75 का हुआ हावड़ा ब्रिज

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‘ गेटवे ऑफ़ कोलकाता’ के नाम से मशहूर हावड़ा ब्रिज को रबिन्द्र नाथ टैगोर के नाम रबिन्द्र सेतु कहा जाता है. देश विदेश के पर्यटकों के अलावा यह मशहूर फिल्मकारों को भी लुभाता रहा है. हाल ही में ब्रिज के 75 साल पूरे होने के मौके पर उसे रंग बिरंगी रौशनी से सजाया गया.वर्ष 1937 से 1942 के बीच बने इस ब्रिज को आम लगों के लिए 3 फरवरी, 1943 को खोला गया था लेकिन जापानी सेना की बमबारी के डर से उस दिन कोई बड़ा समारोह आयोजित नहीं किया गया था.

14 जून,1965 को इस ब्रिज का नाम बदलकर रबिन्द्र सेतु कर दिया गया था. 18वीं सदी में हुगली नदी पार करने के लिए कोई ब्रिज नहीं था. तब नावें ही नदी पार करने का एक मात्र जरिया था. बंगाल सरकार ने 1862 में ईस्ट इंडिया रेलवे कम्पनी इंजिनियर जार्ज टर्नबुल को हुगली नदी पर ब्रिज बनाने की संभावनाओं को पता लगाने का काम सौंपा था. वर्ष 1874 में 22 लाख रूपए की लागत से नदी पर पीपे का पुल बनाया गया जिसकी लम्बाई 1528 फुट और चौड़ाई 62 फुट थी.

वर्ष 1906 में हावड़ा स्टेशन बनने के बाद धीरे धीरे ट्रैफिक और लोगों की आवाजाही बढने पर इस पुल की जगह एक फ्लोटिंग ब्रिज बनाने का फ़ैसला हुआ लेकिन तब तक पहला विश्वयुद्ध शुरू हो गया था. नतीजतन काम ठप्प हो गया. वर्ष 1922 में न्यू हावड़ा ब्रिज कमीशन का गठन करने के कुछ वर्ष बाद इसके लिए निविदाएँ आमंत्रित की गई. बाद में इसके निर्माण का ज़िम्मा ब्रेथवेट, बर्न एंड जोसेफ कंस्ट्रक्शन कम्पनी को सौंपा गया.

इस कैंटरलीवर पुल को बनाने में 26 हज़ार 500 टन स्टील का इस्तेमाल किया गया. इसमें से 23 हजार 500 टन स्टील की सप्लाई टाटा स्टील ने की थी. बन कर तैयार होने के बाद यह दुनिया में अपनी तरह का तीसरा सबसे लंबा पुल था. पूरा पुल महज नदी के दोनों किनारों पर बने 280 फुट ऊँचे दो पायों पर टिका है. 2150 फुट लंबा यह पुल इंजीनियरिंग का एक नायाब नमूना है. इसके दोनों पायों के बीच की दूरी 1500 फुट है.

इसकी खासियत है कि इसके निर्माण में स्टील की प्लेटों को जोड़ने के लिए नट बोल्ट की बजाय धातु की बनी किलों यानी रिवेट्स का इस्तेमाल किया गया.अब इससे रोजाना लगभग सवा लाख वाहन और 5 लाख से ज्यादा पैदल यात्री गुजरते है. ब्रिज बनने के बाद इस पर पहली बार एक ट्रेन गुजरी थी परन्तु वर्ष 1993 में ट्रैफिक बड जाने के बाद  ट्रेनों की आवाजाही बंद कर दी गई.द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जापानी सेना ने इसे नष्ट करने के लिए भारी बमबारी की लेकिन संयोग से इसे कोई नुक्सान नही पहुंचा.

कोल्कता पोर्ट ट्रस्ट इस पुल कि देखरेख करने के साथ ही नियमित रूप से मुरम्मत भी करता है. इसके अलावा समय समय पर ब्रिज की स्थिति का पता लगाने के लिए विभिन्न शोध संस्थानों की ओर से अध्ययन भी कराए जाते है.

 

हमारे दिमाग में छुपा है सच्ची दोस्ती का राज

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शोध मैं वैज्ञानिकों को पता चला है कि मित्रों के दिमाग की गतिविधियां अनजान लोगों की तुलना में अधिक समान होती है. विशेषकर दिमाग के उन हिस्सों की गतिविधि एक जैसी थी जो ध्यान केन्द्रण, भावनाओं तथा भाषा से जुड़े थे.न्यू हेम्पशायर  के डार्टमाउथ कॉलेज के वैज्ञानिकों ने इस शोध के लिए 279 ग्रेजुएट छात्रों की दोस्ती तथा सामाजिक संबंधों का अध्ययन किया. उन्होंने उनके सामाजिक संबंधों का अध्ययन किया.उन्होंने उनके सामाजिक संबंधों के बारे में जाना. उनमे से 42 छात्रों को राजनीति , विज्ञानं, हास्य, संगीत आदि विविध विषयों से जुड़े वीडियो दिखाते हुए रक्त प्रवाह के आधार पर दिमागी गतिविधि को मापने वाले ‘फंक्शनल एम.आर.आई.’ स्कैनर से उनके मस्तिष्क की गतिविधियों पर नज़र रखी गई.

उन छात्रों के मस्तिष्क में हुए ‘न्यूरल रिस्पांस’ से पता चला कि उनमे से मित्रों की दिमागी गतिविधियां काफी हद तक एक समान थी जबकि अनजान लोगों की दिमागी गतिविधियां काफी अलग थी. एक समान गतिविधियों को दिमाग के विभिन्न हिस्सों में पाया गया जिनमे भावनात्मक प्रतिक्रिया, ध्यान केंद्रण से लेकर उच्च स्तर के तर्क-वितर्क से सम्बंधित दिमाग के हिस्से विशेष रूप से शामिल थे. वैज्ञानिकों को यह भी पता चला है कि फंक्शनल एम.आर.आई के नतीजों में समानता के आधार पर केवल दो लोगों के मित्र होने का ही पता नहीं लगाया जा सकता है, बल्कि यह भी बताया जा सकता है कि सामाजिक स्तर पर वे एक दुसरे से कितने जुदा है.

एक वैज्ञानिक थालिया व्हिट्ले बताती है,” इंसान एक सामाजिक प्राणी है जिनकी जिंदगियां अन्य सभी से जुडी रहती है. अगर हम समझना चाहते है कि इंसानी मस्तिष्क किस तरह से काम करता है तो हमें यह भी समझना होगा कि हमारे मस्तिष्क जोड़ों में किस तरह से काम करते है अर्थात किस तरह से वे एक दुसरे को आकार देते है”इससे पहले वैज्ञानिकों की इसी टीम ने पता लगाया था कि किसी परिचित को देखते ही दिमाग हमें बताता है कि वे कितने महत्वपूर्ण या प्रभावशाली है तथा हमारी सामाजिक मण्डली में उनकी क्या हैसियत है.

आगे यह टीम पता लगाना चाहती है कि दुनिया को एक जैसी नज़र से देखने वाले क्या स्वाभाविक या कुदरती तौर पर एक – दुसरे की और खींचे चले जाते है ? वे यह भी जानेंगे कि क्या एक दुसरे से अपने अनुभव साँझा करने के बाद मित्रों में ज्यादा समानताएं दिखने लगती है ?

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अजीबोगरीब – इस लड़की को लगातार सात बार काट चुके हैं सांप

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आज के युग में यह यकीन करना मुश्किल हो जाता है लेकिन कोई विश्वास करे या नहीं यह बिलकुल सच है कि बी.बी.एन. कालेज चकमोह में बी.ए. द्वितीय वर्ष में पढ़ने वाली प्रियंका को पिछले साल अप्रैल माह से लेकर बीते वीरवार तक अर्थात 6 माह में 7 बार सांप दंश का शिकार होना पड़ा है।

अप्रैल में काटा पहली बार

जी हां, सर्पदंश की पीड़िता प्रियंका व उसकी मौसी गायत्री देवी ने बताया कि प्रियंका को पिछले साल यानि 2017 में अप्रैल माह में सांप ने काटा. इस पर उसके परिवार ने हमीरपुर जिला के अंतर्गत बिझड़ी विकास खंड की पंचायत दलचेहड़ा, वाहल अर्जुन गांव के निवासी बालक राम को फोन किया। बालक राम ने फोन पर ही प्रियंका के शरीर में फैला सर्पविष तांत्रिक विद्या से निकाल दिया।

तूरकाल गाँव की रहने वाली है प्रियंका

प्रियंका पुत्री बलबीर सिंह निवासी तूरकाल पी.ओ. बुधान तहसील बंगाणा जिला ऊना की रहने वाली है तथा वर्तमान में वह अपनी मौसी गायत्री देवी के घर झबोला में रहती है तथा यहीं से बाबा बालक नाथ डिग्री कालेज चकमोह में बी.ए. द्वितीय वर्ष की पढ़ाई कर रही है।

स्कूल वाली गली में घेरा था 4 सांपों ने

सर्पदंश की सबसे ताजा घटना की जानकारी देते हुए प्रियंका ने बताया कि बीते 5 अक्तूबर को वह चकमोह कालेज से मौसी के घर झबोला आ रही थी। जब वह तलाई में पहुंचकर मौसी को दवाई लाने सी.एच.सी. अस्पताल गई तो अस्पताल के पास स्कूल वाली गली में उसको 4 सांपों ने घेर लिया। जब उसने भागने की कोशिश की तो 2 सांपों ने उसे काट लिया। सर्पदंश के साथ ही वह बस में घर के लिए बैठी तथा झबोला में उतर गई लेकिन उसके बाद उसे कुछ पता नहीं चला।

गाड़ी चालक ने पहुँचाया था तांत्रिक के पास

जब झबोला सहकारी सभा के पास सड़क पर कुछ महिलाएं एकत्रित थीं तो वहां से कार (एच.पी. 01बी-0456) लेकर गुजर रहे प्रदीप उर्फ  लक्की ने गाड़ी रोकी और प्रियंका से पूछा तो उसने धीरे से बताया कि उसे सांप ने काटा है। प्रियंका की बात सुनकर प्रदीप उसे सीधे सर्वविष तांत्रिक विद्या प्राप्त बालक राम निवासी वाहल अर्जुन के पास ले गया तथा उसकी मौसी गायत्री को घटना की जानकारी दी। प्रदीप ने बताया कि जब उसने प्रियंका को देखा तो उसके मुंह से सफेद झाग निकल रहा था। अब प्रियंका बिलकुल ठीक है और उसका सारा विष निकल गया है।

74 सर्पदंश पीड़ितों का विष निकाल चुके हैं बालकराम

उधर, इस बारे बालक राम से जब बात की गई तो उन्होंने बताया कि उसने वर्षों पूर्व सर्वविष अर्थात किसी भी जीव का विष निकालने की सिद्धि की हुई है तथा अकेले इस साल ही 5 अक्तूबर तक फोन और सीधे पीड़ित को सामने बिठाकर 74 सर्पदंश पीड़ितों का विष निकाल चुके हैं। उन्होंने बताया कि पी.जी.आई. चंडीगढ़ में दाखिल मरीजों का भी फोन पर सर्पविष उतारा है।

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दिल चुरा लेंगे ये दिल जैसे आकर वाले स्थान

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दिल चुरा लेंगे ये दिल जैसे आकर वाले स्थान

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दुनिया के उन सथानों की सैर करें जहां प्रकृति ने सबसे ज्यादा प्यार बरसाया है. ये कुछ ऐसे ख़ास दिल को छु लेने वाले स्थान है जिन्हें प्रकृति ने दिल जैसा आकार दे रखा है.

