दुनिया का एक ऐसा देश जहां 80 लाख रुपए कमाने वाला भी गरीब है

हमारे देश भारत में फ्रेंड सर्किल में जिन दोस्तों की सैलरी लाख रुपए महीना होती है, उन्हें सफल समझा जाता है। समाज और परिवार में भी उसे सफलता के प्रतीक के तौर पर पेश किया जाता है। लाख रुपए महीना सैलरी लेने वाले को लोग अक्सर यह बात बोलते है:  “भाई…तुम्हारी सैलरी तो लाखों में है, तुम…करते क्या हो इतने पैसों का? तेरी तो ऐश है भाई”

पर दुनिया में एक ऐसा शहर भी है जहां 80 लाख रुपए महीना कमाने वाले को भी गरीब समझा जाता है। इस शहर का नाम है सैन फ्रांसिस्को (अमेरीका) । अमेरीका की आवासीय और शहरी विकास विभाग की हालिया रिपोर्ट इस बात की ओर इशारा करती है।

रिपोर्ट कहती है कि सैन फ्रांसिस्को, सैन माटियो और उसके आस-पास रहने वाला चार सदस्यों का परिवार अगर महीने का 80 लाख रुपए कमाता है तो वो ‘कम वेतन’ पाने वाला परिवार माना जाएगा। वहीं अगर कोई परिवार 50 लाख रुपए कमाता है तो वो और भी गरीब है। देश के अन्य इलाकों के मुकाबले इन शहरों में ग़रीबी का यह पैमाना कहीं अधिक है।

अमेरिका में कौन गरीब, कौन अमीर:

ब्रूकिंग इंस्टीट्यूट की वेबसाइट द हैमिल्टन प्रोजेक्ट का एक सर्वे यह दर्शाता है कि अमेरिका में लोगों की कमाई में काफी अंतर है। अमेरिका की लगभग दो-तिहाई परिवारों की कमाई सैन फ्रांसिस्को के 80 लाख रुपए कमाने वाले ग़रीब परिवार से कम है। अमेरिका में चार सदस्यों के परिवार की औसत कमाई करीब 62 लाख रुपए है।

वहीं इससे ज्यादा सदस्यों वाले परिवारों की औसत कमाई करीब 41 लाख रुपए है। 326 करोड़ की आबादी वाले अमेरिका में चार करोड़ से ज्यादा लोग ग़रीबी रेखा से नीचे हैं। ऐसे चार सदस्यों वाले परिवार की कमाई करीब 17 लाख रुपए है। कुछ बड़े शहरों की तुलना में देश के अन्य भागों की कमाई कहीं कम है।

सैन फ्रांसिस्को दूसरे शहरों से अलग कैसे:

इस श्रेणी में सैन फ्रांसिस्को भी है। इस शहर में आईटी और टेक्नोलॉजी उद्योगों की भरमार है। जिससे यहां रहने वाले लोगों की कमाई भी अच्छी-खासी होती है। बेहतर कमाई की चाहत रखने वाले लोगों के लिए यह शहर उनके सपनों का ठिकाना बन चुका है। सैन फ्रांसिस्को के शहरी इलाकों में साल 2008 से 2016 के बीच 25 से 64 साल उम्र वाले नौकरीपेशा लोगों की कमाई 26 प्रतिशत तक बढ़ी है।

दूसरे शहरी इलाकों के मुकाबले यह काफी अधिक है। साल 2016 तक यहां की लोगों की औसत कमाई करीब 43 लाख रुपए हो चुकी थी। बेशक, अमेरिका के अन्य क्षेत्रों में लोगों को ज्यादा सैलरी दी जाती है। सैन जोस में 25 से 64 साल के नौकरीपेशा लोगों की औसत कमाई करीब 45 लाख रुपए, वॉशिंगटन डीसी में करीब 42 लाख रुपए और बॉस्टन में करीब 38 लाख रुपए है।

किस पेशे में सबसे ज्यादा कमाई:

हालांकि,वहां कुछ लोग ऐसी भी होते हैं जो कम कमाते हैं। सैन फ्रांसिस्को में सबसे कम कमाई करने वाला किसान होता है। यहां किसान औसतन करीब 13 लाख रुपए कमाता है, वहीं बच्चों की देख-रेख करने वालों की औसतन कमाई करीब 15 लाख रुपए होती है। सैन फ्रांसिस्को में डॉक्टर सबसे अधिक कमाई करने वाला होता है।

डॉक्टरों की औसतन कमाई एक करोड़ 32 लाख रुपए से अधिक होती है। सरकारी अधिकारियों की औसतन कमाई एक करोड़ 15 लाख रुपए होती है। वहीं सॉफ्टवेयर डेवलपर करीब 80 लाख रुपए औसतन कमाते हैं।

आमदनी अठन्नी, खर्चा रुपैया:

कमाई अधिक ज़रूर है पर यहां रहन-सहन के ख़र्च भी कम नहीं हैं। सबसे ज्यादा खर्च यहां रहने पर होता है। सैन फ्रांसिस्को में रहन-सहन पर देश के औसत खर्च के मुक़ाबले 25 प्रतिशत अधिक खर्च करना पड़ता है। हालांकि राष्ट्रीय औसत से यहां के लोगों की कमाई 45 प्रतिशत अधिक है।

सैन फ्रांसिस्कों में 2 बीएचके अपार्टमेंट का किराया हर महीने करीब 2 लाख रुपए से ज़्यादा होता है। 2008 में यह करीब एक लाख रुपए था। ओहियो जैसे राज्यों में यह किराया 58 हज़ार के करीब होता है। इन शहरों के मुकाबले सैन फ्रांसिस्को में कमाई के अनुपात में किराए पर खर्च कहीं अधिक है।

दूसरे शहरों के मुकाबले यहां कमाई दोगुनी ज़रूर होती है पर किराए पर 270 प्रतिशत अधिक खर्च करना होता है। ऐसे में सैन फ्रांसिस्को में रहना किसी आर्थिक चुनौती से कम नहीं है। अमेरिकी सरकार यह मानती है कि अगर समान क्षेत्र में, समान सदस्यों वाला परिवार औसत कमाई से 80 प्रतिशत या उससे कम कमाता है तो वो गरीब है।

सैन फ्रांसिस्को की सरकार ने अधिक किराए के चलते 80 लाख रुपए की आमदनी को ‘कम आय’ माना है। यहां चार सदस्यों वाले परिवार की औसत कमाई करीब 81 लाख रुपए है। हालांकि 80 लाख से कम कमाने वाले सरकार की तरफ से दिए जाने वाले किराया भत्ता या फिर सहायता के हक़दार नहीं माने जाते हैं।

सैन फ्रांसिस्को एक महंगी जगह है ज़रूर है पर यहां का अच्छा मौसम और समृद्ध संस्कृति लोगों को आकर्षित करती है। अच्छी ज़िंदगी जीने की चाहत रखने वाले यहां रहने आते हैं।

भारत में लाखों की सैलरी पाने वाले को भले ही अमीर समझा जाता हो पर सैन फ्रांसिस्को में मंहगाई इतनी है कि 80 लाख कमाने वाला भी गरीब होता है।

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एशिया का सबसे बड़ा लटकने वाला पुल

 

एशिया का सबसे बड़ा लटकने वाला पुल

दुनिया में कई खतरनाक रास्तों के बारे में तो आपने सुना होगा और देखा भी होगा, जहां घूमने-फिरने के लिए जाना अपनी मौत को मुंह लगाने जैसा प्रतीत होता है। आज हम आपको एक ऐसे ही खतरनाक पुल के बारे में बताने जा रहें है, जो एशिया का सबसे लंबा और ऊंचा पुल कहलाता है।

एशिया का सबसे बड़ा लटकता हुआ ब्रिज कहां है? अगर आपका जवाब भारत है तो आप गलत सोच रहे हैं। समूचे एशिया का सबसे बड़ा लटकता हुआ ब्रिज चीन में है, जो इसी महीने आम लोगों के लिए खुला है। इस ब्रिज का नाम लॉगजिआंग ग्रैंड ब्रिज है। ये एशिया का सबसे लंबा और सबसे ऊंचा लटकता हुआ ब्रिज है।

इस ब्रिज की खास बात यह है की यह समुद्र तल से 8100 फुट की ऊंचाई पर बना है । ये चीन के युन्नान प्रांत में बना है। ये ब्रिज चीन के दो शहरों बाओशन और चेंगचोंग को जोड़ता है, जो आगे चीन को म्यांमार से जोड़ते हैं।

ये ब्रिज दो पहाड़ों के बीच बना है। दक्षिण-पश्चिम चीन के युन्नान प्रान्त में लांगजियांग नदी पर बने इस ब्रिज को पूरा करने में करीब 5 साल का समय लगा है। ये ब्रिज घाटी से 920 फुट ऊंचा है। और दुनिया के सबसे ऊंचे पुल से हजारों फिट ऊंचा है। यह ब्रिज पहाड़ के दो तरफ बसे बाओशान्द और तेंगचोंग नाम के चीनी शहरों को जोड़ने का काम करेगा।

इस ब्रिज को बनाने में करीब 151 मीलियन पाउन्ड का खर्च आया है। समुद्र से 8100 फुट ऊंचे पुल पर चलने में बड़े से बड़े बहादुर को भी हल्का सा डर तो लगेगा ही। ये पुल जब से खुला है, तब से लोगों की भीड़ उमड़ रही है ।

