जन्मदिन विशेष: महेश भट्ट के बारे में कुछ अनसुनी बातें

बॉलीवुड का यही नियम है जो जितना ज्यादा सुर्ख़ियों में रहेगा उतना ही ज्यादा चलेगा, इसीलिए ज्यादातर लोग किसी ना किसी बहाने सुर्ख़ियों में बने रहते हैं। मशहूर निर्देशक महेश भट्ट के बारे में तो आप जानते ही होंगे? कल उनका जन्म दिन है। आइए जानते है उनके जन्म दिन पर उनके के जीवन के बारे में कुछ अनसुनी रोचक बातें:

  • मशहूर फिल्म निर्माता महेश भट्ट का जन्म 20 सितंबर, 1949 को मुंबई में हुआ था। उनके पिता का नाम नानाभाई भट्ट और मां का नाम शिरीन मोहम्‍मद अली है। भट्ट के पिता गुजराती ब्राह्मण थे और उनकी मां गुजराती शिया मुस्लिम थीं।
  • उनकी स्‍कूली पढ़ाई डॉन बोस्‍को हाई स्‍कूल, माटुंगा से हुई थी। स्‍कूल के दौरान ही उन्‍होंने पैसा कमाने के लिए समर जॉब्‍स शुरू कर दी थी। उन्‍होंने प्रोडक्‍ट एडवरटीजमेंट्स भी बनाए।
  • उन्होनें अपने व्यवसाय की शुरूआत निर्देशक राज खोसला के साथ की, उन्होंने 21 वर्ष की आयु में अपनी पहली फिल्म निर्देशित की थी।
  • महेश भट्ट की एक विशेषता रही है कि वह लोगों को बोल्ड कंटेंट वाली ज्यादा फ़िल्में दिखाते हैं। उनकी फिल्मों की तरह उनके जीवन में भी अजब-गजब के रिश्ते बने हुए थे।
  • महेश भट्ट अपने पिता से अलग रहते थे। उनके माता पिता की शादी नहीं हुई थी। महेश भट्ट के पिता हिन्दू और माता मुस्लिम थीं, इसलिए वह दोनों दूर रहते थे।
  • 20 साल के महेश भट्ट का जब अफेयर शुरू हुआ, तब वह  कॉलेज में पढ़ते थे। उनका अफेयर लोरिएन ब्राइट से था। ब्राइट का नाम बाद में किरन भट्ट हो गया। इनके दो बच्‍चे भी हैं- पूजा भट्ट और राहुल भट्ट।
  • लेकिन 1970 के दशक में महेश भट्ट का अफेयर परवीन बॉबी से हो गया था। इस अफेयर की वजह से उनकी पहली शादी ज्‍यादा दिनों तक नहीं टिक पाई।
  • प‍रवीन बॉबी से उनका अफेयर लंबे समय तक नहीं चल पाया और दोनों अलग हो गए।
  • बाद में साल 1986 में महेश भट्ट ने अभिनेत्री सोनी रजदान से शादी कर ली। महेश भट्ट सोनी राजदान से शादी करने के लिए मुस्लिम धर्म अपना लिया।
  • इनकी दो बेटियां हैं: शाहीन भट्ट और आलिया भट्ट। अलिया भट्ट इस समय बॉलीवुड की सबसे जानी-मानी अभिनेत्री हैं।
  • महेश भट्ट अपनी बड़ी बेटी पूजा भट्ट के साथ भी चर्चा में आ चुके हैं। जब एक मैगजीन में अपनी ही बेटी पूजा भट्ट को किस करते हुए उनकी तस्वीर प्रकाशित हुई। एक मैगजीन में अपने इंटव्यू में महेश ने कहा था, अगर पूजा मेरी बेटी नहीं होती, तो मैं उससे शादी कर लेता।
  • महेश भट्ट ने अपनी लव लाइफ को बड़े पर्दे पर उतारने की भी कोशिश की है। जैसे, फिल्म ‘आशिकी’ किरन भट्ट के साथ उनके अफेयर पर बेस्ड थी। यही नहीं, फिल्म ‘वो लम्हें’ की स्टोरी भी महेश भट्ट और परवीन बॉबी के अफेयर पर बेस्ड बताई जाती है।
  • महेश भट्ट अपने करियर में तीन बार फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किए गए। अपने तीन दशक लंबे करियर में लगभग 50 फिल्मों का निर्देशन किया है।
  • ये उनकी कुछ प्रसिध्द फिल्में हैं – मंजिलें और भी हैं, लहू के दो रंग, अर्थ, सारांश, नाम, कब्‍जा, डैडी, आवारगी, जुर्म, आशिकी, स्‍वयं, सर, हम हैं राही प्‍यार के, क्रिमिनल, दस्‍तक, तमन्‍ना, डुप्लिकेट, जख्‍म, कारतूस, संघर्ष, राज, मर्डर, रोग, जहर, कलयुग, गैंग्‍सटर, वो लम्‍हे, तुम मिले, जिस्‍म 2, मर्डर 3 ।

