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मौत के बारे में व्याप्त अंधविश्वास!

इंसान की मृत्यु अथवा मौत सदा ही एक अनसुलझी पहेली रही है. कुछ लोग मृत्यु को जीवन का अंत मानते हैं, तो कुछ नए जीवन की शुरुआत. लेकिन सच्चाई यह है कि सभी मौत से डरते हैं. कुछ विद्वान तो मृत्यु को सभी डरों का स्रोत मानते हैं, शायद इसी वजह से मृत्यु के बारे में कई तरह की बातें, डर और अंधविश्वास पैदा हुए हैं. यहाँ प्रस्तुत है, मृत्यु से सम्बंधित कुछ अंधविश्वास और विश्वास जो भारतीय समाज में सर्वाधिक प्रचलित हैं.

आँखें खुली होना

आप ने देखा होगा बहुत सारी फिल्मों में जब लोग मरने की एक्टिंग करते हैं, तो वह आँखें खुली रख कर लोगों को यह दिखाते हैं कि वो मर चुके हैं. असल में यह बात अंधविश्वास ही है. यह ज़रूरी नहीं कि जब व्यक्ति की मौत हो, तो उसकी आँखे खुली ही हों. बात जो भी हो, लेकिन मरे हुए व्यक्ति की आँखें खुली रखना बुरा माना जाता है.

कुत्ते का रोना

भारत के कुछ हिस्सों में कुत्ते के रोने को मौत के संकेत के तौर पर देखा जाता है. माना जाता है कि कुत्ते वह देख पाते हैं, जो मनुष्य नहीं देख पाते, जैसे कि यमदूत. वैसे कुत्ते अक्सर कुछ ख़ास वजह से रोते हैं, जैसे कि दर्द-पीड़ा की स्थिति में अथवा संसर्ग काल में भी बंधे हुए कुते या कुतिया. वैसे माना जाता है कि जानवर छठी इंद्री के द्वारा वह देख सकता है, तो मनुष्य नहीं देख पाते.. फिर भी कभी कुत्ते के रोते हुए स्थान आस-पास किसी की मौत होने से यह अंधविश्वास जुड़ गया होगा.

अंतिम संस्कार के बाद शुद्धिकरण

कई भारतीय गांवों में, किसी व्यक्ति के अंतिम संस्कार में शामिल व्यक्ति को तब तक अछूत माना जाता है, जब तक वह नहा-धोकर नए वस्त्र नहीं पहन लेता. यहाँ तक कि घर वाले भी उसे छूने में परहेज़ करते हैं. यह प्रथा प्राचीन काल में किसी मृत व्यक्ति की छूत की बीमारी से मौत होने के दुषप्रभाव से बचने के लिए थी, जो आज भी वैसे ही जारी है, भले ही किसी स्वस्थ व्यक्ति की मौत अचानक कोई दुर्घटना में हुई हो.

मृत्यु वाले घर में खाना न बनना

भारत के कई हिस्सों में मृत्यु वाले घरों में कुछ निश्चित दिनों तक खाना नहीं बनता. पड़ोसी अपने-अपने घरों से खाना बना कर लाते हैं और लोगों को खिलाते हैं. ऐसा इसलिए किया जाता है क्योंकि अपने प्रियजन की मृत्यु होने पर किसी का मन खाने पीने में नहीं करता, न ही खाना बनाने में. पड़ोसी इसमें मदद करते हैं, जो सामाजिक सदभाव का प्रतीक है.

अपने सांस को रोक कर रखना

एक ओर अंधविश्वास यह भी है कि अगर आप कब्रिस्तान या शमशान के पास से गुज़र रहे हैं, तो आपको उस समय तक अपनी सांस को रोके रखना चाहिए, जब तक कब्रिस्तान गुज़र नहीं जाता. ऐसा समझा जाता है कि कब्रिस्तान के आस-पास मरे हुए लोगों की आत्माएं होती हैं और अगर आप कब्रिस्तान के पास से सांस लेते हुए जाएंगें, तो कोई आत्मा आपके शरीर के अंदर प्रवेश कर जाएगी.

गरज के साथ बारिश

यह माना जाता है कि मरने के बाद लोगों की आत्मा ऊपर जाती है. अगर अंतिम संस्कार वाले दिन बारिश हो रही हो, तो वह इस बात को मृत व्यक्ति की आत्मा के लिए शुभ संकेत नहीं मानते. वहीँ दूसरी ओर कुछ लोग इसे शुभ भी मानते हैं.

दक्षिण दिशा की और पैर करना

लोगों को यह भी अंधविश्वास होता है कि अगर मृत व्यक्ति के शरीर के सर को पूर्व दिशा की तरफ रखकर रखा या जलाया/दफनाया गया, तो मृत व्यक्ति की अच्छी ‘गति’ होती है . अगर मृत व्यक्ति के शरीर के पैरों को पूर्व दिशा में रखकर जलाया/दफनाया जाए, तो यह उसके पुनर्जन्म के लिए अच्छा होता है.

कब्र पर फूल रखना

मृत व्यक्ति की कब्र के ऊपर फूल क्यों रखे जाते हैं ? इस बात पर लोगों के पास कोई तर्क नहीं है. सैंकड़ों साल पहले, जब मृत लोगों के शरीर को कब्र में ना रखकर खुले में रखा जाता था, तो उनके शरीर से आने वाली गंध को रोकने के लिए उनके ऊपर फूल रखे जाते थे, लेकिन आधुनिक युग में शरीर को बक्से में रखा जाता है, जिससे मृत व्यक्ति के शरीर से गंध नहीं आती. लेकिन लोग आज भी अंधविश्वास के कारण कब्र पर फूल रखते हैं.

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