भारत की एक ऐसी जल विरासत है जो आस-पास सूखा पड़ने पर भी नहीं सूखती। इसका नाम है ‘खजाना वैल’ या ‘खजाना विहीर’। यह महाराष्ट्र के बीड जिले में स्थित है। इसमें लगभग 2 से 3 मीटर तक पानी हमेशा रहता है।
निर्माण में लगा सारा खजाना
मराठवाड़ा पर 16वीं शताब्दी में निज़ामों का शासन था। इसका निर्माण वर्ष 1572 में तत्कालीन सरदार सलाबत खान ने करवाया था।
लोगों का मानना है कि उस समय राजा मुर्तुजा ने सलाबत खान को एक खजाना दिया था जो पूरा का पूरा इस कुएं के निर्माण में ही लग गया इसीलिए इसे ‘खजाना वैल’ के नाम से जाना जाता है।
इलाके में कई बार सूखा पड़ा है परंतु यह कुआं कभी नहीं सूखा। यह प्राचीन कुआं शहर से लगभग 4 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
दरअसल उस समय खेतों में जल की आपूर्ति के संसाधन कम थे और इसलिए ही अहमदनगर के राजा मुर्तुजा खान ने बीड के तत्कालीन सरदार सलाबत खान को इस स्थान पर कुआं बनवाने के लिए कहा था। इसके सुंदर वास्तुशिल्प और स्थापत्य को सुप्रसिद्ध वास्तुकार राजा भास्कर के निर्देशानुसार बनाया गया था।
तीन सुरंगों वाला कुआं
इसकी कुल गहराई जमीनी स्तर से 7 मीटर है। इसके निर्माण के लिए चूने और पत्थर का प्रयोग किया गया है। इस कुएं में 3 सुरंगें हैं।
इनमें से 2 सुरंगें पानी को कुएं तक पहुंचाने यानी जल के प्रवेश द्वार के रूप में बनाई गई हैं और तीसरी सुरंग एकत्रित किए गए जल को बाहर ले जाने यानी जल निकासी मार्ग के रूप में बनाई गई है।
जल प्रवेश मार्ग वाली सुरंगें दक्षिण पश्चिम और दक्षिणपूर्व दिशा में स्थित हैं और जल निकासी मार्ग वाली सुरंग उत्तर दिशा में स्थित है।
ये एक प्रकार से छोटी नहरें जिनके माध्यम से खेतों में पानी की आपूर्ति की जाती थी। ये अभी भी बीड़ शहर के बालगुजर क्षेत्र में पानी पहुंचाती हैं। इन भूमिगत नहरों में हवा की आवाजाही के लिए 53 ‘वाल्व’ बनाए गए हैं।
यह ‘खजाना वैल’ वाकई इस बात को सिद्ध करता है कि भारत में पुराने समय से ही जल प्रबंधन अव्वल स्तर का रहा है और हम भारतवासियों को जल संरक्षण और ऐसी अद्भुत तकनीकें भी विरासत में मिली हैं।
(पंजाब कैसेरी से साभार)
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