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जापान का अनोखा गिफ्ट कल्चर

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जापान पहुंचने वाले लोगों को अक्सर यह एहसास हो सकता है कि अपने साथ वे पर्याप्त गिफ्ट नहीं लाए हैं। जापान में उपहार देने का चलन केवल नववर्ष या विशेष अवसरों पर ही नहीं, साल भर जारी रहता है। शादियों में, छुट्टियों में या बिजनैस के हिस्से के रूप में ही नहीं, वहां अंतिम क्रिया पर भी उपहार दिए जाते हैं।

विश्व की इस तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश में हर कोई एक-दूसरे से उपहार के शिष्टाचार की अपेक्षा करता है। स्वाभाविक है कि जापान की गिफ्ट इंडस्ट्री मालामाल है। गत वर्ष 2 प्रतिशत बढ़ कर इसका बाजार 85 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया।

टोक्यो इंटरनैशनल गिफ्ट शो की प्रवक्ता सुगा इमाई के अनुसार जापान में उपहारों का बाजार बहुत विशाल रूप ले चुका है। इस शो में लोग और कम्पनियां छोटे से लेकर बड़े उपहार के लिए ताजा तरीन विकल्प देख सकती हैं।

गत वर्ष के अंत में ‘ओसेइबो’ गिफ्ट्स की खूब मांग रहीं। ये वे उपहार होते हैं। जिनसे जापानी अच्छे संबंधों के लिए अपने कारोबारी सहयोगियों और परिवार के सदस्यों का आभार व्यक्त करते हैं।

एक बड़ी ट्रांसलेशन एजेंसी में काम करने वाले एक कर्मचारी का कहना था कि नववर्ष के कई दिनों बाद तक भी अपने कारोबारी सहयोगियों से रोज उन्हें डाक में उपहार मिलते रहे। इनमें से ज्यादातर में खाने-पीने की चीजें थीं जिन्हें सभी कर्मचारी आपस में बांट लेते हैं।

जापान में काम करने वाली कई विदेशी कम्पनियां भी अपनी जापानी शाखाओं को गिफ्ट के संबंध में सलाह देती हैं। जैसे कि एक कम्पनी का संदेश था ‘जापान में उपहार देना शिष्टाचार माना जाता है। वे ज्यादा महंगे न हों ताकि प्राप्त करने वाले को संकोच या झिझक न हो और न ही बहुत सस्ता या घटिया होना चाहिए।’

छुट्टियों पर जाने वाले जापानी अक्सर अपने साथ ले जाने के लिए अच्छे उपहारों की तलाश में रहते हैं। परिवार के सदस्य और सहकर्मी लौटने पर उनसे उपहारों की अपेक्षा करते हैं।

अधिकतर लोग जहां जाते हैं वहां से स्थानीय खानपान की चीजें उपहार स्वरूप लाते हैं। शायद इसीलिए जापान में रेलवे स्टेशनों पर यादगारी चीजें बेचने वाली ‘सोवेनियर शॉप्स’ किराना दुकानों जैसी प्रतीत होती हैं।

उपहार खरीदना जिन लोगों को झंझट लगता है तो वहां कुछ स्थानों पर कई कम्पनियां उनके लिए विशेष सेवा प्रदान करती हैं। वे हवाई अड्डों पर या इंटरनैट पर उपहारों का ऑर्डर कर सकते हैं जिन्हें उनके घर पर पहुंचा दिया जाता है।

जापान में उपहार मिलने पर जल्द से जल्द ‘रिटर्न गिफ्ट’ देना विनम्रता प्रदर्शित करता है। ध्यान रखा जाता है कि उसका मूल्य प्राप्त गिफ्ट के लगभग समान हो। जैसे-जैसे जापान के समाज में बुजुर्गों की संख्या बढ़ रही है, कुछ नए चलन भी सामने आ रहे हैं। अब औपचारिक उपहारों में कमी और अनौपचारिक उपहारों में वृद्धि देखने को मिल रही है।

चाहे मदर्स डे या ‘फैस्टिवल ऑफ लॉन्जेविटी’ (जब व्यक्ति 60 की उम्र का हो जाता है) का अवसर हो, बुजुर्गों  के लिए उपहारों का बाजार तेजी से बढ़ रहा है।

यह अन्य चलन युवतियों में दिखाई दे रहा है और जिन्हें अच्छी नौकरी के लिए कड़ी प्रतियोगिता से भी गुजरना पड़ रहा है। वे सफलता पर खुद के लिए भी उपहार लेने लगी हैं और ये उपहार केवल भौतिक चीजें ही नहीं हैं, इनमें होटल में बढ़िया डिनर, स्पा ट्रिप, लग्जरी होटल में रात गुजारने से लेकर हैंग ग्लाइडिंग जैसे खेलों का रोमांच उठाना तक शामिल है।