चीन में इस तरह के कई लटकते ब्रिज हैं, जो लोगों के बीच में चर्चा का विषय हैं। इस ब्रिज के बाद दुनिया में दूसरे नंबर का ब्रिज सैन फ्रांसिस्को का मशहूर गोल्डन गेट ब्रिज है। जो समुद्र तल से 3924 फिट की उंचाई पर बना है।

चीन के हांगकांग में सीसे से बना पुल भी है। जो लोगों के बीच आकर्षण का विषय है। ये पुल अब चीन के साथ ही समूचे एशिया की शान बन चुका है।

दुनिया के कुछ अनोखे और सुन्दर नोट

दुनिया के कुछ अनोखे और सुन्दर नोट

जब देश में नोटबंदी हुई थी, 500 और 2000 के नए नोट जारी हुए थे। इसी तरह आज हम आपको दुनिया के कुछ बेहतरीन नोटों के बारे में बताते हैं। ये करंसी नोट दुनिया के सर्वोत्तम बैंक नोट अवार्ड की दौड़ में शामिल हैं।

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न्यूजीलैंड का 50 डॉलर

न्यूजीलैंड के 50 डॉलर नोट को 2015 में पहला ईनाम मिला था। इसमें एक सुंदर प्लास्टिक की खिड़की में नक्शा छापा गया था और रंग बदलने वाली पीले रंग की पेंगुइन भी बनी थी। अब 50 डॉलर का नोट भी इसी सीरीज का हिस्सा है जिसमें माओरी जनजाति के एक प्रमुख राजनीतिज्ञा सर एपिराना नगाता की फोटो छापी गई है।

 

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स्कॉटलैंड का 5 यूरो

स्कॉटलैंड के नोट यूनाइटेड किंगडम में भी खूब स्वीकार किए जाते हैं। कई लोगों के बीच किए गए अध्ययन तथा सुझावों के आधार पर 5 तथा 10 यूरो नोटों के लिए ‘द फैब्रिक ऑफ नेचर’ की थीम का चयन किया गया। इस नोट पर लेखिका नॉन शैफर्ड की फोटो है जो अपनी पुस्तक ‘द लिविंग माऊंटेन’ के लिए विख्यात हैं।

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स्विट्जरलैंड का 50 स्विस फ्रैंक

इसमें किसी शख्सियत के चेहरे को नहीं, बल्कि देश की प्रमुख चीजों, स्थानों तथा विशेष गुणों पर जोर दिया गया है। यह नोट हवा को प्रदर्शित करता है।

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ऑस्ट्रेलिया का 5 डॉलर

ऑस्ट्रेलिया के नए नोट में ऊपर से नीचे तक एक पारदर्शी पट्टी का नवीन डिजाइन पेश किया गया है। ऐसा इसे सुंदर बनाने के साथ-साथ नकली नोट बनाने वालों का काम कठिन करने की वजह से किया गया है। नोट पर इंगलैंड की महारानी का चेहरा है। उनके अलावा इस पर ‘ईस्टर्न स्पाइनबिल’ नामक पक्षी तथा ‘प्रिकली मोसेस वैटल’ नामक पेड़ के फूल भी दिखाई देते हैं।

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इंग्लैंड का 5 पौंड

बैंक ऑफ इंगलैंड ने एक प्लास्टिक का नोट जारी किया था। बैंक के गवर्नर मार्क कार्ने एक नोट को फूड मार्कीट ले गए। उसे वहां सूप में डुबो कर यह दिखाने की कोशिश की कि यह पूरी तरह से वाटरप्रूफ नोट है। हालांकि, उनका यह पैंतरा उस वक्त बुरा साबित हुआ।

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मालदीव का 1000 रुपया

इस नौट की थीम हमारे आसपास मौजूद कुदरती सुंदरता पर आधारित है। इसके मुख्य हिस्से पर एक व्हेल शार्क बनी है जिसकी त्वचा पर शेडिंग है। इसकी दूसरी ओर हरे रंग का एक सुंदर कछुआ छापा गया हैं।

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जॉर्जिया का 50 लारी

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इस नोट के एक ओर रानी तमार की फोटो है जिन्होंने देश पर 1184 से 1213 तक शासन किया था जिसे जॉर्जिया का सुनहरा काल माना जाता है। नोट पर होलोग्राफिक स्ट्रिप और मजैंटा से हरा रंग बदलने वाला सुरक्षा धागा भी लगा है।

कुछ आसान और घरेलु सुझाव जिनसे आप बन सकते हो खूबसूरत

टीनएजर्स के लिए स्किन केयर करना बेहद जरूरी है परंतु इसके लिए स्ट्रांग कैमिकल वाले ब्यूटी प्रोडक्ट्स से बचना बेहद जरूरी होता है क्योंकि इस उम्र में त्वचा काफी संवेदनशील होती है। बिना सोचे समझे कोई भी ब्यूटी प्रोडक्ट इस्तेमाल करने से त्वचा को नुक्सान पहुंच सकता है। घरेलू स्किन केयर टिप्स को इस्तेमाल करके टीनएजर्स बिना किसी साइड इफैक्ट के आप अपनी त्वचा को खूबसूरत और हैल्दी बना सकती हैं।

