Sunday, December 22, 2024
13 C
Chandigarh

नर कंकाल से भरी है उत्तराखंड की रूपकुंड झील जानिए क्या है रहस्य

नर कंकाल से भरी है उत्तराखंड की रूपकुंड झील जानिए क्या है रहस्य

एक ऐसी झील जो सर्दियों के मौसम में पूरी तरह से बर्फ से ढक जाती है और फिर गर्मियों का मौसम आता है और धीरे-धीरे बर्फ पिघलने लगती है। अब आप सोच रहे होंगे कि भला इसमें क्या रॉकेट साइंस है?

दरअसल उत्तराखंड के गढ़वाल क्षेत्र के अन्तर्गत अनेक सुरम्य ऐतिहासिक स्थल हैं जिनकी जितनी खोज की जाए उतने ही रहस्य सामने आ जाते हैं। इन्ही में से एक है रूपकुंड झील जिसमें अनेक नरकंकाल  तैरते दिखाई देते हैं।

इसके आलावा यहाँ  के आकर्षक एवं मनमोहक स्थलों को देखने के लिए प्राचीन काल से वैज्ञानिक, इतिहासकार, पुरातत्ववेत्ताओं, भूगर्भ विशेषज्ञों एवं जिज्ञासु पर्यटकों के क़दम इन स्थानों में पड़ते रहे हैं।

तो आइये जानतें इस झील के बारे में :-

इस झील के पानी में सैंकड़ों कंकाल तैरते दिखाई देते है

वैज्ञानिकों  का मानना है कि करीब 900 साल पहले  यहाँ इतनी ओला वृष्टि हुई कि यहां रहने वाले सभी लोग मारे गए। कंकालों की DNA जाँच से ये साबित हुआ कि ये  लगभग 900 साल पहले के हैं। हर साल जब बर्फ पिघलती है तो यहाँ  सैंकड़ों कंकाल झील के पानी में तैरते दिखाई देते हैं।  इतने सारे नरकंकालों के यहाँ होने की वजह से ही इस झील का नाम नर कंकाल झील रख दिया गया है।

1942 में मिली नरकंकालों से भरी ये झील

रूपकुंड झील उत्तराखंड के चमोली जिले में हैं। यह हिमालय में बसी एक छोटी-सी घाटी में मौजूद है। यह 16499 फिट ऊँचे हिमालय पर है।  यह चारों तरफ से बर्फ और ग्लेशियर से घिरी हुई है। यह झील बहुत ही गहरी है। इसकी गहराई लगभग 2 मीटर है और यह झील टूरिस्टों के लिए एक आकर्षण का केंद्र है। रूपकुंड झील में मौजूद नरकंकालों की खोज सबसे पहले 1942 में हुई थी।

इसकी खोज नंदा देवी गेम रिज़र्व के रेंजर एच.के माधवल द्वारा की गई थी।  इस जगह के बारे में नेशनल जियोग्राफी को पता चला तो, उन्होंने भी यहाँ अपनी एक टीम भेजी। उनकी टीम ने इस जगह पर 30 और कंकालों की खोज की थी।

साल 1942 से हुई इसकी खोज के साथ आज तक सैकड़ों नर कंकाल मिल चुके हैं। यहाँ हर लिंग और उम्र के कंकाल पाए गए हैं। इसके अलावा यहाँ कुछ गहने, लेदर की चप्पलें, चूड़ियाँ, नाख़ून, बाल, मांस आदि अवशेष भी मिले है जिन्हें संरक्षित करके रखा गया है। ख़ास बात यह है कि कई कंकालों के सिर पर फ्रैक्चर भी है।

स्थानीय लोग इसे देवी का प्रकोप मानते हैं

स्थानीय लोगों के अनुसार, कन्नौज के राजा जसधवल अपनी गर्भवती पत्नी रानी बलाम्पा के साथ यहाँ तीर्थ यात्रा पर निकले थे। दरअसल, वह हिमालय पर मौजूद नंदा देवी मंदिर में माता के दर्शन के लिए जा रहे थे। वहां हर 12 साल पर नंदा देवी के दर्शन की बड़ी महत्ता थी।

राजा बहुत जोरो-शोरों के साथ यात्रा पर निकले थे, लोगो का कहना था कि बहुत मना करने के बावजूद राजा ने दिखावा नही छोड़ा और वह पूरे जत्थे के साथ ढोल नगाड़े बजाते हुए इस यात्रा पर निकले।

ऐसी  मान्यता थी कि देवी इससे नाराज हो जायेंगी और हुआ भी वही।  उस दौरान बहुत ही भयानक और बड़े-बड़े ओले और बर्फीला तूफ़ान आया, जिसकी वजह से राजा और रानी समेत पूरा जत्था रूपकुंड झील में समा गया।

एक रिसर्च में यह कहा गया कि यहाँ एक ट्रेकर्स का समूह निकला हुआ था। यह समूह अपने रास्ते में ही था कि अचानक बर्फीला तूफ़ान आ गया। इस दौरान, गेंद जितने बड़े- बड़े ओले आसमान से बरस रहे थे।

इस भयानक तूफ़ान से कोई इसलिए भी नहीं बच पाया, क्योंकि 35 किलोमीटर दूर -दूर तक सिर छिपाने की जगह ही नहीं थी।  जिसकी वजह से लोगों ने छटपटा कर दम तोड़ दिया।

Related Articles

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

15,988FansLike
0FollowersFollow
110FollowersFollow
- Advertisement -

MOST POPULAR