 

देखिये कैसे लाश की राख से बनता है हीरा

एक अनोखी तकनीक से मृत शरीर को हीरे में बदला जा रहा है। जो कम्पनी यह हीरे बना रही है उसका नाम अलगोरदांज है। इसकी स्थापना रिनाल्डो विल्ली नामक एक व्यक्ति ने की है।

अलगोरदांज का हिन्दी में अर्थ होता है ‘यादें’। इस कम्पनी का यह कारोबार स्विट्जरलैंड, जर्मनी और ऑस्ट्रिया तक फैला हुआ है। अनेक लोग अपने प्रियजनों के निधन के बाद इस अनोखी तकनीक का लाभ लेना पसंद कर रहे हैं।

इस कम्पनी के जरिए कोई भी अपने प्रिय मृत परिजन की यादों को हमेशा के लिए अपने साथ संजोकर रख सकता है। यह कम्पनी मृत शरीर की राख को हीरे में बदल देती है। रिनाल्डो विल्ली जब स्कूल में पढ़ते थे, तब उनको शिक्षक ने सब्जियों की राख को हीरे में बदलने के बारे में बताया था।

तभी से रिनाल्डो के मन में आया कि जैसे सब्जियों की राख से हीरा बनाया जा सकता है। वैसे ही मृत लोगों की राख से भी तो हीरा बनाया जा सकता है। उसने अपने इसी आइडिया पर काम किया और मृत लोगों की राख से सिंथेटिक हीरे को बनाते हुए अपनी कम्पनी की स्थापना कर ली।

यह कम्पनी एक वर्ष में करीब 850 मृत लोगों की राख को हीरे में तबदील कर रही है। एक हीरा तैयार करने के लिए कम्पनी को कम से कम आधा किलो राख की जरूरत होती है।

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शादीशुदा जावेद अख्तर के प्यार में इस अदाकारा ने तोड़ी थीं सारी हदें, पिता से भी की थी बगावत

शबाना आजमी भारतीय सिनेमा की सबसे प्रतिष्ठित और सम्मानित अभिनेत्रियों में से एक है। शबाना की अदाकारी को आज तक कोई टक्कर नहीं दे पाया है। इस अदाकारा को 5 बार बेस्ट एक्ट्रेस के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया गया है जो एक रिकॉर्ड  है। आइए जानते है शबाना आजमी के जीवन के बारे में कुछ रोचक बातें:

  • शबाना आजमी का जन्म 18 सितंबर 1950 में हुआ था। ये मशहूर कवि कैफी आजमी और थिएटर एक्ट्रेस शौकत आजमी की बेटी हैं। शबाना आजमी का घर का नाम मुन्नी था।
  • शबाना ने अपनी शुरुआती पढ़ाई क़्वीन मैरी स्कूल मुंबई से की है। उन्होंने मनोविज्ञान (Psychology) में स्नातक किया है। उन्होंने स्नातक की डिग्री मुंबई के सेंट जेवियर कॉलेज से ली है। शबाना आजमी ने एक्टिंग का कोर्स फिल्म एंड टेलिविजन इंस्टिटीयूट ऑफ इंडिया पुणे से किया है।
  • शबाना जितनी पॉपुलर अपनी अदाकारी के लिए रहीं उतनी ही सुर्खियां पर्सनल लाइफ को लेकर बटोरीं। जावेद अख्तर से शादी से पहले शबाना का नाम फिल्म मेकर शेखर कपूर के साथ भी जुड़ा था।
  • 9 दिसंबर, 1984 में जावेद अख्तर से इन्होंने शादी की। जावेद बॉलीवुड स्क्रिप्ट राइटर, कवि और गीतकार हैं। शबाना आजमी जावेद अख्तर की दूसरी पत्नी हैं।
  • जावेद अख्तर की पहली शादी हनी से हुई थी। हनी, जावेद से 10 साल छोटी थीं। उनके दो बच्चे भी थे।
  • 1970 में जावेद अख्तर कैफी आजमी से लिखने की कला सीखते थे। उसी दौरान उनका दिल कैफी आजमी की बेटी शबाना पर आ गया।
  • तब जावेद ने हनी को तलाक देकर शबाना से शादी करने का फैसला लिया। दोनों की शादी में मुश्किलें भी आईं। क्योंकि कैफी आजमी नहीं चाहते थे कि उनकी बेटी की शादी किसी शादीशुदा आदमी से हो।
  • प्यार के आगे किसी का जोर नहीं चलता। कैफी आजमी का भी नहीं चला और शबाना ने 1984 में जावेद से शादी कर ली।
  • शबाना आजमी ने अपने फ़िल्मी करियर की शुरुआत वर्ष 1973 में श्याम बेनेगल की फिल्म ‘अंकुर’ से की थी।   इस फिल्म की सफलता ने शबाना आजमी को बॉलिवुड में जगह दिलाने में अहम भूमिका निभाई।  अपनी पहली ही फिल्म के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का राष्ट्रीय पुरस्कार हासिल हुआ।
  • अब तक उन्होंने 100 से भी अधिक फिल्मों में अभिनय किया है, जिसके लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिए पांच बार राष्ट्रीय पुरस्कार और चार बार फिल्मफेयर पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है।
  • शबाना आजमी एक बहुत ही सक्रिय सामाजिक कार्यकर्ता हैं और वह राज्यसभा का सदस्य रही हैं।
  • शबाना आजमी एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में भी अपनी खास पहचान बना चुकी हैं। खासतौर पर बच्चों से जुड़े मसलों और एड्स से जुड़े मुद्दों पर बेहद सक्रिय रहती हैं। सांप्रदायिकता के खिलाफ कई प्ले में इन्होंने भाग लिया।

