबसे धनी व्यक्तियों में अगला नाम है बिल गेट्स का। विलियम हेनरी गेट्स एक अमेरिकी व्यापार कारोबारी, उद्यमी, निवेशक, और कंप्यूटर प्रोग्रामर है। 1975 में गेट्स और पॉल एलन माइक्रोसॉफ्ट कंपनी जो दुनिया की सबसे बड़ी पीसी सॉफ्टवेयर कंपनी की सतहपना की। वह 25 वर्षों तक कंपनी के सीईओ रहे और 2014 तक चेयरमैन बने रहे। फोर्ब्स की सूची के अनुसार उनकी कुल संपत्ति $119.6 बिलियन है।
लैरी पेज एक अमेरिकी कंप्यूटर वैज्ञानिक और उद्योगपति हैं। पेज ने 1998 में सर्गेई ब्रिन के साथ मिलकर सर्च इंजन Google की सह-स्थापना की। वे दोनों अक्सर ही “Google Guys” के नाम से जाने जाते हैं।
larry page
वह अब Google के मूल अल्फाबेट के बोर्ड सदस्य के रूप में कार्य करते हैं और एक नियंत्रित शेयरधारक बने हुए हैं। लैरी पेज की अनुमानित कुल संपत्ति $117. 2 बिलियन है, जो उसे दुनिया का आठवां सबसे अमीर व्यक्ति बनाती है। उन्होंने फ्लाइंग कार स्टार्टअप किटी हॉक और ओपनर में भी निवेश किया है।
वारेन बफेट
“ओरेकल ऑफ़ ओमाहा” के रूप में जाने जाने वाले वॉरेन बफेट अब तक के सबसे सफल निवेशकों में से एक हैं। वह निवेश समूह बर्कशायर हैथवे चलाते हैं, जो बीमाकर्ता जिको, बैटरी निर्माता ड्यूरासेल और रेस्तरां श्रृंखला डेयरी क्वीन सहित दर्जनों कंपनियों का मालिक है। फोर्ब्स की सूची के अनुसार उनकी कुल संपत्ति $118. 6 बिलियन है।
सर्गेई ब्रिन
सर्गेई ब्रिन दुनिया के सबसे अमीर व्यक्तियों में से एक हैं। सर्गेई मिखाइलोविच ब्रिन एक अमेरिकी व्यवसायी हैं जिन्हें लैरी पेज के साथ Google के सह-संस्थापक के लिए जाना जाता है।
Sergey_Brin
3 दिसंबर, 2019 को सर्गेई ब्रिन ने Google की मूल कंपनी अल्फाबेट के अध्यक्ष के रूप में पद छोड़ दिया, लेकिन एक नियंत्रित शेयरधारक और एक बोर्ड सदस्य बने रहे। इनकी कुल संपत्ति $112. 4 बिलियन है।
स्टीवन बाल्मर
स्टीवन एंथोनी बाल्मर एक अमेरिकी अरबपति व्यवसायी और निवेशक हैं जिन्होंने 2000 से 2014 तक माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ के रूप में कार्य किया।
Steve Ballmer
जब बाल्मर माइक्रोसॉफ्ट से सेवानिवृत्त हुए, तो उन्होंने लॉस एंजिल्स क्लिपर्स टीम को $2 बिलियन में खरीदा – जो उस समय नेशनल बास्केटबॉल एसोसिएशन (एनबीए) टीम के लिए एक रिकॉर्ड उच्च राशि थी। फोर्ब्स ने अब टीम का मूल्य 4.65 बिलियन डॉलर आंका है। उनकी कुल सम्पति 112. 2 बिलियम है।
हिन्दू महीने के अनुसार पौष शुक्ल पक्ष में मकर संक्रांति पर्व मनाया जाता है। यह पर्व पूरे भारतवर्ष और नेपाल में मुख्य फसल कटाई के त्यौहार के रूप में मनाया जाता है।
हरियाणा और पंजाब में इसे लोहड़ी के रूप में एक दिन पूर्व मनाया जाता है। इस दिन उत्सव के रूप में स्नान, दान किया जाता है। तिल और गुड के पकवान बांटे जाते है। पतंग उड़ाए जाते हैं।
वैसे तो मकर संक्रांति सब मनाते हैं लेकिन ज्यादातर लोग इस पर्व के बारे में कुछ जानते। आइए जानते हैं मकर संक्रांति के बारे में कुछ रोचक तथ्य।
मकर संक्रांति पर्व मुख्यतः सूर्य पर्व के रूप में मनाया जाता है। इस दिन सूर्य धनु राशि से मकर राशि में प्रवेश करता है।
एक राशि को छोड़ के दूसरे में प्रवेश करने की सूर्य की इस विस्थापन क्रिया को संक्रांति कहते है, क्योंकि सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है इसलिए इस समय को मकर संक्रांति कहा जाता है।
सूर्य उत्तरायण
इस दिन सूर्यदक्षिणायन से अपनी दिशा बदलकर उत्तरायण हो जाता है अर्थात सूर्य उत्तर दिशा की ओर बढ़ने लगता है, जिससे दिन की लंबाई बढ़नी और रात की लंबाई छोटी होनी शुरू हो जाती है।
भारतमें इस दिन से बसंत ऋतु की शुरुआत मानी जाती है, अतः मकर संक्रांति को उत्तरायण के नाम से भी जाना जाता है।
पतंग महोत्सव