चेहरा धोने के लिए माइल्ड फेसवॉश या माइल्ड क्लींजिंग जैल का ही प्रयोग करें।

  • सूर्य की यू.वी. किरणों से त्वचा की रक्षा करने के लिए 15 एस.पी.एफ. वाला सनस्क्रीन लगाएं।
  • सनस्क्रीन नहीं लगाना चाहतीं तो एक ककड़ी को छील कर मैश कर लें तथा उसे पतले कपड़े से छान लें। इसमें 1 छोटा चम्मच गुलाब जल और ग्लिसरीन मिला लें। अब इसे सनस्क्रीन लोशन की तरह इस्तेमाल करें। यह सन टैन भी दूर करता है।
  • त्वचा का प्राकृतिक निखार बनाए रखने के लिए हफ्ते में एक बार फेस मास्क लगाएं परंतु स्क्रब करने से बचें।
  • यदि आपकी त्वचा ऑयली है तो पोटैटो पैक ट्राई करें। इसके लिए 1-1 छोटा चम्मच आलू का रस और मुलतानी मिट्टी को मिला कर पेस्ट तैयार करें। इसे चेहरे पर लगाकर सूखने दें। पहले चेहरा गुनगुने पानी से और फिर ठंडे पानी से धो लें।
  • ऑयली त्वचा के लिए पपीता पैक भी लाभदायक होता है। इसके लिए 2 बड़े चम्मच पपीता को मैश करके चेहरे पर लगाएं। जब सूख जाए तब गुनगुने पानी से धो लें। आप चाहें तो इसमें नींबू का रस भी मिला सकती हैं।
  • यदि पिंपल्स अर्थात मुंहासे हो जाएं, तो उन्हें छूने और दबाने की गलती न करें। इससे त्वचा पर दाग पड़ जाते हैं।
  • यदि आपको ब्लैकहैड्स की समस्या है, तो दालचीनी के पाऊडर में थोड़ा-सा नींबू का रस मिलाएं और जहां ब्लैकहैड्स हैं वहां लगाएं। इससे ब्लैकहैड्स से छुटकारा मिलेगा।

रोमांटिक: ब्रिटिश कपल ने हनीमून के लिए बुक करवाई पूरी ट्रेन

जानिए बॉलीवुड के चॉकलेटी हीरो ऋषि कपूर के बारे में कुछ बातें

ऋषि कपूर बॉलीवुड फिल्मों के एक जाने-माने हीरो हैं। फिल्मों के साथ-साथ वे निर्देशक भी रह चुकें  हैं। ऋषि कपूर एक ऐसे परिवार से ताल्लुक रखते जिसनें बॉलीवुड में 85 वर्ष से ज़्यादा का योगदान दिया है। आइए जानते है उनके बारे में कुछ बातें:

ऋषि कपूर का जन्म 4 सितम्बर 1952 को मुंबई के चेंबूर में हुआ था । ऋषि कपूर बॉलीवुड के शो मैन यानी राज कपूर के बेटे हैं। राज कपूर की माँ का नाम कृष्णा राज कपूर है।