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चीन का शादी बाज़ार

जानिए कैसे हुई आईसक्रीम की खोज

सर्दी का मौसम हो या गर्मी का, ठंडी-ठंडी आइसक्रीम खाना हम सबको अच्छा लगता है| आइये आज हम आपको बताने जा रहे कि कब और कैसे हुई आईसक्रीम की खोज| सर्वप्रथम ईसा पूर्व 618 से 97 के बीच चीन में आईसक्रीम जैसी कोई चीज खाई जाती थी। शांग के राजा टांग के पास 94 ‘आईसमैन’ (आईस क्रीम जैसी चीज बनाने वाले) थे। जो भैंस के दूध, आटे और कपूर से एक आईस क्रीम जैसी चीज़ बनाते थे।

ईसा से 200 साल पूर्व चीन में ही एक तरह की आईस क्रीम का आविष्कार हुआ था, जब दूध और चावल का एक मिश्रण बर्फ में पैक करने से ही जम गया था। माना जाता है, कि रोमन सम्राट पहाड़ की चोटी से ताजा बर्फ लाने के लिए गुलाम भेजते थे, जिसे स्वादिष्ट बना कर परोसा जाता था, जिसे एक तरह की आईस क्रीम भी कहा जा सकता है।

खोजी मार्को पोलो (1254-1324) ने चीन की यात्रा के दौरान आईस क्रीम बनती देखी और सबसे पहले इटली के लोगों को इससे परिचित करवाया। सन् 1533 में इटली की राजकुमारी का विवाह फ्रांस के राजा हैनरी द्वितीय के साथ हुआ था। वह अपने साथ कुछ इतालवी कुक भी ले आई थी, जो जायकेदार बर्फ की रेसिपी बनाना जानते थे।

1660 में पैरिस के एक कैफे ने दूध, क्रीम, मक्खन और अंडे को फेंट कर आईस क्रीम बनाने की रेसिपी को प्रचारित किया था।सन् 1671 में पहली बार ब्रिटेन के शासक चार्ल्स द्वितीय के पास आईस क्रीम पहुंची। वह इससे इतने प्रभावित हुए, कि आईस क्रीम बनाने वाले अपने कुक को इसकी रैसिपी गुप्त रखने के लिए हर महीने 500 पाऊंड देते थे।

सन् 1744 में ऑक्सफोर्ड इंगलिश डिक्शनरी में पहली बार आईसक्रीम शब्द प्रकाशित हुआ।अमेरिका में क्वेकर मूवमैंट के लोग आइस क्रीम लेकर आए जो इंगलैंड से आकर वहां बस गए थे। बाल्टीमोर के दूध के व्यापारी जैकब फसेल ने बड़े पैमाने पर आईस क्रीम का उत्पादन करना शुरू किया था| जिससे आईसक्रीम आम आदमी तक पहुंच गई।

आईसक्रीम सनडे (फलमिश्रित आईस क्रीम) का आविष्कार 19वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में तब हुआ, जब अमेरिकी शहर इवनस्टोन में संडे यानी रविवार के दिन आईस क्रीम सोडा बेचने पर पाबंदी लग गई थी। इस पाबंदी से बचने के लिए कुछ व्यापारियों ने सोडा को सिरप में बदल दिया, और इस मिष्ठान का नाम संडे के दिन पर’ आईसक्रीम संडे’ रख दिया गया था ।

20वीं सदी के मध्य में रेफ्रीजरेशन तकनीक के विकास से आईस क्रीम की लोकप्रियता और भी बढ़ गई।

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अदभुत विज्ञान – रोचक कहानी पीरियोडिक टेबल की खोज की