पहले सुबह सूर्य उदय के साथ ही पतंग उड़ाना शुरू हो जाता था। पतंग उड़ाने के पीछे मुख्य कारण है कुछ घंटे सूर्य के प्रकाश में बिताना।
यह समय सर्दी का होता है और इस मौसम में सुबह का सूर्य प्रकाश शरीर के लिए स्वास्थवर्धक और त्वचा व हड्डियों के लिए अत्यंत लाभदायक होता है।
सर्दी के मौसम में वातावरण का तापमान बहुत कम होने के कारण शरीर में रोग और बीमारी जल्दी लगते हैं। इस लिए इस दिन गुड और तिल से बने मिष्ठान खाए जाते हैं।
इनमें गर्मी पैदा करने वाले तत्व के साथ ही शरीर के लिए लाभदायक पोषक पदार्थ भी होते हैं इसलिए इस दिन खासतौर से तिल और गुड़ के लड्डु खाए जाते हैं।
स्नान, दान, पूजा
माना जाता है कि इस दिन सूर्य अपने पुत्र शनिदेव से नाराजगी त्याग कर उनके घर गए थे इसलिए इस दिन को सुख और समृद्धि का माना जाता है,और इस दिन पवित्र नदी में स्नान, दान, पूजा आदि करने से पुण्य हजार गुना हो जाता है। इस दिन गंगा सागर में मेला भी लगता है।
फसलें लहलहाने का पर्व
यह पर्व पूरे भारत और नेपाल में फसलों के आगमन की खशी के रूप में मनाया जाता है। खरीफ की फसलें कट चुकी होती है और खेतो में रबी की फसलें लहलहा रही होती हैं।
खेत में सरसो के फूल मनमोहक लगते हैं। पूरे देश में इस समय खुशी का माहौल होता है। अलग-अलग राज्यों में इसे अलग-अलग स्थानीय तरीकों से मनाया जाता है।
दक्षिण भारत में इस त्यौहार को पोंगल के रूप में मनाया जाता है। उत्तर भारत में इसे लोहड़ी कहा जाता है। मध्य भारत में इसे संक्रांति कहा जाता है। मकर संक्रांति को उत्तरायण, माघी, खिचड़ी आदि नाम से भी जाना जाता है।
हर्ष और उल्लास लोहड़ी का पर्व है। इसका मौसम के साथ गहरा संबंध है। पौष माह की कड़ाके की सर्दी से बचने के लिए अग्नि की तपिश का सुकून लेने के लिए लोहड़ी मनाई जाती है।
लोहड़ी रिश्तों की मधुरता, सुकून और प्रेम का प्रतीक है। दुखों के नाश, प्यार और भाईचारे से मिलजुल कर नफरत के बीज नाश करने का नाम है लोहड़ी। यह पवित्र अग्नि-पर्व मानवता को सीधा रास्ता दिखाने और रूठों को मनाने का जरिया बनता रहेगा।
लोहड़ी शब्द तिल-रोड़ी के मेल से बना है जो समय के साथ बदल कर तिलोड़ी और बाद में लोहड़ी हो गया। लोहड़ी मुख्यतः तीन शब्दों को जोड़कर बना हैल (लकड़ी) ओह (सूखे उपले) और डी (रेवड़ी)।
लोहड़ी के पर्व की दस्तक के साथ ही पहले ‘सुंदर-मुंदरिए’, ‘दे माई लोहड़ी जीवे तेरी जोड़ी‘ आदि लोकगीत गाकर घर-घर लोहड़ी मांगने का रिवाज था।
समय बदलने के साथ कई पुरानी रस्मों का आधुनिकीकरण हो गया है। लोहड़ी पर भी इसका प्रभाव पड़ा। अब गांवों में लड़के-लड़कियां लोहड़ी मांगते हुए परम्परागत गीत गाते दिखाई नहीं देते। गीतों का स्थान ‘डीजे‘ ने ले लिया है।
लोहड़ी की रात को गन्ने के रस की खीर बनाई जाती है और अगले दिन माघी के दिन खाई जाती है जिसके लिए पौह रिद्धि माघ खाधी गई’ कहा जाता है। ऐसा करना शुभ माना जाता है।
यह त्यौहार छोटे बच्चों एवं नवविवाहितों के लिए विशेष महत्व रखता है। लोहड़ी की शाम जलती लकड़ियों के सामने नव विवाहित जोड़े अपने वैवाहिक जीवन को सुखमय बनाए रखने की कामना करते हैं।
लोहड़ी की पवित्र आग में तिल डालने के बाद बड़े बुजुगों से आशीर्वाद लिया जाता है। इस पर्व का संबंध अनेक ऐतिहासिक कहानियों से जोड़ा जाता है पर इससे जुड़ी प्रमुख लोक कथा दुल्ला भट्टी की है। वह मुगलों के समय का बहादुर योद्धा था जिसने मुगलों के बढ़ते अत्याचार के विरुद्ध कदम उठाया।
कहा जाता है कि एक ब्राह्मण की दो लड़कियां सुंदरी और मुंदरी के साथ इलाके का मुगल शासक जबरन शादी करना चाहता था पर उनकी सगाई कहीं और हुई थी और मुगल शासक के डर से उन लड़कियों के ससुराल वाले शादी के लिए तैयार नहीं हो रहे थे।
मुसीवत की घड़ी में दुल्ला भट्टी ने ब्राह्मण की मदद की और लड़के वालों को मनाकर एकजंगल में आग जलाकर सुंदरी और मुंदरी का विवाह करवा के स्वयं उनका कन्यादान किया।