  • ऋषि कपूर का निक नेम चिंटू हैं। ऋषि कपूर के दो भाई हैं।  रणधीर कपूर और राजीव कपूर। ऋषि कपूर के दोनों भाई उन्ही की  तरंह बॉलीवुड अभिनेता हैं।
  • ऋषि कपूर ने ‘मेरा नाम जोकर’ से एक बाल कलाकार के रूप में अपना फ़िल्मी सफ़र शुरू किया था। इस फ़िल्म के लिए उन्हें डेब्यू चाइल्ड अभिनेता का नेशनल अवार्ड मिला था।
  • ऋषि कपूर ने बॉलीवुड में बतौर एक्टर 1973 में अपने फ़िल्मी करियर की शुरुआत फिल्म बॉबी से की थी । इस फिल्म में उनके साथ डिंपल कपाड़िया भी थीं।
  • ऋषि कपूर को बॉलीवुड में रोमांस का राजकुमार माना जाता है।
  • बॉबी फिल्म की जबरदस्त सफलता के बाद वे 90 से भी ज्यादा फिल्मों में रोमांटिक रोल करते नज़र आए।
  • ऋषि कपूर ने अपने करियर में 1973-2000 तक 92 फिल्मों में रोमांटिक हीरो का किरदार निभाया है। इन्होने बतौर सोलो लीड एक्टर 51 फिल्मों में अभिनय किया है। उन्होने बॉलीवुड में कई रोमांटिक हिट फ़िल्में दीं है । ऋषि ने अपनी पत्नी के साथ 12 फिल्मों में अभिनय किया हैं।
  • ऋषि कपूर अपने जमाने में चॉकलेटी बॉय के नाम से जाने जाते थे।
  • ऋषि का अफेयर अपनी पहली कोस्टर डिंपल कपाड़िया से भी रह चूका है। लेकिन डिम्पल ने अचानक राजेश खन्ना से शादी कर सभी को चौंका दिया था।
  • ऋषि कपूर की शादी बॉलीवुड अभिनेत्री नीतू कपूर से हुई है। बता दें, ऋषि कपूर और नीतू ने शादी से पहले एक दूसरे को पांच साल तक डेट किया। उन्होंने  5 साल के लम्बे अफेयर के बाद शादी की थी।
  • ऋषि कपूर शूटिंग के समय नीतू सिंह के साथ सेट पर शरारतें कर उन्हें तंग करते थे और नीतू को इससे बेहद चिढ़ थी। ‘अमर अकबर एंथोनी’ के सेट पर ऋषि ने नीतू के चेहरे पर काजल फैला दिया था। इस वजह से नीतू को फिर से मेकअप करना पड़ा था।
  • फिल्म अमर अकबर एंथोनी (1977) में ऋषि कपूर (अकबर इलाहबादी) की भूमिका के रूप में नीतू को उनके वास्तविक नाम “नीतू”से पुकारते हैं। इस गलती को ठीक नहीं किया गया और फिल्म में इस दृश्य को देखा जा सकता है।
  • ऋषि कपूर के दो बच्चे हैं। रणबीर कपूर और रिधिमा कपूर। रणबीर कपूर अपने पिता ऋषि कपूर की तरह बॉलीवुड के चॉकलेटी हीरो हैं। बेटी रिधिमा पेशे से फैशन डिजाइनर हैं।
  • ऋषि कपूर के साथ 20 से ज्यादा अभिनेत्रियों ने अपना करियर शुरू किया।
  • आपको हैरानी होगी, ऋषि कपूर और रणबीर कपूर दोनों नें ही अपनी डेब्यू फिल्म में टॉवल सीन किया है।
  • ऋषि कपूर ने अपने चालीस साल के फ़िल्मी करियर में पहली बार फिल्म अग्निपथ के लिए ऑडिशन दिया था। अग्निपथ में उन्हों ने नकारत्मक भूमिका निभाई, जो उनके फैंस को बेहद पसंद आई थी

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रोमांटिक: ब्रिटिश कपल ने हनीमून के लिए बुक करवाई पूरी ट्रेन

एक नवविवाहित ब्रिटिश जोड़े ने नीलगिरी की वादियों में अपने हनीमून के लम्हों को यादगार बनाने के लिए दक्षिण रेलवे द्वारा शुरू की गई पूरी स्पैशल ट्रेन किराए पर ले ली। युगल ने इंडियन रेलवे कैटरिंग एंड टूरिज्म कार्पोरेशन की वैबसाइट के जरिए पूरी ट्रेन बुक करवाई थी। नीलगिरी माऊंटेन रेलवे को यूनेस्को को ओर से विश्व विरासत का दर्जा प्राप्त है।


रेलवे सूत्रों के अनुसार ब्रिटेन के ग्राहम विलियम्स लिन (30) और पोलैंड की सिल्विया प्लासिक (27) भारत यात्रा पर हैं। इंटरनेट पर  स्पेशल ट्रेन के बारे में जानकर ग्राहम ने  भारतीय रेलवे से संपर्क किया। तय किया गया कि 3 कोच की ट्रेन की सभी टिकटों की राशि पर विदेशी जोड़े के लिए स्पैशल ट्रेन  चलाई जा सकती है। यह राशि 2 लाख 85 हजार रुपए बनती है। विदेशी जोड़े ने इस पर सहमति जताई। अधिकारियों ने फोन पर उन्हें नीलगिरी माऊंटेन ट्रेन के इतिहास  के बारे में जानकारी दी।

नीलगिरी की वादियों में हनीमून के लम्हे बनाए यादगार

ब्रिटिश जोड़े ने अपने हनीमून को यादगार बनाने के लिए स्पेशल ट्रेन की 3 को चीज की सभी सीटों को बुक कर लिया. इस स्पैशल ट्रेन में 120 यात्रियों के बैठने की क्षमता है। सूत्रों ने बताया कि युगल इस  तरह की अद्भुत सेवा का लाभ उठाने वाले पहले यात्री बने हैं। इस तरह नीलगिरी की हसीन वादियों में इस जोड़े ने अपने हनीमून के लम्हे यादगार बनाए।

पहली बार स्टीम इंजन में मिले थे ग्राहम और सिल्विया

पेशे से अभियंता ग्राहम ने बताया कि सिल्विया से उसकी पहली मुलाकात भी कम रोमांटिक नहीं थी.  दरअसल ग्राहम और सिल्विया की पहली मुलाकात एक स्टीम इंजन में हुई थी।  इसलिए यह जोड़ा अपने हनीमून को  पर कुछ ऐसा करना चाहता था जिससे उनका हनीमून हमेशा के लिए यादगार बन जाए.

