जन्माष्टमी हिन्दू धर्म में मनाए जाने वाले महत्वपूर्ण पर्वों में से एक है। इस पर्व को बाल-गोपाल श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व केवल भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में भी पूरी श्रद्धा और उल्लास से मनाया जाता है।
हर साल हिन्दू कैलेंडर के भाद्रपद माह की अष्टमी तिथि को श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाती है। हिन्दू धर्म की मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म पांच हजार साल पहले भाद्रपद मास में रोहिणी नक्षत्र में अष्टमी तिथि की आधी रात को हुआ था।
कब है जन्माष्टमी व्रत
इस साल 2023 को स्मार्त यानि गृहस्थियों के लिए जन्माष्टमी व्रत 6 सितम्बर को है l परंपरा के अनुसार अष्टमी की आधी रात के बाद ही भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के बाद पूजा की जाती है।
इस दिन व्रतानुष्ठान अष्टमी तिथि से शुरू होती है और अगले दिन नवमी पर खत्म होती है। फिर भी कई लोग, अर्द्धरात्रि पर रोहिणी नक्षत्र का योग होने पर सप्तमी और अष्टमी पर व्रत रखते हैं। कुछ भक्तगण उदयव्यापिनी अर्थात शुरू होती अष्टमी पर उपवास करते हैं।
शास्त्रकारों ने व्रत -पूजन, जपादि के लिए अर्द्धरात्रि अर्थात अष्टमी और नवमी के बीच की रात्रि में रहने वाली तिथि को ही मान्यता दी है।
विशेषकर स्मार्त लोग अर्द्धरात्रिव्यापिनी अष्टमी को यह व्रत करते हैं। पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, चंडीगढ़ आदि में में स्मार्त धर्मावलम्बी अर्थात गृहस्थ लोग इसी परम्परा का अनुसरण करते हुए सप्तमी युक्ता अर्द्धरात्रिकालीन वाली अष्टमी को व्रत, पूजा आदि करते आ रहे हैं जबकि मथुरा, वृंदावन सहित उत्तर प्रदेश आदि प्रदेशों में उदयकालीन अष्टमी के दिन ही कृष्ण जन्मोत्सव मनाते आ रहे हैं।
भगवान श्रीकृष्ण की जन्मस्थली मथुरा की परम्परा को आधार मानकर मनाई जाने वाली जन्माष्टमी के दिन ही केन्द्रीय सरकार अवकाश की घोषणा करती है। वैष्णव संप्रदाय के अधिकांश लोग उदयकालिक नवमी युता जन्माष्टमी व्रत के लिए ग्रहण करते हैं।
कैसे करें जन्माष्टमी व्रत
व्रत अष्टमी तिथि से शुरू होता है। इस दिन सुबह उठकर स्नान आदि करने के बाद घर के मंदिर को साफ सुथरा करें और जन्माष्टमी की तैयारी शुरू करें।
रोज की तरह पूजा करने के बाद बाल कृष्ण लड्डू गोपाल जी की मूर्ति मंदिर में रखें और इसे अच्छे से सजाएं। माता देवकी, वासुदेव, बलदेव, नंद, यशोदा जी का चित्र भी लगा सकते हैं।
इसके बाद, जप-ध्यान व व्रतानुष्ठान करके ‘ओम नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र जाप करें। पूरा दिन व्रत रखें। फलाहार कर सकते हैं। इसके साथ ही यथा संभव भगवान का भजन-कीर्तन, स्वाध्यान, पाठ व भगवान से संबन्धित प्रसंगों का अध्ययन व सेवन करें।
मन और वाणी को संयम में रखें। काम, क्रोध, लोभ, द्वेष, हिंसा, क्लेश, दुर्वचन, ठेस लगाना आदि अप्रिय कार्यों और मांस-मदिरा आदि दुर्व्यसनों से दूर रहने का अभ्यास करना ही उपवास है। इसके लिए ध्यान करें। उपवास केवल अन्न से सिद्ध नहीं होता बल्कि यह क्रिया-कलापों और आचरण से भी परिलक्षित होना अनिवार्य है।
जन्माष्टमी पर मंत्र साधना
भगवान कृष्ण की आराधना के लिए आप यह मंत्र पढ़ सकते हैं
ज्योत्स्नापते नमस्तुभ्यं नमस्त ज्योतिशां पते!
नमस्ते रोहिणी कान्त अध्य मे प्रतिगृह्यताम्!!
संतान प्राप्ति के लिए: संतान की इच्छा रखने वाले दंपति, संतान गोपाल मंत्र का जाप पति-पत्नी दोनों मिलकर करें।
देवकीसुत गोविंद वासदेव जगत्पते!
देहिमे तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत:!! दूसरा मंत्र:
क्लीं ग्लौं श्यामल अंगाय नमः!!
विवाह में हो रहे विलम्ब के लिए:
ओम् क्ली कृष्णाय गोविंदाय गोपीजनवल्लभाय स्वाहा।
इन मंत्रों की एक माला अर्थात 108 मंत्र कर सकते हैं।
जन्माष्टमी व्रत यानि व्रतराज
कृष्ण जन्माष्टमी के दिन पूजन के साथ-साथ व्रत रखना बहुत फलदायी माना जाता है। इसे व्रत व्रतराज भी कहा जाता है। इस व्रत का विधि-विधान से पालन करने से कई गुना पुण्य की प्राप्ति होती है। यह व्रत सबसे आसान व्रत कहा जा सकता है जिसमें फलाहार, उबले आलू, साबुदाना आदि का सेवन किया जा सकता है।
रात्रि बारह बजे तक व्रत का पालन
जन्माष्टमी का व्रत रात बारह बजे तक किया जाता है। इस व्रत को करने वाले रात बारह बजे तक कृष्ण जन्म का इंतजार करते हैं। उसके पश्चात् पूजा आरती होती है और फिर प्रसाद मिलता है। प्रसाद के रूप में धनिया और माखन मिश्री दिया जाता है क्योंकि ये दोनों ही वस्तुएं श्री कृष्ण को अत्यंत प्रिय हैं। उसके पश्चात् प्रसाद ग्रहण करके व्रत पारण किया जा सकता है। हालांकि सभी के यहां परम्पराएं अलग-अलग होती हैं। कोई प्रात:काल सूर्योदय के बाद व्रत पारण करते हैं तो कोई रात में प्रसाद खाकर व्रत खोल लेते हैं। आप अपने परिवार की परम्परा के अनुसार ही व्रत पारण करें।।
दिन भर अन्न ग्रहण नहीं करें। मध्य रात्रि को एक बार फिर पूजा की तैयारी शुरू करें। रात को 12 बजे भगवान के जन्म के बाद भगवान की पूजा करें और भजन करें। गंगा जल से श्री कृष्ण को स्नान कराएं और उन्हें सुंदर वस्त्र और आभूषण पहनाएं। भगवान को झूला झुलाएं और फिर भजन, गीत-संगीत के बाद प्रसाद का वितरण करें।