कहावत है कि दुल्ले ने शगुन के रूप में उन दोनों को शक्कर दी। इसी कथनी की हिमायत करता लोहड़ी का यह गीत है जिसे लोहड़ी के दिन गाया जाता है:
‘सुंदर-मुंदरिए हो, तेरा कौन बेचारा हो।
दुल्ला भट्टी वाला,हो, दुल्ले ने धी ब्याही हो।
सेर शक्कर पाई,हो-कुड़ी दा लाल पटाका हो।
कुड़ी दा सालू पाटा हो-सालू कौन समेटे हो।
चाचा चूरी कुट्टी हो, जमींदारा लुट्टी हो।’
जमींदार सुधाए, हो, बड़े पोले आए हो।
इक पोला रह गया, सिपाही फड़ के लै गया।
‘सिपाही ने मारी इट्ट, भावें रो भावें पिट्ट,
सानूं दे दओ लोहड़ी, जीवे तेरी जोड़ी।
साडे पैरां हेठरोड़, सूानं छेती-छेती तोर,
साडे पैरां हेठ परात, सानूं उत्तों पै गई रात
दे मई लोहड़ी, जीवे तेरी जोड़ी।’
दुल्ल-भट्टी द्वारा मानवता की सेवा को आज भी लोग याद करते हैं तथा लोहड़ी का पर्व अत्याचार पर साहस और सत्य की विजय के पर्व के रूप में मनाते हैं। इस त्यौहार का संबंध फसल के साथ भी है। इस समय पर गेहूं और सरसों की फसलें अपने यौवन पर होती हैं।
लोहड़ी का संबंध नए जन्मे बच्चों के साथ ज्यादा है। यह रीत चली आई है कि जिस घर में लड़का जन्म लेता है वहां धूमधाम से लोहड़ी मनाई जाती है।
आजकल लोग कन्या भ्रूण हत्या को रोकने के लिए लड़कियों के जन्म पर भी लोहड़ी मनाते हैं ताकि रुढ़िवादी लोगों में लड़के-लड़की का अंतर खत्म किया जा सके।
आंध्र प्रदेश के विजयनगर में रामनारायण मंदिर का स्थापत्य राम – धनुष की आकृति लिए हुए है। भूतल पर महाविष्णु तो ऊपरी तल पर भगवान श्रीराम का मंदिर है। बाण के अगले भाग पर हनुमान जी की 60 फुट ऊंची मूर्ति है, जिसे एक किलोमीटर दूर से भी देखा जा सकता है।
यह मंदिर भारतीय वास्तु कला का अद्भुत नमूना है। यह मंदिर विजयनगर में कोरुकोंडा रोड पर स्थित है, जो विशाखापत्तनम से 50 किलोमीटर दूर है।
रामायण पर आधारित इस मंदिर का निर्माण एन. सी. एस. चैरिटेबल ट्रस्ट द्वारा 15 एकड़ क्षेत्र में किया गया है। मंदिर को धनुष और बाण के आकार की तरह अनूठा डिजाइन किया गया है।
यह मंदिर आज एक प्रमुख पर्यटन केंद्र बन चुका है और अपनी स्थापना के 18 महीनों के भीतर यह विजयनगर में सबसे अधिक देखी जाने वाली जगहों में से एक बन गया है।
आध्यात्मिक अनुभव चाहने वालों के लिए यह एक अद्भुत स्थान है। प्रांगण का अनूठा डिजाइन और ऊंचाई पर्यटकों/ तीर्थयात्रियों को आनंददायक और स्फूर्तिदायक अनुभव से मंत्रमुग्ध कर देती है।
ramnarayan mandir
अवधारणा से लेकर डिजाइन, कार्यान्वयन और वास्तविक निर्माण तक बनने में इसमें एक दशक से अधिक का समय लगा है जिसमें देश भर से सैंकड़ों कलाकारों और कारीगरों की मेहनत शामिल है।
यह कई मायनों में असाधारण है। इसके विभिन्न हिस्सों का डिजाइन हिंदू पौराणिक कथाओं को कायम रखने वाली प्राचीन वास्तुकला पर आधारित है।
प्रांगण में अनेक पेड़ उगाए गए हैं। एक खंड में नक्षत्र वन, नारायण वन, रासी वन, नवग्रह वन, विनायक वन, सप्तऋषि वन, पंचवटी वन, पंच भूत वन के पवित्र वृक्षों को दर्शाया गया है। ये दुर्लभ पेड़ भारतीय ग्रंथों का हिस्सा रहे हैं।
यह मंदिर सुबह से खुला रहता है लेकिन शाम को इसका दौरा करना सबसे अच्छा होता है। उस समय पूरा क्षेत्र इंद्रधनुष के रंगों से जगमगा उठता है, जिससे ऐसा महसूस होता है जैसे स्वर्ग नीचे पृथ्वी पर आ गया हो। धनुष की लंबाई के साथ सुंदर मैगा फव्वारे अनूठे दृश्य पेश करते हैं।
ramnarayan temple
यहां का खुला प्राकृतिक वातावरण ताजा हवा के झोंके से तरोताजा कर देता है। इसके अलावा, विशाल नाट्य मंडपम में नियमित रूप से भारतीय प्रदर्शन कला से संबंधित कार्यक्रम होते हैं।
यहां आने वाले लोग भरतनाट्यम या कुचिपुड़ी नृत्य शैली से लेकर गायन और कई धार्मिक/ आध्यात्मिक प्रवचनों में भी भाग ले सकते हैं।
