इस शुभ महूर्त में करें होलिका दहन, रखें इन बातों का ध्यान !!

होलिका दहन, हिन्दुओं का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसमें होली के एक दिन पहले यानी पूर्व सन्ध्या को होलिका का सांकेतिक रूप से दहन किया जाता है। यह दिन बुराई पर अच्छाई की जीत के पर्व के रूप में मनाया जाता है।

होली का त्यौहार हिंदू धर्म को मानने वाले लोगों के लिए विशेष होता हैं। यह प्रमुख पर्वो में से एक माना जाता हैं। हिंदू धर्म में होली त्यौहार दो दिवसीय होता हैं इसकी शुरुआत होलिका दहन से होती हैं।

यह पर्व फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता हैं। पुराणों में होलिका दहन और पूजा का खास महत्व होता है। इस दिन होली की पूजा करने से माता लक्ष्मी प्रसन्न हो जाती हैं।

ऐसी मान्यता है कि देवी लक्ष्मी के साथ सुख समृद्धि और खुशहाली भी आती हैं। तो आज हम आपको इस लेख में होलिका दहन के बारे में बताने जा रहे हैं तो आइए जानते हैं।

होलिका दहन 2024

24 मार्च को होलिका दहन है। इस दिन होलिका दहन के लिए शुभ मुहूर्त देर रात 11 बजकर 13 मिनट से लेकर 12 बजकर 27 मिनट तक है। ऐसे में होलिका दहन के लिए आपको कुल 1 घंटे 14 मिनट का समय मिलेगा।

विधि

होलिका दहन के बाद जल से अर्घ्य देना चाहिए। शुभ मुहूर्त में होलिका में स्वयं या परिवार के किसी वरिष्ठ सदस्य से आग जलाई जाती है।

आग में किसी भी फसल को सेंक लें और अगले दिन इसे सपरिवार ग्रहण करें। मान्यता है कि ऐसा करने से परिवार के सदस्यों को रागों से मुक्ति प्राप्त होती हैं।

कथा

प्राचीन काल में हिरण्यकश्यप नाम का एक असुर था। उसने कठिन तपस्या कर भगवान ब्रह्मा को प्रसन्न कर वरदान मांगा कि वह न किसी मनुष्य द्वारा नहीं मारा जा सके, न पशु, न दिन- रात में, न घर के अंदर न बाहर, न किसी अस्त्र और न किसी शस्त्र के प्रहार से।

इस वरदान के कारण वह अहंकारी बन गया था, वह खुद को भगवान समझने लगा था। वह चाहता था कि सब उसकी पूजा करें। उसने अपने राज्य में भगवान विष्णु की पूजा पर पाबंदी लगा दी थी।

हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्राद विष्णु जी का परम उपासक था। हिरण्यकश्यप अपने बेटे के द्वारा भगवान विष्णु की आराधना करने पर बेहद नाराज रहता था, ऐसे में उसने उसे मारने का फैसला लिया।

हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका से कहा कि वह अपनी गोद में प्रह्लाद को लेकर प्रज्जवलित आग में बैठ जाएं, क्योंकि होलिका को वरदान था कि वह अग्नि से नहीं जलेगी। जब होलिका ने ऐसा किया तो प्रह्लाद को कुछ नहीं हुआ और होलिका जलकर राख हो गई।

होलिका दहन के दिन क्या नहीं करना चाहिए

  • इस दिन सफेद खाद्य पदार्थ ग्रहण नहीं करना चाहिए।
  • इस दिन होलिका दहन के समय सिर ढककर ही पूजा करनी चाहिए।
  • नवविवाहित महिलाओं को होलिका दहन नहीं देखना चाहिए।
  • सास बहू को एक साथ मिलकर होलिका दहन नहीं देखना चाहिए।
  • इस दिन को भी शुभ या मांगलिक कार्य नहीं करना चाहिए।

 

होली पर इस चमत्कारी टोटके से घर में हमेशा के लिए ठहर जाएगी समृद्धि

वैसे तो हर त्यौहार का अपना एक रंग और महत्व होता है, लेकिन हरे, पीले, लाल, गुलाबी आदि असल रंगों का त्यौहार होली बहुत ही महत्वपूर्ण है। होली के आते ही वातावरण में एक मस्ती का आलम छा जाता है।

होली के दिन रंगों के माध्यम से सारी भिन्नताएं मिट जाती हैं और सब बस एक रंग के हो जाते हैं। हर किसी का तन-मन, प्रेम-उल्लास और उमंग के रंगों की फुहार से भर जाता है। आज हम आपको इस पोस्ट में एक टोटका बताने जा रहे हैं, जिससे घर में हमेशा के लिए समृद्धि ठहर जाती है।

कब है होली

हिंदू पंचांग के अनुसार, फाल्गुन पूर्णिमा 24 मार्च को सुबह 9 बजकर 54 मिनट से प्रारंभ हो रही है, जो 25 मार्च को दोपहर 12 बजकर 29 मिनट पर समाप्त हो रही है। ऐसे में होलिका दहन 24 मार्च और रंगों वाली होली 25 मार्च को खेली जाएगी।

क्यों मनाई जाती है होली

हिन्दू मान्यताओं के अनुसार हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु की भक्ति में लीन रहते थे। उनकी इस भक्ति से उनके पिता हिरण्यकश्यप नाखुश थे, इसीलिए उनके पिता ने अपने पुत्र को भगवान की भक्ति से हटाने के लिए कई प्रयास किए।

हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को यह वरदान प्राप्त था कि वह आग में नहीं जल सकेगी। एक बार हिरण्यकश्यप ने अपनी ही बहन होलिका के जरिए प्रह्लाद को जिंदा जला देने का आदेश दिया, लेकिन भगवान विष्णु ने अपने भक्त प्रह्लाद की रक्षा की।

जब होलिका प्रह्लाद को जलाने के लिए आग में बैठी, तो वह खुद जल कर मर गई। तभी से इस दिन को बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में जाना जाता है और हिन्दू धर्म में होलिका दहन की परंपरा प्रचलित है। होलिका दहन से अगले दिन दुलहंडी (होली) खेला जाता है।

होली का मटकी टोटा

जिस स्थान पर होली जलाई जाती रही हो, वहां पर होली जलने से एक दिन पहले की रात में एक मटकी में गाय का घी, तिल का तेल, गेहूं और ज्वार तथा एक तांबे का पैसा रखकर मटकी का मुंह बंद करके गाड़ आएं।

रात्रि में जब होली जल जाए, तब दूसरे दिन सुबह उसे उखाड़ लाएं। फिर यह सारी वस्तुएं पोटली में बांधकर जिस जगह रख दी जाएगी, वहां समृद्धि रूक जाएगी। घर में फिर किसी चीज की कभी कमी नहीं होगी।

होली पूजन विधि

लकड़ी और कंडों की होली के साथ घास लगाकर होलिका खड़ी करके उसका पूजन करने से पहले हाथ में असद, फूल, सुपारी, पैसा लेकर पूजन कर जल के साथ होलिका के पास छोड़ दें और अक्षत, चंदन, रोली, हल्दी, गुलाल, फूल तथा गूलरी की माला पहनाएं।