ग्लासेन्सुनजाक टापू (क्रोएशिया)

‘आईलैंड ऑफ लव’ तथा ‘लवर्स आइलैंड’ के नाम से मशहूर यह टापू प्राकृतिक रूप से दिल के खूबसूरत आकार है. एड्रियाटिक सागर में पासमन चैनल में स्थित यह टापू 2009 में चर्चा में आया था. हालांकि, इस टापू के दिल के आकार को निहारने का आनंद आकाश से ही लिया जा सकता है. टापू पर पर्यटकों के रहने आदि के लिए कोई विशेष बंदोबस्त भी नही है.

ब्लू होल(गुआम)

इस स्थान का आनंद लेने के लिए आपको गोताखोरी करनी पड़ेगी. हालांकि, इस स्थान को देखने के लिए गोताखोरी में महारत होना ज़रूरी नहीं है. इलाके में पर्यटकों के लिए कई गोताखोरी स्कूल है जहां के माहिर गोताखोर पर्यटकों को दिल के आकार के इस विशाल छिद्र तक सुरक्षित ले जाते है.चूना पत्थरों के बीच दिल के आकार का यह विशाल छिद्र है. इससे होकर नीचे मौजूद मूंगा चट्टानों तक रास्ता जाता है. यहाँ तरह तरह की मूंगा, मछलियों तथा अन्य सुंदर समुद्री जीवों को देखा जा सकता है.

विल्सन स्टंप (याकूशिमा, जापान)

कुछ लोगों को यह स्थान परिकथाओं जैसा प्रतीत होता है. जादुई अहसास वाला यह स्थान अनेक प्राकृतिक नजारों से भरपूर है. हालांकि, मोहब्बत में डूबे रहने वालों के लिए यहाँ का विलसन स्टम्प ही सबसे अधिक आकर्षित करता है. यह एक गिरे हुए सूगी वृक्ष की विशालका्य जड़ है जिसने दिल का आकार ले लियाहै. 44 मीटर ऊँचा यह वृक्ष करीब 400 वर्ष पूर्व गिरा था. इस शानदार स्थान तक पहुँचने में होने वाली थकान इसे देखते ही गायब हो जाती है.

हार्ट रीफ (ऑस्ट्रेलिया)

गोताखोरी, तैराकी तथा पानी के नीचे की दुनिया में रुचि रखने वालों के लिए यह एक अहम स्थान है. ग्रेट बैरियर रीफ जैसा नजारा कुदरत कहीं-कहीं ही दिखाती है. इनमे से एक मूंगा चटटान आश्चर्यजनक रूप से हुबहू दिल के आकार की है.मूंगा ने इसमें एकदम दिल का आकार बनाया है जिसके बीच शार्क,मंटा रे तथा हर रंग की मछलियों तैरती है. आमतौर पर इस चटटान को समुद्री जहाज में सवार होकर आकाश से निहारा जाता है. इस टूर के दौरान पर्यटकों को विश्व के सबसे खूबसूरत समुद्र तटो में से एक व्हाईट हैवन बीच तथा हार्डी लैगून की सैर भी करवाई जाती है.

हार्ट रॉक (ओशिमागुन, जापान)

पत्थर से बनी इस रोमांटिक आकृति को बसंत, सर्दियों तथा पतझड के मौसम में निम्न ज्वार के वक्त दिन में कुछ समय के दौरान ही देखा जा सकता है.जापान के कागोशिमा के पूर्वी तातसूगोचो तट पर स्थित पत्थरों के बीच दिल का सुंदर आकार बना हुआ है. अपनी अनूठी आकृति के कारण यह स्थान प्यार करने वालों के बीच पवित्र स्थान जैसी अहमियत हासिल कर चूका है. कहा जाता है कि जो भी इसे देख लेता है प्यार में उसका भाग्य चमक उठता है.

अनफि देल मर (स्पेन)

 

जो लोग अपने बच्चों के साथ वैलेंटाइन्स डे मनाना चाहते है उनके लिए यह स्थान एकदम उपयुक्त है. स्पेन में ग्रैन कनेरिया के दक्षिण में स्थित एन्फी देल मार एक खूबसूरत तट है, जहाँ की महीन रेत तथा शांत पानी किसी को भी तरोताजा कर देते है. यहाँ दिल के आकार का एक छोटा टापू है जहाँ बच्चों के साथ सैर के लिए सुंदर बगीचे भी बने है.

वाटकिंस ग्लेन स्टेट पार्क (अमेरिका)

न्यूयॉर्क राज्य में स्थित इस पार्क में प्यार में गिरफ्त लोगों के लिए एक आश्चर्य है- एक छोटा प्राकृतिक रूप से बना दिल के आकार का तलाब, जो इस स्थान पर मौजूद 19 जलप्रपातों के आकर्षण में चार चाँद लगाता है. इस स्थान पर अपने साथी के साथ स्नान किसी के लिए भी यादगार बन सकता है.

कैमरे ने बदली कूड़ा बीनने वाले लड़के की ज़िन्दगी

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क्या आपने कभी सोचा है कि एक कैमरे ने किसी की ज़िन्दगी बदल दी. 1999 में 11 वर्षीय एक लड़का पश्चिम बंगाल के पुरूलिया में अपने घर से भाग कर नई दिल्ली पहुंचा, जहाँ पेट भरने की मजबूरी में रेलवे स्टेशन पर कूडा बीनने का काम करने लगा. कुछ दिन पूर्व वही कॉन्फ़ेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री द्वारा आयोजित एक सम्मलेन में मेहमान वक्ता के रूप में उपस्थित था. वहां मौजूद उद्योगपतियों कॉर्पोरेट घरानों के दिग्गजों तथा अन्य प्रमुख लोगों के बीच उसने जीवन की अपनी अनूठी कहानी सुनाई.

एक वक्त ट्रेनों की पैंट्री कारों से बचा बचा खाना चुराने तथा बेघरों के लिए बने आश्रय स्थलों के ठंडे फर्श पर सोकर दिन गुजारने वाला वह लड़का विक्की रॉय आज अंतराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त डाक्यूमेन्ट्री फोटोग्राफर है. दिसम्बर में ही दिल्ली में उसकी फ़ोटोज़ की ताजा प्रदर्शनी लगी थी. इस प्रदर्शनी में पेश की गई उसकी फ़ोटोज़ दिखा रही थी कि किस तरह से विकास के नाम पर खूबसूरत पहाड़ों, नदियों तथा हिमाचल की वादियों को बर्बाद किया जा रहा है.

विक्की के पिता एक दर्जी थे जिनके लिए अपनी नाममात्र आय से 7 बच्चों को पालना संभव नहीं था. वह मुश्किल से ढाई वर्ष का था, जब उसे नाना नानी के घर भेज दिया गया था.29 वर्षीय विक्की बताता है,”मेरे नाना तथा मामा बोकारो स्टील प्लांट में काम करते थे. मेरे माता पिता ने सोचा कि उनके पास रह कर कम से कम मै स्कूल की पढाई तो पूरी कर ही लूँगा.” परंतु नए घर में अक्सर होने वाली पिटाई से वह बेहद परेशान रहने लगा. उसके अनुसार “एक रात उसने कुछ पैसे चुराए और दिल्ली को जाने वाली ट्रेन में चढ़ गया.

मैंने कुछ फ़िल्में देखी थी जिनके प्रभाव में मैंने सोचा कि एक बड़े शहर में जाने पर मेरी ज़िन्दगी बदल जाएगी.”नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर कूड़ा बीनने वालों के समूह के साथ उसने 6 महीने गुजारे. कुछ महीने बाद अजमेर गेट के एक ढाबे पर वह छोटे मोटे काम करने लगा क्यूंकि रेलवे स्टेशन पर बड़े खतरे थे. वह कहते है,”स्थानीय ठग और पुलिस अक्सर हमे पीटाकरते थे. हम बच्चों में आपस में मार पिटाई भी आम बात थी, जो छोटी सी बात पर भी ब्लेड से हमला कर देते थे.”

सन 2000 में एक सामाजिक कार्यकर्ता ने ढाबे पर विक्की को देखा उसे सलाम बालक ट्रस्ट के पास ले गया. 10वीं कक्षा की परीक्षा देने के बाद कैमरे ने उसे नई ज़िन्दगी दी.उसके टीचर ने उसे वोकेशनल कोर्स करने की सलाह दी क्यूंकि उसे केवल 48 प्रतिशत अंक मिले थे. उन्होंने उसे टी.वी मैकेनिक बनने को कहा परन्तु उसने फोटोग्राफी को चुना. उसका पहला कैमरा था, कोडक केबी 10 जिसकी उस वक़्त कीमत 500 रुपये से कम थी. 18 वर्ष का होने पर स्वंयसेवी संस्था ने उसे पोर्ट्रेट फोटोग्राफर अनय मान के असिस्टेंट की नौकरी दिलवा दी. विक्की के अनुसार अनय की देखरेख में फोटोग्राफी सीखना उसके साथ होने वाली सबसे अच्छी बात रही.