मंदिर के केंद्रीय वातानुकूलित परिसर में रामायण से जुड़ी मूर्तियों की एक पूरी श्रृंखला है। जिसमें रामायण के 72 हिस्सों को महाकाव्य की शुरुआत ‘बाल कांड‘ से लेकर ‘युद्ध कांड‘ तक के दृश्यों के साथ चित्रित किया गया है।
हमारे देश में ऐसे कई महापुरूष हुए हैं, जिनके जीवन और उनके विचारों से हम सभी को बहुत कुछ सीखने को मिलता है। इन्हीं में से एक हैं स्वामी विवेकानंद।
प्रति वर्ष भारत में 12 जनवरी को “स्वामी विवेकानंद जन्म दिवस” के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को “राष्ट्रीय युवा दिवस” के रूप में भी मनाया जाता है।
स्वामी विवेकानंद के जन्मदिन को राष्ट्रीय युवा दिवस के तौर पर मनाए जाने का मुख्य कारण है उनके दर्शन, सिद्धांत, विचार, वचन, और आदर्श, जिनका उन्होंने स्वयं भी पालन किया और कई देशों में उन्हें स्थापित भी किया। उनके यही विचार, सिद्धांत और आदर्श युवाओं में नई शक्ति और ऊर्जा का संचार करते हैं।
स्वामी विवेकानंद ने युवाओं का सही मार्गदर्शन करने के लिए सफलता के कई मंत्र दिए, जिन्हें आज भी अपने जीवन में अपना कर लोग सफलता की दिशा में अग्रसर हो सकते हैं।
उनके विचार लोगों की सोच और व्यक्तित्व को बदलने वाले हैं। आज हम इस लेख में स्वामी विवेकानंद जी के 10 अनमोल वचनों के बारे में जानेंगे, तो चलिए शुरू करते हैं
उठो, जागो और तब तक रुको नहीं जब तक कि तुम अपना लक्ष्य प्राप्त नहीं कर लेते
जितना बड़ा संघर्ष होगा जीत उतनी ही शानदार होगी
ब्रह्मांड की सारी शक्तियां पहले से हमारी हैं वो हम ही हैं जो अपनी आंखों पर हाथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अंधकार है
जो तुम सोचते हो, वो बन जाओगे यदि तुम खुद को कमजोर सोचते हो, तुम कमजोर हो जाओगे अगर खुद को ताकतवर सोचते हो, तुम ताकतवर हो जाओगे
जब तक जीना, तब तक सीखना अनुभव ही जगत में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक है
लोग तुम्हारी स्तुति करें या निंदा, लक्ष्य तुम्हारे ऊपर कृपालु हो या ना हो तुम्हारा देहांत आज हो या युग में, तुम न्यायपथ से कभी भ्रष्ट ना हो
संगति आप को ऊंचा उठा भी सकती है और यह आपको ऊंचाई से गिरा भी सकती है इसलिए संगति अच्छे लोगों से करें
एक समय में एक काम करो ऐसा करते समय अपनी पूरी आत्मा उसमें डाल दो और बाकी सब कुछ भूल जाओ
किसी दिन, जब आपके सामने कोई समस्या ना आए तो समझ जाएं कि आप गलत मार्ग पर चल रहे हैं।
हर वर्ष जनवरी माह में लोहड़ी का त्यौहार हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है। सिख समुदाय के लिए यह दिन विशेष होता है। फसल के तैयार होने की खुशी में यह पर्व मनाया जाता है। यह पर्व विशेष रूप से पंजाब और हरियाणा में बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है।
लोहड़ी एवं मकर संक्रांति एक-दूसरे से जुड़े रहने के कारण सांस्कृतिक उत्सव और धार्मिक पर्व का एक अद्भुत त्यौहार है। लोहड़ी को नई फसल की कटाई तथा सर्दी के समापन का प्रतीक भी माना जाता है।
इस दिन से सर्दी कम होने लगती है, वातावरण का तापमान बढ़ने लगता है। लोहड़ी के दिन लोग नए कपड़े पहनते हैं। एक दूसरे को बधाइयां एवं शुभकामनाएं देते हैं।
लोहड़ी की तिथि
ज्योतिषियों की मानें तो मकर संक्रांति तिथि से एक दिन पूर्व लोहड़ी पर्व मनाया जाता है। साल 2024 में लोहड़ी 13 जनवरी के बदले 14 जनवरी को है। लोहड़ी के दिन संक्रांति तिथि संध्याकाल 08 बजकर 57 मिनट पर है।
लोहड़ी को पहले तिलोड़ी कहा जाता था। यह शब्द तिल और रोड़ी (गुड़ की रोड़ी) शब्दों को मिलाकर बना है, जो समय के साथ बदल कर लोहड़ी के नाम से जाना जाता हैं।
मकर संक्रांति के दिन तिल-गुड़ खाने और बांटने का महत्व है। पंजाब के कई इलाकों में इसे लोही या लोई भी कहा जाता है।
क्यों मनाई जाती है लोहड़ी?
