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डिप्रेशन क्या है? इसके लक्षण और इससे कैसे बचा जा सकता है?

आइए जानते हैं क्या है डिप्रेशन यानि अवसाद – आजकल लोग ज़िंदगी की भाग दौड़ में इतना व्यस्त हो जाते हैं कि कुछ समय बाद ही वह डिप्रेशन का शिकार हो जाते हैं. डिप्रेशन एक मानसिक बीमारी है. कुछ लोगों पर थोड़े समय के लिए रहता है. लेकिन कई लोगों में डिप्रेशन खतरनाक रूप ले लेता है.

क्या है डिप्रेशन?

डिप्रेशन एक जटिल बीमारी है जो जैविक यानि वंशानुगत, सामाजिक, आर्थिक आदि कई कारकों के कारण होती है।

अवसाद की स्थिति में व्यक्ति का जिंदगी से जैसे मन भर जाता है. जिन चीज़ों को करने में पहले मजा आता था वह सब कुछ नीरस और बेकार लगने लगता है. काम पर ध्यान केंद्रित करने में परेशानी आती है जिससे  इंसान की रोजमर्रा ज़िंदगी और उसके कामकाज में बुरा प्रभाव पड़ता है.

अवसाद की स्थिति में अकेले रहने का मन करता है. कई बार थोड़ी सा भी इमोशनल हो जाने पर रोने का मन करता है. स्थिति अधिक बिगड़ जाने पर आत्महत्या करने का ख्याल मन में आने लगता है.

क्या कहते हैं आंकड़े?

WHO के अनुसार, वर्तमान में दुनिया भर में 26 करोड़ 20 लाख लोग डिप्रेशन का शिकार हैं.  हर साल लगभग 8  लाख लोग डिप्रेशन के कारण मर जाते हैं. दुनिया भर में, 15 से 29 साल के लोगों में, आत्महत्या मृत्यु का दूसरा प्रमुख कारण है। इन आत्महत्या के केसों के पीछे डिप्रेशन मुख्य वजह है.

2012 में डब्ल्यू.एच.ओ. ने मैंटल हैल्थस्टेटस ऑफअडोलसैंट्स इन साउथ-ईस्ट एशिया: एवीडैस फॉर एक्शन रिपोर्ट जारी की जिसमें कहा गया था कि भारत में चार में से एक किशोर अवसाद ग्रस्त था। डब्ल्यू.एच.ओ. की 2017 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 5 करोड़ 70 लाख लोग डिप्रेशन से पीड़ित हैं।

डिप्रेशन का कारण

बचपन में होने वाले शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न जैसे यौन शोषण या दुर्व्यवहार, बार-बार एक स्थान से दूसरे स्थान में तबादला, नकारात्मक घटनाएँ जैसे किसी दिल के करीब संबंधी की मृत्यु, शैक्षिक असफलता, घरेलू या नज़दीकी रिश्तों में कड़वाहट, स्कूल और परिवार में उत्पीड़न और तनाव अवसाद की मुख्य वजहें हैं।

सभी माता-पिता और अभिभावक अपने बच्चों के लिए सर्वश्रेष्ठ चाहते हैं.  लेकिन बचपन में बहुत अधिक टोका-टोकी, आलोचनात्मक और निंदा करने वाले माता-पिता या शिक्षण शैली बच्चे में अपने बारे में नकारात्मक भावनाओं को जन्म दे सकती है। इससे अवसाद हो सकता है।

डिप्रेशन की एक अन्य प्रमुख वजह नशे की लत है. एक बार नशे का आदि हो जाने पर इससे छुटकारा पाना मुश्किल हो जाता है. इससे व्यक्ति आर्थिक, शारीरिक और मानसिक परेशानियों से घिर जाता है. थोड़े ही समय में यह तनाव लगातार रहने वाले अवसाद यानि डिप्रेशन में बदल जाता है.

डिप्रेशन के लक्षण

डिप्रेशन किशोरों और युवा वयस्कों में अधिक देखने को मिलता है. इसका कारण है इस अवस्था में शारीरिक और मानसिक बदलाव ज्यादा होता है. साथ ही युवाओं का दुनिया को देखने-समझने का नजरिया तेजी से बदलता है.

बच्चों, किशोरों और युवा वयस्कों में अवसाद को पहचानना मुश्किल हो सकता है.  लेकिन यहां कुछ संकेत दिए गए हैं जिन्हें आप अपने बच्चे और किशोर या युवा में देख कर समय रहते इससे बचाव कर सकते हैं. इन संकेतों में प्रमुख हैं:

  • मित्रों और घर के सदस्यों से दूरी या बातचीत में कमी
  • उदासीनता, लापरवाही, गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार, जिम्मेदारी की कमी
  • मनोरंजन के क्रियाकलापों में कम रुचि
  • स्कूल में प्रदर्शन में गिरावट
  • अत्यधिक भोजन करना या भूख का बिल्कुल न लगना
  • अचानक वजन में बदल।
  • व्यवहार में बदलाव
  • असामान्य चिड़चिड़ापन और गुस्सा
  • दु:ख, चिड़चिड़ापन, चीखना, बिना किसी कारण – के रोना या थोड़ी-सी आलोचना पर तीव्र प्रतिक्रिया करना
  • शारीरिक दर्द की अस्पष्ट शिकायतें, सिरदर्द, पेट दर्द, पीठ दर्द,
  • ध्यान केन्द्रित करने और निर्णय लेने में कठिनाई
  • मृत्यु के प्रति अति लगाव- आत्महत्या के बारे में बात करना या मजाक करना
  • शराब, ड्रग्स का इस्तेमाल
  • अधिक सोना या कम सोना

डिप्रेशन का उपचार

याद रखें कि अवसाद एक ला-इलाज बीमारी नहीं है। मन और शरीर की उचित देखभाल और एक सकारात्मक सामाजिक वातावरण में आसानी से इसको ठीक किया जा सकता है.

