पतझड़ी पेड़ अपनी पत्तियां गर्मी के सूखे दिनों में पानी बचाने के मकसद से गिराते हैं। हमारे यहां पतझड़ का मौसम करीब तीन महीने का रहता है। अलग-अलग पेड़ों के लिए पतझड़ का समय भी अलग-अलग होता है।
कुछ पेड़ों के लिए पतझड़ बीत चुका है तो कुछ के लिए अभी चल रहा है। इतना ही नहीं, दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में भी पतझड़ का मौसम अलग-अलग समय आता है। कहीं सितंबर से नवंबर तक चलता है तो कहीं फरवरी से शुरू होकर अप्रैल-मई तक।
सवाल यह उठता है कि आखिर पेड़ अपनी पत्तियों को गिराते ही क्यों है? क्या इसमें भी उनका कोई फायदा होता है? गर्मियों से पहले पतझड़ी पेड़ अपनी पत्तियों को आने वाले गर्मी के सूखे दिनों में पानी बचाने के मकसद से गिराते हैं, वहीं ठंडे देशों के पतझड़ी पेड़ ऐसा सर्दी के दिनों में बर्फबारी से होने वाले नुकसान से बचने के लिए करते हैं।
पत्तियों के गिरने की शुरुआत उनके पीले पड़ने से होती है। सभी जानते हैं कि पेड़ अपना भोजन पत्तियों से बनाते हैं। जब पत्तियां गिरने लगती हैं तो उस समय भोजन निर्माण की प्रक्रिया भी रुक जाती है।
इस प्रक्रिया में कई पत्तियां अपना नाइटोजन और कार्बन निकालकर प्रोटीन के रूप में जड़ों और छाल में जमा कर देती हैं। यही संग्रहित प्रोटीन बाद में नाइट्रोजन के स्रोत के रूप में नई पत्तियों और फूलों के विकास के काम में आता है।
यह भी देखा गया है कि कई पतझड़ी पेड़ तभी फूलते हैं, जब वे पत्ती विहीन अवस्था में होते हैं, जैसे अमलतास, सेमल और टेसू।
पत्तियां नहीं होने से फूल दूर से ही स्पष्ट नजर आने लगते हैं और इसलिए कीट-पतंगे और पक्षी उनकी ओर ज़्यादा आकर्षित होते हैं।
सवाल यह भी है कि क्या वास्तव में पतझड़ी पेड़ों में हर साल प्रति पेड़ लाखों-करोड़ों नए पत्ते उगाना, कुछ महीने उनका उपयोग करना और फिर उन्हें त्याग देना उचित है?
विकासवादियों के अनुसार दुनिया में पतझड़ी पेड़ 10 करोड़ वर्ष पूर्व ही आए हैं, जबकि चीड़ और देवदार जैसे सदाबहार पेड़ 17 करोड़ वर्षों से यहां राज कर रहे हैं।
अतः पतझड़ी पेड़ प्रकृति के नए आविष्कार हैं जो विपरीत परिस्थितियों के लिए ज्यादा अनुकूलित हैं। चीड़ और देवदार जैसे सदाबहार पेड़ अपनी पत्तियां नहीं गिराते और उन्हें इसका भारी नुकसान भी उठाना पड़ता है,
जैसे बर्फबारी के दौरान उनकी ऊपरी शाखाएं टूट जाती हैं और उन पर पत्तियां खाने वाले शाकाहारियों का भी दबाव बढ़ जाता है, क्योंकि पतझड़ी पेड़-पौधे तो अपनी पत्तियां पहले ही गिरा चुके होते हैं।
आर्थिक दृष्टि से भी अहम है पतझड़ का मौसम
उपग्रह इस मौसम में जो चित्र भेजते हैं। उनमें पुथ्वी कछ ज्यादा ही रंगीन नजर आती है। इन चित्रों में गहरे, हरे, पीले, लाल व भूरे रंग के बदलाव की स्पष्ट तरंगें देखने को मिलती हैं।
रंग परिवर्तन की यह लहर दक्षिण यूरोप में 60 से 70 किलोमीटर प्रति दिन की रफ्तार से चलती है और सारा क्लोरोफिल देखते-देखते दो-तीन सप्ताह में नष्ट हो जाता है।
पत्तियों से जब क्लोरोफिल टूटता है तो वे पत्तियां पीली, नारंगी या लाल दिखाई देने लगती हैं। उनका पीलापन कैरोटीन और लाल रंग एंथोसाइन जैसे पदार्थों के कारण होता है।
यूरोपीय देशों में प्रकृति के इस बदले हुए रूप को देखने के लिए भारी भीड़ उमड़ती है। पूर्वी उत्तरी अमेरिका में तो पतझड़ पर पर्यटन से अरबों डॉलर की कमाई होती है।
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