यह त्यौहार फसलों कीकटाई और बुआई से जुड़ा है। सिखों के लिए लोहड़ी खास मायने रखती है। त्यौहार के कुछ दिन पहले से ही इसकी तैयारी शुरू हो जाती है।
विशेष रूप से शरद ऋतु के समापन पर इस त्यौहार को मनाने का प्रचलन है। पंजाब में यह त्यौहार नए साल की शुरुआत में फसलों की कटाई के उपलक्ष्य के तौर पर मनाया जाता है।
लोहड़ी को विशेष रूप से पंजाब और हरयाणा में मनाया जाता है। लोहड़ी शब्द इसकी पूजा में इस्तेमाल होने वाली वस्तुओं से मिलकर बना है। इसमें ल (लकड़ी) +ओह (गोहा = सूखे उपले) + ड़ी (रेवड़ी) = ‘लोहड़ी‘ के प्रतीक हैं।
साल की सभी ऋतुओं पतझड़, सावन और बसंत में कई तरह के छोटे-बड़े त्यौहार मनाए जाते हैं, जिनमें से एक प्रमुख त्यौहार लोहड़ी भी है। लोहड़ी को पौष के आखिरी दिन और माघ की शुरुआत में सर्दियों का अंत होता है जो ठीक उसी समय होता है जब सूरज अपना रास्ता बदलता है। ऐसा माना जाता है कि लोहड़ी की रात सर्दियों की सबसे ठंडी रात होती है।
लोहड़ी की संध्या को लोग लकड़ी जलाकर अग्नि के चारों ओर चक्कर काटते हुए नाचते-गाते हैं और आग में रेवड़ी, मूंगफली, खील, मक्के के दानों की आहुति देते हैं। अग्नि की परिक्रमा करते हैं और आग के चारों ओर बैठकर लोग आग सेंकते हैं।
लोहड़ी उत्सव उस घर में और भी खास होता है, जिस घर में नई शादी हुई हो या बच्चा हुआ हो। इन घरों में लोहड़ी विशेष उत्साह के साथ मनाई जाती है। लोहड़ी के दिन बहन और बेटियों को मायके बुलाया जाता है।
लोहड़ी को फसल त्यौहार के रूप में भी मनाया जाता है। जैसा कि पारंपरिक रूप से जनवरी गन्ने की फ़सल काटने का समय होता है, और गन्ने से बने उत्पाद जैसे गुड़ और गज्जक लोहड़ी के उत्सव के लिए आवश्यक हैं।
लोहड़ी के दिन विशेष पकवान बनते हैं जिसमें गज्जक, रेवड़ी, मूंगफली, तिल-गुड़ के लड्डू,मक्का की रोटी और सरसों का साग प्रमुख होते हैं। इस दिन नववधू किचन में पहली बार सबके लिए खाना बनाती है। लोहड़ी से कुछ दिन पहले से ही छोटे बच्चे लोहड़ी के गीत गाकर लोहड़ी हेतु लकड़ियां, मेवे, रेवडियां, मूंगफली इकट्ठा करने लग जाते हैं।
भारत के अलग-अलग राज्यों में मकर संक्रांति के दिन या आसपास कई त्यौहार मनाएं जाते हैं, जो कि मकर संक्रांति के ही दूसरे रूप हैं। जैसे दक्षिण भारत में पोंगल, असम में बिहू और ऐसे ही पंजाब में लोहड़ी मनाई जाती है।
इस त्यौहार का महत्वपूर्ण होने का एक और कारण यह भी है कि पंजाबी किसान लोहड़ी के अगले दिन को वित्तीय नया साल मानते हैं, जो सिख समुदाय के लिए भी बहुत महत्व रखता है।
वास्तव में लोहड़ी पर गाए जाने वाले लोक गीतों का कारण सूर्य देव को धन्यवाद देना और आने वाले वर्ष के लिए उनकी निरंतर सुरक्षा की कामना करना है। नृत्य और गिद्दा के अलावा, लोहड़ी पर पतंग उड़ाना भी बहुत लोकप्रिय है।
लोहड़ी से कई ऐतिहासिक गाथाएं भी जुड़ी हुई हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार सती के त्याग के रूप में यह त्यौहार मनाया जाता है। कथानुसार जब प्रजापति दक्ष के यज्ञ की आग में कूदकर शिव की पत्नीं सती ने आत्मदाह कर लिया था तो उसी दिन की याद में यह पर्व मनाया जाता है।
दूसरी मान्यता है कि मुगलकाल में दुल्ला भट्टी नाम का एक लुटेरा था। वह हिन्दू लड़कियों को गुलाम के तौर पर बेचने का विरोध करता था। वह उनको आजाद कराकर हिन्दू युवकों से विवाह करा देता था। लोहड़ी के दिन उसके इस नेक काम के लिए गीतों के माध्यम से उसका आभार जताया जाता है।
यह भी कहा जाता है कि संत कबीर की पत्नी लोई की याद में यह पर्व मनाया जाता है। यह भी मान्यता है कि सुंदरी और मुंदरी नाम की लड़कियों को राजा से बचाकर एक दुल्ला भट्टी नामक डाकू ने किसी अच्छे लड़कों से उनकी शादी करवा दी थी।
