Thursday, November 7, 2024
28.6 C
Chandigarh

आज भी याद करते हैं लोग इन प्रसिद्ध प्रेम कहानियों को

“प्रेम कहानी” यह शब्द भले ही किसी परी कथा सा लगता है, लेकिन इतिहास में कई ऐसे प्रेमी जोड़े थे जिन्होनें अपने इश्क को मुकम्मल बनाने के लिए न जाने कितनी कुर्बानियां दी।

शायद यही वजह है कि उनकी मोहब्बत की दास्तान को आज भी याद किया जाता है। आज इस पोस्ट में हम कुछ ऐसी ही प्रेम कहानियों के बारे में जानेगें जिन्हें लोग आज भी याद करते हैं, तो चलिए जानते हैं :-

रानी रूपमति और बाज बहादुर

रानी रूपमती दिखने में बेहद खूबसूरत थी। उनकी खूबसूरती के साथ-साथ उनकी आवाज़ भी बहुत सुरीली और मनमोहक थी। उनकी इसी बात पर बाज बहादुर अपनी जान छिड़कते थे। वे एक दूसरे से बेपनाह मोहब्बत करते थे।

दोनों ने एक -दूसरे से शादी की। इसी दौरान अकबर ने मालवा पर चढ़ाई कर दी और युद्ध शुरू हो गया। इस युद्ध में बहादुर की हार हुई और उन्हें बंधी बना लिया गया। जब रुपमति को इस बात की खबर मिली तो उसने ज़हरीला हीरा खा कर आत्महत्या कर ली।

जब रानी की मौत की खबर अकबर तक पहुंची तो उसे काफी दुख हुआ और पछतावा हुआ। इसके बाद उसने बाज बहादुर को आज़ाद कर दिया।

बाज फिर वापस सारंगपुर गए और उन्होंने रानी की मजार पर सिर पटक-पटक कर अपने प्राण त्याग दिए थे। 1568 में सारंगपुर के पास अकबर ने मकबरे का निर्माण कराया जिसमें बाज बहादुर के मकबरे पर अकबर ने ‘आशिक-ए-सादिक’ और रूपमती की समाधि पर ‘शहीद-ए-वफा’ लिखवाया।

शाहजहां और मुमताज

इतिहास के पन्नों शाहजहां-मुमताज की प्रेम कहानी सबसे अनोखी है। इनकी मोहब्बत की निशानी आज भी ताजमहल के रूप में मौजूद है। करोड़ों प्रेमी इसकी कसमें खाते हैं।

मुगल बादशाह शाहजहां कि वैसे तो कई बेगमें थी, लेकिन मुमताज से उन्हें इतनी मोहब्बत थी कि उनकी मौत के बाद उन्होंने मुमताज की याद में ताजमहल बनवा दिया।

बाजीराव और मस्तानी

बाजीराव और मस्तानी की प्रेम कहानी पर फिल्म भी बनाई जा चुकी है जिसे लोगों ने काफी पसंद किया। 18वीं सदी की ये प्रेम कहानी इतिहास के पन्नों में अमर है।

बाजीराव एक ऐसा योद्धा था जो कोई भी युद्ध नहीं हारता था। इधर मुस्लिम महिला और हिंदू राजा की बेटी थी मस्तानी। बाजीराव मस्तानी से बेपनाह मोहब्बत करते थे। जबकि बाजीराव की पहले भी शादी हो चुकी थी।

बाजीराव की पहली पत्नी और उनके बच्चों ने भी मस्तानी को छोड़ने के लिए काफी कहा लेकिन इन सबके बावजूद बाजीराव ने किसी की बात नहीं मानी और उन्होंने शादी कर ली। कुछ समय के बाद मस्तानी ने बेटे शमशेर को जन्म दिया जिसका नाम शमशेर था।

जब बाजीराव ने मस्तानी के लिए अलग से महल भी बनवाया था जोकि पुणे में मस्तानी महल है। 1740 में बाजीराव किसी राजनैतिक काम से खरगोन, इंदौर के पास गए थे। वहां उन्हें अचानक तेज बुखार आया औरन उनकी मृत्यु हो गई।