हम सबने देखा है कि हर स्कूल की कैमिस्ट्री लैब में दीवारों पर विभिन्न एलीमैंट्स’ (तत्वों) को दर्शाता हुआ, पीरियोडिक टेबल यानी ‘आवर्त सारणी’ का पोस्टर लगा होता है। करीब 150 वर्षों से यह रासायनिक तत्वों के बारे में जानने के लिए एक सरल साधन रहा है।

आइये आज हम इस पोस्ट के माध्यम से पीरियोडिक टेबल के बारे में कुछ रोचक जानकारी शेयर करते हैं। साथ ही यह भी देखते हैं कि पीरियोडिक टेबल की खोज किसने की थी|

पीरियोडिक टेबल periodic table science hindi

दमित्री मेंडेलीव ने पहली बार पहचाना टेबल को

पीरियोडिक टेबल के रूप में तत्वों के वर्गीकरण के लिए जरूरी नियमों की खोज का श्रेय अक्सर ही रूसी रसायनविद् दमित्री मेंडेलीव को दिया जाता है, परंतु ऐसा करने वाले वह अकेले नहीं थे, अन्य वैज्ञानिकों ने इसका पता कुछ साल पहले ही लगा लिया था, परंतु वे दमित्री मेंडेलीव की तरह पहचान नहीं सके।

इनमें से एक वैज्ञानिक अंग्रेज थे, जिनका का नाम रसायनविद् जॉन न्यूलैंड्स था। 1860 के दशक में उन्होंने इस बात पर ध्यान दिलाया था कि, एक जैसे गुणों वाले तत्वों को यदि उनके एटोमिक मास (आणविक भार) के अनुसार वर्गीकृत किया जाए, तो वे एक-दूसरे के करीब रहते हैं।

परंतु अपनी बात को अन्य वैज्ञानिकों के सामने रखते हुए, उन्होंने इस नियम को समझाने के लिए इसकी तुलना संगीत की धुनों से कर दी थी, और जिस पर उनका बहुत मज़ाक उड़ाया गया था, और उनकी बात भी नजरअंदाज कर दी गई थी। जॉन न्यूलैंड्स की खोज को उनसे पहले एक अंग्रेज रसायनविद् विलियम ओडलिंग ने भी पेश किया था, परंतु वह भी इसके प्रति वैज्ञानिकों में रुचि पैदा करने में असफल रहे थे।

इस संबंध में दमित्री मेंडेलीव की सफलता का राज इस बात में छुपा है कि उन्हें यह पता लग गया था कि तत्वों का वर्गीकरण उससे कहीं अधिक जटिल है, जितना कि दूसरों को लगता था। इस वजह से पीरियोडिक टेबल में कुछ कॉलम अन्यों से लम्बे हैं।

उन्होंने यह भी शंका प्रकट की थी कि बीच में कुछ ब्लॉक्स उन तत्वों की वजह से खाली हैं जिनकी तब तक खोज ही नहीं हुई थी। उन्होंने उन अनजान तत्वों के गुणों के बारे में अनुमान लगाने का साहस भी दिखाया था।

बाद में ‘गैलियम’, ‘जर्मेनियम’ तथा ‘स्कैंडियम’ जैसे तत्वों की खोज से उनकी बातों की पुष्टि तो हो हुई ही  और उनका नाम भी 19वीं सदी के महानतम वैज्ञानिकों की सूची में भी हमेशा के लिए दर्ज हो गया।

चीन का शादी बाज़ार

मध्य बीजिंग के टैम्पल ऑफ हैवन पार्क में रविवार के दिन लगने वाले बाजार में खासी हलचल रहती है । पक्के फर्श पर क्रमबद्ध ढंग से कई पर्चे रखे हैं। दरअसल, इन सभी में शादी के विज्ञापन लिखे हैं। जिनमें से एक पर लिखा है, ‘1988 में जन्मी लड़की, कद 168 सेंटीमीटर, वजन 55 किलोग्राम, नर्स।’

इस बाजार में विवाह योग्य लड़के-लड़कियों के माता-पिता अपने बच्चों के लिए वर-वधू की तलाश में पहुंचते हैं। चीनी समाज का सम्पूर्ण हिस्सा बनने के लिए विवाह का बेहद ज्यादा महत्व माना जाता है। चीनी समाज का यह एक ऐसा दृष्टिकोण है।

जिसकी वजह से अकेली महिलाओं और समलैंगिक लोगों को अंतहीन परेशानियों का सामना करना पड़ता है। चीनी महिलाओं से 30 वर्ष की उम्र से पहले शादी कर लेने की उम्मीद की जाती है और 90 प्रतिशत महिलाओं के साथ ऐसा होता है।