सन 2008 में अमेरिका की मेबैक फाउंडेशनने वर्ल्ड ट्रेड टावर के पुन्रनिर्माण की डॉक्यूमेंटेशन करने के लिए विक्की का चयन किया. इसके बाद सन 2014 में उसे एम.आई.टी इंडिया लैब फेलोशिप प्रदान किया. अपनी प्रदर्शनियों के बीच विक्की विश्व स्वस्थ्य संगठन तथा unicef के साथ मिल कर काम करने के अलावा बतौर पैशेवर फोटोग्राफर भी काम करता है. वक़्त मिलने पर वह परिवार से मिलने पुरूलिया जाता है. विक्की खुद को बचाने वाली स्वंयसेवी संस्था की फंड जुटाने में भी मदद करता है. उसने कहा,”मुझे अच्छे लोग मिले जिनकी वजह से सब अपने आप होता गया”

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सेहत के लिए खतरनाक हो सकती है “वाटर डाइटिंग”

 

सेहत के लिए खतरनाक हो सकती है “वाटर डाइटिंग”

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एक नई प्रकार की डाइट “वाटर डाइटिंग” आजकल बहुत प्रसिद्ध है. इस डाइट में केवल पानी, चाय तथा कॉफ़ी ली जाती है, और इसमें कुछ खाया पीया नहीं जाता.इस डाइट की मदद से कई युवा पतले होने की कोशिश करने लगे है. हालांकि “वाटर डाइटिंग” के नाम से पुकारी जाने वाली इस डाइट को जानकार वजन कम करने का बेहद खतरनाक तरीका बता रहे है.

“वाटर फास्टिंग” में वजन कम करने के लिए किसी भी तरह का भोजन नहीं किया जाता है और केवल तीन प्रकार के पेय ही पिए जाते है. हाल के दिनों में यह सोशल मीडिया पर ख़ासा लोकप्रिय हुआ है. कई लोगों ने तो हेश्ताग #waterfast के साथ वजन कम करने की अपनी प्रगति के बारे में जानकारी तथा फोटोज पोस्ट करनी शुरू कर दी ताकि अन्य लोग भी इसे आजमानी के लिए प्रेरित हो.

परंतु जानकारों ने चेतावनी दी है कि यह स्वस्थ के लिए बेहद खतरनाक है. इसकी तुलना “एनोरैक्सिया” (वजन बढने के भय से भोजन न करना) जैसी स्थिति से करते हुए वे इससे बचने की सलाह दे रहे है. एक विशेषज्ञ जोआन लैबिनेर कहते है,”यह’वाटर फास्टिंग’ शरीर के अंगों के लिए बेहद बुरा है. एनोरैक्सिया से ग्रस्त लोगों को हार्ट अटैक भी हो सकता है क्यूंकि उनका शरीर दिल से अपनी ज़रूरतें पूरी करने लगता है. शरीर को लगता है कि यह आपात स्थिति है और वह फैट जमा करने पर रोक लगा देता है तथा मांसपेशियों का इस्तेमाल जिंदा रहने के लिए करने लगता है.”

‘वाटर फास्टिंग’ ट्विटर पर भी खासा लोकप्रिय हुआ और कई लोगों ने दावा किया कि केवल पानी के सहारे जिंदा रहने से उनकी त्वचा पर गजब का असर हुआ है और वे कमाल के लगने लगे है. कुछ अन्य ने दावा किया कि उन्हें इससे पहले इतनी अच्छी नींद कभी नहीं आती थी.

हालांकि, एक डाइटर ने इसके विपरीत अपने अनुभव सांझे करते हुए बताया कि “वाटर फास्टिंग” छोड़ने\ पर उसे मजबूर होना पड़ा क्यूंकिकमजोरी की वजह से उसके लिए बिस्तर से उठना भी कठिन हो गया था.अमेरिकी शहर टोरंटो के एक गुर्दा विशेषज्ञ जासन फंग के अनुसार “वाटर फास्टिंग” केवल उन लोगों के लिए उपयुक्त हो सकता है जो बहुत मोटे हों अथवा टाइप-2 डायबिटीज से ग्रस्त हों अथवा टाइप-2 डायबिटीज़ से ग्रस्त हों, वह भी किसी डॉक्टर की निगरानी में.

उनके अनुसार,”यह किया जा सकता है, लोग इसे कर रहे है परन्तु इसे सुरक्षित ढंग से करना चाहिए.  मुझे नहीं लगता कि यह सुरक्षित है. हाँ यदि आप बहुत ज्यादा मोटे है तो यह सबसे खतरनाक काम नहीं है लेकिन पतले या सुडौल शरीर वालों के लिए यह ज्यादा खतरनाक है”

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एनेस्थीसिया से पौधे भी हो जाते है बेहोश

एनेस्थीसिया से पौधे भी हो जाते है बेहोश

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एनेस्थीसिया लेकर पौधे भी जानवरों तथा इंसानों जैसी ही प्रतिक्रिया करते है. एक शोध में इस बात का पता चला है और भविष्य में एनैस्थटिक्स प्रभावों के बारे में जानने के लिए पौधों पर ही प्रयोग करने की संभावनाएं भी देखी जाने लगी है.

ईथर गैस सूंघने के बाद ऑपरेशन के दौरान रोगियों को दर्द का एहसास ना होने की खोज के बाद 19वीं सदी में सर्वप्रथम एनेस्थीसिया का इस्तेमाल शुरू हुआ था. तब से एनेस्थीसिया में सहायक कई प्रकार के रसायनों का पता लगाया जा चूका है.

ताजा शोध को जर्मनी की यूनिवर्सिटी ऑफ बोन के विशेषज्ञ फ्रेंटीसेक बालुस्का के नेतृत्व में किया गया है. इसमें देखने को मिला है कि एनैस्थटिक्स के सम्पर्क में आने के बाद छुईमुई व् मटर के पौधे छूने पर होने वाली हरकतें नहीं कर सके.

कीटों को तुरंत पकड़ने में सक्षम “वीनस फ्लाई ट्रैप्स” पौधे एनैस्थटिक्स के प्रभाव में आने के बाद अपने इलेक्ट्रिकल सिग्नल पैदा करने में अक्षम हो गए तथा मखियों को पकड़ने के लिए वे अपने ढक्कन जैसे पत्तों को बंद नहीं कर सके.

“वीनस फ्लाई ट्रैप्स” में ऐसा होने की वजह डाईथील ईथर एनेस्थीसिया दिए जाने से किसी भी तरह की हरकत करने की क्षमता खो देना पाया गया.

इसी तरह के एनेस्थीसिया के कारण मटर के छोटे छोटे पौधों में स्वत: होने वाली गतिविधियाँ भी बंद हो गई. इस शोध से साबित होता है कि पौधों पर भी एनैस्थटिक्स का असर ठीक जानवरों तथा इंसानों जैसा ही होता है यानी वह भी इसके प्रभाव से बेहोश हो जाते है.

हमारा दिमाग हो रहा है गोल

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वैज्ञानिकों ने होमो सेपियन्स के जीवाश्म के 20 नमूनों का विश्लेषण करने के बाद कुछ नतीजे निकले है. कार्बन डेटिंग के आधार पर इन नमूनों की आयु3 लाख वर्ष बताई गई है. दिमाग का आकार तो लगभग उतना ही है लेकिन उसकी आकृति बदल गई है. गत 1 साल से लेकर 35000 वर्ष के बीच के दौर में बदलाव हुए जिसके नतीजे में इंसान का दिमाग धीरे धीरे बदलते हुए मौजूदा आकृति तक पहुंचा है.

जर्मनी के मार्क्स प्लांक इंस्टिट्यूट ऑफ़ एवाल्युशनरी एंथ्रोपोलाजी की मानवविज्ञानी सिमोन नायबावर का कहना है कि दिमाग के गोल होने की वजह है पार्शिवक हिस्से और अनुमस्तिष्क यानी सेरिबैलम का उभरना. मशहूर जर्नल साइंस एडवांसेज में इसके बारे में एक रिसर्च का नतीजा छपा है. इस रिसर्च का नेतृत्व  प्रोफेसर सिमोन ने ही किया है. सिमोन बताते है,”पार्शीवक हिस्सा एक महत्वपूर्ण धुरी है जहां मस्तिष्क के अलग अलग हिस्से मिलते है और यह अनुकूलन, ध्यान जैसे अन्य कई अहम् कामों से जुडा है.”

सेरिबैलम का संबंध संचालन से जुड़े कामों जैसे गतिविधियों का संयोजन और संतुलन के साथ ही सक्रिय याददाश्त, भाषा, सामाजिक अनुभूति और भावनात्मक प्रक्रियाओं से है. सिमोन का कहना है कि दिमाग आज के इंसान में जन्म के बाद के कुछ महीनों में गोलाकार रूप से विकसित होता दिखता है.इंसान के दिमाग का मौजूदा आकार में परिवर्तन पुरातात्विक प्रमाणो से जो परिवर्तन के संकेत मिलते है उसके अनुरूप ही है. इसके अनुसार यह परिवर्तन 40 से 50 हज़ार वर्ष पहले हुए. इन्हें इंसानी बर्तावके आधुनिकीकरण का सम्पूर्ण समूह कहा जाता है. इंसान के दिमाग में ठीक उस वक्त परिवर्तन शुरू हुआ जब वह नए परिवेश में नई चीज़ें सीख रहा था.

इनमे जोड़ तोड़ करना और काल्पनिक विचार जैसे कि कला, रचना, सजावट, रंगों का इस्तेमाल,मृत लोगोंका अंतिम संस्कार, कई उपकरणों वाले जटिल यंत्र बनाना, हड्डियों किकलाकृतियां आदी शामिल थे. वैज्ञानिक बताते है कि अल्ज़ाइमर्स या इसके जैसी दूसरी दिमेंसिया वाली बीमारियाँ होने से दशकों पहले ही दिमाग में खतरनाक बदलाव आने लगते है. तभी लोगों के पास अपने दिमाग की सेहत सुधारने का मौका होता है.