सामान्यत: डिप्रेशन का उपचार एक बहुत ही आसान और बहुत कम खर्चीली प्रक्रिया है जिसमें एक अनुभवी न्यूरोलॉजिस्ट या साइकोलॉजिस्ट व्यक्ति से चंद मिनट बात करके व्यक्ति और उसके डिप्रेशन से जुड़ी जानकारी जुटाता है और कुछ दवाईयां और कुछ व्यायाम सुझा कर व्यक्ति का उपचार करता है. डिप्रेशन की गहनता/मात्रा के हिसाब से व्यक्ति कुछ दिनों या हफ़्तों में सामान्य अनुभव करने लगता है और उसकी दैनिक प्रक्रिया सामान्य हो जाती है.

योग, ध्यान और श्वास तकनीक से उपचार

अवसाद, मस्तिष्क और शरीर में एक जैव रासायनिक प्रक्रिया भी है। योग, ध्यान और श्वास की क्रियाएं जैसे सुदर्शन क्रिया को आर्ट ऑफ लिविंग ने सिखाया है। यह क्रियाएं न्यूरोकैमिकल्स और हार्मोन को रिलीज करने में मदद करती हैं जो अवसाद को कम कर सकता है।

गहरी सांस लेने, अंगों को खींचने के व्यायाम और विश्राम करने से एंडोर्फिन, सैरोटोनिन और जी.ए.बी.ए. जैसेन्यूरोकैमिकल्स मुक्त होते हैं जो किसी व्यक्ति को प्रसन्न और संतुष्ट अनुभव कराते हैं। इससे नींद भी अच्छी आती है जिससे व्यक्ति तनावमुक्त अनुभव करता है.

योग, ध्यान और श्वास और सुदर्शन क्रिया जैसी क्रियाएं अवसाद के उपचार में बहुत ही प्रभावी हैं और इनका कोई नकारात्मक दुष्प्रभाव(side-effect) भी नहीं है।

डिप्रेशन के उपचार में परिवार/अभिभावक का योगदान

एक अभिभावक या निकट-संबंधी खुले और सौहार्दपूर्ण वातावरण में अपने बच्चे या परिवार के सदस्य को अपनी भावनाओं के बारे में बात करने के लिए प्रोत्साहित कर सकता है। वे उससे उन समस्याओं पर बात कर सकते हैं जिनसे वह जूझ रहा है और उसे विश्वास दिला न सकते हैं कि उन चुनौतियों का सामना करने में वह समर्थ है और वे भी उसके साथ खड़े हैं।

अभिभावक को हर हाल में, बिना किसी संकोच के अपने बच्चों के साथ आमने-सामने बात करने के लिए प्रतिदिन एक समय निर्धारित करना चाहिए. उनके मानसिक स्वास्थ्य को बढ़ाने और उन्हें प्रोत्साहित करने के लिए लंबे समय तक मददगार सिद्ध होता है.

एक अवसाद-ग्रस्त व्यक्ति या बच्चे को केवल डिप्रेशन से बाहर लाने के लिए उनसे बात नहीं करनी है. बस उसे अपनी भावनाओं को बिना संकोच व्यक्त और शेयर करने की आदत लगानी  है. उसे यह विश्वास दिलाना है कि बिना उपदेश पिलाये उस की बात को सुना और समझा जायेगा.

अभिभावक अपने बच्चे के मित्रों को जानें और उनके भी मित्र बनें। श्री श्री रविशंकर अक्सर उन माता-पिता को यह सलाह देते हैं जो अपने बच्चे के व्यवहार को बदलना चाहते हैं। वह कहते हैं कि अगर हम अपने बच्चे को प्रभावित करना चाहते हैं और उसके किसी व्यवहार को बदलना चाहते हैं, तो हमें उसके दोस्तों को जानना होगा और उन्हें भी प्रभावित करना होगा।

डिप्रेशन के उपचार में बाधा

दुनिया की अधिकतर आबादी अवसाद को नज़र-अंदाज़ करती है। इसका मुख्य कारण है कि अविकसित और गरीब देशों में यह बहुत आम है।

अवसाद को संकोच और प्रतिष्ठा का विषय समझा जाता है इसलिए भी लोग इसके बारे में बात करने से कतराते हैं।

कई मामलों में तो अवसाद-ग्रस्त व्यक्ति को पता ही नहीं होता की वह अवसाद ग्रस्त है इसलिए भी इसका उपचार संभव नहीं हो पाता है।

वयस्कों पर किये गए एक बहुपक्षीय अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन में, भारत में अवसाद के शिकार 20-37 प्रतिशत लोगों ने किसी न किसी कारण कोई चिकित्सीय सहायता पाने की कोशिश नहीं की।

अंत में हमारा यही सुझाव है कि इंसान अपनी समस्याओं को छुपाते हैं और उन्हें लगता है कि दूसरों को बताएंगे, तो उनका मज़ाक ना बन जाएँ. यह रवैया इंसान की दिक्कत को कम करने की बजाय और भी बढ़ा देता है. यदि आप बहुत ज़्यादा तनाव महसूस कर रहे हैं, तो किसी मनोवैज्ञानिक या मनोचिकित्सक के पास ज़रूर जाएं.

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