चीन के राष्ट्रीय सांख्यिकी ब्यूरो के अनुसार वहां महिलाओं की शादी की औसत उम्र 26 वर्ष के आस-पास है। पार्क में फर्श पर रखे पर्चों में विवाह के अधिकतर विज्ञापन इस औसत उम्र से कुछ अधिक के दिखाई देते हैं। ज्यादातर 1987, 1988 या 1989 में जन्मे लड़के-लड़कियां हैं।

कुछ पर्चों पर कोड भी लगे हैं जिसे माता-पिता अपने स्मार्टफोन्स से स्कैन करके सीधे – सोशल नेटवर्किंग वैबसाइट वी-चैट पर उक्त लड़के या लड़की के पेज पर पहुंच सकते हैं।

माता-पिता के प्रयासों से अनजान बच्चे

डिजीटल युग में यह शादी का बाजार है परंतु अक्सर बच्चों को पता ही नहीं होता कि उनके माता-पिता यहां उनके लिए जीवनसाथी की तलाश कर रहे हैं।

सिंगल के लिए कठिनाइयां

शादी को लेकर दीवाने चीनी समाज में अकेले रहने वाले लोगों को कई समस्याओं से दो चार होना पड़ता है। करीब 20 करोड़ चीनी सिंगल हैं। उनमें से ज्यादातर पुरुष हैं। देश के सांख्यिकी ब्यूरो के अनुसार वर्ष 2020 तक महिलाओं की तुलना में वहां विवाह योग्य आयु वाले पुरुषों की संख्या 2 करोड़ 40 लाख ज्यादा हो जाएगी।

हालांकि, पुरुषों के बजाय 27 वर्ष से ज्यादा उम्र की अविवाहित महिलाओं को अस्वीकृत का दर्जा दे दिया जाता है जबकि उम्र के 30 और 40 के दशक में भी पुरुषों का अविवाहित रहना कलंक नहीं माना जाता है।

चीन में विवाह को एक बुनियादी आवश्यकता के रूप में देखा जाता है और अविवाहित होने का मतलब निकाला जाता है कि आप खुद अपना ख्याल नहीं रख सकते हैं। यहां तक कि अच्छी नौकरी व आर्थिक रूप से स्वतंत्र उच्च शिक्षित महिलाएं भी वहां शादी करने का दबाव झेलती हैं।

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ये शैतान पहाड़ी तोते ऐसी-2 शरारतें करते हैं कि आप जान कर दंग रह जायेंगे!

सिर्फ 5 महीनों में 28 वर्षीय आप्रवासी बन गया करोड़पति

किसी की लाईफ में कब क्या हो जाए कोई नहीं जानता। और कई बार एेसे सुखद इत्तफाक भी हो जाते हैं कि इंसान हैरान हो जाता हैं। एेसा ही हुआ कनाडा में रहने वाले एक 28 वर्षीय अप्रवासी अफ्रीकी युवक के साथ जिसने पांच महीने में दो बार लॉटरी में बंपर इनाम जीता और 5 महीनों में करोड़पति बन गया । मेलहिग इन दोनों लॉटरियों में कुल मिलाकर 3.5 मिलियन कैनेडियन  डॉलर (2.7 मिलियन अमरीकी डॉलर) यानी करीब 20 करोड़ रुपए जीत चुके हैं।

इसी साल अप्रैल में मेलहिग ने एक लॉटरी का टिकट खरीदा था, जिसमें उन्होंने 1.5 मिलियन कनाडाई डॉलर यानी करीब 8 करोड़ 30 लाख रुपए जीते थे। इसके बाद पिछले महीने उन्होंने एक और लॉटरी का टिकट खरीदा और किस्मत देखिए कि मेलहिग ने एक बार फिर 2 मिलियन डॉलर (कनाडाई) यानी करीब 11 करोड़ रुपए की भारी भरकम राशि जीत ली।

मेलहिग दो साल पहले पश्चिमी अफ्रीका से काम की तलाश में कनाडा आए थे। लॉटरी जीतने के बाद पश्चिमी कनाडा लॉटरी निगम ने जब मेलहिग से पूछा कि वह इतने सारे रुपए का क्या करेंगे, तो उन्होंने कहा कि मैं अपनी अंग्रेजी सुधारना चाहता हूं और मैं बढ़ईगीरी जैसे कुछ उपयोगी काम भी सीखना चाहता हूं। साथ ही उन्होंने बताया कि वह एक कार धुलाई या गैस स्टेशन खरीदने की सोच रहे हैं और स्कूल भी जाना चाहते हैं।

पिछली बार जब उन्होंने 1.5 मिलियन डॉलर जीते थे, तब उन्होंने अपनी पत्नी और बच्चों के लिए एक घर खरीदा था। लॉटरी के अधिकारियों ने बताया कि मेलहिग ने जब पहली बार लॉटरी का  इनाम जीता था तब उनका वो 90,000वां मौका था, जबकि दूसरी बार उन्होंने एक ही बार में बंपर इनाम जीत लिया।

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ये शैतान पहाड़ी तोते ऐसी-2 शरारतें करते हैं कि आप जान कर दंग रह जायेंगे!

