जानिए क्यों मनाया जाता है “अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस” क्या है इस वर्ष की थीम?

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“अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस” महिलाओं और पुरुषों के बीच समानता बनाने और महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने के उद्देश्य से मनाया जाता है।

हर साल “अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस” ​​8 मार्च को दुनिया भर में मनाया जाता है। यह दिन महिला अधिकारों के आंदोलन का प्रतीक है और इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य महिलाओं के अधिकारों को बढ़ावा देना है।

“अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस” ​​थीम 2024

हर साल महिला दिवस किसी ना किसी थीम पर आधारित होता है। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक इस बार अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2024 (IWD 2024) की थीम “महिलाओं में निवेश: प्रगति में तेजी लाएं यानी मजबूत भव‍िष्‍य के ल‍िए लैंग‍िक समानता जरूरी है।

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पहली बार 1996 में एक थीम के साथ मनाया गया था। उस वर्ष संयुक्त राष्ट्र की थीम सेलिब्रेटिंग द पास्ट, “प्लानिंग फॉर द फ्यूचर” थी।

शुरुआत

“अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस” ​​1908 में न्यूयॉर्क शहर महिला श्रम आंदोलन के साथ शुरू हुआ। जब लगभग 15,000 महिलाओं ने अपने अधिकारों की मांग के लिए सड़कों पर कदम रखा।

महिलाएं अपने काम के घंटे को कम करने, बेहतर वेतन और वोट के अधिकार की मांग कर रही थीं। महिलाओं के विरोध के लगभग एक साल बाद, सोशलिस्ट पार्टी ऑफ अमेरिका ने पहला राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने की घोषणा की। इसके बाद क्लारा ज़ेटकिन द्वारा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महिला दिवस मनाने का विचार आया।

क्लारा तब यूरोपीय देश डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगन में कामकाजी महिलाओं के एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में भाग ले रही थीं।

सम्मेलन में 17 देशों की लगभग 100 महिलाओं ने भाग लिया। इन सभी महिलाओं ने सर्वसम्मति से क्लारा के प्रस्ताव को मंजूरी दी।

क्लारा ज़ेटकिन ने 1910 में विश्व स्तर पर महिला दिवस मनाने का प्रस्ताव रखा। पहला अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 1911 में ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विट्जरलैंड में मनाया गया था लेकिन 1975 में इसे औपचारिक रूप से मान्यता दी गई थी।

 उद्देश्य

“अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस” ​​मनाने का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य महिलाओं और पुरुषों के बीच समानता बनाने के लिए जागरूकता पैदा करना है। महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक भी किया जाना चाहिए।

आज भी कई देशों में महिलाओं को समानता का अधिकार नहीं है। शिक्षा और स्वास्थ्य के मामले में महिलाएं पिछड़ रही हैं। वहीं महिलाओं के खिलाफ हिंसा की घटनाएं बढ़ रही हैं।

यही नहीं नौकरी में तरक्की के क्षेत्र में भी वे रोजगार के मामले में पिछड़ रहे हैं। 19 वीं शताब्दी में जब महिला दिवस शुरू हुआ, तो महिलाओं ने मतदान का अधिकार प्राप्त किया।

इस प्रकार महिला दिवस देश और दुनिया में मनाया जाता है

“अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस” ​​दुनिया भर में विभिन्न तरीकों से मनाया जाता है। यह दिन अब समाज, राजनीति और अर्थव्यवस्था में महिलाओं की उन्नति के दिन के रूप में मनाया जाता है।

इस दिन भारत में महिलाओं पर आधारित विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। लोग महिलाओं को शुभकामनाएं और विभिन्न उपहार देते हैं। साथ ही इस अवसर पर नारी शक्ति पुरस्कार दिए जाते हैं।

यह पुरस्कार महिला और बाल विकास मंत्रालय द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। यह पुरस्कार व्यक्तियों, समूहों, गैर सरकारी संगठनों को दिया जाता है। यह पुरस्कार महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य के लिए दिया जाता है।

इस दिन रूस, चीन, कंबोडिया, नेपाल और जॉर्जिया जैसे कई देशों में छुट्टी होती है। चीन में कई महिलाओं को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर काम से आधे दिन की छुट्टी दी जाती है।

इसके अलावा इटली की राजधानी रोम में इस दिन महिलाओं को मिमोसा (चिमिमुई) फूल देने की प्रथा है। कुछ देशों में बच्चे इस दिन अपनी माताओं को उपहार देते हैं इसलिए कई देशों में इस दिन पुरुष अपनी पत्नियों, दोस्तों, माताओं और बहनों को उपहार देते हैं।

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टेलीफोन के आविष्कार अलेक्जेंडर ग्राहम बेल के बारे में रोचक तथ्य

अलेक्जेंडर ग्राहम बेल एक महान वैज्ञानिक और आविष्कारक थे, जो टेलीफोन के विकास पर अपने अग्रणी काम के लिए जाने जाते थे। अलेक्जेंडर ग्राहम बेल का जन्म 3 मार्च 1847 को एडिनबर्ग में हुआ था। उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही अपने पिता से ही ग्रहण की थी। उनके पिता प्रोफेसर ऐलेक्ज़ैन्डर मेलविल बेल, एक ध्वन्यात्मक विशेषज्ञ थे और उनकी मां एलिजा ग्रेस बेल थीं। उनके दो भाई थे मेलविल जेम्स बेल और एडवर्ड चार्ल्स बेल, जिनकी मृत्यु तपेदिक से हो गई।

10 साल की उम्र में उनका नाम ‘ऐलेक्ज़ैन्डर बेल‘ था, उन्होंने अपने पिता से अपने दो भाइयों की तरह एक मध्य नाम रखने का अनुरोध किया था और उनके 11वें जन्मदिन उनके पिता ने उन्हें ‘ग्राहम’ नाम दिया। करीबी रिश्तेदार और दोस्त उन्हें ‘एलेक’ कहते थे।

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अपने पिता से शिक्षा ग्रहण करने के बाद उन्हें स्कॉटलैंड के एडिनबर्घ की रॉयल हाई स्कूल में डाला गया था लेकिन उन्होंने वह स्कूल छोड़ दिया। कुछ समय के बाद उनके अंदर पढ़ाई करने की तीव्र जाग्रति उत्पन्न हुई और तभी से वे घंटो तक पढ़ाई करते रहते थे।