इससे पहले होमो सेपियन्स का सबसे पुराना जीवाश्म मोरक्को में मिला था और उसकी उम्र 3 लाख वर्ष बताई गई. इसके साथ ही इथियोपिया से भी एक जीवाश्म मिला जिसकी उम्र 1,95,000 वर्ष थी.इन सबके दिमाग लम्बे थे,निएंडरथाल मानव की तरह. निएंडरथाल हमारे सबसे नजदीकी पूर्वज है जो करीब 10 हज़ार वर्ष पहले लुप्त हो गए. इसके बाद के इंसान का दिमाग गोल होता चला गया. रिसर्च दिखाती है कि होमो सेपियन्स एक विकासशील जीव है जिसकी अफ्रीकी जड़ें काफी गहरी है और जिसमे लम्बे समय से लगातार परिवर्तन h रहे है.

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कैसा है आपका हंगर मीटर

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आपकी दिनचर्या का आपके हंगर मीटर पर बहुत असर पड़ता है. जैसे आप डिनर करते वक़्त टी.वी. देखते है.ड्राइविंग करते वक़्त आप गाने सुनते है. इंटरनेट पर ब्राउज़िंग करते वक़्त फ़ोन पर चैटिंग करते है. क्यूंकि ज़िन्दगी अत्यधिक व्यस्त होती जा रही है इसलिए दिन भर में आप जो प्राप्त करना चाहते है उसके लिए मल्टीटास्किंग यानी एक साथ कई काम करने की योग्यता की ज़रुरत लगातार बदती जा रही है. इसके परिणामस्वरूप आप में से अधिकतर के लिए सचेत रहना वास्तविकता के विपरीत एक सूक्षम आदर्श बन गया है. हालांकि सचेत रहने को कमी के चलते कई भावनात्मक तथा मानसिक समस्याएं पैदा होती है. ऐसे में माईन्द्फुल ईटिंग यानी सावधान रह कर खाना बहुत ज़रूरी है.

आज कल भोजन सिर्फ स्वाद तक ही सीमित नहीं रेह गया है. आप भोजन का आनंद अपनी पांचों इन्द्रियों का पूरी तरह से प्रयोग करके लेने में सक्षम है. आप लगातार इस बात का ध्यान रखते है कि आपका शरीर आपकी भूख तथा संतुष्टि के बारे में आप क्या बताता है. अपने हंगर मीटर को सही रखने के लिए निम्र बातों का ध्यान रखना ज़रूरी है. ज़िन्दगी में खाने से सम्बंधित बहुत सी हिदायतें दी जाती है, जैसे लाल मीट का सेवन नहीं करना चाहिए. शाम 7 बजे के बाद कार्बोहाइड्रेट्स का सेवन न करें और हर दो घंटे बाद कुछ न कुछ खाएं. इन सब बातों से लोगों का अपने शरीर की भूख और संतुष्टि के संकेतों से संपर्क टूट गया है.

हम एक ऐसी ऐसी पीडी में रहते है जो कैलोरीज की गिनती पर ही निर्भर है इसलिए हम जो खो जाते है और जिस तरह खाते है इन दोनों बातों के संबंध में नियम तथा संख्या महत्त्वपूर्ण रहती है न कि हमारी जागरूकता.हमें नहीं पता कि हमें अपने शरीर पर कैसे विश्वास करना चाहिए और भावनात्मक उत्तेजनाओं द्वारा शारीरिक भूख तथा संतुष्टि में फर्क करना भी हम नहीं जानते. हालांकि हम ऐसी क्षमता लेकर पैदा होते है, परन्तु कंडीशनिंग के चलते हम यह सम्पर्क गवां बैठते है. बचों को प्राकृतिक तौर पर पता होता है. कि जब भूख लगे तो उन्हें खाना है और जब पेट भर जाए तो खाना रोक देना है.

हम में से प्रत्येक के पास पहले ही वजन कम करने का सर्वाधिक प्रभावी उपकरण यानी हंगर स्केल है. इसमें एक से 10 तक लेवल होते है और यह हमारे शरीर की प्राकृतिक ज़रूरतों से हमें पुन: परिचित करवाने में सहायक होता है. इसकी सहायता से हमें पता चलता है कि हमें कितना भोजन करना चाहिए, तलब तथा वास्तविक भूख के मध्य फर्क करना भी यह टूल हमें सिखाता है. साथ ही यह अधिक खाने के खतरे का भी रोकता है. इस टूल के विभिन्न लेवल इस प्रकार है:-

Level 1:- खाली पेट– आपको बेहोशी या बिमारी का एहसास हो सकता है, क्यूंकि आप भूखे है और आपने जैसे कई दिनों से कुछ भी खाया नहीं है.

Level 2:- अत्यधिक भूख– आपका पेट बहुत परेशानी वाली आवस्था में है. आप आसानी से खीझ उठते है.

Level 3:- आप भूखे है– आपको उर्जा की कमी महसूस हो रही है और आप हल्का सा असुखद है.

Level 4:- आप हल्के से भूखे है. आपको भूख महसूस होती है. परंतु इसके संकेत तथा लक्षणों को आप काबु

Level 5:- न्यूट्रल– आपको भूख तो महसूस हो सकती है, परन्तु आप खाने से पहले कुछ देर इंतज़ार कर सकते है.

Level 6:- लगभग संतुष्ट – आप काबु में रेह कर खा सकते है.

Level 7:- आप आरामदायक ढंग से संतुष्ट है– खाना बंद कर दें या आप अभी खाना शुरू ना करें.

Level 8:- अत्यधिक भरा हुआ पेट– आप बहुत से निवाले खा चुके है.

Level 9:- असुखद ढंग से भरा हुआ पेट – आपको लगता है कि आपको अफारा हो गया है.

Level 10:- आपने ठूंस ठूंस कर खाया है– आप हिल तक नहीं सकते और भोजन पर दोबारा नज़र डालने की आपकी इच्छा नहीं है

अपने हंगर स्केल को लगातार चैक करते रहे जिससे आप इस बात में सक्षम हो सकें कि आपने खाना कब शुरू करना है और कब समाप्त. हमें भूख का एक न्यूट्रल लेवल प्राप्त करना चाहिए जो इस स्केल के मध्य में यानी level 3 तथा level 7 के बीच आता है. इसमें आपको लेवल 3 पर खाना शुरू करना चहिए और level 6 या 7 महसूस होते ही खाना रोक देना चाहिए. हमारी ज़िन्दगी स्थिर यानी निष्क्रिय है और हमारी जीवनशैली में लगातार परिवर्तन की ज़रुरत होती है. इसी तरह हमारे हंगर लेवल में भी परिवर्तन होगा. यदि हम अपने हंगर स्केल पर ध्यान देंगे तो हमारा वजन स्वास्थकर ढंग से चलेगा. कई मामलों में आपके शरीर को सही मात्रा में कितना भोजन चाहिए, इस बात को समझने में कई दिन या सप्ताह लग सकते है. यदि आप खुद की भोजन का चुनाव करने की स्वतंत्रताविकसित कर लेते है और आपको पता है कि आप कितना खाएंगे तो इससे आपका अपने शरीर तथा अपने भोजन के मध्य एक बेहतर रिश्ता बनाने में मदद मिलेगी.

 

 

हरिवंश राय बच्चन की “मधुशाला”

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हरिवंश राय बच्चन एक जाना माना नाम है, जिन्हें परिचय की ज़रुरत नहीं है. उनके लेखन को हिंदी साहित्य में एक मील का पत्थर माना जाता है. उन्होंने कुछ महान कविताएं लिखीं, जो हमारे दिल में हमेशा रहेंगी. “मधुशाला” अपने उनमे से एक है.

उन्हें हिंदी भाषा को समृद्ध करने का श्रेय दिया जाता है,और कुछ ही लोग जानते हैं कि हिंदी उनकी एकमात्र विशेषता नहीं है। वह पहले भारतीय है जो पीएचडी थे।उन्होंने कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में, पीएचडी की थी.वर्ष 2003 में हरिवंश राय बच्चन ने आखिरी सांस ली. वह अपने शब्द हमारे लिए पीछे छोड़कर गए है,जो आज तक हमें मंत्रमुग्ध करते हैं। यह है उनकी सबसे लोकप्रिय कविता.

मशुशाला

मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला,
प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊँगा प्याला,
पहले भोग लगा लूँ तेरा फिर प्रसाद जग पाएगा,
सबसे पहले तेरा स्वागत करती मेरी मधुशाला।

प्यास तुझे तो, विश्व तपाकर पूर्ण निकालूँगा हाला,
एक पाँव से साकी बनकर नाचूँगा लेकर प्याला,
जीवन की मधुता तो तेरे ऊपर कब का वार चुका,
आज निछावर कर दूँगा मैं तुझ पर जग की मधुशाला।

प्रियतम, तू मेरी हाला है, मैं तेरा प्यासा प्याला,
अपने को मुझमें भरकर तू बनता है पीनेवाला,
मैं तुझको छक छलका करता, मस्त मुझे पी तू होता,
एक दूसरे की हम दोनों आज परस्पर मधुशाला।

भावुकता अंगूर लता से खींच कल्पना की हाला,
कवि साकी बनकर आया है भरकर कविता का प्याला,
कभी न कण-भर खाली होगा लाख पिएँ, दो लाख पिएँ!
पाठकगण हैं पीनेवाले, पुस्तक मेरी मधुशाला।

मधुर भावनाओं की सुमधुर नित्य बनाता हूँ हाला,
भरता हूँ इस मधु से अपने अंतर का प्यासा प्याला,
उठा कल्पना के हाथों से स्वयं उसे पी जाता हूँ,
अपने ही में हूँ मैं साकी, पीनेवाला, मधुशाला।

मदिरालय जाने को घर से चलता है पीनेवला,
‘किस पथ से जाऊँ?’ असमंजस में है वह भोलाभाला,
अलग-अलग पथ बतलाते सब पर मैं यह बतलाता हूँ –
‘राह पकड़ तू एक चला चल, पा जाएगा मधुशाला।