इसके बाद होलिका की तीन परिक्रमा करते हुए नारियल का गोला, गेहूं की बाली तथा चना को भूंज कर इसका प्रसाद सभी को वितरित करें। होली की पूजा करने से घर में सुख-शांति, समृद्धि, संतान प्राप्ति होती है।

अल्बर्ट आइंस्टीन जीवनी

0

कहा जाता है की अच्छी संगती और अच्छे विचार इंसान की प्रगति का द्वार खोल देते है। अल्बर्ट आइंस्टीन / Albert Einstein का हमेशा से यही मानना था की हम चाहे कोई भी छोटा काम ही क्यू ना कर रहे हो, हमें उस काम को पूरी सच्चाई और प्रमाणिकता के साथ करना चाहिये। तबी हम एक बुद्धिमान व्यक्ति बन सकते है।

अल्बर्ट आइंस्टीन का जीवन परिचय

क्र.म.   जीवन परिचय बिंदु             जीवन परिचय
1. पूरा नाम अल्बर्ट हेर्मन्न आइंस्टीन
2. जन्म 14 मार्च 1879
3. जन्म स्थान उल्म (जर्मनी)
4. निवास जर्मनी, इटली, स्विट्ज़रलैंड, ऑस्ट्रिया, बेल्जियम, यूनाइटेड किंगडम, यूनाइटेड स्टेट्स
5. पिता हेर्मन्न आइंस्टीन
6. माता पौलिन कोच
7. पत्नी मरिअक (पहली पत्नी)एलिसा लोवेन्न थाल (दूसरी पत्नी)
8. शिक्षा स्विट्ज़रलैंड, ज्यूरिच पॉलीटेक्निकल अकादमी
9. क्षेत्र भौतिकी
10. पुरस्कार भौतिकी का नॉबल पुरस्कार, मत्तयूक्की मैडल, कोपले मैडल, मैक्स प्लांक मैडल, शताब्दी के टाइम पर्सन
11. मृत्यु 18 अप्रैल 1955
पुरस्कार

1) भौतिका नोबेल पुरस्कार (1921)
2) Matteucci medal (1921)
3) Copley medal (1925)
4) Max planck medal (1929)
5) Time person of the century (1999)

सुविचार

Quote – दो चीजें अनंत हैं: ब्रह्माण्ड और मनुष्य कि मूर्खता; और मैं ब्रह्माण्ड के बारे में दृढ़ता से नहीं कह सकता।
Quote – जिस व्यक्ति ने कभी गलती नहीं कि उसने कभी कुछ नया करने की कोशिश नहीं की।
Quote – ईश्वर के सामने हम सभी एक बराबर ही बुद्धिमान हैं-और एक बराबर ही मूर्ख भी।

आइंस्टीन का दिमाग

आईंस्टाइन की मृत्यु के बाद उनके परिवार की इजाज़त के बिना उनका दिमाग निकाल लिया गया। यह कार्य Dr.Thomas Harvey द्वारा उनके दिमाग पर रिसर्च करने के लिए किया गया। 1975 में उनके बेटे Hans की आज्ञा से उनके दिमाग के 240 सैंपल कई वैज्ञानिकों के पास भेजे गए जिन्हें देखने के बाद उन्होने पाया कि उन्के दिमाग में cells की गिणती आम इन्सान से ज्यादा है|

एक पैथोलॉजिस्ट ने आइंन्स्टीन के शव परीक्षण के दौरान उनका दिमाग चुरा लिया था। उसके बाद वह 20-22 साल तक एक जार में बंद पढ़ा रहा।

जानिए कैसे दूसरों से अलग था अल्बर्ट आइंस्टीन का दिमाग

जर्मन मूल के अमरीकी वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन जीनियस थे। सन 1955 में उनकी मृत्यु के बाद से  ही अल्बर्ट आइंस्टीन का दिमाग वैज्ञानिकों के लिए शोध का विषय रहा है। आखिर आइंस्टीन के दिमाग में आखिर ऐसा क्या था कि जिसके चलते आइंस्टीन ने भौतिक विज्ञान की असाधारण खोजें कीं।

कुछ साल पहले हुए एक शोध में पता चला है कि आइंस्टीन के दिमाग का Cerebral Cortex नाम का हिस्सा एक औसत इंसान के मुकाबले में आश्चर्यजनक रूप से भिन्न था। Cerebral Cortex यानि प्रमस्तिष्क प्रांतस्था मानव के दिमाग का एक महत्वपूर्ण हिस्सा होता है जो सबसे जटिल दिमागी प्रक्रियाओं के लिए जिम्मेवार माना जाता है।

अल्बर्ट आइंस्टीन का दिमाग
लन्दन में प्रदर्शित अल्बर्ट आइंस्टीन का दिमाग

स्मरण-शक्ति, कार्य-योजना बनाना, चिंता और तनाव, भविष्य की योजनाएं बनाना, कल्पना करना आदि कार्यों के लिए दिमाग का यही हिस्सा जिम्मेवार है। यह भाग असाधारण और अजीबो-गरीब ढंग से निर्मित और विकसित होता है और दिमाग की सतह पर न्यूरॉन्स के संयोजन के लिए जिम्मेवार होता है। शोध करने वाले विज्ञानियों ने पाया कि आइंस्टीन का दिमाग इस संयोजन के लिहाज से बहुत अधिक जटिल था।

कहाँ है अल्बर्ट आइंस्टीन का दिमाग?

अल्बर्ट आइंस्टीन का दिमाग 46 टुकड़ों के रूप में अमेरिका के एक संग्रहालय में सुरक्षित रखा गया है। आइंस्टीन के दिमाग के यह काफी पतले टुकडे मूल रूप से डॉ। थॉमस हार्वे के पास सुरक्षित थे जिन्होंने वर्ष 1955 में महान वैज्ञानिक के निधन के बाद उनका पोस्टमार्टम किया था।

डॉ. हार्वे ने सामान्य जांच के लिए ये टुकड़े लिए थे लेकिन उन्होंने इन टुकड़ों को जांच के बाद नहीं लौटाया। मिथक है कि उन्होंने इसे चुराया लेकिन यह सच नहीं है।

डॉ. हार्वे के बाद आंइस्टीन के दिमाग के ये टुकड़े कई हाथों से होते हुए लूसी लूसी रोर्के एडम्स के पास पहुंचे। लूसी ने ही इन टुकड़ों को फिलाडेल्फिया के मुएटर म्यूजियम एंड हिस्टोरिकल मेडिकल लाइब्रेरी संग्रहालय को दान करने का निर्णय लिया। वहां जार में रखे आइंस्टीन के दिमाग को लोग देख सकते हैं।