16 साल की उम्र में, बेल ने भाषण के यांत्रिकी का अध्ययन करना शुरू किया। उन्होंने रॉयल हाई स्कूल और एडिनबर्ग विश्वविद्यालय में अपनी शिक्षा ग्रहण की। 1868 में बेल अपने परिवार के साथ कनाडा चले गए और उसके अगले वर्ष वह संयुक्त राज्य अमेरिका में जाकर बस गए।

यूएस में रहते हुए बेल ने ‘visible speech’ (भाषण ध्वनियों का प्रतिनिधित्व करने वाले प्रतीकों का एक सेट) नामक एक प्रणाली लागू की जिसे उनके पिता ने बधिर बच्चों को पढ़ाने के लिए विकसित किया था। 1872 में उन्होंने बोस्टन में स्कूल ऑफ वोकल फिजियोलॉजी एंड मैकेनिक्स ऑफ स्पीच खोला, जहां बधिर लोगों को बोलना सिखाया जाता था।

26 साल की उम्र में (1873 में ) वह बोस्टन यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ ऑरेटरी में वोकल फिजियोलॉजी और एलोक्यूशन के प्रोफेसर बन गए।

पढ़ाते समय बेल की मुलाकात एक बधिर छात्र मैबेल हब्बर्ड से हुई जिनसे उन्हें प्यार हो गया। इस जोड़े ने 11 जुलाई, 1877 को शादी कर ली। उनके चार बच्चे हुए, जिनमें दो बेटे भी शामिल थे, जिनकी मृत्यु बचपन में ही हो गई थी।

टेलीग्राफ से टेलीफोन तक का रास्ता

बेल ने जब टेलीफोन को इजाद करने के लिए विद्युत संकेतों के साथ प्रयोग करना शुरू किया, तो टेलीग्राफ लगभग 30 वर्षों तक संचार का एक स्थापित साधन था। हालांकि एक बेहद सफल प्रणाली, टेलीग्राफ मूल रूप से एक समय में एक संदेश प्राप्त करने और भेजने के लिए सीमित था।

बेल को ध्वनि की प्रकृति के बारे में व्यापक ज्ञान था, जिसके कारण उन्होंने एक ही समय में एक ही तार पर कई संदेश प्रसारित करने की संभावना पर खोज शुरू की।

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अन्य रोचक तथ्य

  • बेल ने 1873 और 1874 के बीच, थॉमस सैंडर्स और गार्डिनर हबर्ड के वित्तीय समर्थन के साथ “हार्मोनिक टेलीग्राफ” पर काम किया।
  • ग्राहम बेल को 1876 में सबसे पहले काम करने वाले टेलीफोन का आविष्कार करने और 1877 में बेल टेलीफोन कंपनी की स्थापना के लिए जाना जाता है।
  • बेल का नाम उनके नाना के नाम पर रखा गया था। उनके पिता और दादा इंग्लैंड में स्पीच डेवलपमेंट के क्षेत्र में अपने काम के लिए प्रसिद्ध थे, जिसे एलोक्यूशन कहा जाता था।
  • 12 साल की उम्र में बेल ने अपने दोस्त की पारिवारिक अनाज मिल के लिए डी-हॉकिंग मशीन का आविष्कार किया था।
  • बेल की मां और पत्नी दोनों बहरी थीं। इसी कारण ने उन्हें ध्वनिकी के साथ काम करने और तारों पर ध्वनि तरंगों को प्रसारित करने के लिए प्रभावित किया।
  • कहा जाता है कि बेल ने अपनी पहली कॉल अपनी प्रेमिका हेलो को किया था लेकिन यह गलत है। इनकी पत्‍नी का नाम मैबेल हब्बर्ड था। ग्राहम बेल ने अपनी पहली कॉल में अपने असिस्टेंट से हेलो नहीं, “यहां आओ, मैं तुम्हें कुछ दिखाना चाहता हूं,” कहा था। हेलो शब्द स्पैनिश के होला से बना है।
  • ग्राहम बेल बचपन से ही ध्वनि विज्ञान में गहरी दिलचस्पी रखते थे, इसलिए उन्होंने एक ऐसा पियानो बनाया, जिसकी मधुर आवाज काफी दूर तक सुनी जा सकती थी। कुछ समय तक वे स्पीच टेक्नोलॉजी विषय के टीचर भी रहे थे। इस दौरान भी उन्होंने अपना प्रयास जारी रखा और एक ऐसे यंत्र को बनाने में सफल हुए, जो न केवल म्यूजिकॅल नोट्स को भेजने में सक्षम था, बल्कि आर्टिकुलेट स्पीच भी दे सकता था। यही टेलीफोन का सबसे पुराना मॉडल था।
  • टेलीफोन की खोज करने के बाद जब लोगों ने इसका इस्तेमाल करना शुरू किया तो वे लोगों से सबसे पहले पूछते थे Are you there। वह ऐसा इसलिए करते थे ताकि वह जान सके की उनकी आवाज दूसरी ओर पहुंच रही है कि नहीं। हालांकि एक बार थॉमसन एडिशन ने Ahoy को गलत सुन लिया और साल 1877 में उन्होंने Hello बोलने का प्रस्ताव रखा।
  • इस प्रस्ताव को पास कराने के लिए थॉमस एडिशन ने पिट्सबर्ग की सेंट्रल डिस्ट्रिक्ट एंड प्रिंटिंग टेलीग्राफ कंपनी के अध्यक्ष टीबीए स्मिथ को पत्र लिख कर कहा कि टेलीफोन पर पहला शब्द हैलो बोला जाना चाहिए। जब उन्होंने पहली बार फोन किया तो सबसे पहले कहा हैलो। ये उन्हीं की देन है कि आज हम फोन उठाते ही हैलो बोलते हैं।
  • ग्राहम बेल ने 1880 में फोटोफोन नाम की एक डिवाइस बनाई। ये तकनीक प्रकाश की किरणों के ज़रिए आवाज़ को एक जगह से दूसरी जगह भेजती थी। आज की ऑप्टिकल फाइबर केबल ग्राहम बेल के सिद्धांतों पर काम करती है।
  • गोली लगने पर लोगों की जान बचाने के लिए बेल ने एक इलेक्ट्रोमैग्नेटिक मशीन ‘इंडक्शन बैलेंस’ बनाई। इस मशीन से उन्होंने कई पूर्व सैनिकों के जिस्म में छिपी गोलियों की सही लोकेशन पता लगाने में मदद की।
  • 1888 में बेल नेशनल ज्योग्राफिक सोसाइटी के संस्थापक सदस्यों में से एक थे और 1896 से 1904 तक उन्होंने इसके अध्यक्ष के रूप में कार्य किया।
  • अलेक्जेंडर ग्राहम बेल का निधन 2 अगस्त, 1922 को कनाडा के नोवा स्कोटिया में हुआ था तब एक मिनट के लिए अमेरिका और कनाडा में सभी टेलीफोन लाइन को निलंबित कर दिया गया।