पृथ्वीराज चौहान और रानी संयोगिता

यह कहानी है दिल्ली के सिंहासन पर बैठने वाले अंतिम हिंदू सम्राट पृथ्वीराज चौहान और उनकी पत्नी संयोगिता की है। संयोगिता पृथ्वीराज के परम शत्रु जयचंद की पुत्री थी।

दिल्ली के सिंहासन पर बैठने के बाद युवा संम्राट पृथ्वीराज की ख्याति दूर दूर तक फैल गयी थी। इधर राजकुमारी संयोगिता के रूप के भी खूब चर्चे थे। इन दोनों के बीच प्रेम की कड़ी बना एक चित्रकार। वह देश भर में घूम घूम कर पराक्रमी योद्धाओं के चित्र बनाता था।

इसी तरह पृथ्वीराज का चित्र भी कन्नौज जा पहुंचा। उनका चित्र देखने के बाद राजमहल की लड़कियों के बीच उनके ही चर्चे थे। ये चर्चाएं जब राजकुमारी संयोगिता तक पहुंची तो उनका भी मन हुआ कि पृथ्वीराज का चित्र देखा जाए और जब उन्होंने चित्र देेखा तो पहली ही नज़र में वह पृथ्वीराज पर अपना मन हार बैठीं।

इसी तरह इसी चित्रकार के द्वारा ही संयोगिता का चित्र पृथ्वीराज के पास पहुंचा और इधर भी वही हाल हुआ जो उधर संयोगिता का था। इसी बीच जयचंद ने संयोगिता का स्वयंवर रचने का फैसला किया। पृथ्वीराज को छोड़ उसने सभी राजकुमारों के पास न्यौता भेजा।

इधर पृथ्वीराज को नीचा दिखाने के लिए उसने उनके समान मूर्ति बना कर उसे द्वार पर द्वारपाल की भांति खड़ा कर दिया। संयोगिता जब अपना वर चुनने स्वयंवर में आई तो पृथ्वीराज को वहां ना देख कर निराश हो गयी लेकिन तभी उसकी नज़र द्वार पर पड़ी उनकी मूर्ति पर गयी।

सभी राजकुमारों को छांटती हुई संयोगिता पृथ्वीराज की मूर्ति के पास उसे वरमाला पहनाने पहुंच गयी। जैसे ही संयुक्ता ने उनकी मूर्ति के गले में वरमाला डालनी चाही वैसे ही पृथ्वीराज वहां पहुंच गये और वरमाला मूर्ति की जगह खुद उनके गले में पड़ गयी।

जयचंद ये देख कर गुस्से से लाल हो गया। वो संयोगिता को मारने तलवार ले कर आगे बढ़ा लेकिन उससे पहले ही पृथ्वीराज उसे लेकर वहां से निकल आए। दोनों एक तो हो गये लेकिन इस वजह से जयचंद के मन में पृथ्वीराज के लिए और ज़्यादा द्वेष भर गया।

हीर और रांझा

पंजाब के झंग शहर में, जाट परिवार में जन्मीं हीर, अमीर, खानदानी और बेहद खूबसूरत थी। वहीं रांझा चनाब नदी के किनारे बसे गांव तख्त हजारा के जाट परिवार में जन्मा था। उसका पूरा नाम था धीदो और रांझा जटोंक उपजाति थी। वह चार भाईयों में सबसे छोटा था वह।

राँझा चारो भाइयों में सबसे छोटा होने के कारण अपने पिता का बहुत लाडला था। राँझा के दुसरे भाई खेती में कड़ी मेहनत करते रहते थे और राँझा बाँसुरी बजाता रहता था। जिस कारण उसके भाई रांझा से नफ़रत करते थे।

पिता के देहांत भाई भाभियों ने रांझा के साथ बुरा व्यवहार करना शुरू कर दिया और राँझा घर छोड़कर दिया। भटकते हुए वह हीर के गांव झंग पहुंचा, जहां हीर को उसने पहली बार देखा। वहां वह हीर के घर उसने गाय-भैंसों को चराने का काम किया।

खाली समय में वह छांव में बैठकर बांसुरी बजाया करता था। हीर तो उसके मन को मोह ही चुकी थी, रांझे की बांसुरी सुन हीर भी मंत्रमुग्ध सी हो गई। अब हीर भी उसे पसंद करने लगी थी। दोनों के मन में एक दूसरे के लिए कब मोहब्बत पैदा हुई। इस बात का पता जब हीर के घर पर चला तो हीर की शादी जबरदस्ती एक सैदा खेड़ा नामक आदमी से कर दी गई।

