Wednesday, April 17, 2024
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आखिर क्यों ‘पारिजात वृक्ष’ को इतना पवित्र माना जाता है जानिए क्या है खासियत

भारत में प्राचीन काल से ही वृक्षों की पूजा अर्चना होती चली आ रही हैं, फिर चाहे वो पीपल का पेड़ हो या बरगद का। हमारे देश में बहुत से ऐसे वृक्ष है जिनका बड़ा धार्मिक महत्व है। ऐसा ही एक अद्भुत वृक्ष है ‘पारिजात’।

पारिजात वृक्ष भगवान श्री राम का बहुत प्रिय है। इस पौधे के साथ-साथ इस पर आने वाले नाजुक सफेद फूल और उसकी मनमोहक खुशबू का भी हिंदू पौराणिक कथाओं में बहुत महत्व है।

पारिजात का वृक्ष 10-15 फीट ऊंचा होता है। कहीं कहीं इसकी ऊँचाई 25 से 30 फीट तक भी चली जाती है। खासतौर पर ये बागबगीचों की शोभा होता है। इसके फूल बेहद खूबसूरत होते हैं।

पारिजात पर काफी संख्या में फूल लगते हैं या आप कह सकते हैं कि यह वृक्ष फूलों से लदा होता है। यह मध्य भारत और हिमालय की नीची तराइयों में अधिक पैदा होता है।

इस अद्भुत वृक्ष की खास बात यह है कि इसमें फूल तो जरूर खिलते हैं लेकिन वे भी रात के समय और सुबह होते-होते वे सब मुरझा जाते हैं।

इन फूलों को खासतौर पर लक्ष्मी पूजन के लिए इस्तेमाल किया जाता है लेकिन केवल उन्हीं फूलों को इस्तेमाल किया जाता है जो अपने आप पेड़ से टूटकर नीचे गिर जाते हैं, क्योंकि इस पेड़ से फूलों को तोड़ने की मनाही है।

ज्योतिष ज्योतिष विज्ञान में भी पारिजात का विशेष महत्व बताया गया है। आज इस पोस्ट में हम जानेगें कि क्यों यह पौधा इतना महत्वपूर्ण है, तो चलिए जानते हैं :-

कैसे हुई इस पेड़ की उत्पत्ति

इस पेड़ की उत्पत्ति के बारे में मान्यता है कि एक बार देवराज इंद्र महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण श्री हीन हो गए। जिससे उनका स्वर्ग लोक से वैभव, समृद्धि और संपन्नता खत्म हो गई। इससे सभी देवता बेहद परेशान और दुखी थे। इसके निवारण के लिए वे ​एक दिन भगवान विष्णु के पास गए।

उन्होंने फिर देवताओं को असुरों की मदद से सागर मंथन करने की सलाह दी। देवताओं और असुरों की मदद से सागर मंथन हुआ, जिसमें से पहले विष निकला। उसे ग्रहण कर भगवान शिव नीलकंठ कहलाए।

फिर इसके बाद सागर से एक-एक करके 14 रत्न निकले। उसमें कल्पवृक्ष के साथ ‘पारिजात’ या ‘हरसिंगार’ का पेड़ भी था। उन 14 रत्नों में कामधेनु गाय, उच्चैःश्रवा घोड़ा, ऐरावत हाथी, कौस्तुभ मणि, कल्पद्रुम, रंभा, माता लक्ष्मी, वारुणी (मदिरा), चन्द्रमा, पारिजात वृक्ष, शंख, धन्वंतरि वैद्य और अमृत शामिल थे।

देवराज इंद्र ने सागर मंथन से निकले रत्नों में से पारिजात वृक्ष को स्वर्ग में स्थापित कर दिया। ‘हरिवंश पुराण’ में भी इस वृक्ष का उल्लेख मिलता है जिसमें कहा गया है कि इस वृक्ष को छूने भर से देव नर्तकी उर्वशी की थकान मिट जाती थी।

