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जानिए पुत्रदा एकादशी की कथा और पूजा विधि के बारे में

हिंदू कैलेंडर में श्रावण मास के शुक्ल पक्ष के दौरान पड़ने वाली एकादशी तिथि को श्रावण पुत्रदा एकादशी के रूप में मनाया जाता है। पुत्रदा एकादशी, जिसे पवित्रा एकादशी और पवित्रोपन एकादशी के रूप में भी जाना जाता है, अंग्रेजी कैलेंडर पर जुलाई से अगस्त के बीच में आती है।

हमारी पिछली पोस्ट में हमने आपको पुत्रदा एकादशी के शुभ महूर्त और महत्व के बारे में बताया था और इस पोस्ट में हम जानेगें पुत्रदा एकादशी की कथा और पूजा विधि के बारे में तो चलिए जानते हैं।

शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि पर मनाया जाने वाला यह व्रत दशमी तिथि से शुरू हो जाता है। प्रत्येक एकादशी व्रत की एक विशिष्ट कथा होती है जोकि एक पौराणिक कथा भी जुड़ी होती है।

व्रत कथा

किंवदंती द्वापर युग की है महिष्मति नाम की एक नगरी थी, जिसमें महीजित नाम का राजा राज्य करता था। वह उन सबसे अच्छे शासकों में से एक थे जिन्हें लोगों ने कभी देखा था। वह एक परोपकारी, दयालु, जिम्मेदार और उदार शासक था। उनके नेतृत्व में, उनकी प्रजा सुरक्षित महसूस करती थी।

लेकिन पुत्रहीन होने के कारण राजा को राज्य सुखदायक नहीं लगता था। उसका मानना था कि जिसके संतान न हो, उसके लिए यह लोक और परलोक दोनों ही दु:खदायक होते हैं। पुत्र सुख की प्राप्ति के लिए राजा ने अनेक उपाय किए परंतु राजा को पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई।

वृद्धावस्था आती देखकर राजा ने प्रजा के प्रतिनिधियों को बुलाया और कहा- हे प्रजाजनों! मेरे खजाने में अन्याय से उपार्जन किया हुआ धन नहीं है। न मैंने कभी देवताओं तथा ब्राह्मणों का धन छीना है।

किसी दूसरे की धरोहर भी मैंने नहीं ‍ली, प्रजा को पुत्र के समान पालता रहा। मैं अपराधियों को पुत्र तथा बाँधवों की तरह दंड देता रहा। कभी किसी से घृणा नहीं की। सबको समान माना है। सज्जनों की सदा पूजा करता हूँ। इस प्रकार धर्मयुक्त राज्य करते हुए भी मेरे पु‍त्र नहीं है। सो मैं अत्यंत दु:ख पा रहा हूँ, इसका क्या कारण है?

राजा महीजित की इस बात को विचारने के लिए मं‍त्री तथा प्रजा के प्रतिनिधि वन को गए। वहाँ बड़े-बड़े ऋषि-मुनियों के दर्शन किए। राजा की उत्तम कामना की पूर्ति के लिए किसी श्रेष्ठ तपस्वी मुनि को देखते-फिरते रहे।

एक आश्रम में उन्होंने एक अत्यंत वयोवृद्ध धर्म के ज्ञाता, बड़े तपस्वी, परमात्मा में मन लगाए हुए निराहार, जितेंद्रीय, जितात्मा, जितक्रोध, सनातन धर्म के गूढ़ तत्वों को जानने वाले, समस्त शास्त्रों के ज्ञाता महात्मा लोमश मुनि को देखा, जिनका कल्प के व्यतीत होने पर एक रोम गिरता था।

सबने जाकर ऋषि को प्रणाम किया। उन लोगों को देखकर मुनि ने पूछा कि आप लोग किस कारण से आए हैं? नि:संदेह मैं आप लोगों का हित करूँगा। मेरा जन्म केवल दूसरों के उपकार के लिए हुआ है, इसमें संदेह मत करो।

लोमश ऋषि के ऐसे वचन सुनकर सब लोग बोले- हे महर्षे! आप हमारी बात जानने में ब्रह्मा से भी अधिक समर्थ हैं। अत: आप हमारे इस संदेह को दूर कीजिए। महिष्मति पुरी का धर्मात्मा राजा महीजित प्रजा का पुत्र के समान पालन करता है। फिर भी वह पुत्रहीन होने के कारण दु:खी है।