मजेदार किस्सा : जब अनुपम खेर ने महेश भट्ट को दिया था श्राप, फिल्म से निकाले जाने के कारण रातों-रात मुंबई छोड़ रहे थे एक्टर

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बॉलीवुड के दिग्गज और वर्सटाइल एक्टर अनुपम खेर ने अपने करियर में 500 से भी ज्यादा फिल्मों में काम किया है। उन्होंने कॉमेडी, विलेन, सीरियस सभी तरह के किरदारों को बखूबी पर्दे पर निभाया है। उनका जन्म 7 मार्च 1955 को शिमला में हुआ था।

आज के लेख में हम आपको बॉलीवुड के दिग्गज अभिनेता से जुड़ा एक किस्सा बताने जा रहे हैं तो चलिए जानते हैं।

अनुपम खेर ने बॉलीवुड के साथ-साथ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अपनी पहचान बनाई है। अनुपम पहली बार महेश भट्ट की फिल्म सारांश में नजर आए थे। ये फिल्म सुपरहिट साबित हुई थी। इसकी खास बात ये थी कि इस फिल्म में अनुपम ने एक बूढ़े पिता का किरदार निभाया था और उस वक्त उनकी उम्र केवल 28 साल थी।

Funny story Anupam Kher cursed Mahesh Bhatt

अनुपम ने अपने संघर्ष के बारे में एक इंटरव्यू में कहा था- मैं एनएसडी से पढ़ाई करने के बाद कलाकार बनने के लिए मुंबई आया था। उस वक्त मेरी जेब में 37 रुपये थे। उन दिनों मैं रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर सोया करता था।

अनुपम को फिल्म सारांश में काम मिल गया था लेकिन जब वह इसके लिए तैयार हुए तो महेश भट्ट ने उन्हें फिल्म से निकाल दिया और संजीव कुमार को कास्ट कर लिया।

जब अनुपम को सारांश से हटाए जाने की बात पता चली तो उनका दिल टूट गया। कई सालों से संघर्ष कर रहे अनुपम ने मुंबई छोड़ने का फैसला किया और महेश भट्ट के घर जाकर उन्हें भला-बुरा कहा।

अनुपम खेर ने एक इंटरव्यू में कहा था- मैंने महेश से कहा था कि आप सच्चाई पर फिल्म बना रहे हैं लेकिन आपकी जिंदगी में कोई सच्चाई नहीं है। मैं ब्राह्मण हूँ, तुम्हें श्राप देता हूँ। यह देखकर महेश भट्ट हैरान रह गए और उन्होंने अनुपम को मुंबई छोड़ने से रोक दिया।

सारांश के बाद ‘कर्मा’, ‘तेजाब’, ‘राम लखन’, ‘दिल’, ‘सौदागर’, ‘1942 ए लव स्टोरी’, ‘रूप की रानी चोरों का राजा’ और ‘हम आपके हैं कौन‘ जैसी सफल फिल्मों में अनुपम खेर का रोल अलग था।

जानिए क्यों कहलाते हैं शिव “अर्धनारीश्वर”

भगवान शिव की पूजा सदियों से हो रही है लेकिन इस बात को बहुत कम लोग ही जानते हैं कि शिव का एक और रूप है जो है अर्धनारीश्वर।

दरअसल शिव ने यह रूप अपनी मर्जी से धारण किया था। वह इस रूप के जरिए लोगों का संदेश देना चाहते थे कि स्त्री और पुरुष समान है।

आइए जानते हैं इस घटना का चक्र कि आखिर किस वजह से भगवान शिव को यह रूप धारण करना पड़ा था।

हिंदू पौराणिक शास्त्र में भगवान उस मानवीय कल्पना का प्रतीक है जो या तो स्वतंत्र शिव के रूप में पूजे जाते हैं।

लिंग पुराण के अनुसार सृष्टि की शुरुआत में एक कमल खिला। उसके अंदर ब्रह्मा बैठे थे। जागरूक होने पर उन्हें अकेलापन महसूस हुआ लेकिन वे इस प्रश्न में उलझ गए कि किसी का साथ पाने के लिए किसी और जीव का निर्माण कैसे कर सकते हैं।

अचानक उन्हें अपनी आंखों के सामने शिव का आभास हुआ। शिव का दाहिना हिस्सा पुरुष का था और बायां हिस्सा स्त्री का।

इससे प्रेरित होकर ब्रह्मा ने अपने आप को दो हिस्सों में बांट दिया। दाएं हिस्से से सभी पुरुष जीव आए और बाएं हिस्से से स्त्री जीव।

नाथ जोगियों के अनुसार जब वे (जोगी) शिवजी से मिलने कैलाश पर्वत पर गए, तब यह देखकर हैरान रह गए कि शिव पार्वती के साथ आलिंगन में इतने मगन थे कि उन्होंने जोगियों की ओर ध्यान तक नहीं दिया।

फिर वे समझ गए कि शिव और पार्वती के आलिंगन को रोकना शरीर के दाएं हिस्से को बाएं हिस्से से अलग करने जैसा होगा इसलिए उन्होंने शिव को प्रणाम कर उन्हें अर्द्धनारीश्वर के रूप में कल्पित किया।