ईरान में भी नववर्ष का त्यौहार इसी तरह मनाते हैं। आग जलाकर मेवे अर्पित किए जाते हैं। पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में मनाई जाने वाली लोहड़ी और ईरान का चहार-शंबे सूरी बिल्कुल एक जैसे त्यौहार हैं। इसे ईरानी पारसियों या प्राचीन ईरान का उत्सव मानते हैं।
दुनियाभर में बढ़ती आबादी यानी जनसंख्या परेशानी का एक बड़ा कारण है। इसकी वजह से अशिक्षा, बेरोजगारी, भुखमरी और गरीबी अनियंत्रित होती जा रही है। हर दिन लाखों की संख्या में जनसंख्या बढ़ रही है।
दुनियाभर में इसी बढ़ती आबादी के प्रति जागरूक करने के लिए हर साल 11 जुलाई को ‘वर्ल्ड पॉपुलेशन डे ‘ यानी ‘विश्व जनसंख्या दिवस’ मनाया जाता है। दरअसल, साल 1987 में 11 जुलाई को ही दुनिया की आबादी 5 अरब तक पहुंच गई थी।
ऐसे में बढ़ती जनसंख्या से जुड़े मुद्दों और पर्यावरण तथा विकास पर इसके असर को लेकर दुनियाभर के लोगों को जागरूक करने की जरूरत महसूस हुई। इसी को ध्यान में रखते हुए संयुक्त राष्ट्र ने यह दिवस मनाने की शुरुआत की।
दुनिया की आबादी
‘यूनाइटेड नेशंस पॉपुलेशन फंड’ के आंकड़ों के अनुसार, दुनिया की कुल आबादी फिलहाल 8 अरब को पार कर चुकी है। इसके अनुसार 15 नवम्बर, 2022 वह दिन था जब दुनिया की आबादी 8 अरब हो गई।
इसमें 65 प्रतिशत आबादी 15 से 64 साल की उम्र के लोगों की है। 65 साल से ऊपर के लोगों की कुल 10 प्रतिशत और 14 साल से कम उम्र के लोगों की 25 प्रतिशत हिस्सेदारी है।
भारत बना दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाला देश
कुछ समय पहले तक दुनिया में सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश चीन था, जबकि दूसरे स्थान पर भारत था लेकिन संयुक्त राष्ट्र के अप्रैल में जारी आंकड़ों के अनुसार भारत 1 अरब 42.86 करोड़ लोगों के साथ चीन को पीछे छोड़कर दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला देश बन गया है जबकि चीन की जनसंख्या 1 अरब 42.57 करोड़ है। दुनिया की कुल आबादी में 60 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सेदारी एशिया की है।
कुछ रोचक बातें
जनसंख्या के आंकड़े किस तेजी से बढ़ रहे हैं, इसका अंदाजा इस बात से लगा सकते हैं कि दुनिया की आबादी 1 अरब होने में लाखों साल लग गए लेकिन 1 से 8 अरब तक पहुंचने में महज 200 साल ही लगे। वहीं 7 अरब से 8 अरब होने में केवल 12 साल लगे हैं।
साल 2011 में दुनिया की आबादी 7 अरब थी, जो अब 8 अरब से अधिक हो चुकी है। दुनिया की जनसंख्या वृद्धि दर 1965 और 1970 के बीच चरम पर पहुंच गई थी, जब औसतन 2.1 प्रतिशत की दर से हर साल आबादी बढ़ रही थी।
20वीं सदी के मध्य से विकसित देशों में वयस्कों का जीवन काल बढ़ा है। 100 साल की उम्र तक पहुंचने वाले लोगों की संख्या आज के मुकाबले कभी ज्यादा नहीं रही।
एक ऐसा गांव, जहां रहती है केवल 1 महिला
जहां, दिनों दिन जनसंख्या बढ़ रही है, वहीं दुनिया में एक गांव ऐसा भी है जहां केवल 1 अकेली बुजुर्ग महिला रहती है। अमरीका के नेब्रास्का राज्य में स्थित मोनोवी नामक एक बड़ा गांव है, जिसमें खेत भी हैं, गाय-बकरियां भी हैं लेकिन इंसान नहीं रहते। इस गांव में केवल एक महिला रहती है, वह भी अकेले। महिला की उम्र 84 साल है, जिनका नाम एल. सी. आइलर है।
साल 1930 तक यहां 123 लोग रहते थे, लेकिन उसके बाद धीरे-धीरे आबादी घटनी शुरू हो गई। 2000 में इस गांव में केवल एल. सी. आइलर और उनके पति रूडी आइलर ही बचे लेकिन 2004 में उनके पति की मौत हो गई, जिसके बाद से वह अकेली इस गांव में रह रही हैं।
