Tuesday, March 19, 2024
27.5 C
Chandigarh

शहीद-ए-आज़म भगत सिंह के परिवार की रगों में दौड़ती थी देशभक्ति

शहीद भगत सिंह जी ने भारत देश को आज़ाद करने के लिए खुद को कुर्बान तक कर दिया था और वह हंसते हंसते फांसी पर चढ़ गए थे। भगत सिंह जी का जन्म 28 सितंबर 1907 को लायलपुर जिले के बंगा में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है।

पूरे परिवार के रगों में दौड़ती थी देशभक्ति

भगत सिंह जी का जन्म पाकिस्तान के एक सिख परिवार में हुआ था। जब भगत सिंह जी पैदा हुए, तो उस समय उनके पिता किशन सिंह जेल में थे, और उनके चाचा अजीत सिंह और श्‍वान सिंह भारत की आज़ादी में अपना सहयोग दे रहे थे। वह दोनों करतार सिंह सराभा द्वारा संचालित गदर पाटी के सदस्‍य थे। भगत सिंह पर इन दोनों का गहरा प्रभाव पड़ा था। इसलिए वह बचपन से ही अंग्रेजों से घृणा करने लगे थे।

जलियावाला बाग कांड का पड़ा असर

13 अप्रैल 1919 को बैसाखी वाले दिन रौलट एक्ट के विरोध में देशवासियों की जलियांवाला बाग में सभा हुई। अंग्रेजी हुकूमत को यह बात पसंद नहीं आई और जनरल डायर के क्रूर और दमनकारी आदेशों के चलते निहत्थे लोगों पर अंग्रेजी सैनिकों ने ताबड़बतोड़ गोलियों की बारिश कर दी। इस अत्याचार ने देशभर में क्रांति की आग को और भड़का दिया था.

12 साल के भगत सिंह पर इस सामुहिक हत्याकांड का गहरा असर पड़ा। उन्होंने जलियांवाला बाग के रक्त रंजित धरती की कसम खाई कि अंग्रेजी सरकार के खिलाफ वह आज़ादी का बिगुल फूंकेंगे। उन्होंने लाहौर नेशनल कॉलेज की पढ़ाई छोड़कर ‘नौजवान भारत सभा’ की स्थापना कर डाली।

‘सांडर्स-वध’, दिल्ली की सेंट्रल असेम्बली पर बम फेंका

अंग्रेजी सरकार के दमनकारी नीतियों के खिलाफ पंजाब केसरी लाला लाजपत राय शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे थे। तभी पुलिस अधीक्षक स्कॉट और उसके साथियों ने प्रदर्शनकारियों पर लाठियां चलाई। इसमें लाला लाजपत राय बुरी तरह घायल हो गए और 17 नवंबर को उनका देहांत हो गया था।

लाला लाजपत राय के देहांत के बाद आज़ादीव् के इस मतवाले ने पहले लाहौर में ‘सांडर्स-वध’ किया और उसके बाद दिल्ली की सेंट्रल असेंबली में चंद्रशेखर आज़ाद और पार्टी के अन्य सदस्यों के साथ बम-विस्फोट कर ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध खुले विद्रोह को बुलंदी दी थी।

शहीद भगत सिंह ने इन सभी कार्यो के लिए वीर सावरकर के क्रांतिदल अभिनव भारत की भी सहायता ली और इसी दल से बम बनाने के गुर सीखे। वीर स्वतंत्रता सेनानी ने अपने दो अन्य साथियों सुखदेव और राजगुरु के साथ मिलकर काकोरी कांड को अंज़ाम दिया, जिसने अंग्रेजों के दिल में भगत सिंह के नाम का खौफ पैदा कर दिया था।

भगत सिंह की गिरफ्तारी

सेंट्रल असेम्बली पर बम फेंके जाने की घटना के बाद भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त की गिरफ्तारी हुई थी। सुखदेव और राजगुरू को भी गिरफ्तार किया गया। 7 अक्टूबर 1930 को यह फैसला सुनाया गया कि भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी पर लटकाया जाए जबकि, बटुकेश्वर दत्त को उम्रकैद की सजा हुई।

भगत सिंह समेत राजगुरु और सुखदेव को फांसी देने के लिए जेल की कोठरी से बाहर लाया गया। आज़ादी के मतवालों ने मां भारती को प्रणाम किया और आज़ादी के गीत गाते हुए फांसी के फंदे पर झूल गए।

आगे पढ़ें :

Related Articles

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

15,988FansLike
0FollowersFollow
110FollowersFollow
- Advertisement -

MOST POPULAR

RSS18
Follow by Email
Facebook0
X (Twitter)21
Pinterest
LinkedIn
Share
Instagram20
WhatsApp