जन्मदिन विशेष : अल्बर्ट आइंस्टीन से जुड़े कुछ रोचक तथ्य

  • “फादर ऑफ मॉडर्न फिजिक्स” कहे जाने वाले अल्बर्ट आइंस्टीन का जन्म 14 मार्च 1879 को जर्मनी में हुआ था।
  • अल्बर्ट आइंस्टीन का जन्म जर्मनी में वुटेमबर्ग के एक यहूदी परिवार में हुआ। आइंस्टीन के पिता एक इंजीनियर और सेल्समैन थे तथा उनकी मां पौलिन एक आइंस्टीन थी।
  • आइंस्टीन को दुनिया का सबसे महान वैज्ञानिक माना जाता है, लेकिन क्या आपको पता है कि वह बचपन में पढ़ने और लिखने में कमजोर और धीमे थे। एक बार वह यूनिवर्सिटी में दाखिले के लिए पहले एंट्रेंस एग्जाम में फेल हो गए थे।
  • मशहूर वैज्ञानिक आइंस्टीन का दिमाग एक डॉक्टर द्वारा चोरी कर लिया गया था, जिसने उनके शरीर के साथ परीक्षण किए। उस डॉक्टर ने आइंस्टीन का दिमाग 20 वर्षों तक एक जार में संभाल कर रखा था।
  • ऐल्बर्ट आइंस्टाइन ने कभी भी मोज़े नहीं पहने और न ही ज़िंदगी में कभी शेविंग क्रीम का उपयोग किया।
  • ज्यूरिख विश्वविद्यालय में उनको प्रोफेसर की नियुक्ति मिली और लोगों ने उन्हें महान वैज्ञानिक मानना शुरू कर दिया। इन्हें लोगों के द्वारा महान वैज्ञानिक का दर्जा दिया गया और यही से इनकी चर्चा सम्पूर्ण विश्व में होने लगी।
  • आइंस्टीन अपनी खराब याददाश्त के लिए बदनाम थे। अक्सर वह तारीखें, नाम और फोन नंबर भूल जाते थे।
  • 1952 में अमेरिका ने ऐल्बर्ट आइंस्टाइन को इजरायल का राष्ट्रपति बनने की पेशकश की, परन्तु आइंस्टीन ने यह पेशकश यह कहकर ठुकरा दी कि वह राजनीति के लिए नहीं बने।
  • आइंस्टीन अपने ऑटोग्राफ के लिए $5 और भाषण के लिए $1000 लेते थे, ये सारा पैसा वह गरीबों में दान कर देते थे।
  • एक बार आइंस्टीन से किसी ने प्रकाश की गति पूछी, तो वो कहते थे, मैं वो चीज़ याद नहीं रखता हूँ, जो कि किताबों में देख के बताई जाती है।
  • आइंस्टीन ने कई नए विचारों की खोज की, जिसमें से सापेक्षतावाद का सिद्धांत (Theory of Relativity; E=mc^2) बहुत प्रसिद्ध हैं।
  • सापेक्षता के सिद्धांत की मदद से आइंस्टीन ने यह अनुमान लगाया था की ब्रह्माण्ड के बढ़ने की कोई निश्चित दर नहीं है, ब्रह्माण्ड की सभी चीज़े एकदूसरे के सापेक्ष बढ़ रही हैं। इसलिए इसे सामान्य सापेक्षता का सिध्धांत कहाँ जाता है।

अंसार शेख की प्रेरक कहानी : सबसे कम उम्र के आईएएस अधिकारी

0

यूपीएससी की परीक्षा को भारत की सबसे चुनौतीपूर्ण परीक्षा माना जाता है। इसमें सफलता प्राप्त करना एक कठिन कार्य है जिसके लिए अटूट समर्पण, अपार बलिदान, अथक परिश्रम और दृढ़ निरंतरता की आवश्यकता होती है। यह यात्रा उन व्यक्तियों के लिए और भी कठिन हो जाती है जिनके पास वित्तीय बाधाओं के कारण आवश्यक अध्ययन सामग्री और संसाधनों तक पहुंच नहीं होती।

फिर भी, इन चुनौतियों के बीच, सभी बाधाओं के बावजूद जीत की कई कहानियाँ मौजूद हैं। ऐसी ही एक प्रेरक कहानी है आईएएस अंसार शेख की, जिनकी यात्रा कड़ी मेहनत और दृढ़ संकल्प की मिसाल है।

महाराष्ट्र के मराठवाड़ा जिले में एक साधारण परिवार में जन्मे शेख के पिता एक ऑटोरिक्शा चालक थे, जबकि उनकी मां खेतों में मेहनत करती थीं। उनकी पारिवारिक स्थिति अच्छी नहीं थी।

ansar-sheikh youngest ias officers

वित्तीय संघर्ष बढ़ने के साथ, उनके परिवार ने शिक्षा के बजाय कमाई को प्राथमिकता दी, जिससे उनके भाई को घर का खर्च चलाने के लिए स्कूली शिक्षा छोड़नी पड़ी। उनकी दो बहनों की शादी भी जल्दी कर दी गयी थी।

आर्थिक स्थिति ठीक न होने के चलते अंसार के पिता उनके स्कूल में उनका नाम कटवाने पहुंच गए थे। इसके बाद स्कूल में टीचरों द्वारा उनके पिता को बताया गया कि अंसार पढ़ाई में अच्छे हैं इसलिए उन्हें आगे बढ़ने का मौका दिया जाए, जिसके बाद उनके पिता इस पर राजी हो गए।

अंसार शेख पढ़ाई में शुरुआत से बहुत अच्छे थे। उन्होंने 12वीं क्लास 91 प्रतिशत अंकों के साथ वहीं ग्रेजुएशन 73 फीसदी अंको के साथ उत्तीर्ण किया। उन्होंने ग्रेजुएशन पुणे के फॉर्ग्यूसन कॉलेज से पॉलिटिकल साइंस विषय से पास किया।

उन्होंने यूपीएससी की तैयारी के लिए पहले एक वर्ष के लिए कोचिंग की और उसके बाद लगातार तीन सालों तक कड़ी मेहनत करके इसकी तैयारी की। इसके बाद उन्होंने यूपीएएसी परीक्षा में भाग लिया और अपने पहले ही प्रयास में 361 रैंक हासिल कर आईएएस बन गए।

अंसार शेख ने अपने पहले ही प्रयास में आईएएस बनने का सपना पूरा करने के साथ ही एक नया रिकॉर्ड भी अपने नाम दर्ज किया। वे देश के सबसे कम उम्र में आईएएस बनने वाले पहले व्यक्ति बन गए। उन्होंने यह उपलब्धि मात्र 21 वर्ष में हासिल की। शेख आमतौर पर प्रति दिन 10-12 घंटे पढ़ाई करते थे। मुख्य परीक्षा के लिए शेख़ ने प्रतिदिन 14-15 घंटे मेहनत की।

इन आसान उपायों से बढ़ाएं “स्मरण शक्ति”

बालक, किशोर, युवा, प्रौढ़, वृद्ध सबके लिए स्मरण शक्ति का बेहतर होना अति आवश्यक है क्योंकि व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास बेहतर स्मरण शक्ति पर ही निर्भर होता है।

लेकिन वर्तमान में विभिन्न कारणों से लोगों की स्मरण शक्ति कमजोर पड़ जाती है, जिसके फलस्वरूप इसका दुष्परिणाम विभिन्न रूपों में भुगतना पड़ता है। अतः सभी को स्मरण शक्ति को संतोषजनक बनाए रखने पर पूरा ध्यान देना चाहिए।

स्मरण शक्ति को कमजोर करने के लिए कई तरह के कारण व परिस्थितियां उत्तरदायी हो सकती हैं, जिनमें पौष्टिक आहार का अभाव, मानसिक विकार आदि प्रमुख हैं ।

