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दोस्ती की वो कहानियां, जिनकी बुनियाद पर भारत फल-फूल रहा है!

दोस्ती एक खूबसूरत रिस्ता होता है और आज हम इस पोस्ट में आपको दोस्ती की उन कहानियों के बारे में बताने जा रहे हैं जिनकी बुनियाद पर भारत फल-फूल रहा है, तो चलिए जानते हैं :-

आजाद,रुद्रनारायण दोस्त के लिए सरेंडर कर रहे थे आजाद

1 अगस्त 1925 को काकोरी ट्रेन घटना के बाद अंग्रेज हर हाल में क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद को पकड़ लेना चाहते थे। सांडर्स की हत्या और असेंबली बमकांड के बाद आजाद अंग्रेजों के लिए बड़ी मुसीबत बन गए थे।

उन पर 25 हजार रु.का पुरस्कार रखा गया था। तब आजाद ने करीब साढ़े तीन साल का समय झांसी में अज्ञातवास में बिताया था। इस दौरान एक दोस्त रुद्र नारायण उनके मददगार बने थे।

रुद्र नारायण ने आजाद को अपने घर में छिपाकर रखा। वे पेशे से शिक्षक और अच्छे पेंटर भी थे और इस दौरान आजाद की वह प्रसिद्ध पेंटिंग उन्होंने ही बनाई थी, जिसमें आजाद एक हाथ में बंदूक और दूसरे से मूंछों पर ताव देते दिखाई देते हैं।

अंग्रेज, आजाद को पहचानते नहीं थे और जब उन्हें इस तस्वीर की जानकारी हुई तो वे मुंहमांगी रकम देने को तैयार हो गए थे। तब रुद्र नारायण की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी।

आजाद को झांसी में अपने घर में आश्रय देने वाले रुद्रनारायण थे। तब आजाद को आश्रय देना अपनी जान को जोखिम में डालना था, पर रुद्रनारायण डरे नहीं।

ऐसे में आजाद ने रुद्रनारायण को यहां तक कहा था कि वह पलिस को मेरे बारे में सूचना दे दें, ताकि उनके सिर पर अंग्रेजों द्वारा रखा गया 25,000 रुपए का नकद इनाम उन्हें मिल जाए।

लेकिन रुद्रनारायण ने तुरंत आजाद के इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था। आज झांसी के उस इलाके को मास्टर रुद्रनारायण का नाम दिया गया है, जहां आजाद ने अपना लंबा समय बिताया था।

बिस्मिल, अशफाक ऐसे दोस्त जो फांसी तक साथ चले

काकोरी क्रांति मामले में चार लोगों- अशफाक उल्ला खान, राम प्रसाद विस्मिल, राजेंद्र लाहिड़ी और ठाकुर रौशन सिंह की पुलिस को तलाश थी।

26 सितंबर 1925 को रामप्रसाद बिस्मिल को गिरफ्तार कर लिया गया, लेकिन अशफाक भाग निकले। अशफाक दिल्ली गए।

लेकिन एक साथी ने धोखा दे दिया और अशफाक को ब्रिटिश पुलिस के हवाले कर दिया गया। अशफाक जेल में खाली वक्त में डायरी लिखा करते थे। जेल में अपने अंतिम दिनों में विस्मिल ने अपनी आत्म-कथा लिखी और चुपके से इसे जेल के बाहर पहुंचाया।

आत्मकथा में अशफाक और अपनी दोस्ती के बारे में बहुत ही मार्मिक ढंग से लिखा है- “हिंदुओं और मुसलमानों के बीच चाहे कितने भी मुद्दे रहे, पर फिर भी तुम मेरे पास आर्य समाज के हॉस्टल में आते रहते। तुम्हारे अपने ही लोग तुम्हें काफिर कहते, पर तुम्हें सिर्फ हिन्दू-मुस्लिम एकता की फिक्र थी। मैं जब हिंदी में लिखता, तो तुम कहते कि मैं उर्दू में भी लिखूं ताकि मुसलमान भाई भी मेरे विचारों को पढ़कर प्रभावित हों। तुम एक सच्चे मुसलमान और देशभक्त हो”।

जिंदगी भर दोस्ती निभाने वाले अशफाक और बिस्मिल, दोनों को अलग-अलग जगह पर फांसी दी गई। अशफाक को फैजाबाद में और विस्मिल को गोरखपुर में। पर दोनों साथ ही इस दुनिया से गए।

रामप्रसाद बिस्मिल,अशफाक उल्ला खान औरठाकुर रौशन सिंह को 19 दिसंबर 1927 को फांसी दी गई थी। यह दिन हर साल शहादत दिवस के रूप में याद किया जाता है।

लाल-बाल-पाल स्वतंत्रता आंदोलन में उग्र दौर शुरू किया

19वीं सदी के आरंभ में आजादी की लड़ाई का उग्र दौर शुरू हुआ। यह वो समय था, जब कांग्रेस दो भागों में बंट गई। गरम दल और नरम दल।

गरम दल के प्रमुख नेताओं में बाल गंगाधर तिलक, विपिन चंद्र पाल, लाला लाजपत राय शामिल थे। इन्हें लाल-बाल-पाल के रूप में याद किया जाता है। उनका मानना था कि शांति और विनती से अब काम नहीं चलने वाला।

इस त्रिमूर्ति ने अंग्रेजी शासन की क्रूरता और भारतीय संस्कृति के प्रति हीन भावना की आलोचना की और सुधार व जागरण में जुट गए। तिलक ने लोगों को एकजुट करने के लिए महाराष्ट्र में गणेश उत्सव की शुरुआत की।

दूसरी तरफ विपिन चंद्र पाल ने सामाजिक सुधार के लिए एक विधवा से विवाह किया था जो उस समय दुर्लभ बात थी। इसके लिए उन्हें अपने परिवार से नाता तोड़ना पड़ा।

वहीं लाला लाजपत राय ने स्वामी दयानन्द सरस्वती के साथ मिलकर आर्य समाज को पंजाब में लोकप्रिय बनाया। 30 अक्टूबर 1928 को उन्होंने साइमन कमीशन के विरुद्ध प्रदर्शन में हिस्सा लिया। इस दौरान हुए लाठी-चार्ज से वे घायल हुए और बाद में उनकी मृत्यु हो गई।

मौत से पहले उन्होंने कहा था, ‘मेरे शरीर पर पड़ी एक-एक लाठी ब्रिटिश सरकार के ताबूत में एक-एक कील का काम करेगी।’ यह सही साबित हुआ। 20 वर्ष में भारत आजाद हो गया।

लाला लाजपत राय, बालगंगाधर तिलक,बिपिन चंद्रपाल को लाल बाल-पाल के नाम से जाना जाता है। इन्होंने समाज में आजादी के लिए जरूरी सामाजिक चेतना पैदा की।

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