ब्रिटिश कपल ने हनीमून के लिए बुक करवाई पूरी ट्रेन

हनीमून के लिए भारत  सबसे अच्छा देश

दोनों ने बताया कि हनीमून के लिए भारत से अच्छा देश शायद ही कोई है। यहां के लोग बहुत मिलनसार हैं। यह अपनी प्राचीन सत्यता, स्थापत्य, अध्यात्म भूगोल की वजह से अनठा है।  इसीलिए हम दोनों ने तय किया की हनीमून के लिए भारत से बेहतर और कोई जगह नहीं है हम यहां पर आकर बहुत ही खुश और रोमांच का अनुभव कर रहे हैं.

सैंकड़ों साल पुराने इंजन के खींचे फोटो

शुक्रवार को मेत्तुपलयम और कुन्नुर में स्टेशन प्रबंधकों ने  इस ब्रिटिश युगल का उत्साह से स्वागत किया। ट्रेन को देख जोड़ा रोमांचित था। दोनों ने सैंकड़ों साल पुराने इंजन के फोटो खींचे। रेलवे ने बताया कि ट्रेन सुबह 9.10 बजे मेंत्तुपलयम से चली थी और दोपहर 2.40 बजे ऊटी पहुंची थी।

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डाक भी अब मशीनों के हवाले

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एक जमाना था जब डाक सेवा के बारे में सोचते ही मन में पत्रों से भरे बोरों में से चिट्ठियों को हाथों से छांटने वाले डाक कर्मि तथा पत्रों को साइकिल पर घर-घर पहुंचाने वाले डाकियों की तस्वीर उभर आती थी। हालांकि, विज्ञान की तरक्की डाक विभाग के कामकाज में भी दिखाई देने लगी है। कई देशों में तो डाकघरों में रोबोटिक सिस्टम्स तक का इस्तेमाल खूब हो रहा है। पत्रों की छंटाई का काम अब चतुर मशीनें कर रही हैं और कुछ इंसान ही काम पर नजर रखने के लिए वहां होते हैं।

जर्मनी का डाक विभाग भी इनमें से एक है। फ्रैंकफर्ट स्थित ड्यूश पोस्ट्स (जर्मन डाक सेवा) के मुख्य डाकखाने में कन्वेयर बैल्ट्स की तथा मशीनों की आवाजें खूब सुनाई देती हैं। यहां लगभग सारा काम मशीनों को सौंप दिया गया है । पत्रों से लदी बड़ी-बड़ी क्रेट्स यांत्रिक पट्टियों पर एक से दूसरे स्थान तक पहुंचती हैं। जी.एस.ए. नामक यह मशीन सिस्टम प्रति घंटे में 40 हजार पत्रों की सही-सही छंटाई करता है।

बिग बॉस के नाम से मशहूर हो चुका जी.एस.ए. इतनाचतुर मशीनी सिस्टम है कि इसे पत्रों पर बारकोड्स की भी जरूरत नहीं पड़ती। मशीन बस पत्रों पर लिखे पतों को स्कैन करती है, फिर चाहे वे हाथों से ही क्यों न लिखे हों।

यह एक तरह से चेहरों की पहचान करने वाले सिस्टम जैसा है जिसके तहत एक पत्र की पहचान हो जाने के बाद सिस्टम उसे हर प्रोसैसिंग प्वाइंट पर स्वतः पहचान कर आगे पहुंचाता रहता है जब तक कि वह अपनी मंजिल पर न पहुंच जाए। इसके बाद स्कैन की सूचना अपने आप सिस्टम से डिलीट हो जाती है।

फ्रैंकफर्ट डिपो में 26 वर्ष से कार्यरत नादर अफशारी अब मेन हॉल के सामने पत्रों को क्रेट्स में डालने का काम करते हैं। वह बताते हैं, गत 20 वर्षों के दौरान हुआ सबसे बड़ा बदलाव यह आधुनिकीकरण ही हैं। पहले यहां 20 लोग काम करते थे, अब केवल 3 हैं।

नादर के करियर के दौरान इस डाकघर के मेन हॉल में नाटकीय बदलाव आ चुका है। अब हर चरण में मशीनों का प्रयोग हो रहा है।

डाकियों को सभी पत्र उसी क्रम में सहेजे हुए मिलते हैं जिसके हिसाब से उन्हें घरों तक पहुंचाना होता है। इससे सभी का वक्त, मेहनत और पैसा भी बचता है। डाक घर से पत्र निकलने पर उस पर लागत बढ़ने लगती है इसलिए पहले ही ज्यादा से ज्यादा तैयारी करने पर जोर दिया जाता है।