आधुनिक परिवेश में पाश्चात्य जीवनशैली और आहार- विहार संबंधी त्रुटियां स्मरण शक्ति को कमजोर करती हैं। फास्ट फूड व डिब्बाबंद खाद्य पदार्थ विभिन्न रासायनिक पदार्थों से निर्मित होते हैं, जो शरीर में अम्लता की वृद्धि करके मस्तिष्क को हानि पहुंचाते हैं।

फास्ट फूड से शारीरिक स्वास्थ्य के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य को भी हानि पहुंचती है। स्मरण शक्ति बढ़ाने के लिए सेवन योग्य प्रमुख पदार्थ निम्नलिखित हैं।

सेब : सेब में फास्फोरस और लौह तत्व अधिक मात्रा में होता है। फास्फोरस मस्तिष्क को शक्ति प्रदान करता है और इससे स्मरण शक्ति प्रबल होती है। अतः स्मरण शक्ति में वृद्धि हेतु प्रतिदिन सेब का सेवन करना चाहिए।

तैलीय मछलियाँ : तैलीय मछलियाँ ओमेगा-3 फैटी एसिड का एक बड़ा स्रोत है, जो उन्हें याददाश्त के लिए अच्छे खाद्य पदार्थों में से एक बनाती है। मस्तिष्क का लगभग 60% भाग वसा से बना है, और मस्तिष्क की 50% वसा में ओमेगा-3 फैटी एसिड होता है। ओमेगा-3 मस्तिष्क और तंत्रिका कोशिकाओं के निर्माण में प्रमुख भूमिका निभाता है और याददाश्त को बेहतर बनाता है।

नट्स और बीज : तैलीय मछली की तरह, नट्स और बीजों में भी उच्च स्तर का ओमेगा-3 फैटी एसिड और एंटीऑक्सिडेंट होते हैं, जो उन्हें मस्तिष्क के लिए सबसे अच्छे खाद्य पदार्थों में से एक बनाते हैं। ये विटामिन ई से भरपूर होते हैं, जो बुढ़ापे में मस्तिष्क को ऑक्सीडेटिव तनाव से बचाने के लिए जाना जाता है।

अंडे : अंडे कई आवश्यक पोषक तत्व प्रदान करते हैं जो उन्हें याददाश्त के लिए उत्कृष्ट भोजन बनाते हैं। विटामिन बी-6, बी-12 और फोलिक एसिड से भरपूर, अंडे का नियमित सेवन आपके मस्तिष्क को सिकुड़ने से बचा सकता है। इसके अतिरिक्त, अंडे की जर्दी कोलीन का एक बड़ा स्रोत है, जो मस्तिष्क की कार्यप्रणाली और याददाश्त में सुधार के लिए जाना जाता है।

इसके आलावा इन फ्रूट्स का सेवन करें

गाजर : गाजर का जूस पीने से मानसिक कमजोरी दूर होती हैं और स्मरण शक्ति बढ़ती है।
अनार : अनार के जूस में मिश्री मिलाकर सेवन करें।
आम : आम खाने और दूध पीने से स्मरण शक्ति बेहतर होती है।
आंवला : आंवले का मुरब्बा और दूध पीने से स्मरण शक्ति में वृद्धि होती है।
नाशपाती : नाशपाती का सेवन करने से मस्तिष्क, हृदय और फेफड़े को बहुत शक्ति मिलती है।
बेलगिरी : बेलगिरी का मुरब्बा खाने से शारीरिक – मानसिक शक्ति बढ़ती है।
गुलाब : गुलाब के फूलों से निर्मित गुलकंद दस-बीस ग्राम की मात्रा में सेवन करके दूध पीएं।

इसके अलावा प्रतिदिन दो-तीन बादाम गिरी पीसकर उसमें पांच ग्राम अश्वगंधा का चूर्ण, शुद्ध घी और शहद मिलाकर सेवन करके ऊपर से दूध पीएं।

पंजाब केसरी से साभार

भगवान शिव के बारे में 35 रहस्यपूर्ण रोचक तथ्य

हिंदू धर्म में भगवान शिव त्रिदेवों (ब्रह्मा, विष्णु, शिव) में एक देव हैं। पार्वती के पति शंकर जिन्हें भोलेनाथ, आदिनाथ आदि कहा जाता है, देवों के देव महादेव माना जाता है।

शंकर जी को संहार का देवता कहा जाता है। शंंकर जी सौम्य आकृति एवं रौद्ररूप दोनों के लिए विख्यात हैं। अन्य देवों से माना गया है। सृष्टि की उत्पत्ति, स्थिति एवं संहार के अधिपति शिव हैं।

यहाँ प्रस्तुत है भगवान शिव के बारे में रोचक और रहस्य से भरपूर 35 तथ्य:

[adinserter block=”1″]

1. आदिनाथ शिव : – सर्वप्रथम शिव ने ही धरती पर जीवन के प्रचार-प्रसार का प्रयास किया इसलिए उन्हें ‘आदिदेव‘ भी कहा जाता है। ‘आदि‘ का अर्थ प्रारंभ। आदिनाथ होने के कारण उनका एक नाम ‘आदिश‘ भी है।

2. शिव के अस्त्र-शस्त्र : – शिव का धनुष पिनाक, चक्र भवरेंदु और सुदर्शन, अस्त्र पाशुपतास्त्र और शस्त्र त्रिशूल है। उक्त सभी का उन्होंने ही निर्माण किया था।

3. भगवान शिव का नाग : – शिव के गले में जो नाग लिपटा रहता है उसका नाम वासुकि है। वासुकि के बड़े भाई का नाम शेषनाग है।

4. शिव की अर्द्धांगिनी : – शिव की पहली पत्नी सती ने ही अगले जन्म में पार्वती के रूप में जन्म लिया और वही उमा, उर्मि, काली कही गई हैं।

[adinserter block=”1″]

5. शिव के पुत्र : – शिव के प्रमुख 6 पुत्र हैं- गणेश, कार्तिकेय, सुकेश, जलंधर, अयप्पा और भूमा। सभी के जन्म की कथा रोचक है।

6. शिव के शिष्य : – शिव के 7 शिष्य हैं जिन्हें प्रारंभिक सप्तऋषि माना गया है। इन ऋषियों ने ही शिव के ज्ञान को संपूर्ण धरती पर प्रचारित किया जिसके चलते भिन्न-भिन्न धर्म और संस्कृतियों की उत्पत्ति हुई। शिव ने ही गुरु और शिष्य परंपरा की शुरुआत की थी। शिव के शिष्य हैं- बृहस्पति, विशालाक्ष, शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज इसके अलावा 8वें गौरशिरस मुनि भी थे।

7. शिव के गण : – शिव के गणों में भैरव, वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, जय और विजय प्रमुख हैं। इसके अलावा, पिशाच, दैत्य और नाग-नागिन, पशुओं को भी शिव का गण माना जाता है।

8. शिव पंचायत : – भगवान सूर्य, गणपति, देवी, रुद्र और विष्णु ये शिव पंचायत कहलाते हैं।

9. शिव के द्वारपाल : – नंदी, स्कंद, रिटी, वृषभ, भृंगी, गणेश, उमा-महेश्वर और महाकाल

10. शिव पार्षद : – जिस तरह जय और विजय विष्णु के पार्षद हैं उसी तरह बाण, रावण, चंड, नंदी, भृंगी आदि शिव के पार्षद हैं।