उन लोगों ने आगे कहा कि हम लोग उसकी प्रजा हैं। अत: उसके दु:ख से हम भी दु:खी हैं। आपके दर्शन से हमें पूर्ण विश्वास है कि हमारा यह संकट अवश्य दूर हो जाएगा क्योंकि महान पुरुषों के दर्शन मात्र से अनेक कष्ट दूर हो जाते हैं। अब आप कृपा करके राजा के पुत्र होने का उपाय बतलाएँ।

यह वार्ता सुनकर ऋषि ने थोड़ी देर के लिए नेत्र बंद किए और राजा के पूर्व जन्म का वृत्तांत जानकर कहने लगे कि यह राजा पूर्व जन्म में एक निर्धन वैश्य था।

निर्धन होने के कारण इसने कई बुरे कर्म किए। यह एक गाँव से दूसरे गाँव व्यापार करने जाया करता था। एक समय ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी के दिन मध्याह्न के समय वह जबकि वह दो दिन से भूखा-प्यासा था, एक जलाशय पर जल पीने गया। उसी स्थान पर एक तत्काल की ब्याही हुई प्यासी गौ जल पी रही थी।

राजा ने उस प्यासी गाय को जल पीते हुए हटा दिया और स्वयं जल पीने लगा, इसीलिए राजा को यह दु:ख सहना पड़ा। एकादशी के दिन भूखा रहने से वह राजा हुआ और प्यासी गौ को जल पीते हुए हटाने के कारण पुत्र वियोग का दु:ख सहना पड़ रहा है।

ऐसा सुनकर सब लोग कहने लगे कि हे ऋषि! शास्त्रों में पापों का प्रायश्चित भी लिखा है। अत: जिस प्रकार राजा का यह पाप नष्ट हो जाए, आप ऐसा उपाय बताइए।

इस पर लोमश ऋषि ने मंत्रियों से कहा कि अगर आप लोग चाहते हैं कि राजा को पुत्र की प्राप्ति हो तो श्रावण शुक्ल एकादशी का व्रत रखें और द्वादशी के दिन अपना व्रत राजा को दान कर दें।

मंत्रियों ने ऋषि के बताए विधि के अनुसार व्रत किया और व्रत का दान कर दिया। इससे राजा को पुत्र की प्राप्ति हुई। इस कारण पवित्रा एकादशी को पुत्रदा एकादशी भी कहा जाता है।

श्रावण पुत्रदा एकादशी विष्णु पूजा विधि

  • एकादशी तिथि पर, नहाने के पानी में कुछ बूंदें गंगा जल की अवश्य मिला लें।
  • स्नान करने के पश्चात साफ-सुथरे वस्त्र पहनकर भगवान विष्णु का ध्यान करें और श्रावण पुत्रदा एकादशी का व्रत करने का संकल्प लें ।
  • अपने घर के पूजा कक्ष में पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठ जाएं और सामने एक लकड़ी की चौकी रखें। अब इस चौकी पर थोड़ा सा गंगाजल छिड़क कर इसे शुद्ध करें। अब चौकी पर पीले रंग का कपड़ा बिछाकर भगवान विष्णु की मूर्ति या तस्वीर की स्थापना करें।
  • भगवान गणेश की पूजा करें और उनका आशीर्वाद लें। फिर, भगवान विष्णु का आह्वान करें।
  • भगवान विष्णु के समक्ष घी का दीपक जलाएं। भगवान विष्णु को जल, पुष्पम, गंधम, दीप, धूप और नैवेद्य चढ़ाते समय ‘ओम नमो भगवते वासुदेवाय‘ का जाप करें।
  • फिर, पान, सुपारी, दो टुकड़ों में टूटा हुआ एक भूरा नारियल, केले या अन्य फल, चंदन, कुमकुम, हल्दी, अक्षत और दक्षिणा अर्पित करें। इस वस्तु के संग्रह को तंबूलम के नाम से भी जाना जाता है।
  • संध्याकाल में श्रावण पुत्रदा एकादशी की व्रत की कथा सुने और फलाहार करें। यदि आप पूरा दिन व्रत करने में सक्षम नहीं है तो आप दिन में भी फलहार कर सकते हैं।
  • अगले दिन सुबह स्नान करने के पश्चात ब्राह्मणों को भोजन करवाने के बाद उन्हें दान दक्षिणा दें और व्रत का पारण करें।
    श्रावण पुत्रदा एकादशी के दिन विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करने से भगवान विष्णु की विशेष कृपा प्राप्त होती है।

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