दक्षिण भारत के मंदिरों में शिव की ओर स्नेह से देखता हुआ भृंगी नामक व्यक्ति दिखाई देता है। भृंगी शिव के दूसरे उपासकों से अलग है और बहुत दुर्बल है।

दरअसल उसकी सिर्फ़ हड्डियां नजर आती हैं और उसके दो नहीं, बल्कि तीन पैर हैं। कहते हैं कि भृंगी शिव का परम भक्त था। एक दिन कैलाश पर्वत पर आकर उसने शिव की प्रदक्षिणा करने की इच्छा व्यक्त की।

इस पर पार्वती ने कहा कि भृंगी उनके इर्द-गिर्द भी जाए लेकिन भृंगी तो शिव से इतना मोहित था कि उसे पार्वती के इर्द-गिर्द घूमने की कोई इच्छा नहीं हुई।

इसे देखकर माता पार्वती शिव की गोद में जा बैठीं और इस वजह से भृंगी अब दोनों के इर्द-गिर्द जाने को मजबूर था। लेकिन उसे तो सिर्फ़ शिव की प्रदक्षिणा करनी थी, इसलिए उसने अब सांप का रूप धारण कर शिव और पार्वती के बीच से खिसकने की कोशिश की।

शिव को यह मज़ेदार लगा और पार्वती को अपने शरीर का आधा हिस्सा बनाकर वे अर्द्धनारीश्वर में बदल गए लेकिन भृंगी ने अपनी हठ नहीं छोड़ी। वह कभी चूहे तो कभी मधुमक्खी का रूप लेकर शिव व पार्वती के बीच से जाने की कोशिश करता।

इससे पार्वती इतनी चिढ़ गईं कि उन्होंने भृंगी को श्राप दे दिया कि वह अपनी मां से मिले शरीर के सभी भाग खो देगा। भृंगी के शरीर से तुरंत मांस और खून गायब हो गया। सिर्फ़ हड्डियां बच गईं। वह ज़मीन पर ढेर हो गया।

तब भृंगी पर तरस खाकर शिवजी ने उसे एक तीसरा पैर दे दिया, ताकि वह तिपाई की तरह खड़ा हो सके। यह घटना दर्शाती है कि ईश्वर के स्त्रैण भाग को ना पूजने का क्या खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।

वहीं, उत्तर भारत के पहाड़ी इलाक़ों की एक लोककथा के अनुसार जब पार्वती जी ने गंगा को शिवजी के सिर पर देखा तो वे बहुत क्रोधित हो गईं।

उन्होंने सोचा कि उनके होते हुए शिव किसी और स्त्री को कैसे अपने साथ रख सकते हैं। तब उन्हें शांत करने के लिए शिवजी ने दोनों का शरीर एक कर दिया और इस तरह वे अर्द्धनारीश्वर बन गए।

7 मार्च का इतिहास

7 मार्च का इतिहास:-

  • 1854 – चार्ल् मिलर ने सिलाई मशीन के लिए पेटेंट हासिल किया था।
  • 1875 – अलेक्जेंडर ग्राहम बेल ने टेलीग्राफ का आविष्‍कार किया था।
  • 1911 – हिन्दी के सुप्रसिद्ध साहित्यकार अज्ञेय, सच्चिदानंद हीरानन्द वात्स्यायन का जन्म।
  • 1934 – भारत के प्रसिद्ध पूर्व क्रिकेट खिलाड़ी नरी कॉन्ट्रैक्टर का जन्म।
  • 1949 – भारतीय राजनीतिज्ञ ग़ुलाम नबी आज़ाद का जन्म।
  • 1952 – भारतीय गुरु परमहंस योगानन्द जी का निधन।
  • 1955 – भारतीय अभिनेता अनुपम खेर का जन्म।
  • 1961 – उत्तर प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री एवं स्वतंत्रता सेनानी गोविंद बल्लभ पंत का निधन।
  • 1969 – इसरायल ने 70 साल की गोल्डा मेयर को प्रधानमंत्री चुना था, गोल्डा ना केवल अपने पद पर बनी रहीं, बल्कि अक्टूबर 1969 में देश में हुए आम चुनावों में भी उन्होंने जीत हासिल की।
  • 2001 – फिजी में अंतरिम सरकार का इस्तीफा।
  • 2002 – इस्लामाबाद में दक्षेस सूचना मंत्रियों का सम्मेलन शुरू, सम्मेलन के दौरान पाकिस्तानी राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ़ ने पुन: द्विपक्षीय मुद्दे उठाए।
  • 2003 – राष्ट्रपति फिदेल कास्त्रो को क्यूबा की संसद ने छठे कार्यकाल के लिए राष्ट्रपति निर्वाचित किया, वह दुनिया के सबसे लम्बे समय तक शासन करने वाले शासनाध्यक्ष हैं।
  • 2006 – ईरान के राष्ट्रपति ने देश की परमाणु गतिविधियों पर रोक के लिए संयुक्त राष्ट्र परमाणु एजेंसी से क्षतिपूर्ति की मांग की।
  • 2007 – भारत और पाकिस्तान आतंकवाद पर जांच में मदद के लिए तैयार।
  • 2008 – त्रिपुरा विधान सभा चुनाव में सत्तारूढ़ लेफ़्ट फ़्रंट ने लगातार चौथी बार जीत दर्ज की।
  • 2008 – अंतरिक्ष यात्रियों ने मंगल ग्रह पर झील की खोज की।
  • 2009 – नासा ने ब्रम्हांड में पृथ्वी जैसे ग्रह और उनपर जीवन को तलाशने के लिए केप कनावेरल से केप्लर नाम की एक दूरबीन को अंतरिक्ष में छोड़ा था।
  • 2009 – प्रमुख धातु कम्पनी स्टरलाइट इंडस्ट्रीज ने अमेरिका की तीसरी सबसे बड़ी कॉपर उत्पादक कम्पनी एसार्को के अधिग्रहण की घोषणा की।
  • 2012 – हिन्दी फ़िल्मों के प्रसिद्ध संगीतकार रवि का निधन।