11. सभी धर्मों का केंद्र शिव : – शिव की वेशभूषा ऐसी है कि प्रत्येक धर्म के लोग उनमें अपने प्रतीक ढूंढ सकते हैं। मुशरिक, यजीदी, साबिईन, सुबी, इब्राहीमी धर्मों में शिव के होने की छाप स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। शिव के शिष्यों से एक ऐसी परंपरा की शुरुआत हुई, जो आगे चलकर शैव, सिद्ध, नाथ, दिगंबर और सूफी संप्रदाय में वि‍भक्त हो गई।

[adinserter block=”1″]

12. बौद्ध साहित्य के मर्मज्ञ अंतरराष्ट्रीय : – ख्यातिप्राप्त विद्वान प्रोफेसर उपासक का मानना है कि शंकर ने ही बुद्ध के रूप में जन्म लिया था। उन्होंने पालि ग्रंथों में वर्णित 27 बुद्धों का उल्लेख करते हुए बताया कि इनमें बुद्ध के 3 नाम अतिप्राचीन हैं- तणंकर, शणंकर और मेघंकर

13. देवता और असुर दोनों के प्रिय शिव : – भगवान शिव को देवों के साथ असुर, दानव, राक्षस, पिशाच, गंधर्व, यक्ष आदि सभी पूजते हैं। वे रावण को भी वरदान देते हैं और राम को भी। उन्होंने भस्मासुर, शुक्राचार्य आदि कई असुरों को वरदान दिया था। शिव, सभी आदिवासी, वनवासी जाति, वर्ण, धर्म और समाज के सर्वोच्च देवता हैं।

14. शिव चिह्न : – वनवासी से लेकर सभी साधारण व्‍यक्ति जिस चिह्न की पूजा कर सकें, उस पत्‍थर के ढेले, बटिया को शिव का चिह्न माना जाता है। इसके अलावा रुद्राक्ष और त्रिशूल को भी शिव का चिह्न माना गया है। कुछ लोग डमरू और अर्द्ध चन्द्र को भी शिव का चिह्न मानते हैं, हालांकि ज्यादातर लोग शिवलिंग अर्थात शिव की ज्योति का पूजन करते हैं।

15. शिव की गुफा : – शिव ने भस्मासुर से बचने के लिए एक पहाड़ी में अपने त्रिशूल से एक गुफा बनाई और वे फिर उसी गुफा में छिप गए। वह गुफा जम्मू से 150 किलोमीटर दूर त्रिकूटा की पहाड़ियों पर है। दूसरी ओर भगवान शिव ने जहां पार्वती को अमृत ज्ञान दिया था वह गुफा ‘अमरनाथ गुफा‘ के नाम से प्रसिद्ध है।

16. शिव के पैरों के निशान : – श्रीपद- श्रीलंका में रतन द्वीप पहाड़ की चोटी पर स्थित श्रीपद नामक मंदिर में शिव के पैरों के निशान हैं। ये पदचिह्न 5 फुट 7 इंच लंबे और 2 फुट 6 इंच चौड़े हैं। इस स्थान को सिवानोलीपदम कहते हैं। कुछ लोग इसे आदम पीक कहते हैं।

रुद्र पद– तमिलनाडु के नागपट्टीनम जिले के थिरुवेंगडू क्षेत्र में श्रीस्वेदारण्येश्‍वर का मंदिर में शिव के पदचिह्न हैं जिसे ‘रुद्र पदम’ कहा जाता है। इसके अलावा थिरुवन्नामलाई में भी एक स्थान पर शिव के पदचिह्न हैं।

[adinserter block=”1″]

तेजपुर– असम के तेजपुर में ब्रह्मपुत्र नदी के पास स्थित रुद्रपद मंदिर में शिव के दाएं पैर का निशान है।

जागेश्वरउत्तराखंड के अल्मोड़ा से 36 किलोमीटर दूर जागेश्वर मंदिर की पहाड़ी से लगभग साढ़े 4 किलोमीटर दूर जंगल में भीम के पास शिव के पदचिह्न हैं। पांडवों को दर्शन देने से बचने के लिए उन्होंने अपना एक पैर यहां और दूसरा कैलाश में रखा था।

रांची– झारखंड के रांची रेलवे स्टेशन से 7 किलोमीटर की दूरी पर ‘रांची हिल’ पर शिवजी के पैरों के निशान हैं। इस स्थान को ‘पहाड़ी बाबा मंदिर‘ कहा जाता है।

17. शिव के अवतार : – वीरभद्र, पिप्पलाद, नंदी, भैरव, महेश, अश्वत्थामा, शरभावतार, गृहपति, दुर्वासा, हनुमान, वृषभ, यतिनाथ, कृष्णदर्शन, अवधूत, भिक्षुवर्य, सुरेश्वर, किरात, सुनटनर्तक, ब्रह्मचारी, यक्ष, वैश्यानाथ, द्विजेश्वर, हंसरूप, द्विज, नतेश्वर आदि हुए हैं। वेदों में रुद्रों का जिक्र है। रुद्र 11 बताए जाते हैं- कपाली, पिंगल, भीम, विरुपाक्ष, विलोहित, शास्ता, अजपाद, आपिर्बुध्य, शंभू, चण्ड तथा भव

18. शिव का विरोधाभासिक परिवार : – शिवपुत्र कार्तिकेय का वाहन मयूर है, जबकि शिव के गले में वासुकि नाग है। स्वभाव से मयूर और नाग आपस में दुश्मन हैं। इधर गणपति का वाहन चूहा है, जबकि सांप मूषकभक्षी जीव है। पार्वती का वाहन शेर है, लेकिन शिवजी का वाहन तो नंदी बैल है। इस विरोधाभास या वैचारिक भिन्नता के बावजूद परिवार में एकता है।

19. ति‍ब्बत स्थित कैलाश पर्वत पर उनका निवास है। जहां पर शिव विराजमान हैं उस पर्वत के ठीक नीचे पाताल लोक है जो भगवान विष्णु का स्थान है। शिव के आसन के ऊपर वायुमंडल के पार क्रमश: स्वर्ग लोक और फिर ब्रह्माजी का स्थान है।

20.शिव भक्त : – ब्रह्मा, विष्णु और सभी देवी-देवताओं सहित भगवान राम और कृष्ण भी शिव भक्त है। हरिवंश पुराण के अनुसार, कैलास पर्वत पर कृष्ण ने शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी। भगवान राम ने रामेश्वरम में शिवलिंग स्थापित कर उनकी पूजा-अर्चना की थी।

21.शिव ध्यान : – शिव की भक्ति हेतु शिव का ध्यान-पूजन किया जाता है। शिवलिंग को बिल्वपत्र चढ़ाकर शिवलिंग के समीप मंत्र जाप या ध्यान करने से मोक्ष का मार्ग पुष्ट होता है।

22.शिव मंत्र : – दो ही शिव के मंत्र हैं पहला- ॐ नम: शिवाय। दूसरा महामृत्युंजय मंत्र- ॐ ह्रौं जू सः। ॐ भूः भुवः स्वः। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्। स्वः भुवः भूः ॐ। सः जू ह्रौं ॐ ॥ है।

[adinserter block=”1″]