आपके साथ ना हो धोखा उसके लिए गाड़ी लेने से पहले रखें इन बातों का ख्याल

अगर आप कोई नई गाड़ी ख़रीदने की सोच रहे हैं, तो सबसे पहले आप उस गाड़ी की अच्छे से टैस्ट ड्राइविंग कर लें, जिससे आपको पता चलेगा कि क्या वह गाड़ी आपकी जरूरतों को पूरा कर सकती है, या फिर नहीं? टैस्ट ड्राइविंग करते वक्त आपको कुछ ख़ास बातों का ध्यान रखना होगा। आज हम आपको इन्हीं ख़ास बातों के बारे में बताने जा रहे हैं.

* सबसे पहले अपनी जरूरतें तथा पसंद पर खरी उतरने वाली सभी कारों की एक सूची बनाएं। इसके बाद एक-एक करके सभी कारों की टैस्ट ड्राइविंग करें।

* लम्बी टैस्ट ड्राइविंग पर जाएं क्योंकि इससे आपको कार में अधिक वक्त गुजारने का अवसर मिलेगा। यह सुनिश्चित बनाएं कि इस दौरान आप धीमी गति से ही ड्राइविंग करें, और शहर के ट्रैफिक से लेकर हाईवे पर कार को चलाये ।

* अनुभवी मित्र या किसी एक्सपर्ट मैकेनिक को अपने साथ चलने को कहें क्योंकि, वे आपकी कमियों को भी पकड़ सकेगा।

*टैस्ट ड्राइविंग पर जाने से पहले देखें कि कार पर किसी तरह का डैट, खरोंच आदि तो नहीं है| कुछ भी नुक्सान हो तो सेल्समैन को बता देना चाहिए ताकि बाद में उनका दोष आप पर न लग सके।

*कम्फर्ट, स्पोर्ट आदि विभिन्न ड्राइविंग मोड्स की जांच करें।

*कार के चलते ही तथा ड्राइविंग के दौरान भी उसकी एक्सीलिरेशन (गति पकड़ने की क्षमता) की भी जांच करें। इससे इंजन की ताकत का आपको पता चल जायेगा।

*किसी ट्रैफिक रहित सड़क पर टर्निग सर्कल (कार के मुड़ने की क्षमता) की जांच भी कर लें।

*ए.सी. तथा ऑडियो बंद करके कार के टायरों, हवा तथा इंजन की आवाज अलग-अलग तरह की सड़कों पर सुनने की कोशिश करें।

*कार के सेफ्टी फीचर्स पर भी ध्यान दें। उसमें कितने एयर बैग हैं, एक्टिव सेफ्टी इलैक्ट्रॉनिक्स तथा एडजस्टेबल सीट बेल्ट्स आदि बातों की पड़ताल करें।

* सन वाइजर, ग्लव बॉक्स, सीटों से लेकर कार की बॉडी आदि की गुणवत्ता तथा मजबूती पर भी आपको ध्यान देना होगा।

* अपनी सूची की सभी कारों की टैस्ट ड्राइविंग करने के बाद इनकी की आपस में तुलना करें और उसके आधार पर ही किसी नतीजे पर पहुंच कर कार को खरीदें।

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शैतान पहाड़ी तोते “किया” के बारे में हैरतअंगेज़ तथ्य

न्यूजीलैंड के पर्वतीय इलाकों में पाए जाने वाले ‘किया’ (Kea) विश्व के एकमात्र पहाड़ी तोते हैं। ये तोते बेहद निडर, चतुर और शरारती हैं। पर्वतीय सड़कों से गुज़रने  वाली कारों की छतों पर धम्म से बैठ कर उनकी सवारी करने से लेकर रेस्तरां से खाना चुराने और मस्ती में लोगों की चीजों को तहस-नहस करने में इन्हें खूब मजा आता है।

लगभग एक किलोग्राम वजन और आधा मीटर लम्बाई वाला एक “किया” तोता एक भेड़ को मार सकता है। इसकी चोंच एक बाज जैसी नुकीली और पंजे बेहद मज़बूत होते हैं।

उन्हें कीलें और चमकती धातु की चीजें आकर्षित करती हैं। इनमें से कई इसी चक्कर में मारे भी जाते हैं क्योंकि इन्हें वे इमारतों की छतों से उखाड़ कर निगल लेते हैं। कुछ अन्य पर्यटक स्थलों पर कारों की छत पर सवारी करते हुए उड़ान भरने के प्रयास में कारों के आगे गिर कर कुचले भी जाते हैं।