शिवलिंग पर भूलकर भी न चढ़ाएं ये चीज़े, रूठ जाते है भगवान

भगवान शिव की पूजा के दौरान लोग कभी शिवलिंग पर भांग-धतूरा तो कभी दूध, चंदन और भस्म चढ़ाते हैं। भगवान शिव को बैरागी कहा जाता है, यही वजह है कि उनके शिवलिंग पर कभी भी आम जिन्दगी में इस्तेमाल होने वाली चीजें नहीं चढ़ाई जाती हैं।

अगर आप भी भोलेबाबा के व्रत या उनकी पूजा करने वाले हैं तो भूलकर भी शिवलिंग पर न चढ़ाएं ये चीजें। आज इस पोस्ट के माध्यम से जानते हैं कि वो कौन-कौन सी चीज़े है जो शिवलिंग पर नहीं चढ़ानी चाहिए।

मान्यता है कि हर देवी देवता में चढ़ने वाले तुलसी और सिंदूर शिव को नहीं चढ़ाने चाहिए। ऐसा करने से शिव प्रसन्न होने की जगह पर नाराज हो जाते हैं।

आपको बता दें कि तुलसी मां लक्ष्मी का स्वरूप मानी जाती है यानी श्री विष्णु की अर्धांगिनी। भगवान विष्णु शालिग्राम की पूजा में ही सदैव तुलसी का प्रयोग किया जाता है मगर शिवलिंग पर तुलसी का प्रयोग वर्जित माना गया है।

सिंदूर को श्रृंगार की वस्तु कहा जाता है जोकि सभी देवियों को चढ़ाया जाता है मगर भगवान शिव वैरागी है और उन्हें महाकाल माना जाता है इसलिए सिंदूर शिव को नहीं चढ़ाना चाहिए।

शिव को अर्पित की गई वस्तु का प्रसाद नहीं लिया जाता, जैसे कि बाकी देवताओं पर चढ़ी चीजों को प्रसाद में लेते हैं।कथाओं के अनुसार एक बार केतकी पुष्प ने ब्रह्मा का झूठ में साथ दिया था जिसे जानकर शिव ने क्रोध में केतकी के पुष्प को श्राप दिया था। तब से इस पुष्प को शिवलिंग में नहीं चढ़ाया जाता हैं।

सभी देवी देवताओं की पूजा में हल्दी या हल्दी चावल का प्रयोग किया जाता हैं मगर कुछ लोगों की मानें तो हल्दी सौभाग्य का प्रतीक होती है तो विनाश के देवता भगवान शिव को यह नहीं अर्पित करनी चाहिए।

भगवान श‌िव ने शंखचूड़ नाम के असुर का वध क‌िया था। शंख को उसी असुर का प्रतीक माना जाता है, जो भगवान व‌िष्‍णु का भक्त था इसल‌िए व‌िष्णु भगवान की पूजा शंख से होती है लेकिन श‌िव की नहीं।

मार्टिन लूथर किंग के बारे में रोचक तथ्य एवं जानकारी

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मार्टिन लूथर किंग जूनियर अमेरिका के एक पादरी, आन्दोलनकारी (ऐक्टिविस्ट), एवं अफ्रीकी-अमेरिकी नागरिक अधिकारों के संघर्ष के प्रमुख नेता थे।

उन्हें अमेरिका का गांधी भी कहा जाता है। उनके प्रयत्नों के परिणामस्वरूप अमेरिका में मतदान अधिकार अधिनियम पारित हुआ। इस कानून ने अफ्रीकी अमेरिकियों को वोट देने के अपने अधिकार का प्रयोग करने में मदद की।

आज इस पोस्ट में हम जानेगें मार्टिन लूथर किंग के बारे में कुछ महत्वपूर्ण तथ्य एवं जानकारी, चलिए शुरू करते हैं।

जन्म के समय उनका नाम मार्टिन नहीं था

किंग का जन्म 15 जनवरी 1929 को अटलांटा, जॉर्जिया में माइकल किंग जूनियर के रूप में हुआ था। उनके पिता माइकल, अटलांटा के एबेनेज़र बैपटिस्ट चर्च के पादरी थे। वे बैपटिस्ट वर्ल्ड एलायंस के लिए रोम, मिस्र, जेरूसलम और बर्लिन जैसे स्थानों की विदेश यात्रा के दौरान प्रोटेस्टेंट सुधार नेता मार्टिन लूथर के काम से बहुत प्रेरित हुए।

स्टैनफोर्ड में मार्टिन लूथर किंग जूनियर रिसर्च एंड एजुकेशन इंस्टीट्यूट के अनुसार, जब वे 1934 में वापस लौटे, तो उन्होंने अपना और अपने बेटे का नाम माइकल किंग से बदलकर मार्टिन लूथर किंग रखने का फैसला किया।

1957 में मार्टिन लूथर जब 28 वर्ष के थे तब उन्होंने आधिकारिक तौर पर अपने जन्म प्रमाण पत्र पर नाम माइकल किंग जूनियर से बदलकर मार्टिन लूथर किंग जूनियर कर लिया था।

किंग ने 15 साल की उम्र में कॉलेज शुरू कर दिया था

एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका से किंग की जीवनी के अनुसार, 1944 में किंग ने एक युद्धकालीन कार्यक्रम के तहत अटलांटा के मोरहाउस कॉलेज में प्रवेश किया, जिसमें प्रतिभाशाली हाई स्कूल के छात्रों को प्रवेश दिया गया।

उनका शुरू में नेता बनने का इरादा नहीं किया था, लेकिन पीएच.डी. के लिए अध्ययन करते समय बोस्टन विश्वविद्यालय में, मार्टिन लूथर को धर्मशास्त्री और नागरिक अधिकार नेता हॉवर्ड थुरमन ने मार्गदर्शन दिया था, जिनका उन पर बड़ा गहरा प्रभाव पड़ा।

मार्टिन लूथर का परिवार

18 जून 1953 में उनकी मुलाकात संगीत की छात्रा और महत्वाकांक्षी गायिका कोरेटा स्कॉट से हुई और उन्होंने उनसे शादी की। उनके चार बच्चे थे: योलान्डा, मार्टिन लूथर किंग III, डेक्सटर स्कॉट और बर्निस।

Interesting facts and information about Martin Luther King
मार्टिन लूथर किंग अपनी पत्नी कोरेटा स्कॉट और बच्चों के साथ