चलने ही चलने में कितना जीवन, हाय, बिता डाला!
‘दूर अभी है’, पर, कहता है हर पथ बतलानेवाला,
हिम्मत है न बढूँ आगे को साहस है न फिरुँ पीछे,
किंकर्तव्यविमूढ़ मुझे कर दूर खड़ी है मधुशाला।

मुख से तू अविरत कहता जा मधु, मदिरा, मादक हाला,
हाथों में अनुभव करता जा एक ललित कल्पित प्याला,
ध्यान किए जा मन में सुमधुर सुखकर, सुंदर साकी का,
और बढ़ा चल, पथिक, न तुझको दूर लगेगी मधुशाला।

मदिरा पीने की अभिलाषा ही बन जाए जब हाला,
अधरों की आतुरता में ही जब आभासित हो प्याला,
बने ध्यान ही करते-करते जब साकी साकार, सखे,
रहे न हाला, प्याला, साकी, तुझे मिलेगी मधुशाला।

सुन, कलकल़ , छलछल़ मधुघट से गिरती प्यालों में हाला,
सुन, रूनझुन रूनझुन चल वितरण करती मधु साकीबाला,
बस आ पहुंचे, दुर नहीं कुछ, चार कदम अब चलना है,
चहक रहे, सुन, पीनेवाले, महक रही, ले, मधुशाला।

जलतरंग बजता, जब चुंबन करता प्याले को प्याला,
वीणा झंकृत होती, चलती जब रूनझुन साकीबाला,
डाँट डपट मधुविक्रेता की ध्वनित पखावज करती है,
मधुरव से मधु की मादकता और बढ़ाती मधुशाला।

मेंहदी रंजित मृदुल हथेली पर माणिक मधु का प्याला,
अंगूरी अवगुंठन डाले स्वर्ण वर्ण साकीबाला,
पाग बैंजनी, जामा नीला डाट डटे पीनेवाले,
इन्द्रधनुष से होड़ लगाती आज रंगीली मधुशाला।

हाथों में आने से पहले नाज़ दिखाएगा प्याला,
अधरों पर आने से पहले अदा दिखाएगी हाला,
बहुतेरे इनकार करेगा साकी आने से पहले,
पथिक, न घबरा जाना, पहले मान करेगी मधुशाला।

लाल सुरा की धार लपट सी कह न इसे देना ज्वाला,
फेनिल मदिरा है, मत इसको कह देना उर का छाला,
दर्द नशा है इस मदिरा का विगत स्मृतियाँ साकी हैं,
पीड़ा में आनंद जिसे हो, आए मेरी मधुशाला।

जगती की शीतल हाला सी पथिक, नहीं मेरी हाला,
जगती के ठंडे प्याले सा पथिक, नहीं मेरा प्याला,
ज्वाल सुरा जलते प्याले में दग्ध हृदय की कविता है,
जलने से भयभीत न जो हो, आए मेरी मधुशाला।

बहती हाला देखी, देखो लपट उठाती अब हाला,
देखो प्याला अब छूते ही होंठ जला देनेवाला,
‘होंठ नहीं, सब देह दहे, पर पीने को दो बूंद मिले’
ऐसे मधु के दीवानों को आज बुलाती मधुशाला।

धर्मग्रन्थ सब जला चुकी है, जिसके अंतर की ज्वाला,
मंदिर, मसजिद, गिरिजे, सब को तोड़ चुका जो मतवाला,
पंडित, मोमिन, पादिरयों के फंदों को जो काट चुका,
कर सकती है आज उसी का स्वागत मेरी मधुशाला।

लालायित अधरों से जिसने, हाय, नहीं चूमी हाला,
हर्ष-विकंपित कर से जिसने, हा, न छुआ मधु का प्याला,
हाथ पकड़ लज्जित साकी को पास नहीं जिसने खींचा,
व्यर्थ सुखा डाली जीवन की उसने मधुमय मधुशाला।

बने पुजारी प्रेमी साकी, गंगाजल पावन हाला,
रहे फेरता अविरत गति से मधु के प्यालों की माला’
‘और लिये जा, और पीये जा’, इसी मंत्र का जाप करे’
मैं शिव की प्रतिमा बन बैठूं, मंदिर हो यह मधुशाला।

बजी न मंदिर में घड़ियाली, चढ़ी न प्रतिमा पर माला,
बैठा अपने भवन मुअज्ज़िन देकर मस्जिद में ताला,
लुटे ख़जाने नरपितयों के गिरीं गढ़ों की दीवारें,
रहें मुबारक पीनेवाले, खुली रहे यह मधुशाला।

बड़े बड़े परिवार मिटें यों, एक न हो रोनेवाला,
हो जाएँ सुनसान महल वे, जहाँ थिरकतीं सुरबाला,
राज्य उलट जाएँ, भूपों की भाग्य सुलक्ष्मी सो जाए,
जमे रहेंगे पीनेवाले, जगा करेगी मधुशाला।सब मिट जाएँ, बना रहेगा सुन्दर साकी, यम काला,
सूखें सब रस, बने रहेंगे, किन्तु, हलाहल औ’ हाला,
धूमधाम औ’ चहल पहल के स्थान सभी सुनसान बनें,
जगा करेगा अविरत मरघट, जगा करेगी मधुशाला।भुरा सदा कहलायेगा जग में बाँका, मदचंचल प्याला,
छैल छबीला, रसिया साकी, अलबेला पीनेवाला,
पटे कहाँ से, मधु औ’ जग की जोड़ी ठीक नहीं,
जग जर्जर प्रतिदन, प्रतिक्षण, पर नित्य नवेली मधुशाला।

बिना पिये जो मधुशाला को बुरा कहे, वह मतवाला,
पी लेने पर तो उसके मुह पर पड़ जाएगा ताला,
दास द्रोहियों दोनों में है जीत सुरा की, प्याले की,
विश्वविजयिनी बनकर जग में आई मेरी मधुशाला।

हरा भरा रहता मदिरालय, जग पर पड़ जाए पाला,
वहाँ मुहर्रम का तम छाए, यहाँ होलिका की ज्वाला,
स्वर्ग लोक से सीधी उतरी वसुधा पर, दुख क्या जाने,
पढ़े मर्सिया दुनिया सारी, ईद मनाती मधुशाला।

एक बरस में, एक बार ही जगती होली की ज्वाला,
एक बार ही लगती बाज़ी, जलती दीपों की माला,
दुनियावालों, किन्तु, किसी दिन आ मदिरालय में देखो,
दिन को होली, रात दिवाली, रोज़ मनाती मधुशाला।

नहीं जानता कौन, मनुज आया बनकर पीनेवाला,
कौन अपिरिचत उस साकी से, जिसने दूध पिला पाला,
जीवन पाकर मानव पीकर मस्त रहे, इस कारण ही,
जग में आकर सबसे पहले पाई उसने मधुशाला।

बनी रहें अंगूर लताएँ जिनसे मिलती है हाला,
बनी रहे वह मिटटी जिससे बनता है मधु का प्याला,
बनी रहे वह मदिर पिपासा तृप्त न जो होना जाने,
बनें रहें ये पीने वाले, बनी रहे यह मधुशाला।

सकुशल समझो मुझको, सकुशल रहती यदि साकीबाला,
मंगल और अमंगल समझे मस्ती में क्या मतवाला,
मित्रों, मेरी क्षेम न पूछो आकर, पर मधुशाला की,
कहा करो ‘जय राम’ न मिलकर, कहा करो ‘जय मधुशाला’।

सूर्य बने मधु का विक्रेता, सिंधु बने घट, जल, हाला,
बादल बन-बन आए साकी, भूमि बने मधु का प्याला,
झड़ी लगाकर बरसे मदिरा रिमझिम, रिमझिम, रिमझिम कर,
बेलि, विटप, तृण बन मैं पीऊँ, वर्षा ऋतु हो मधुशाला।

तारक मणियों से सज्जित नभ बन जाए मधु का प्याला,
सीधा करके भर दी जाए उसमें सागरजल हाला,
मत्त समीरण साकी बनकर अधरों पर छलका जाए,
फैले हों जो सागर तट से विश्व बने यह मधुशाला।

अधरों पर हो कोई भी रस जिहवा पर लगती हाला,
भाजन हो कोई हाथों में लगता रक्खा है प्याला,
हर सूरत साकी की सूरत में परिवर्तित हो जाती,
आँखों के आगे हो कुछ भी, आँखों में है मधुशाला।

पौधे आज बने हैं साकी ले ले फूलों का प्याला,
भरी हुई है जिसके अंदर पिरमल-मधु-सुरिभत हाला,
माँग माँगकर भ्रमरों के दल रस की मदिरा पीते हैं,
झूम झपक मद-झंपित होते, उपवन क्या है मधुशाला!

प्रति रसाल तरू साकी सा है, प्रति मंजरिका है प्याला,
छलक रही है जिसके बाहर मादक सौरभ की हाला,
छक जिसको मतवाली कोयल कूक रही डाली डाली
हर मधुऋतु में अमराई में जग उठती है मधुशाला।

मंद झकोरों के प्यालों में मधुऋतु सौरभ की हाला
भर भरकर है अनिल पिलाता बनकर मधु-मद-मतवाला,
हरे हरे नव पल्लव, तरूगण, नूतन डालें, वल्लरियाँ,
छक छक, झुक झुक झूम रही हैं, मधुबन में है मधुशाला।

साकी बन आती है प्रातः जब अरुणा ऊषा बाला,
तारक-मणि-मंडित चादर दे मोल धरा लेती हाला,
अगणित कर-किरणों से जिसको पी, खग पागल हो गाते,
प्रति प्रभात में पूर्ण प्रकृति में मुखिरत होती मधुशाला।

उतर नशा जब उसका जाता, आती है संध्या बाला,
बड़ी पुरानी, बड़ी नशीली नित्य ढला जाती हाला,
जीवन के संताप शोक सब इसको पीकर मिट जाते
सुरा-सुप्त होते मद-लोभी जागृत रहती मधुशाला।

अंधकार है मधुविक्रेता, सुन्दर साकी शशिबाला
किरण किरण में जो छलकाती जाम जुम्हाई का हाला,
पीकर जिसको चेतनता खो लेने लगते हैं झपकी
तारकदल से पीनेवाले, रात नहीं है, मधुशाला।