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जानिये क्यों और कैसे मोबाइल डाल रहा है आपके बच्चों पर बुरा असर

कभी बच्चों को बहलाने के लिए तो कभी उनकी ज़िद्द के कारण पेरेंट्स उन्हें अपना मोबाइल थमा देते हैं। आजकल स्मार्टफोन तो बच्चों का खिलौना हो गया है परंतु क्या आप जानते हैं कि मोबाइल आपके बच्चे के दिमाग को कमजोर बना सकता है तथा अनेक समस्याओं का कारण बन सकता है।

व्यवह्मर संबंधी समस्याएं

यदि आपका बच्चा बाहर जाकर खेलने की अपेक्षा मोबाइल पर गेम्स खेलने में बीज़ी रहता है तो उसे व्यवहार संबंधी समस्याएं होने की संभावना उन बच्चों से ज्यादा है जो बाहर जा कर अपने हमउम्र बच्चों के साथ खेलते हैं।

पल-पल मूड बदलना

आजकल ज्यादातर बच्चों को मूड स्विंग्स की समस्या रहती है, वे पल भर में खुश तो दूसरे ही पल चिड़चिड़े एवं मायूस हो जाते हैं। वास्तव में मूड स्विंग्स का एक बहुत बड़ा कारण मोबाइल का अधिक इस्तेमाल करना है।

कमजोर याददाश्त

मोबाइल फोन से निकलने वाले रेडिएशन के कारण दिमाग की सोचने की क्षमता प्रभावित होती है। अत: जो बच्चे ज़्यादा  देर तक मोबाइल पर बीज़ी रहते हैं उनकी याददाश्त कमजोर होने लगती हैं।

लर्निग डिसएबिलिटी

बच्चों के पढ़ने का तरीका भी बदल गया है। अब वे हमारी और आपकी तरह पढ़ने के लिए ज्यादा दिमाग खर्च नहीं करते क्योंकि इंटरनैट में एक क्लिक पर ही उन्हें सारी जानकारी मिल जाती है, इसलिए उन्हें कुछ भी याद रखने की जरूरत नहीं पड़ती। इसका नतीजा यह है कि बच्चे नॉर्मल तरीके से पढ़ना भूल गए हैं।

आक्रामक व्यवहार

बच्चों के हाथ में मोबाइल होने के कारण उनका दिमाग भी हर समय उसी में लगा रहता है, कभी गेम्स खेलने, कभी सोशल साइट्स, तो कभी कुछ सर्च करने में यानी उनके दिमाग को आराम नहीं मिल पाता। दिमाग को शांति एवं सुकून न मिल पाने के कारण उनका व्यवहार आक्रामक हो जाता है।

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5 निराले समुद्री जीव, कोई सजने-संवरने में तो कोई दिमाग से है अव्वल

वैज्ञानिकों का अनुमान है कि दुनिया भर में जीव-जंतुओं की क़रीब 87 लाख प्रजातियां हैं। हालांकि इनमें से अधिकतर की पहचान होना अभी भी बाकी है। हरेक जीव-जंतु अपने आप में अलग होता है तथा एक या दूसरी अनोखी विशेषता लिए हुए होता है।

पानी का संसार तो और भी विचित्र है। पानी के जीव संभवत: धरती के जीवों से अधिक आकर्षक और रंगीन होते हैं। इस पोस्ट के माध्यम से हम आपके लिए 5 रोचक और विचित्र जीवों का संकलन ले कर आये हैं जो अपने आप में बहुत निराले हैं।

डॉल्फिन

एक पूर्णतया विकसित डॉल्फिन एक दिन में 20 से 22 किलो मछलियां खा जाती है। डॉल्फिन का जीवनकाल 17 से 25 वर्ष तक होता है। खास बात यह है कि वे आईने में देख कर खुद को पहचान सकती हैं। सोनार तकनीक (ध्वनि तरंगों) की मदद से वे पानी में मौजूद चीजों की दूरी, उनके आकार-प्रकार के बारे में जान जाती हैं। डॉल्फिन आमतौर पर एक आंख खुली रख कर सोती हैं। डॉल्फिन को इंसान के बाद सबसे समझदार जीव समझा जाता है।

समुद्री ऊदबिलाव

समुद्री ऊदबिलाव दिन के करीब आधा वक्त अपने फर को संवारते हुए बिताते हैं। इन्हें वे अपनी उंगलियों की मदद से संवारते हैं। उनके मजबूत पंजे फर में कंघी सी करते हैं। इसके बाद वे अपने फर को मुलायम बनाने के लिए पानी में गोलगोल घूमते हैं। । आमतौर पर वे पीठ के बल ही सोते, आराम करते तथा तैरते हैं।