वह ग्रैमी विजेता थे

किंग को 1970 में मरणोपरांत ग्रैमी से सम्मानित किया गया था। उन्होंने 1967 में दिए गए एक उपदेश से रिकॉर्ड किए गए “व्हाई आई ओपोज़ द वॉर इन वियतनाम” के लिए सर्वश्रेष्ठ स्पोकन वर्ड एल्बम का पुरस्कार जीता।

उन्हें पहले “आई हैव ए ड्रीम” और “वी शैल ओवरकम” की रिकॉर्डिंग के लिए स्पोकन-वर्ड श्रेणी में भी ग्रैमी के लिए नामांकित किया गया था।

1958 में भी उन पर पहला हत्या के प्रयास किया गया था

1968 में लोरेन मोटल में उनकी हत्या से लगभग एक दशक पहले भी उन पर हत्या का प्रयास हुआ था। 20 सितंबर, 1958 को 29 वर्षीय किंग न्यूयॉर्क शहर में एक पुस्तक पर हस्ताक्षर कर रहे थे, जब इज़ोला वेयर करी नाम की औरत ने उनसे पूछा, क्या आप मार्टिन लूथर किंग है? जब किंग ने जवाब दिया, “हां,” तो करी ने लेटर ओपनर उनके सीने में घोंप दिया था।

मोंटगोमरी बस बहिष्कार भाषण – मोंटगोमरी, अलबामा, 5 दिसंबर, 1955 को

जब रोजा पार्क्स को सिटी बस में अपनी सीट छोड़ने से इनकार करने के लिए गिरफ्तार किया गया, तो उसने मोंटगोमरी बस बहिष्कार को बढ़ावा दिया और किंग को सार्वजनिक भाषण देने का पहला मौका दिया। इसी भाषण में उन्होंने अपने कुछ प्रसिद्ध विचारों को प्रस्तुत किया, जिनमें अहिंसक विरोध भी शामिल था।

भाषण ने उनको राष्ट्रीय सुर्खियों में ला दिया और उन्हें नागरिक अधिकार आंदोलन में सबसे आगे चलने वालों में से एक बना दिया। मोंटगोमरी बस बहिष्कार 381 दिनों तक चला लेकिन अंततः अलबामा में सार्वजनिक बसों पर नस्लीय अलगाव को समाप्त कर दिया गया। इसमें 100 से अधिक अन्य लोगोंको भी गिरफ्तार किया गया था।

मोंटगोमरी बस बहिष्कार के वर्षों बाद रोजा पार्क्स और मार्टिन लूथर किंग जूनियर

किंग के “आई हैव ए ड्रीम” भाषण में 250,000 से अधिक लोग शामिल हुए थे।

अगस्त 1963 में नौकरियों और स्वतंत्रता के लिए वाशिंगटन में मार्च के दौरान दिए गए भाषण को सुनने के लिए दुनिया भर से लोग आए थे। नेशनल कॉन्स्टिट्यूशन सेंटर के अनुसार, जब किंग ने वाशिंगटन, डीसी में अपना प्रसिद्ध “आई हैव ए ड्रीम” भाषण दिया था तब 250,000 से अधिक लोग उपस्थित थे।

किंग को 1964 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था

1964 में समान नागरिक अधिकारों के लिए लड़ने वाले नेता मार्टिन लूथर किंग जूनियर को नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया था। वह 35 वर्ष की उम्र में नोबेल शांति पुरस्कार जीतने वाले सबसे कम उम्र के व्यक्ति थे। सम्मान के साथ, उन्हें $54,600 दिए गए थे, जिसे उन्होंने आंदोलन को दान कर दिया था।

सेल्मा, अलबामा, 25 मार्च 1965

मार्च 1965 में मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने अफ्रीकी अमेरिकी मतदान अधिकारों के लिए लड़ने के लिए सेल्मा से मोंटगोमरी, अलबामा तक 25,000 लोगों के साथ मार्च किया। मार्च के अंत में मार्टिन लूथर ने ” हमारा ईश्वर आगे बढ़ रहा है ” भाषण दिया, जो नागरिक अधिकार आंदोलन में एक महत्वपूर्ण मोड़ था।

कानूनी और राजनीतिक अधिकारों पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय किंग के भाषण ने आंदोलन को आर्थिक समानता के लिए लड़ने के लिए प्रेरित किया। भाषण के अंत में किंग ने कॉल-एंड-रिस्पॉन्स तकनीक का इस्तेमाल किया जिसने इस भाषण को वास्तव में प्रतिष्ठित बना दिया।

किंग महात्मा गांधी से बहुत प्रभावित थे

किंग महात्मा गांधी से बहुत प्रभावित थे। मदरसा के छात्र के रूप में पढ़ाई के दौरान किंग पहली बार गांधीजी के शांतिपूर्ण तरीकों से परिचित हुए। वह उस व्यक्ति से कभी नहीं मिल पाए जिसके वे इतने बड़े प्रशंसक थे, लेकिन 1959 में वह एक महीने की लंबी यात्रा के लिए भारत आए, जहां वह गांधी के कई रिश्तेदारों से मिले।