किसी ओर मैं आँखें फेरूँ, दिखलाई देती हाला
किसी ओर मैं आँखें फेरूँ, दिखलाई देता प्याला,
किसी ओर मैं देखूं, मुझको दिखलाई देता साकी
किसी ओर देखूं, दिखलाई पड़ती मुझको मधुशाला।

साकी बन मुरली आई साथ लिए कर में प्याला,
जिनमें वह छलकाती लाई अधर-सुधा-रस की हाला,
योगिराज कर संगत उसकी नटवर नागर कहलाए,
देखो कैसों-कैसों को है नाच नचाती मधुशाला।

वादक बन मधु का विक्रेता लाया सुर-सुमधुर-हाला,
रागिनियाँ बन साकी आई भरकर तारों का प्याला,
विक्रेता के संकेतों पर दौड़ लयों, आलापों में,
पान कराती श्रोतागण को, झंकृत वीणा मधुशाला।

चित्रकार बन साकी आता लेकर तूली का प्याला,
जिसमें भरकर पान कराता वह बहु रस-रंगी हाला,
मन के चित्र जिसे पी-पीकर रंग-बिरंगे हो जाते,
चित्रपटी पर नाच रही है एक मनोहर मधुशाला।

घन श्यामल अंगूर लता से खिंच खिंच यह आती हाला,
अरूण-कमल-कोमल कलियों की प्याली, फूलों का प्याला,
लोल हिलोरें साकी बन बन माणिक मधु से भर जातीं,
हंस मत्त होते पी पीकर मानसरोवर मधुशाला।

हिम श्रेणी अंगूर लता-सी फैली, हिम जल है हाला,
चंचल नदियाँ साकी बनकर, भरकर लहरों का प्याला,
कोमल कूर-करों में अपने छलकाती निशिदिन चलतीं,
पीकर खेत खड़े लहराते, भारत पावन मधुशाला।

धीर सुतों के हृदय रक्त की आज बना रक्तिम हाला,
वीर सुतों के वर शीशों का हाथों में लेकर प्याला,
अति उदार दानी साकी है आज बनी भारतमाता,
स्वतंत्रता है तृषित कालिका बलिवेदी है मधुशाला।

दुतकारा मस्जिद ने मुझको कहकर है पीनेवाला,
ठुकराया ठाकुरद्वारे ने देख हथेली पर प्याला,
कहाँ ठिकाना मिलता जग में भला अभागे काफिर को?
शरणस्थल बनकर न मुझे यदि अपना लेती मधुशाला।।

पथिक बना मैं घूम रहा हूँ, सभी जगह मिलती हाला,
सभी जगह मिल जाता साकी, सभी जगह मिलता प्याला,
मुझे ठहरने का, हे मित्रों, कष्ट नहीं कुछ भी होता,
मिले न मंदिर, मिले न मस्जिद, मिल जाती है मधुशाला।

सजें न मस्जिद और नमाज़ी कहता है अल्लाताला,
सजधजकर, पर, साकी आता, बन ठनकर, पीनेवाला,
शेख, कहाँ तुलना हो सकती मस्जिद की मदिरालय से
चिर विधवा है मस्जिद तेरी, सदा सुहागिन मधुशाला।

बजी नफ़ीरी और नमाज़ी भूल गया अल्लाताला,
गाज गिरी, पर ध्यान सुरा में मग्न रहा पीनेवाला,
शेख, बुरा मत मानो इसको, साफ़ कहूँ तो मस्जिद को
अभी युगों तक सिखलाएगी ध्यान लगाना मधुशाला!।

मुसलमान औ’ हिन्दू है दो, एक, मगर, उनका प्याला,
एक, मगर, उनका मदिरालय, एक, मगर, उनकी हाला,
दोनों रहते एक न जब तक मस्जिद मन्दिर में जाते,
बैर बढ़ाते मस्जिद मन्दिर मेल कराती मधुशाला!।

कोई भी हो शेख नमाज़ी या पंडित जपता माला,
बैर भाव चाहे जितना हो मदिरा से रखनेवाला,
एक बार बस मधुशाला के आगे से होकर निकले,
देखूँ कैसे थाम न लेती दामन उसका मधुशाला!।

 

और रसों में स्वाद तभी तक, दूर जभी तक है हाला,
इतरा लें सब पात्र न जब तक, आगे आता है प्याला,
कर लें पूजा शेख, पुजारी तब तक मस्जिद मन्दिर में
घूँघट का पट खोल न जब तक झाँक रही है मधुशाला।।

आज करे परहेज़ जगत, पर, कल पीनी होगी हाला,
आज करे इन्कार जगत पर कल पीना होगा प्याला,
होने दो पैदा मद का महमूद जगत में कोई, फिर
जहाँ अभी हैं मन्दिर मस्जिद वहाँ बनेगी मधुशाला।

यज्ञ अग्नि सी धधक रही है मधु की भटठी की ज्वाला,
ऋषि सा ध्यान लगा बैठा है हर मदिरा पीने वाला,
मुनि कन्याओं सी मधुघट ले फिरतीं साकीबालाएँ,
किसी तपोवन से क्या कम है मेरी पावन मधुशाला।

सोम सुरा पुरखे पीते थे, हम कहते उसको हाला,
द्रोणकलश जिसको कहते थे, आज वही मधुघट आला,
वेदिवहित यह रस्म न छोड़ो वेदों के ठेकेदारों,
युग युग से है पुजती आई नई नहीं है मधुशाला।

वही वारूणी जो थी सागर मथकर निकली अब हाला,
रंभा की संतान जगत में कहलाती ‘साकीबाला’,
देव अदेव जिसे ले आए, संत महंत मिटा देंगे!
किसमें कितना दम खम, इसको खूब समझती मधुशाला।

कभी न सुन पड़ता, ‘इसने, हा, छू दी मेरी हाला’,
कभी न कोई कहता, ‘उसने जूठा कर डाला प्याला’,
सभी जाति के लोग यहाँ पर साथ बैठकर पीते हैं,
सौ सुधारकों का करती है काम अकेले मधुशाला।

श्रम, संकट, संताप, सभी तुम भूला करते पी हाला,
सबक बड़ा तुम सीख चुके यदि सीखा रहना मतवाला,
व्यर्थ बने जाते हो हिरजन, तुम तो मधुजन ही अच्छे,
ठुकराते हैं मंदिरवाले, पलक बिछाती मधुशाला।

एक तरह से सबका स्वागत करती है साकीबाला,
अज्ञ विज्ञ में है क्या अंतर हो जाने पर मतवाला,
रंक राव में भेद हुआ है कभी नहीं मदिरालय में,
साम्यवाद की प्रथम प्रचारक है यह मेरी मधुशाला।

बार बार मैंने आगे बढ़ आज नहीं माँगी हाला,
समझ न लेना इससे मुझको साधारण पीने वाला,
हो तो लेने दो ऐ साकी दूर प्रथम संकोचों को,
मेरे ही स्वर से फिर सारी गूँज उठेगी मधुशाला।

कल? कल पर विश्वास किया कब करता है पीनेवाला
हो सकते कल कर जड़ जिनसे फिर फिर आज उठा प्याला,
आज हाथ में था, वह खोया, कल का कौन भरोसा है,
कल की हो न मुझे मधुशाला काल कुटिल की मधुशाला।

आज मिला अवसर, तब फिर क्यों मैं न छकूँ जी-भर हाला
आज मिला मौका, तब फिर क्यों ढाल न लूँ जी-भर प्याला,
छेड़छाड़ अपने साकी से आज न क्यों जी-भर कर लूँ,
एक बार ही तो मिलनी है जीवन की यह मधुशाला।

आज सजीव बना लो, प्रेयसी, अपने अधरों का प्याला,
भर लो, भर लो, भर लो इसमें, यौवन मधुरस की हाला,
और लगा मेरे होठों से भूल हटाना तुम जाओ,
अथक बनू मैं पीनेवाला, खुले प्रणय की मधुशाला।

सुमुखी तुम्हारा, सुन्दर मुख ही, मुझको कन्चन का प्याला
छलक रही है जिसमें माणिक रूप मधुर मादक हाला,
मैं ही साकी बनता, मैं ही पीने वाला बनता हूँ
जहाँ कहीं मिल बैठे हम तुम़ वहीं गयी हो मधुशाला।

दो दिन ही मधु मुझे पिलाकर ऊब उठी साकीबाला,
भरकर अब खिसका देती है वह मेरे आगे प्याला,
नाज़, अदा, अंदाजों से अब, हाय पिलाना दूर हुआ,
अब तो कर देती है केवल फ़र्ज़ – अदाई मधुशाला।

छोटे-से जीवन में कितना प्यार करुँ, पी लूँ हाला,
आने के ही साथ जगत में कहलाया ‘जानेवाला’,
स्वागत के ही साथ विदा की होती देखी तैयारी,
बंद लगी होने खुलते ही मेरी जीवन-मधुशाला।

क्या पीना, निर्द्वन्द न जब तक ढाला प्यालों पर प्याला,
क्या जीना, निश्चिंत न जब तक साथ रहे साकीबाला,
खोने का भय, हाय, लगा है पाने के सुख के पीछे,
मिलने का आनंद न देती मिलकर के भी मधुशाला।

मुझे पिलाने को लाए हो इतनी थोड़ी-सी हाला!
मुझे दिखाने को लाए हो एक यही छिछला प्याला!
इतनी पी जीने से अच्छा सागर की ले प्यास मरुँ,
सिंधु-तृषा दी किसने रचकर बिंदु-बराबर मधुशाला।

क्या कहता है, रह न गई अब तेरे भाजन में हाला,
क्या कहता है, अब न चलेगी मादक प्यालों की माला,
थोड़ी पीकर प्यास बढ़ी तो शेष नहीं कुछ पीने को,
प्यास बुझाने को बुलवाकर प्यास बढ़ाती मधुशाला।

लिखी भाग्य में जितनी बस उतनी ही पाएगा हाला,
लिखा भाग्य में जैसा बस वैसा ही पाएगा प्याला,
लाख पटक तू हाथ पाँव, पर इससे कब कुछ होने का,
लिखी भाग्य में जो तेरे बस वही मिलेगी मधुशाला।