केकड़े

केकड़े की 6,700 से अधिक प्रजातियां हैं। जापानी मकड़ी केकड़े का फैलाव 12 फुट से ज्यादा हो सकता है और इसका वजन 19 किलो तक हो सकता है। केकड़ों की 10 टांगें होती हैं इसलिए उन्हें ‘डैकापोड्स’ (डैका- दस, पोडा- टांगें) के रूप में जाना जाता है। इनमें से टांगों की पहली जोड़ी पंजों के रूप में मौजूद होती है जिसकी मदद से वे अपने शिकार को पकड़ते तथा खाते हैं।

समुद्री कछुए

समुद्री कछुओं को खानाबदोश भी कहा जाता है, क्योंकि वे एक साल में करीब 16000 किलोमीटर का सफर तय करते हैं। खासकर वे जेलिफ़िश ढूंढने के लिए यह सफर तय करते हैं। जापान में पैदा हुए लकड़हारे(Loggerhead) कछुए भोजन और परिपक्व होने के लिए लगभग 8,000 मील की दूरी पर बाजा कैलिफ़ोर्निया, मैक्सिको के समृद्ध पानी में चले जाते हैं। एक बार जब वे यौन परिपक्वता तक पहुँच जाते हैं, तो वे प्रजनन और घोंसला बनाने के लिए वापस जापान चले जाते हैं।

घोंघे

घोंघे का एक ही पैर होता है। वह पैर की आगे-पीछे होती रहने वाली मांसपेशियों की हरकत से एक तरह से जमीन पर घिसट कर चल पाता है। चलने में सरलता के लिए इसके मुंह के निचले हिस्से में स्थित एक ग्रंथि से लार निकलती रहती है। यह लार इसके पैर के नीचे से गुज़रती है जिससे घोंघा बेहद तीखी चीजों के ऊपर से भी बिना चोटिल हुए आसानी से गुज़र जाता है।

105 साल पुराने ऐतिहासिक रेल इंजन का होगा काया-कल्प

1913 में इंगलैंड में बने एक रेल इंजन को हाल ही में दरभंगा रेलवे स्टेशन पर लाया गया है, जिसका जल्द ही नवीनीकरण किया जाएगा। माना जाता है, कि एक चीनी मिल में माल ढुलाई के काम के लिए सर्वप्रथम इस भाप इंजन को लाया गया था। छोटी लाइन पर चलने वाला यह इंजन लोहाट शुगर मिल में जीर्ण-शीर्ण स्थिति में पड़ा हुआ था, जिसका स्वामित्व बिहार गन्ना उद्योग विभाग के पास था।

समस्तीपुर खंड के (डी.आर.एम. आर.के.) जैन बताते हैं कि, यह इंगलैंड में निर्मित भाप इंजन था| जो, एक चीनी मिल में बहुत ही ख़राब स्थिति में पड़ा हुआ था। कुछ विरासती कार्यकर्ताओं के अभियान के बाद उन्होंने (खंड के डी.आर.एम. आर.के. जैन) बिहार सरकार से इंजन को यहां लाने का आग्रह किया था, इससे उनको इस बात की इजाजत मिल गयी थी, और राज्य मंत्रि मंडल ने भी इस प्रस्ताव को अपनी मंजूरी दे दी थी।

यह इंजन बहुत ऐतिहासिक है, क्योंकि यह इंजन चीनी मिल में उपयोग होने के लिए दरभंगा में लाया गया पहला रेल इंजन है।

अब इस इंजन की काफी मुरम्मत करनी पड़ेगी। क्योंकि, यह इंजन काफी पुराना हो चुका है। विशेषज्ञ इसे अच्छी अवस्था में लाने के लिए इस इंजन को पेंट करने का काम करेंगे, जिसके बाद इसे एक ऐतिहासिक रेल इंजन के रूप में प्रदर्शित किया जाएगा।

इस इंजन को छोटी रेल लाइन (नैरो गेज) ट्रैक के लिए बनाया गया था | इसे ‘कैप्टिव इंजन’ भी कहा जाता है| क्योंकि, इसे एक ही स्थान यानी चीनी मिल में इस्तेमाल के लिए रखा गया था।

रेलवे की इस विरासत को बचाने के लिए प्रयास करने वाले लोगों में शामिल रहे फोटोग्राफर तथा स्थानीय हैरिटेज एक्टिविस्ट संतोष कुमार के अनुसार, “सभी के प्रयास रंग लाए हैं। यह कदम दरभंगा में विरासत संरक्षण को प्रोत्साहित करेगा। जिले में एक और चीनी मिल में चार पुराने इंजन हैं, उन्हें भी बचाया जाना चाहिए, और प्रदर्शन के लिए अन्य स्टेशनों के सामने उन्हें रखा जाना चाहिए” | दरभंगा में रेल 1874 में आई थी, और तब दरभंगा राज के शाषकों की अपनी शाही ट्रेनें और सैलून होते थे।

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