कई लोगों को इन पक्षियों से खासी परेशानी महसूस होती है। एक लोकप्रिय घटना में दो पर्वतारोही पहाड़ी पर बनी एक वीरान झोंपड़ी में तब कैद हो गए थे जब उनके सो जाने के बाद एक पहाड़ी तोते ने बाहर से कुंडी लगा दी थी। जागने पर करीब 1 घंटे की मशक्कत के बाद किसी तरह से वे दरवाजा खोल सके थे।

किया कंज़र्वेशन ट्रस्ट के ओर-वॉकर के अनुसार खुले जंगलों या पहाड़ों पर तो इन तोतों के बीच बहुत अच्छा लगता है लेकिन जब आप वीरान कैबिन में सोए हों और वे बाहर से कुंडी लगा दें, खिड़की पर पत्थर फेंक जाएं या कार की रबड़ नोच लें तो इन पर गुस्सा आना स्वाभाविक है।

न्यूजीलैंड में यूरोपियों के बसने के वक्त से ही इन पहाड़ी तोतों और इंसानों के बीच टकराव जारी है। 19वीं सदी में किसान का सब्र टूट गया जब वे पहाड़ियों पर उनकी भेड़ों को मारने लगे। सरकार ने उनके मारने पर ईनाम घोषित कर दिया और 100 वर्ष बाद जब तक इसे हटाया गया डेढ़ लाख से ज्यादा पहाड़ी तोतों को मारा जा चुका था।

अभी भी कई लोग इन्हें परेशानी का सबब ही मानते हैं और गोली से या ज़हर देकर इन्हें मारा जा रहा है। इनकी घटती संख्या को देखते हुए ही इनके संरक्षण के लिए प्रयास तेज कर दिए गए हैं। अधिक शरारतें युवा तोते ही करते हैं और किया कंजर्वेशन ट्रस्ट ने लोगों को युवा तोतों के झुंड से निपटने में मदद के लिए अभियान शुरू किया है।

क्वींसटाऊन स्थित टूरिस्ट रिजॉर्ट से पर्यटकों के लिए हैलीकॉप्टर सेवा चलाने वाली कम्पनी हैलीवर्स को भी पहाड़ी तोतों को अपने हैलीकॉप्टरों से दूर रखने के लिए विशेष उपाय करने पड़ते हैं। पहाड़ी तोते हैलीकॉप्टरों के रोटर पर हमला करने, रबड़ की चीजों को नोचने से लेकर गम्भीर नुक्सान पहुंचा देते हैं।

ऐसे में जंगली इलाकों में हैलीकॉप्टर के ऊपर रात के वक्त वाटर स्प्रिकलर चलाए जाते हैं। हालांकि, इन तोतों को सबसे ज्यादा खतरा शिकारी जीवों से है। चूंकि वे जमीन में घोंसले बनाते हैं, वहां उनके अंडों और नवजात तोतों को टापू पर 19वीं सदी में विदेशों से लाकर छोड़े गए पोसम और स्टोट जैसे शिकारी अक्सर खा जाते हैं।

सरकार ने टापू से इन विदेशी शिकारी जीवों को ख़त्म करने की योजना बनाई है जो पहाड़ी तोते जैसे मूल प्रजाति के कई जीवों के लिए खतरा बने हुए हैं परंतु पहाड़ी तोतों के संरक्षण के लिए अभी और बहुत कुछ किए जाने की जरूरत है। जिनकी संख्या घटते हुए अब केवल 5 हजार तक पहुंच गई है।

किया के बारे में रोचक तथ्य

  • कुछ वैज्ञानिक यहां तक ​​सोचते हैं कि “किया” 4 साल के बच्चे की तरह होशियार हो सकते हैं!
  • केवल 27% किया चूजे एक वर्ष से अधिक समय तक जीवित रह पाते हैं।
  • किया के समूह में 10-13 तोते होते हैं। हालाँकि जब प्रजनन के समय संभोग करने का समय आता है तो 100 से अधिक के झुंड भी बन सकते हैं।
  • वे अत्यधिक बुद्धिमान होते हैं और उन्हें वस्तुओं को एक निश्चित क्रम में रखने के लिए प्रशिक्षित किया जा सकता है।
  • कुछ किया ने एक निर्माणाधीन घर से काफी सारी कीलों को चुरा लिया और जब इन्हें खोजा गया तो वे एक पेड़ के नीचे क्रम- वार रखी मिलीं, जिन्हें छोटी, से बड़ी के क्रम में तरतीब से रखा गया था।
  • इन्हें नियमित रूप से उन्हें सामान चुराते और विंडस्क्रीन वाइपर, पासपोर्ट और स्की जैसी वस्तुओं को नष्ट करते देखा जाता है।
  • किया को उनके चुटीले व्यक्तित्व के कारण ‘पहाड़ का जोकर’ (clown of the mountain) भी कहा जाता है।
  • किया के पंखों का फैलाव १ मीटर तक होता है