23.शिव व्रत और त्योहार : – सोमवार, प्रदोष और श्रावण मास में शिव व्रत रखे जाते हैं। शिवरात्रि और महाशिवरात्रि शिव का प्रमुख पर्व त्योहार है।

24. शिव प्रचारक : – भगवान शंकर की परंपरा को उनके शिष्यों बृहस्पति, विशालाक्ष (शिव), शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज, अगस्त्य मुनि, गौरशिरस मुनि, नंदी, कार्तिकेय, भैरवनाथ आदि ने आगे बढ़ाया। इसके अलावा वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, बाण, रावण, जय और विजय ने भी शैवपंथ का प्रचार किया। इस परंपरा में सबसे बड़ा नाम आदिगुरु भगवान दत्तात्रेय का आता है। दत्तात्रेय के बाद आदि शंकराचार्य, मत्स्येन्द्रनाथ और गुरु गुरुगोरखनाथ का नाम प्रमुखता से लिया जाता है।

25.शिव महिमा : – शिव ने कालकूट नामक विष पिया था जो अमृत मंथन के दौरान निकला था। शिव ने भस्मासुर जैसे कई असुरों को वरदान दिया था। शिव ने कामदेव को भस्म कर दिया था। शिव ने गणेश और राजा दक्ष के सिर को जोड़ दिया था। ब्रह्मा द्वारा छल किए जाने पर शिव ने ब्रह्मा का पांचवां सिर काट दिया था।

26.शैव परम्परा : – दसनामी, शाक्त, सिद्ध, दिगंबर, नाथ, लिंगायत, तमिल शैव, कालमुख शैव, कश्मीरी शैव, वीरशैव, नाग, लकुलीश, पाशुपत, कापालिक, कालदमन और महेश्वर सभी शैव परंपरा से हैं। चंद्रवंशी, सूर्यवंशी, अग्निवंशी और नागवंशी भी शिव की परंपरा से ही माने जाते हैं। भारत की असुर, रक्ष और आदिवासी जाति के आराध्य देव शिव ही हैं। शैव धर्म भारत के आदिवासियों का धर्म है।

27.शिव के प्रमुख नाम : – शिव के वैसे तो अनेक नाम हैं जिनमें 108 नामों का उल्लेख पुराणों में मिलता है लेकिन यहां प्रचलित नाम जानें- महेश, नीलकंठ, महादेव, महाकाल, शंकर, पशुपतिनाथ, गंगाधर, नटराज, त्रिनेत्र, भोलेनाथ, आदिदेव, आदिनाथ, त्रियंबक, त्रिलोकेश, जटाशंकर, जगदीश, प्रलयंकर, विश्वनाथ, विश्वेश्वर, हर, शिवशंभु, भूतनाथ और रुद्र

[adinserter block=”1″]

28.अमरनाथ के अमृत वचन : – शिव ने अपनी अर्धांगिनी पार्वती को मोक्ष हेतु अमरनाथ की गुफा में जो ज्ञान दिया उस ज्ञान की आज अनेकानेक शाखाएं हो चली हैं। वह ज्ञानयोग और तंत्र के मूल सूत्रों में शामिल है। ‘विज्ञान भैरव तंत्र‘ एक ऐसा ग्रंथ है, जिसमें भगवान शिव द्वारा पार्वती को बताए गए 112 ध्यान सूत्रों का संकलन है।

29.शिव ग्रंथ : – वेद और उपनिषद सहित विज्ञान भैरव तंत्र, शिव पुराण और शिव संहिता में शिव की संपूर्ण शिक्षा और दीक्षा समाई हुई है। तंत्र के अनेक ग्रंथों में उनकी शिक्षा का विस्तार हुआ है।

30.शिवलिंग : – वायु पुराण के अनुसार प्रलयकाल में समस्त सृष्टि जिसमें लीन हो जाती है और पुन: सृष्टिकाल में जिससे प्रकट होती है, उसे लिंग कहते हैं। इस प्रकार विश्व की संपूर्ण ऊर्जा ही लिंग की प्रतीक है। वस्तुत: यह संपूर्ण सृष्टि बिंदु-नाद स्वरूप है। बिंदु शक्ति है और नाद शिव। बिंदु अर्थात ऊर्जा और नाद अर्थात ध्वनि। यही दो संपूर्ण ब्रह्मांड का आधार है। इसी कारण प्रतीक स्वरूप शिवलिंग की पूजा-अर्चना है।

31.बारह ज्योतिर्लिंग : – सोमनाथ, मल्लिकार्जुन, महाकालेश्वर, ॐकारेश्वर, वैद्यनाथ, भीमशंकर, रामेश्वर, नागेश्वर, विश्वनाथजी, त्र्यम्बकेश्वर, केदारनाथ, घृष्णेश्वर। ज्योतिर्लिंग उत्पत्ति के संबंध में अनेकों मान्यताएं प्रचलित है। ज्योतिर्लिंग यानी ‘व्यापक ब्रह्मात्मलिंग‘ जिसका अर्थ है ‘व्यापक प्रकाश‘। जो शिवलिंग के बारह खंड हैं। शिवपुराण के अनुसार ब्रह्म, माया, जीव, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को ज्योतिर्लिंग या ज्योति पिंड कहा गया है।

दूसरी मान्यता अनुसार शिव पुराण के अनुसार प्राचीनकाल में आकाश से ज्‍योति पिंड पृथ्‍वी पर गिरे और उनसे थोड़ी देर के लिए प्रकाश फैल गया। इस तरह के अनेकों उल्का पिंड आकाश से धरती पर गिरे थे। भारत में गिरे अनेकों पिंडों में से प्रमुख बारह पिंड को ही ज्‍योतिर्लिंग में शामिल किया गया।

32.शिव का दर्शन : – शिव के जीवन और दर्शन को जो लोग यथार्थ दृष्टि से देखते हैं वे सही बुद्धि वाले और यथार्थ को पकड़ने वाले शिवभक्त हैं, क्योंकि शिव का दर्शन कहता है कि यथार्थ में जियो, वर्तमान में जियो, अपनी चित्तवृत्तियों से लड़ो मत, उन्हें अजनबी बनकर देखो और कल्पना का भी यथार्थ के लिए उपयोग करो। आइंस्टीन से पूर्व शिव ने ही कहा था कि कल्पना ज्ञान से ज्यादा महत्वपूर्ण है।

[adinserter block=”1″]

33.शिव और शंकर : – शिव का नाम शंकर के साथ जोड़ा जाता है। लोग कहते हैं- शिव, शंकर, भोलेनाथ। इस तरह अनजाने ही कई लोग शिव और शंकर को एक ही सत्ता के दो नाम बताते हैं। असल में, दोनों की प्रतिमाएं अलग-अलग आकृति की हैं। शंकर को हमेशा तपस्वी रूप में दिखाया जाता है। कई जगह तो शंकर को शिवलिंग का ध्यान करते हुए दिखाया गया है। अत: शिव और शंकर दो अलग अलग सत्ताएं है। हालांकि शंकर को भी शिवरूप माना गया है। माना जाता है कि महेष (नंदी) और महाकाल भगवान शंकर के द्वारपाल हैं। रुद्र देवता शंकर की पंचायत के सदस्य हैं।

34. देवों के देव महादेव : देवताओं की दैत्यों से प्रतिस्पर्धा चलती रहती थी। ऐसे में जब भी देवताओं पर घोर संकट आता था तो वे सभी देवाधिदेव महादेव के पास जाते थे। दैत्यों, राक्षसों सहित देवताओं ने भी शिव को कई बार चुनौती दी, लेकिन वे सभी परास्त होकर शिव के समक्ष झुक गए इसीलिए शिव हैं देवों के देव महादेव। वे दैत्यों, दानवों और भूतों के भी प्रिय भगवान हैं। वे राम को भी वरदान देते हैं और रावण को भी।

35. शिव हर काल में : – भगवान शिव ने हर काल में लोगों को दर्शन दिए हैं। राम के समय भी शिव थे। महाभारत काल में भी शिव थे और विक्रमादित्य के काल में भी शिव के दर्शन होने का उल्लेख मिलता है। भविष्य पुराण अनुसार राजा हर्षवर्धन को भी भगवान शिव ने दर्शन दिए थे,।

यह भी पढ़ें :-

जानिए क्यों मनाया जाता है “अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस” क्या है इस वर्ष की थीम?