कर ले, कर ले कंजूसी तू मुझको देने में हाला,
दे ले, दे ले तू मुझको बस यह टूटा फूटा प्याला,
मैं तो सब्र इसी पर करता, तू पीछे पछताएगी,
जब न रहूँगा मैं, तब मेरी याद करेगी मधुशाला।

ध्यान मान का, अपमानों का छोड़ दिया जब पी हाला,
गौरव भूला, आया कर में जब से मिट्टी का प्याला,
साकी की अंदाज़ भरी झिड़की में क्या अपमान धरा,
दुनिया भर की ठोकर खाकर पाई मैंने मधुशाला।

क्षीण, क्षुद्र, क्षणभंगुर, दुर्बल मानव मिटटी का प्याला,
भरी हुई है जिसके अंदर कटु-मधु जीवन की हाला,
मृत्यु बनी है निर्दय साकी अपने शत-शत कर फैला,
काल प्रबल है पीनेवाला, संसृति है यह मधुशाला।

प्याले सा गढ़ हमें किसी ने भर दी जीवन की हाला,
नशा न भाया, ढाला हमने ले लेकर मधु का प्याला,
जब जीवन का दर्द उभरता उसे दबाते प्याले से,
जगती के पहले साकी से जूझ रही है मधुशाला।

अपने अंगूरों से तन में हमने भर ली है हाला,
क्या कहते हो, शेख, नरक में हमें तपाएगी ज्वाला,
तब तो मदिरा खूब खिंचेगी और पिएगा भी कोई,
हमें नमक की ज्वाला में भी दीख पड़ेगी मधुशाला।

यम आएगा लेने जब, तब खूब चलूँगा पी हाला,
पीड़ा, संकट, कष्ट नरक के क्या समझेगा मतवाला,
क्रूर, कठोर, कुटिल, कुविचारी, अन्यायी यमराजों के
डंडों की जब मार पड़ेगी, आड़ करेगी मधुशाला।

यदि इन अधरों से दो बातें प्रेम भरी करती हाला,
यदि इन खाली हाथों का जी पल भर बहलाता प्याला,
हानि बता, जग, तेरी क्या है, व्यर्थ मुझे बदनाम न कर,
मेरे टूटे दिल का है बस एक खिलौना मधुशाला।

याद न आए दुखमय जीवन इससे पी लेता हाला,
जग चिंताओं से रहने को मुक्त, उठा लेता प्याला,
शौक, साध के और स्वाद के हेतु पिया जग करता है,
पर मै वह रोगी हूँ जिसकी एक दवा है मधुशाला।

गिरती जाती है दिन प्रतिदन प्रणयनी प्राणों की हाला
भग्न हुआ जाता दिन प्रतिदन सुभगे मेरा तन प्याला,
रूठ रहा है मुझसे रूपसी, दिन दिन यौवन का साकी
सूख रही है दिन दिन सुन्दरी, मेरी जीवन मधुशाला।

यम आयेगा साकी बनकर साथ लिए काली हाला,
पी न होश में फिर आएगा सुरा-विसुध यह मतवाला,
यह अंतिम बेहोशी, अंतिम साकी, अंतिम प्याला है,
पथिक, प्यार से पीना इसको फिर न मिलेगी मधुशाला।

ढलक रही है तन के घट से, संगिनी जब जीवन हाला
पत्र गरल का ले जब अंतिम साकी है आनेवाला,
हाथ स्पर्श भूले प्याले का, स्वाद सुरा जीव्हा भूले
कानो में तुम कहती रहना, मधु का प्याला मधुशाला।

मेरे अधरों पर हो अंतिम वस्तु न तुलसीदल प्याला
मेरी जीव्हा पर हो अंतिम वस्तु न गंगाजल हाला,
मेरे शव के पीछे चलने वालों याद इसे रखना
राम नाम है सत्य न कहना, कहना सच्ची मधुशाला।

मेरे शव पर वह रोये, हो जिसके आंसू में हाला
आह भरे वो, जो हो सुरिभत मदिरा पी कर मतवाला,
दे मुझको वो कान्धा जिनके पग मद डगमग होते हों
और जलूं उस ठौर जहां पर कभी रही हो मधुशाला।

और चिता पर जाये उंढेला पात्र न घ्रित का, पर प्याला
कंठ बंधे अंगूर लता में मध्य न जल हो, पर हाला,
प्राण प्रिये यदि श्राध करो तुम मेरा तो ऐसे करना
पीने वालों को बुलवा कऱ खुलवा देना मधुशाला।

नाम अगर कोई पूछे तो, कहना बस पीनेवाला
काम ढालना, और ढालना सबको मदिरा का प्याला,
जाति प्रिये, पूछे यदि कोई कह देना दीवानों की
धर्म बताना प्यालों की ले माला जपना मधुशाला।

ज्ञात हुआ यम आने को है ले अपनी काली हाला,
पंडित अपनी पोथी भूला, साधू भूल गया माला,
और पुजारी भूला पूजा, ज्ञान सभी ज्ञानी भूला,
किन्तु न भूला मरकर के भी पीनेवाला मधुशाला।

यम ले चलता है मुझको तो, चलने दे लेकर हाला,
चलने दे साकी को मेरे साथ लिए कर में प्याला,
स्वर्ग, नरक या जहाँ कहीं भी तेरा जी हो लेकर चल,
ठौर सभी हैं एक तरह के साथ रहे यदि मधुशाला।

पाप अगर पीना, समदोषी तो तीनों – साकी बाला,
नित्य पिलानेवाला प्याला, पी जानेवाली हाला,
साथ इन्हें भी ले चल मेरे न्याय यही बतलाता है,
कैद जहाँ मैं हूँ, की जाए कैद वहीं पर मधुशाला।

शांत सकी हो अब तक, साकी, पीकर किस उर की ज्वाला,
‘और, और’ की रटन लगाता जाता हर पीनेवाला,
कितनी इच्छाएँ हर जानेवाला छोड़ यहाँ जाता!
कितने अरमानों की बनकर कब्र खड़ी है मधुशाला।

जो हाला मैं चाह रहा था, वह न मिली मुझको हाला,
जो प्याला मैं माँग रहा था, वह न मिला मुझको प्याला,
जिस साकी के पीछे मैं था दीवाना, न मिला साकी,
जिसके पीछे था मैं पागल, हा न मिली वह मधुशाला!।

देख रहा हूँ अपने आगे कब से माणिक-सी हाला,
देख रहा हूँ अपने आगे कब से कंचन का प्याला,
‘बस अब पाया!’- कह-कह कब से दौड़ रहा इसके पीछे,
किंतु रही है दूर क्षितिज-सी मुझसे मेरी मधुशाला।

कभी निराशा का तम घिरता, छिप जाता मधु का प्याला,
छिप जाती मदिरा की आभा, छिप जाती साकीबाला,
कभी उजाला आशा करके प्याला फिर चमका जाती,
आँख मिचौली खेल रही है मुझसे मेरी मधुशाला।

‘आ आगे’ कहकर कर पीछे कर लेती साकीबाला,
होंठ लगाने को कहकर हर बार हटा लेती प्याला,
नहीं मुझे मालूम कहाँ तक यह मुझको ले जाएगी,
बढ़ा बढ़ाकर मुझको आगे, पीछे हटती मधुशाला।

हाथों में आने-आने में, हाय, फिसल जाता प्याला,
अधरों पर आने-आने में हाय, ढुलक जाती हाला,
दुनियावालो, आकर मेरी किस्मत की ख़ूबी देखो,
रह-रह जाती है बस मुझको मिलते-मिलते मधुशाला।

प्राप्य नही है तो, हो जाती लुप्त नहीं फिर क्यों हाला,
प्राप्य नही है तो, हो जाता लुप्त नहीं फिर क्यों प्याला,
दूर न इतनी हिम्मत हारुँ, पास न इतनी पा जाऊँ,
व्यर्थ मुझे दौड़ाती मरु में मृगजल बनकर मधुशाला।

मिले न, पर, ललचा ललचा क्यों आकुल करती है हाला,
मिले न, पर, तरसा तरसाकर क्यों तड़पाता है प्याला,
हाय, नियति की विषम लेखनी मस्तक पर यह खोद गई
‘दूर रहेगी मधु की धारा, पास रहेगी मधुशाला!’।

मदिरालय में कब से बैठा, पी न सका अब तक हाला,
यत्न सहित भरता हूँ, कोई किंतु उलट देता प्याला,
मानव-बल के आगे निर्बल भाग्य, सुना विद्यालय में,
‘भाग्य प्रबल, मानव निर्बल’ का पाठ पढ़ाती मधुशाला।

किस्मत में था खाली खप्पर, खोज रहा था मैं प्याला,
ढूँढ़ रहा था मैं मृगनयनी, किस्मत में थी मृगछाला,
किसने अपना भाग्य समझने में मुझसा धोखा खाया,
किस्मत में था अवघट मरघट, ढूँढ़ रहा था मधुशाला।

उस प्याले से प्यार मुझे जो दूर हथेली से प्याला,
उस हाला से चाव मुझे जो दूर अधर से है हाला,
प्यार नहीं पा जाने में है, पाने के अरमानों में!
पा जाता तब, हाय, न इतनी प्यारी लगती मधुशाला।

साकी के पास है तनिक सी श्री, सुख, संपित की हाला,
सब जग है पीने को आतुर ले ले किस्मत का प्याला,
रेल ठेल कुछ आगे बढ़ते, बहुतेरे दबकर मरते,
जीवन का संघर्ष नहीं है, भीड़ भरी है मधुशाला।

साकी, जब है पास तुम्हारे इतनी थोड़ी सी हाला,
क्यों पीने की अभिलषा से, करते सबको मतवाला,
हम पिस पिसकर मरते हैं, तुम छिप छिपकर मुसकाते हो,
हाय, हमारी पीड़ा से है क्रीड़ा करती मधुशाला।

साकी, मर खपकर यदि कोई आगे कर पाया प्याला,
पी पाया केवल दो बूंदों से न अधिक तेरी हाला,
जीवन भर का, हाय, पिरश्रम लूट लिया दो बूंदों ने,
भोले मानव को ठगने के हेतु बनी है मधुशाला।