Interesting facts and information about Martin Luther King

अन्य तथ्य

  • एक बच्चे के रूप में किंग को बताया गया था कि वह अपने श्वेत मित्र के साथ नहीं खेल सकता क्योंकि काले और श्वेत बच्चों को एक साथ नहीं रहना चाहिए ।
  • मई 1957 में किंग ने वाशिंगटन में तीर्थयात्रा के दौरान अपना प्रसिद्ध “गिव अस द बैलट” भाषण दिया।
  • उनके अंतिम महान भाषण को “आई हैव बीन टू द माउंटेन टॉप” संबोधन के रूप में जाना जाता है और यह 3 अप्रैल, 1968 को उनकी मृत्यु से एक दिन पहले दिया गया था।
  • 4 अप्रैल 1968 को मेम्फिस, टेनेसी में मार्टिन लूथर किंग जूनियर की हत्या कर दी गई थी। उन्हें जेम्स अर्ल रे ने गोली मार दी थी। कुछ लोगों ने आरोप लगाया था कि किंग की हत्या एक बड़ी साजिश का हिस्सा थी और रे सिर्फ बलि का बकरा था।
  • किंग का पसंदीदा गाना “टेक माई हैंड, प्रीशियस लॉर्ड” था। यह गाना उनके अंतिम संस्कार में उनकी दोस्त महलिया जैक्सन ने गाया था।
  • अपने जीवन के अंत में किंग ने अपना ध्यान नागरिक अधिकारों से हटकर गरीबी उन्मूलन और वियतनाम युद्ध को रोकने के अभियानों पर केंद्रित कर दिया था।
  • लोरेन मोटल जहां मार्टिन लूथर की हत्या हुई थी, अब राष्ट्रीय नागरिक अधिकार संग्रहालय का स्थान है।
  • उनकी मृत्यु के बाद किंग को 1977 में प्रेसिडेंशियल मेडल ऑफ़ फ़्रीडम और 2004 में कांग्रेसनल गोल्ड मेडल से सम्मानित किया गया।
एक भाषण के दौरान मार्टिन लूथर किंग जूनियर
  • 1983 में राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन ने एक विधेयक पर हस्ताक्षर किए, जिसने मार्टिन लूथर किंग को सम्मानित करने के लिए एक संघीय अवकाश बनाया, लेकिन 2000 तक ऐसा नहीं हुआ क्योंकि कुछ राज्य नई छुट्टी को अपनाने के लिए अनिच्छुक थे, लेकिन वर्ष 2000 के बाद से, सभी 50 राज्यों ने मार्टिन लूथर किंग जूनियर दिवस मनाया है।

6 मार्च का इतिहास

6 मार्च का इतिहास:-

  • 1508 – नासिरुद्दीन मुहम्मद हुमायूँ का जन्म।
  • 1808 – हार्वर्ड विश्वविद्यालय में पहला कॉलेज आर्केस्ट्रा स्थापित किया गया।
  • 1886 – नर्सों की पहली पत्रिका नाइटिंगेल प्रकाशित हुई।
  • 1892 – प्रसिद्ध क्रांतिकारी और नेता अम्बिका चक्रवर्ती का निधन।
  • 1902 – मशहूर फुटबॉल क्लब स्पेन के मैड्रिड क्लब की स्थापना हुई थी।
  • 1915 – महात्मा गांधी और रविन्द्र नाथ टैगोर पहली बार शांतिनिकेतन में मिले।
  • 1944 – द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका ने मित्र देशों के साथ मिलकर बर्लिन पर भारी बमबारी की।
  • 1945 – भारतीय राजनीतिज्ञ, लेखक और कांग्रेस के सदस्य सैयद अहमद का जन्म।
  • 1953 – 74 वर्ष की आयु में जोसेफ़ स्टालिन का निधन।
  • 1967 – जोसेफ़ स्तालिन की बेटी स्वेतलाना भारत स्थित रूसी दूतावास से होते हुए अमेरिका पहुँची।
  • 1983 – यूनाइटेड स्टेट में पहले फुटबॉल लीग की स्थापना हुई।
  • 1995 – दक्षिण भारत में हिन्दी के प्रचार आंदोलन के संगठन मोटूरि सत्यनारायण का निधन।
  • 1996 – ईराक ने संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव के तहत खाद्य के लिये तेल योजना को स्वीकार किया।
  • 1996 – आयरिश रिपब्लिक आर्मी ने त्वरित युद्ध विराम को नकारते हुए ब्रिटेन के साथ 25 वर्षीय युद्ध की घोषणा की।
  • 2001 – फिजी में महेंद्र चौधरी के खिलाफ पार्टी में ही विद्रोह की स्थिति।
  • 2003 – अल्जीरिया का एक विमान तामारासेट में दुर्घटनाग्रस्त, 102 से भी अधिक यात्री मरे।
  • 2004 – उत्तर कोरिया का यूरेनियम आधारित कार्यक्रम होने से फिर इन्कार।
  • 2008 – पाकिस्तान के राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ़ ने सबरजीत की दया याचिका खारिज की।
  • 2009 – भारतीय वायुसेना को तीन दशक तक अपनी सेवाएँ देने के बाद स्किंगविंग लड़ाकू विमान मिग-23 ने अन्तिम उड़ान भरी।
  • 2018 – कॉनराड संगमा ने भारतीय राज्य मेघालय के 12वें मुख्यमन्त्री के रूप में शपथ ली।
  • 2018 – प्रसिद्ध बॉलीवुड अभिनेत्री शम्मी का निधन।

महाशिवरात्रि 2024 : 300 साल बाद बन रहा महाशिवरात्रि पर विशेष योग, इन राशियों पर बरसेगी कृपा

महाशिवरात्रि हिन्दुओं और भगवान शिव का एक प्रमुख त्यौहार है। इस वर्ष महाशिवरात्रि पर्व 8 मार्च 2024 को शुक्रवार के दिन है। फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को महाशिवरात्रि पर्व मनाया जाता है। माना जाता है कि सृष्टि का प्रारंभ इसी दिन से हुआ।

पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन सृष्टि का आरम्भ अग्निलिंग (जो महादेव का विशालकाय स्वरूप है) के उदय से हुआ था। इसी दिन भगवान शिव का विवाह देवी पार्वती के साथ हुआ था।

साल में होने वाली 12 शिवरात्रियों में से इस महाशिवरात्रि को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। भारत सहित पूरी दुनिया में शिवरात्रि का पावन पर्व बहुत ही उत्साह के साथ मनाया जाता है।

महाशिवरात्रि 2024 शुभ मुहूर्त

पंचांग के अनुसार, 8 मार्च को महाशिवरात्रि के दिन शिव जी की पूजा का समय शाम के समय 06 बजकर 25 मिनट से 09 बजकर 28 मिनट तक है।

300 वर्ष बाद बनेगा त्रिग्रही योग

इस बार महाशिवरात्रि के मौके पर त्रिग्रही योग बन रहा है। यह योग 300 साल बाद बनने जा रहा है। मान्यताओं के अनुसार यह योग विशेष फलदायी है। इस दौरान पांच राशि वाले जातकों पर भगवान शिव की विशेष कृपा बरसेगी।