0

“अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस” महिलाओं और पुरुषों के बीच समानता बनाने और महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करने के उद्देश्य से मनाया जाता है।

हर साल “अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस” ​​8 मार्च को दुनिया भर में मनाया जाता है। यह दिन महिला अधिकारों के आंदोलन का प्रतीक है और इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य महिलाओं के अधिकारों को बढ़ावा देना है।

“अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस” ​​थीम 2024

हर साल महिला दिवस किसी ना किसी थीम पर आधारित होता है। संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक इस बार अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2024 (IWD 2024) की थीम “महिलाओं में निवेश: प्रगति में तेजी लाएं यानी मजबूत भव‍िष्‍य के ल‍िए लैंग‍िक समानता जरूरी है।

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पहली बार 1996 में एक थीम के साथ मनाया गया था। उस वर्ष संयुक्त राष्ट्र की थीम सेलिब्रेटिंग द पास्ट, “प्लानिंग फॉर द फ्यूचर” थी।

शुरुआत

“अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस” ​​1908 में न्यूयॉर्क शहर महिला श्रम आंदोलन के साथ शुरू हुआ। जब लगभग 15,000 महिलाओं ने अपने अधिकारों की मांग के लिए सड़कों पर कदम रखा।

महिलाएं अपने काम के घंटे को कम करने, बेहतर वेतन और वोट के अधिकार की मांग कर रही थीं। महिलाओं के विरोध के लगभग एक साल बाद, सोशलिस्ट पार्टी ऑफ अमेरिका ने पहला राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने की घोषणा की। इसके बाद क्लारा ज़ेटकिन द्वारा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महिला दिवस मनाने का विचार आया।

क्लारा तब यूरोपीय देश डेनमार्क की राजधानी कोपेनहेगन में कामकाजी महिलाओं के एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में भाग ले रही थीं।

सम्मेलन में 17 देशों की लगभग 100 महिलाओं ने भाग लिया। इन सभी महिलाओं ने सर्वसम्मति से क्लारा के प्रस्ताव को मंजूरी दी।

क्लारा ज़ेटकिन ने 1910 में विश्व स्तर पर महिला दिवस मनाने का प्रस्ताव रखा। पहला अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 1911 में ऑस्ट्रिया, डेनमार्क, जर्मनी और स्विट्जरलैंड में मनाया गया था लेकिन 1975 में इसे औपचारिक रूप से मान्यता दी गई थी।

 उद्देश्य

“अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस” ​​मनाने का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य महिलाओं और पुरुषों के बीच समानता बनाने के लिए जागरूकता पैदा करना है। महिलाओं को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक भी किया जाना चाहिए।

आज भी कई देशों में महिलाओं को समानता का अधिकार नहीं है। शिक्षा और स्वास्थ्य के मामले में महिलाएं पिछड़ रही हैं। वहीं महिलाओं के खिलाफ हिंसा की घटनाएं बढ़ रही हैं।

यही नहीं नौकरी में तरक्की के क्षेत्र में भी वे रोजगार के मामले में पिछड़ रहे हैं। 19 वीं शताब्दी में जब महिला दिवस शुरू हुआ, तो महिलाओं ने मतदान का अधिकार प्राप्त किया।

इस प्रकार महिला दिवस देश और दुनिया में मनाया जाता है

“अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस” ​​दुनिया भर में विभिन्न तरीकों से मनाया जाता है। यह दिन अब समाज, राजनीति और अर्थव्यवस्था में महिलाओं की उन्नति के दिन के रूप में मनाया जाता है।

इस दिन भारत में महिलाओं पर आधारित विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। लोग महिलाओं को शुभकामनाएं और विभिन्न उपहार देते हैं। साथ ही इस अवसर पर नारी शक्ति पुरस्कार दिए जाते हैं।

यह पुरस्कार महिला और बाल विकास मंत्रालय द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। यह पुरस्कार व्यक्तियों, समूहों, गैर सरकारी संगठनों को दिया जाता है। यह पुरस्कार महिला सशक्तिकरण के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य के लिए दिया जाता है।

इस दिन रूस, चीन, कंबोडिया, नेपाल और जॉर्जिया जैसे कई देशों में छुट्टी होती है। चीन में कई महिलाओं को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर काम से आधे दिन की छुट्टी दी जाती है।

इसके अलावा इटली की राजधानी रोम में इस दिन महिलाओं को मिमोसा (चिमिमुई) फूल देने की प्रथा है। कुछ देशों में बच्चे इस दिन अपनी माताओं को उपहार देते हैं इसलिए कई देशों में इस दिन पुरुष अपनी पत्नियों, दोस्तों, माताओं और बहनों को उपहार देते हैं।

यह भी पढ़े :-

टेलीफोन के आविष्कार अलेक्जेंडर ग्राहम बेल के बारे में रोचक तथ्य

अलेक्जेंडर ग्राहम बेल एक महान वैज्ञानिक और आविष्कारक थे, जो टेलीफोन के विकास पर अपने अग्रणी काम के लिए जाने जाते थे। अलेक्जेंडर ग्राहम बेल का जन्म 3 मार्च 1847 को एडिनबर्ग में हुआ था। उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही अपने पिता से ही ग्रहण की थी। उनके पिता प्रोफेसर ऐलेक्ज़ैन्डर मेलविल बेल, एक ध्वन्यात्मक विशेषज्ञ थे और उनकी मां एलिजा ग्रेस बेल थीं। उनके दो भाई थे मेलविल जेम्स बेल और एडवर्ड चार्ल्स बेल, जिनकी मृत्यु तपेदिक से हो गई।

10 साल की उम्र में उनका नाम ‘ऐलेक्ज़ैन्डर बेल‘ था, उन्होंने अपने पिता से अपने दो भाइयों की तरह एक मध्य नाम रखने का अनुरोध किया था और उनके 11वें जन्मदिन उनके पिता ने उन्हें ‘ग्राहम’ नाम दिया। करीबी रिश्तेदार और दोस्त उन्हें ‘एलेक’ कहते थे।

alexander-graham-bell-facts

अपने पिता से शिक्षा ग्रहण करने के बाद उन्हें स्कॉटलैंड के एडिनबर्घ की रॉयल हाई स्कूल में डाला गया था लेकिन उन्होंने वह स्कूल छोड़ दिया। कुछ समय के बाद उनके अंदर पढ़ाई करने की तीव्र जाग्रति उत्पन्न हुई और तभी से वे घंटो तक पढ़ाई करते रहते थे।

