गंगोत्री गंगा नदी का उद्गम स्थल है। गंगा जी का मंदिर समुद्र तल से 3042 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। भागीरथी के दाहिने ओर का परिवेश आकर्षक एवं मनोहारी है।
यह स्थान उत्तरकाशी से 100 कि.मी. की दूरी पर स्थित है। गंगा मैया के मंदिर का निर्माण गोरखा कमांडर अमर सिंह थापा द्वारा 18वीं शताब्दी के शुरूआत में किया गया था।
वर्तमान मंदिर का पुननिर्माण जयपुर राजघराने द्वारा किया गया। प्रत्येक वर्ष मई से अक्तूबर के महीनों के बीच पतित पावनी गंगा मैया के दर्शन करने के लिए लाखों तीर्थयात्री यहां आते हैं।
यमुनोत्री की ही तरह गंगोत्री का पतित पावन मंदिर भी अक्षय तृतीया के पावन पर्व पर खुलता है और दीपावली के दिन मंदिर के कपाट बंद होते हैं।
पौराणिक मान्यता
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान श्री राम के पूर्वज रघुकुल के चक्रवर्ती राजा भगीरथ ने यहां एक पवित्र शिलाखंड पर बैठकर भगवान शंकर ने प्रचंड तपस्या की थी।
भगवान शिव इस स्थान पर अपनी जटाओं को फैलाकर बैठ गए और उन्होंने गंगा माता को अपनी जटाओं में लपेट लिया। शीतकाल के आारंभ में जब गंगा का जलस्तर इस स्थान पर काफी नीचे चला जाता है तब श्रद्धालुओं को पवित्र शिवलिंग के दर्शन होते हैं।
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- गंगोत्री मंदिर से नीचे की ओर भागीरथी शिला है जिस पर यहां पिण्डदान आदि कर्म किये जाते हैं। यह वह स्थान है जहां गोत्र हत्या के पाप से मुक्ति पाने के लिए पाण्डवों ने यज्ञ किया था।
- शिला से नीचे भागीरथी की जलधरा में एक कुण्ड सा बन गया है जिसको ब्रह्मकुण्ड कहते है। ब्रह्मकुण्ड के पीछे की ओर भागीरथी की धरा रूकने से बने कुण्ड को विष्णु कुण्ड के नाम से सम्बोधित किया जाता है।
- लोक मान्यता के अनुसार इस कुण्ड में भगवान विष्णु निवास करते हैं। मंदिर से कुछ दूरी पर जहां झरने के रूप मे गंगा नीचे गिरती है वह स्थान गौरी कुण्ड कहलाता है।
- लोक आस्थाओं के अनुसार पार्वती ने भगवान शिव को पाने के लिए इस स्थान पर तपस्या की थी।
- गंगा मंदिर के पीछे बनी समाधि के विषय में भी यह प्रसिद्ध है कि आदिगुरू शंकराचार्य का निर्वाण यहीं हुआ था।
- गंगोत्री के निकट ही यहां के रक्षक का मंदिर है। भैरव देवता गंगोत्री के रक्षक हैं। ऐसी मान्यता है कि भैरव की पूजा किये बिना गंगोत्री की तीर्थ यात्रा का फल नहीं मिलता।
- गंगोत्री के निकट ही “गंगनानी” नाम का स्थान है जहां गर्म जल के कुण्ड में स्नान किया जाता है। मान्यता है कि गंगोत्री धाम की यात्रा करने वाले सभी यात्रियों को इस कुण्ड में जरुर स्नान करना चाहिए।
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