इस दुर्लभ योग और शुभ अवसर पर भगवान शंकर की पूजा करने से भक्तों को मनवांछित फल की प्राप्ति होगी। महाशिवरात्रि का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है।

मान्यताओं के अनुसार, इसी दिन भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। इस दिन व्रत रखने व विधि पूर्वक पूजा अर्चना करने से जीवन में सुख और समृद्धि आती है।

ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार इस वर्ष शुक्रवार को प्रदोष और शिवरात्रि व्रत एक ही दिन मनाई जाएगी। शुक्र प्रदोष का अपना महत्व है।

गुरुवार सात मार्च को रात्रि 9.46 बजे त्रयोदशी का आगमन हो रहा है, जो शुक्रवार आठ मार्च को रात्रि 7.38 बजे तक रहेगा।

सिंह, कन्या, वृष, मेष, धनु आदि राशि वालों के लिए यह विशेष फलदायी है। महाशिवरात्रि के दिन सुबह आठ बजे तक सर्वार्थ सिद्धि योग रहेगा।

महाशिवरात्रि के दिन मकर राशि में मंगल और चंद्रमा की युति से चंद्र मंगल योग बन रहा है। इसके साथ ही कुंभ राशि में शुक्र, शनि और सूर्य की युति और मीन राशि में राहु और बुध की युति से त्रिग्रही योग बन रहा है।

ऐसा संयोग कई राशियों के जीवन में खुशियां ला सकता है। इस दिन शहद से अभिषेक करना शुभ होगा।

महाशिवरात्रि पर इन 14 फूलों से करें महादेव को प्रसन्न

महाशिवरात्रि हिंदुओं के सबसे महत्वपूर्ण और शुभ त्योहारों में से एक है जो हर साल फरवरी और मार्च के महीने में आता है। हिंदू कैलेंडर के अनुसार, यह त्यौहार फाल्गुन या माघ महीने के कृष्ण पक्ष के चौदहवें दिन मनाया जाता है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन सृष्टि का आरम्भ अग्निलिंग (जो महादेव का विशालकाय स्वरूप है) के उदय से हुआ था। इसी दिन भगवान शिव का विवाह देवी पार्वती के साथ हुआ था।

साल में होने वाली 12 शिवरात्रियों में से इस महाशिवरात्रि को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। भारत सहित पूरी दुनिया में शिवरात्रि का पावन पर्व बहुत ही उत्साह के साथ मनाया जाता है।

इस साल 2024 में महाशिवरात्रि 8 मार्च को है। महाशिवरात्रि का शुभ मुहूर्त का समय शाम 06 बजकर 25 मिनट से 09 बजकर 28 मिनट तक है।

भगवान भोले नाथ कैसे हों प्रसन्न

महादेव को प्रसन्न करने के लिए शिवलिंग को जल और दूध से नहलाया जाता है। यदि कोई भक्त सच्ची श्रद्धा से उन्हें सिर्फ एक लोटा पानी भी अर्पित करें, तो भी महादेव प्रसन्न हो जाते हैं। भगवान शिव को प्रसन्न करना बड़ा सरल है।

यदि भक्त उन्हें विभिन्न तरीकों के फूल और पत्तियां अर्पित करते हैं, तब भी महादेव मनोकामनाओं की पूर्ति करते हैं। भगवान शिव को फूल बहुत पसंद हैं, इसी तरह भगवान शिव को अलग- अलग फूल चढ़ाने के भी अलग- अलग फायदे है। आइए जानते वो 14 शुभ फूल, जिनसे महादेव होते हैं प्रसन्न।

आंकड़े के फूल

लाल और सफेद आंकड़े के फूलों से भगवान शिव का पूजन करने पर मोक्ष की प्राप्ति होती है।

धतूरे के फूल

धतूरा महादेव को चढ़ाए जाने वाले फूलों में से एक है। धतूरे के फूल से पूजन करने पर संतान प्राप्ति का सुख मिलेगा।

चमेली के फूल

अगर आप गाड़ी खरीदना चाहते है, तो चमेली के फूलों से भोलेनाथ का पूजन करने पर गाड़ी का सुख मिलता है।

बिल्व पत्र

बिल्व पत्र के पेड़ को शिवद्रुम के नाम से भी जाना जाता है। भोलेनाथ को बेलपत्र अर्पित करने से सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती है।

अलसी के फूल

अलसी के फूलों से शिव का पूजन करने पर मनुष्य भगवान विष्णु को प्रिय होता है, कई पाप क्षमा होते हैं।

गुड़हल के फूल

गुड़हल फूल भगवान गणेश के साथ ही भगवान शिव के भी प्रिय फूल हैं। गुड़हल के फूल महादेव को अर्पित करने से दुश्मनों का विनाश होता है।

बेला के फूल

बेला के फूलों से भोलेनाथ का पूजन करने पर सुंदर और अच्छा लाइफ पार्टनर मिलेगा।

हरसिंगार के फूल

हरसिंगार के फूलों से महादेव का पूजन करने पर सुख-संपत्ति में वृद्धि होती है।

जूही के फूल

जूही के फूलों से भगवान शिव का पूजन करने से घर में कभी अन्न की कमी नहीं होती और दरिद्रता भी नहीं रहती।

गुलाब के फूल

आमतौर पर देवी- देवताओं को लाल गुलाब की पंखुड़ियां चढ़ाई जाती है। अगर आप शिव शंकर को लाल गुलाब अर्पित करते हैं, तो धन व समृद्धि बढ़ने लगते हैं।

कनेर के फूल

कनेर के फूलों से भगवान शिव का पूजन करने से मनचाहा धन लाभ होगा।

लाल डंठलवाला धतूरा

लाल डंठलवाला धतूरा शिव पूजन में शुभ माना गया है। यह फूल भोलेनाथ को अर्पित करने से धन की मनोकामना पूरी होती है।

शमी वृक्ष के पत्ते

शमी वृक्ष के पत्तों से महादेव का पूजन करने पर अपार धन-संपदा का आशीष मिलता है।

दूब या दूर्वा

दूब या दूर्वा, यूं तो एक तरह की घास है, पर दूर्वा से भगवान शिव का पूजन करने पर आयु बढ़ती है।