उनका कहना है कि गांव में कोई भी नहीं रहेगा तो दुनिया उनके गांव को भूतिया कहेगी, इसलिए वह अंत तक यहीं रहेंगी। अब सरकार की तरफ से उन्हें आर्थिक सहयोग मिलता है, जिससे गांव को सुंदर रखा जाए। वह गांव की मेयर होने के साथ गांव की क्लर्क और अफसर भी हैं और गांव की पूरी जिम्मेदारी के साथ देखभाल भी करती हैं।
टपकेश्वर मंदिर को टपकेश्वर महादेव मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में स्थित यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है।
यह मंदिर टोंस नदी के तट पर एक प्राकृतिक गुफा के शीर्ष पर बना है। गुफा में एक प्राकृतिक शिवलिंग है, जो स्थानीय लोगों के लिए श्रद्धा का स्थान है। बताया जाता है कि टपकेश्वर मंदिर 6,000 साल पुराना है।
ऐतिहासिक टपकेश्वर महादेव मंदिर देहरादून शहर से लगभग 6 किलोमीटर दूर गढ़ी कैंट में स्थित है। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए ढलान में जाती लगभग 100-125 सीढ़ियों को उतरना पड़ता है, तब जाकर मंदिर का द्वार नजर आता है।
यह मंदिर पथरीली चट्टानों को काट कर मंदिर बनाया गया है। यहां कोई मानव निर्मित दीवार नहीं, छत नहीं अपितु चट्टानों को इतनी कारीगरी से काटा गया है कि मनुष्य के खड़े होने लायक ऊंचाई ही मिलती है।
महाभारत काल से जुड़ा इतिहास
कहा जाता है कि इस मंदिर का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ है। हिंदू महाकाव्य महाभारत में पांडवों और कौरवों के शिक्षक द्रोणाचार्य यहाँ निवास करते थे। उनके नाम पर इस गुफा को द्रोण गुफा भी कहा जाता है।
कहा जाता है कि जब महर्षि द्रोण हिमालय की ओर तपस्या करने के लिए निकले तो ऋषिकेश में एक ऋषि ने उन्हें तपेश्वर में भगवान भोले की उपासना करने की सलाह दी।
गुरु द्रोण अपनी पत्नी कृपि के साथ तपेश्वर आ गए। गुरु द्रोण जहां शिव से शिक्षा लेने के लिए तपस्या करते थे, वहीं उनकी पत्नी कृपि पुत्र रत्न की प्राप्ति के लिए जप करती थीं।
भगवान शिव प्रसन्न हुए और कृपि को अश्वत्थामा जैसा पुत्र प्राप्त हुआ, वहीं द्रोण को शिक्षा देने के लिए भगवान रोज आने लगे। मां कृपि को दूध नहीं होता था, इसलिए वो अश्वत्थामा को पानी पिलाती थीं।
मां के दूध से वंचित अश्वत्थामा को मालूम ही नहीं था कि श्वेत रंग का यह तरल पदार्थ क्या है। अपने अन्य बाल सखाओं को दूध पीते देखकर अश्वत्थामा भी अपनी मां से दूध की मांग करते थे।
दिन प्रतिदिन अश्वत्थामा के बढ़ते हठ के कारण महर्षि द्रोण भी चिंतित रहने लगे। एक दिन महर्षि द्रोण अपने गुरु भाई पांचाल नरेश राजा द्रुपद के पास गए। राजा द्रुपद धन वैभव के मद में चूर थे। वे गुरु द्रोण के आगमन पर प्रसन्न तो हुए लेकिन उन्हें द्रोण के मुख से भगवान शिव की महिमा पसंद नहीं आई।
गुरु द्रोण ने उनसे अपने पुत्र के लिए एक गाय की मांग की। राजसी घमंड में चूर पांचाल नरेश द्रुपद ने कहा कि अपने शिव से गाय मांगों, मेरे पास तुम्हारे लिए गाय नहीं है।
यह बात महर्षि द्रोण को चुभ गई। वो वापस लौटे और बालक अश्वत्थामा को दूध के लिए शिव की आराधना करने को कहा। अश्वत्थामा ने छह माह तक शिवलिंग के सामने बैठकर भगवान की कठोर आराधना शुरू कर दी तभी एक दिन अचानक श्वेत तरल पदार्थ की धारा शिवलिंग के ऊपर गिरने लगी।
यह देखकर अश्वत्थामा ने अपने माता पिता को इस आश्चर्य के बारे में बताया। महर्षि द्रोण ने जब देखा तो समझ गए कि यह सब भगवान शिव की महिमा है। फिर एक दिन भगवान भोलेनाथ उन्हें दर्शन देकर बोले की अब अश्वत्थामा को दूध के लिए व्याकुल नहीं होना पड़ेगा।