यह सुन कर राँझा पूरी तरह टूट गया था अब रांझे के लिए यहां कुछ बचा न था। उसका मन अब दुनिया-जहान में लगता न था।

वह जोग यानि संन्यास लेने बाबा गोरखनाथ के डेरे, टिल्ला जोगियां चला गया। वह अपना कान छिदाकर बाबा का चेला बन गया। अब वह अलख-निरंजन कहते हुए पंजाब के अलग-अलग क्षेत्रों में घूमने लगा।

एक दिन अचानक वह हीर के ससुराल पहुंच गया। दोनों एक दुसरे को देखकर अपने प्रेम को रोक नहीं पाए और भागकर हीर के गांव आ गए।

हीर के मां-बाप उन्हें शादी करने की इजाजत तो दे दी, लेकिन हीर के चाचा को यह बिल्कुल बर्दाश्त नहीं था। जलन के कारण ही हीर का वह ईर्ष्यालु चाचा कैदो, हीर को लड्डू में जहर डालकर खिला देता है।

जब तक यह बात रांझा को पता चलती है, तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। वह इस दुख को बर्दाश्त नहीं कर पाया और उसने भी वही जहरीला लड्डू खा लिया, जिसे खाकर हीर की मौत हुई। हीर के साथ-साथ रांझा ने भी दम तोड़ दिया और इस प्रेमकहानी का अंत हो गया।

महेंद्र और मूमल

इन दोनों को आप राजस्थान के लैला मजनू भी कह सकते हैं। महेंद्र शादीशुदा थे ये जानते हुए भी खूबसूरत राजकुमारी मूमल ने अपना दिल महेंद्र को दे दिया। दोनों एक-दूसरे से बेपनाह मोहब्बत करने लगे।

धीरे-धीरे उनका प्रेम परवान चढ़ा। महेंद्र एक तेज रफ्तार वाले ऊंट पर सवार होकर रोज रात में जैसलमेर जाते और सुबह उमर कोट लौट आते। जब महेंद्र के परिवार को इसका पता चला तो उन्होंने ऊंट की टांग तोड़ दी।

लेकिन महेंद्र को वे फिर भी न रोक पाए। महेंद्र ने दूसरा ऊंट लिया और जैसलमेर के लिए निकल पड़े। परंतु वे गलती से जैसलमेर की बजाए बाड़मेर पहुंच गए। जब उन्हें अपनी गलती का पता चला तो वे वापस जैसलमेर की ओर चल पड़े।

इस दौरान मुमल, महेंद्र की प्रतिक्षा करती रही। मूमल का दिल बहलाने के लिए उसकी बहन ने आदमी की तरह वेश धरकर उनके साथ बिस्तर पर लेटी रही। जब महेंद्र महल में आए तो मुमल के साथ किसी आदमी को लेटा देख बेहद निराश हो गए।

वे बिन कुछ कहे अपनी लकड़ी की बेंत छोड़कर वहां से चले गए। मुमल ने महेंद्रा को मनाने को बहुत कोशिश की लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। महेंद्रा कभी वापिस लौट कर नहीं आया और मूमल उसका इंज़ार करती रह गई ।

सोनी-महिवाल

पंजाब में जन्में प्रेम के दो पंछी सोनी और महिवाल की प्रेम कहानी आज भी सच्ची प्रेमकहानी के रूप में जानी जाती है। कहा जाता है कि दोनों एक-दूसरे से बेइंतेहां मोहब्बत करते थे।

लेकिन सोनी के पिता ने जब उसकी जबरन शादी कर दी तो दीवाना महिवाल उसके गांव जा पहुंचा। यह शादी उनके बीच दरार न डाल सकी और दोनों मिलते रहे।

लेकिन बाद में जब दोनों की एक साथ मौत हो गई और दोनों हमेशा के लिए एक हो गए, तो वे सच्चे की एक मिसाल बन गए।

यह भी पढ़ें :-

Related Articles

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

15,988FansLike
0FollowersFollow
110FollowersFollow
- Advertisement -

MOST POPULAR