जिसने मुझको प्यासा रक्खा बनी रहे वह भी हाला,
जिसने जीवन भर दौड़ाया बना रहे वह भी प्याला,
मतवालों की जिह्वा से हैं कभी निकलते शाप नहीं,
दुखी बनाया जिसने मुझको सुखी रहे वह मधुशाला!।

नहीं चाहता, आगे बढ़कर छीनूँ औरों की हाला,
नहीं चाहता, धक्के देकर, छीनूँ औरों का प्याला,
साकी, मेरी ओर न देखो मुझको तनिक मलाल नहीं,
इतना ही क्या कम आँखों से देख रहा हूँ मधुशाला।

मद, मदिरा, मधु, हाला सुन-सुन कर ही जब हूँ मतवाला,
क्या गति होगी अधरों के जब नीचे आएगा प्याला,
साकी, मेरे पास न आना मैं पागल हो जाऊँगा,
प्यासा ही मैं मस्त, मुबारक हो तुमको ही मधुशाला।

क्या मुझको आवश्यकता है साकी से माँगूँ हाला,
क्या मुझको आवश्यकता है साकी से चाहूँ प्याला,
पीकर मदिरा मस्त हुआ तो प्यार किया क्या मदिरा से!
मैं तो पागल हो उठता हूँ सुन लेता यदि मधुशाला।

देने को जो मुझे कहा था दे न सकी मुझको हाला,
देने को जो मुझे कहा था दे न सका मुझको प्याला,
समझ मनुज की दुर्बलता मैं कहा नहीं कुछ भी करता,
किन्तु स्वयं ही देख मुझे अब शरमा जाती मधुशाला।

एक समय संतुष्ट बहुत था पा मैं थोड़ी-सी हाला,
भोला-सा था मेरा साकी, छोटा-सा मेरा प्याला,
छोटे-से इस जग की मेरे स्वर्ग बलाएँ लेता था,
विस्तृत जग में, हाय, गई खो मेरी नन्ही मधुशाला!।

बहुतेरे मदिरालय देखे, बहुतेरी देखी हाला,
भाँति भाँति का आया मेरे हाथों में मधु का प्याला,
एक एक से बढ़कर, सुन्दर साकी ने सत्कार किया,
जँची न आँखों में, पर, कोई पहली जैसी मधुशाला।

एक समय छलका करती थी मेरे अधरों पर हाला,
एक समय झूमा करता था मेरे हाथों पर प्याला,
एक समय पीनेवाले, साकी आलिंगन करते थे,
आज बनी हूँ निर्जन मरघट, एक समय थी मधुशाला।

जला हृदय की भट्टी खींची मैंने आँसू की हाला,
छलछल छलका करता इससे पल पल पलकों का प्याला,
आँखें आज बनी हैं साकी, गाल गुलाबी पी होते,
कहो न विरही मुझको, मैं हूँ चलती फिरती मधुशाला!।

कितनी जल्दी रंग बदलती है अपना चंचल हाला,
कितनी जल्दी घिसने लगता हाथों में आकर प्याला,
कितनी जल्दी साकी का आकर्षण घटने लगता है,
प्रात नहीं थी वैसी, जैसी रात लगी थी मधुशाला।

बूँद बूँद के हेतु कभी तुझको तरसाएगी हाला,
कभी हाथ से छिन जाएगा तेरा यह मादक प्याला,
पीनेवाले, साकी की मीठी बातों में मत आना,
मेरे भी गुण यों ही गाती एक दिवस थी मधुशाला।

छोड़ा मैंने पथ मतों को तब कहलाया मतवाला,
चली सुरा मेरा पग धोने तोड़ा जब मैंने प्याला,
अब मानी मधुशाला मेरे पीछे पीछे फिरती है,
क्या कारण? अब छोड़ दिया है मैंने जाना मधुशाला।

यह न समझना, पिया हलाहल मैंने, जब न मिली हाला,
तब मैंने खप्पर अपनाया ले सकता था जब प्याला,
जले हृदय को और जलाना सूझा, मैंने मरघट को
अपनाया जब इन चरणों में लोट रही थी मधुशाला।

कितनी आई और गई पी इस मदिरालय में हाला,
टूट चुकी अब तक कितने ही मादक प्यालों की माला,
कितने साकी अपना अपना काम खतम कर दूर गए,
कितने पीनेवाले आए, किन्तु वही है मधुशाला।

कितने होठों को रक्खेगी याद भला मादक हाला,
कितने हाथों को रक्खेगा याद भला पागल प्याला,
कितनी शक्लों को रक्खेगा याद भला भोला साकी,
कितने पीनेवालों में है एक अकेली मधुशाला।

दर दर घूम रहा था जब मैं चिल्लाता – हाला! हाला!
मुझे न मिलता था मदिरालय, मुझे न मिलता था प्याला,
मिलन हुआ, पर नहीं मिलनसुख लिखा हुआ था किस्मत में,
मैं अब जमकर बैठ गया हूँ, घूम रही है मधुशाला।

मैं मदिरालय के अंदर हूँ, मेरे हाथों में प्याला,
प्याले में मदिरालय बिंबित करनेवाली है हाला,
इस उधेड़-बुन में ही मेरा सारा जीवन बीत गया –
मैं मधुशाला के अंदर या मेरे अंदर मधुशाला!।११९।

किसे नहीं पीने से नाता, किसे नहीं भाता प्याला,
इस जगती के मदिरालय में तरह-तरह की है हाला,
अपनी-अपनी इच्छा के अनुसार सभी पी मदमाते,
एक सभी का मादक साकी, एक सभी की मधुशाला।

वह हाला, कर शांत सके जो मेरे अंतर की ज्वाला,
जिसमें मैं बिंबित-प्रतिबिंबित प्रतिपल, वह मेरा प्याला,
मधुशाला वह नहीं जहाँ पर मदिरा बेची जाती है,
भेंट जहाँ मस्ती की मिलती मेरी तो वह मधुशाला।

मतवालापन हाला से ले मैंने तज दी है हाला,
पागलपन लेकर प्याले से, मैंने त्याग दिया प्याला,
साकी से मिल, साकी में मिल अपनापन मैं भूल गया,
मिल मधुशाला की मधुता में भूल गया मैं मधुशाला।

मदिरालय के द्वार ठोंकता किस्मत का छूंछा प्याला,
गहरी, ठंडी सांसें भर भर कहता था हर मतवाला,
कितनी थोड़ी सी यौवन की हाला, हा, मैं पी पाया!
बंद हो गई कितनी जल्दी मेरी जीवन मधुशाला।

कहाँ गया वह स्वर्गिक साकी, कहाँ गयी सुरिभत हाला,
कहाँ गया स्वपिनल मदिरालय, कहाँ गया स्वर्णिम प्याला!
पीनेवालों ने मदिरा का मूल्य, हाय, कब पहचाना?
फूट चुका जब मधु का प्याला, टूट चुकी जब मधुशाला।

अपने युग में सबको अनुपम ज्ञात हुई अपनी हाला,
अपने युग में सबको अदभुत ज्ञात हुआ अपना प्याला,
फिर भी वृद्धों से जब पूछा एक यही उत्तर पाया –
अब न रहे वे पीनेवाले, अब न रही वह मधुशाला!।

‘मय’ को करके शुद्ध दिया अब नाम गया उसको, ‘हाला’
‘मीना’ को ‘मधुपात्र’ दिया ‘सागर’ को नाम गया ‘प्याला’,
क्यों न मौलवी चौंकें, बिचकें तिलक-त्रिपुंडी पंडित जी
‘मय-महिफल’ अब अपना ली है मैंने करके ‘मधुशाला’।

कितने मर्म जता जाती है बार-बार आकर हाला,
कितने भेद बता जाता है बार-बार आकर प्याला,
कितने अर्थों को संकेतों से बतला जाता साकी,
फिर भी पीनेवालों को है एक पहेली मधुशाला।

जितनी दिल की गहराई हो उतना गहरा है प्याला,
जितनी मन की मादकता हो उतनी मादक है हाला,
जितनी उर की भावुकता हो उतना सुन्दर साकी है,
जितना ही जो रिसक, उसे है उतनी रसमय मधुशाला।

जिन अधरों को छुए, बना दे मस्त उन्हें मेरी हाला,
जिस कर को छू दे, कर दे विक्षिप्त उसे मेरा प्याला,
आँख चार हों जिसकी मेरे साकी से दीवाना हो,
पागल बनकर नाचे वह जो आए मेरी मधुशाला।

हर जिव्हा पर देखी जाएगी मेरी मादक हाला
हर कर में देखा जाएगा मेरे साकी का प्याला
हर घर में चर्चा अब होगी मेरे मधुविक्रेता की
हर आंगन में गमक उठेगी मेरी सुरिभत मधुशाला।

मेरी हाला में सबने पाई अपनी-अपनी हाला,
मेरे प्याले में सबने पाया अपना-अपना प्याला,
मेरे साकी में सबने अपना प्यारा साकी देखा,
जिसकी जैसी रुचि थी उसने वैसी देखी मधुशाला।

यह मदिरालय के आँसू हैं, नहीं-नहीं मादक हाला,
यह मदिरालय की आँखें हैं, नहीं-नहीं मधु का प्याला,
किसी समय की सुखदस्मृति है साकी बनकर नाच रही,
नहीं-नहीं कवि का हृदयांगण, यह विरहाकुल मधुशाला।

कुचल हसरतें कितनी अपनी, हाय, बना पाया हाला,
कितने अरमानों को करके ख़ाक बना पाया प्याला!
पी पीनेवाले चल देंगे, हाय, न कोई जानेगा,
कितने मन के महल ढहे तब खड़ी हुई यह मधुशाला!।

विश्व तुम्हारे विषमय जीवन में ला पाएगी हाला
यदि थोड़ी-सी भी यह मेरी मदमाती साकीबाला,
शून्य तुम्हारी घड़ियाँ कुछ भी यदि यह गुंजित कर पाई,
जन्म सफल समझेगी जग में अपना मेरी मधुशाला।

बड़े-बड़े नाज़ों से मैंने पाली है साकीबाला,
कलित कल्पना का ही इसने सदा उठाया है प्याला,
मान-दुलारों से ही रखना इस मेरी सुकुमारी को,
विश्व, तुम्हारे हाथों में अब सौंप रहा हूँ मधुशाला।

 

– हरिवंशराय बच्चन