उसी धारा से अश्वत्थामा ने पहली बार दूध का स्वाद चखा। उस समय जो भी भक्त भोले के दर्शन करने तपेश्वर आता था, वो प्रसाद के रूप में दूध प्राप्त करता था।
कहते हैं कि यह सिलसिला कलयुग तक चलता रहा। लेकिन बाद में भगवान् के इस प्रसाद का अनादर होने लगा। यह देखकर शिवशंकर ने दूध को पानी में तब्दील कर दिया, और धीर धीरे यह पानी बूंद बनकर शिवलिंग पर टपकने लगा।
आज तक यह ज्ञात नहीं हुआ कि यह पानी कहां से शिवलिंग के ऊपर टपकता है। पानी टपकने के कारण कलयुग में यह मंदिर भगवान टपकेश्वर के नाम से प्रसिद्ध हो गया।
किताबों में हमारे जीवन को बदलने और हमारी कल्पनाओं को प्रज्वलित करने की अविश्वसनीय शक्ति होती है। किताबें पढ़ने से हमारे अंदर सकारात्मक सोच का विकास होता है और आत्मविश्वास पैदा होता है।
आज हम आपको इस लेख के माध्यम से कुछ ऐसी किताबों के बारे में बताने जा रहे हैं जिससे आपकी ज़िंदगी बदल जाएगी। इन किताबों की कहानियों को पढ़कर यकीनन आपके मन में भी कुछ करने की जज़्बा पैदा होगा।
द अल्केमिस्ट एक बहुत ही शानदार किताब है। यह मूल रूप से एक गडरिये की कहानी है जो एक खजाना ढूंढने निकलता है। यह कहानी आपको जीवन में एक नया नजरिया दे सकती है।
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थिंक एंड ग्रो रिच पुस्तक नेपोलियन हिल और रोजा ली बीलैंड द्वारा लिखित है जो 1937 में जारी की गई थी। यह व्यक्तिगत-विकास और आत्म-विकास से सम्बन्धित पुस्तक है।
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डॉ युवाल नोआ हरारी द्वारा लिखित किताब ‘सेपियन्स’ में मानव जाति के संपूर्ण इतिहास को बहुत ही खूबसूरत ढंग से प्रस्तुत किया गया है। यह प्रस्तुतिकरण अपने आप में अद्वितीय है।
इसमें धरती पर विचरण करने वाले पहले इंसानों से लेकर संज्ञानात्मक, कृषि और वैज्ञानिक क्रांतियों की प्रारम्भिक खोजों से लेकर विनाशकारी परिणामों तक को शामिल किया गया है।
लेखक ने जीव-विज्ञान, मानवशास्त्र, जीवाश्म विज्ञान और अर्थशास्त्र के गहन ज्ञान के आधार पर इस रहस्य का अन्वेषण किया है कि इतिहास के प्रवाह ने आख़िर कैसे हमारे मानव समाजों, हमारे चारों ओर के प्राणियों और पौधों को आकार दिया है। यही नहीं, इसने हमारे व्यक्तित्व को भी कैसे प्रभावित किया है।
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“अनटैम्ड ” ग्लेनॉन डॉयल का तीसरा संस्मरण है इससे पहले उन्होंने कैरी ऑन, वॉरियर , लव वॉरियर पुस्तक लिखी थी। पितृसत्ता को ध्वस्त करने वाली महिला की इस कहानी के माध्यम से, आप सीखेंगे कि खुद पर भरोसा कैसे करें।
यह पुस्तक सभी महिलाओं के लिए एक प्रेरक जागृति आह्वान है। यह पुस्तक महिलाओं को उनके अंदर मौजूद लालसा की आवाज को उजागर करने के लिए प्रोत्साहित करती है।
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बिलव्ड अमेरिकी उपन्यासकार टोनी मॉरिसन का 1987 का उपन्यास है। यह उपन्यास मार्गरेट गार्नर की सच्ची कहानी से प्रेरित है, जो 1856 में अपने परिवार के साथ केंटुकी की गुलामी से भागकर ओहायो में आज़ाद हो गई थी।
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रे डेलियोद्वारा लिखित पुस्तक सिद्धांत में उन नियमों और रूपरेखाओं का वर्णन किया गया है जिनका उपयोग वह अपने जीवन को आगे बढ़ाने के लिए करते हैं। यह पुस्तक सफलता प्राप्त करने के लिए सत्य की खोज, निर्णय लेने और प्रणालियों के कार्यान्वयन की खोज करती है।
इसके बाद, रे उन प्रबंधन सिद्धांतों पर चर्चा करते हैं जिनका उपयोग उन्होंने अपने मल्टीबिलियन-डॉलर हेज फंड, ब्रिजवाटर के निर्माण के लिए किया था।
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