भगवान श्रीकृष्ण द्वारा धरती पर किया गया स्थापित

एक बार नारद मुनि इस वृक्ष से कुछ फूल इन्द्र लोक से लेकर आये और कृष्ण भगवान को दिए। कृष्ण ने वे फूल लेकर पास बैठी अपनी पत्नी रुक्मणी को दे दिए।

यह बात दासियों द्वारा सत्यभामा तक पहुंची जो भी श्रीकृष्ण की धर्मपत्नी थीं। जब भगवान द्वारका स्थित सत्यभामा के महल में पहुंचे तो सत्यभामा ने उनसे पारिजात वृक्ष लाने का हठ पकड़ लिया। बहुत मनाने पर भी वह नहीं मानी।

फिर श्रीकृष्ण ने अपना एक दूत स्वर्गलोक पारिजात का वृक्ष लाने के लिए भेजा लेकिन देवराज इंद्र ने दूत को वृक्ष देने से इंकार कर दिया। फ़िर भगवान श्रीकृष्ण स्वयं ही स्वर्गलोक गए जहां उन्हें वृक्ष लाने के लिए देवराज इंद्र से युद्ध करना पड़ा।

जब भगवान श्रीकृष्ण इंद्रदेव को पराजित करने के बाद जाने लगे तो इंद्र ने क्रोध में आकर वृक्ष पर कभी फल ना आने का श्राप दिया। इसी वजह से इस पर फूल तो आते हैं पर फल एक भी नहीं।

वादे के अनुसार कृष्ण ने उस वृक्ष को लाकर सत्यभामा की वाटिका में लगवा दिया लेकिन उन्हें सबक सिखाते हुए कुछ ऐसा किया जिस कारण रात को वृक्ष पर पुष्प तो उगते थे लेकिन वे उनकी पहली पत्नी रुक्मणी की वाटिका में ही गिरते थे।इस प्रकार इस वृक्ष कि स्थापना धरती पर हुई।

पारिजात नाम की ‘राजकुमारी’

एक मान्यता यह भी है कि ‘पारिजात’ नाम की एक राजकुमारी हुआ करती थी, जिसे भगवान सूर्य से प्रेम हो गया था। तमाम कोशिश के बाद भी भगवान सूर्य ने पारिजात के प्रेम को स्वीकार नहीं किया, जिससे खिन्न होकर राजकुमारी पारिजात ने आत्महत्या कर ली।

जिस स्थान पर पारिजात की क़ब्र बनी, वहीं से पारिजात नामक वृक्ष ने जन्म लिया। इसी कारण पारिजात वृक्ष को रात में देखने से ऐसा लगता है, जैसे वह रो रहा हो। लेकिन सूर्य उदय के साथ ही पारिजात की टहनियां और पत्ते सूर्य को आगोश में लेने को आतुर दिखाई पड़ते हैं।

औषधीय गुणों का भंडार

पारिजात में औषधीय गुणों का भी भण्डार है :-

  • पारिजात बवासीर रोग के निदान के लिए रामबाण औषधि है।
  • इसके फूल हृदय के लिए भी उत्तम औषधि माने जाते हैं।
  • पारिजात की पत्तियों को पीस कर शहद में मिलाकर सेवन करने से सूखी खाँसी ठीक हो जाती है।
  • इसी तरह पारिजात की पत्तियों को पीसकर त्वचा पर लगाने से त्वचा संबंधी रोग ठीक हो जाते हैं।
  • पारिजात की पत्तियों से बने हर्बल तेल का भी त्वचा रोगों में भरपूर इस्तेमाल किया जाता है।
  • पारिजात की कोंपल को यदि पाँच काली मिर्च के साथ महिलाएं सेवन करें तो महिलाओं को स्त्री रोग में लाभ मिलता है।
  • इसकी पत्तियों का जूस क्रोनिक बुखार को ठीक कर देता है।

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