16 साल की उम्र में, बेल ने भाषण के यांत्रिकी का अध्ययन करना शुरू किया। उन्होंने रॉयल हाई स्कूल और एडिनबर्ग विश्वविद्यालय में अपनी शिक्षा ग्रहण की। 1868 में बेल अपने परिवार के साथ कनाडा चले गए और उसके अगले वर्ष वह संयुक्त राज्य अमेरिका में जाकर बस गए।

यूएस में रहते हुए बेल ने ‘visible speech’ (भाषण ध्वनियों का प्रतिनिधित्व करने वाले प्रतीकों का एक सेट) नामक एक प्रणाली लागू की जिसे उनके पिता ने बधिर बच्चों को पढ़ाने के लिए विकसित किया था। 1872 में उन्होंने बोस्टन में स्कूल ऑफ वोकल फिजियोलॉजी एंड मैकेनिक्स ऑफ स्पीच खोला, जहां बधिर लोगों को बोलना सिखाया जाता था।

26 साल की उम्र में (1873 में ) वह बोस्टन यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ ऑरेटरी में वोकल फिजियोलॉजी और एलोक्यूशन के प्रोफेसर बन गए।

पढ़ाते समय बेल की मुलाकात एक बधिर छात्र मैबेल हब्बर्ड से हुई जिनसे उन्हें प्यार हो गया। इस जोड़े ने 11 जुलाई, 1877 को शादी कर ली। उनके चार बच्चे हुए, जिनमें दो बेटे भी शामिल थे, जिनकी मृत्यु बचपन में ही हो गई थी।

टेलीग्राफ से टेलीफोन तक का रास्ता

बेल ने जब टेलीफोन को इजाद करने के लिए विद्युत संकेतों के साथ प्रयोग करना शुरू किया, तो टेलीग्राफ लगभग 30 वर्षों तक संचार का एक स्थापित साधन था। हालांकि एक बेहद सफल प्रणाली, टेलीग्राफ मूल रूप से एक समय में एक संदेश प्राप्त करने और भेजने के लिए सीमित था।

बेल को ध्वनि की प्रकृति के बारे में व्यापक ज्ञान था, जिसके कारण उन्होंने एक ही समय में एक ही तार पर कई संदेश प्रसारित करने की संभावना पर खोज शुरू की।

Alexander-Graham-Bel

अन्य रोचक तथ्य

  • बेल ने 1873 और 1874 के बीच, थॉमस सैंडर्स और गार्डिनर हबर्ड के वित्तीय समर्थन के साथ “हार्मोनिक टेलीग्राफ” पर काम किया।
  • ग्राहम बेल को 1876 में सबसे पहले काम करने वाले टेलीफोन का आविष्कार करने और 1877 में बेल टेलीफोन कंपनी की स्थापना के लिए जाना जाता है।
  • बेल का नाम उनके नाना के नाम पर रखा गया था। उनके पिता और दादा इंग्लैंड में स्पीच डेवलपमेंट के क्षेत्र में अपने काम के लिए प्रसिद्ध थे, जिसे एलोक्यूशन कहा जाता था।
  • 12 साल की उम्र में बेल ने अपने दोस्त की पारिवारिक अनाज मिल के लिए डी-हॉकिंग मशीन का आविष्कार किया था।
  • बेल की मां और पत्नी दोनों बहरी थीं। इसी कारण ने उन्हें ध्वनिकी के साथ काम करने और तारों पर ध्वनि तरंगों को प्रसारित करने के लिए प्रभावित किया।
  • कहा जाता है कि बेल ने अपनी पहली कॉल अपनी प्रेमिका हेलो को किया था लेकिन यह गलत है। इनकी पत्‍नी का नाम मैबेल हब्बर्ड था। ग्राहम बेल ने अपनी पहली कॉल में अपने असिस्टेंट से हेलो नहीं, “यहां आओ, मैं तुम्हें कुछ दिखाना चाहता हूं,” कहा था। हेलो शब्द स्पैनिश के होला से बना है।
  • ग्राहम बेल बचपन से ही ध्वनि विज्ञान में गहरी दिलचस्पी रखते थे, इसलिए उन्होंने एक ऐसा पियानो बनाया, जिसकी मधुर आवाज काफी दूर तक सुनी जा सकती थी। कुछ समय तक वे स्पीच टेक्नोलॉजी विषय के टीचर भी रहे थे। इस दौरान भी उन्होंने अपना प्रयास जारी रखा और एक ऐसे यंत्र को बनाने में सफल हुए, जो न केवल म्यूजिकॅल नोट्स को भेजने में सक्षम था, बल्कि आर्टिकुलेट स्पीच भी दे सकता था। यही टेलीफोन का सबसे पुराना मॉडल था।
  • टेलीफोन की खोज करने के बाद जब लोगों ने इसका इस्तेमाल करना शुरू किया तो वे लोगों से सबसे पहले पूछते थे Are you there। वह ऐसा इसलिए करते थे ताकि वह जान सके की उनकी आवाज दूसरी ओर पहुंच रही है कि नहीं। हालांकि एक बार थॉमसन एडिशन ने Ahoy को गलत सुन लिया और साल 1877 में उन्होंने Hello बोलने का प्रस्ताव रखा।
  • इस प्रस्ताव को पास कराने के लिए थॉमस एडिशन ने पिट्सबर्ग की सेंट्रल डिस्ट्रिक्ट एंड प्रिंटिंग टेलीग्राफ कंपनी के अध्यक्ष टीबीए स्मिथ को पत्र लिख कर कहा कि टेलीफोन पर पहला शब्द हैलो बोला जाना चाहिए। जब उन्होंने पहली बार फोन किया तो सबसे पहले कहा हैलो। ये उन्हीं की देन है कि आज हम फोन उठाते ही हैलो बोलते हैं।
  • ग्राहम बेल ने 1880 में फोटोफोन नाम की एक डिवाइस बनाई। ये तकनीक प्रकाश की किरणों के ज़रिए आवाज़ को एक जगह से दूसरी जगह भेजती थी। आज की ऑप्टिकल फाइबर केबल ग्राहम बेल के सिद्धांतों पर काम करती है।
  • गोली लगने पर लोगों की जान बचाने के लिए बेल ने एक इलेक्ट्रोमैग्नेटिक मशीन ‘इंडक्शन बैलेंस’ बनाई। इस मशीन से उन्होंने कई पूर्व सैनिकों के जिस्म में छिपी गोलियों की सही लोकेशन पता लगाने में मदद की।
  • 1888 में बेल नेशनल ज्योग्राफिक सोसाइटी के संस्थापक सदस्यों में से एक थे और 1896 से 1904 तक उन्होंने इसके अध्यक्ष के रूप में कार्य किया।
  • अलेक्जेंडर ग्राहम बेल का निधन 2 अगस्त, 1922 को कनाडा के नोवा स्कोटिया में हुआ था तब एक मिनट के लिए अमेरिका और कनाडा में सभी टेलीफोन लाइन को निलंबित कर दिया गया।