कई बार प्रकृति के ऐसे अनोखे रूप देखने को मिलते हैं। जिन्हें समझने में आम इंसान तो क्या बड़े-बड़े वैज्ञानिक भी असमर्थ रह जाते हैं। ऐसी ही एक घटना बारिश से जुड़ी है।
बारिश हर किसी को पसंद होती है, लेकिन अगर यह एक खूनी बारिश हो तो कितना डरावना लगता है। देश के दक्षिण तटीय इलाकों में कुछ ऐसा ही हो रहा है जो आश्चर्य का विषय है।
तो आइए जानते हैं इसके पीछे छिपे रहस्य के बारे में:-
साल 2001 में केरल के दो जिलों – कोट्टयम और इदुक्की में लाल रंग की बारिश हुई थी। यह बात 5 जुलाई 2001 की है। खून के रंग की बारिश को देखकर केरल के लोग दंग रह गए थे।
कुछ लोगों का यह भी कहना है कि इस तरह की लाल रंग की बारिश केरल में 1896 में भी हुई थी। उसके बाद 2001 में 5 जुलाई को इसी तरह की बारिश देखने को मिली। इसके बाद जून 2012 में भी केरल में कुछ ऐसा ही देखने को मिला था।
क्या है कारण इस लाल रंग की बारिश का
2001 में बारिश के पानी के सैंपल सेंटर फॉर अर्थ साइंस स्टडीज़ (CESS) के पास भेजे गए। इस मामले में CESS का मानना था कि किसी उल्कापिंड के फटने की वजह से ये लाल रंग की बारिश हो रही है।
हालाँकि बाद में यह थ्योरी गलत साबित हुई और इसके बाद बारिश के पानी के सैंपल ट्रॉपिकल बॉटैनिकल गार्डन एंड रिसर्च इंस्टिट्यूट (TBGRI) को भेजे गए।
वहां माइक्रोस्कोपिक जांच में सामने आया कि बारिश का रंग लाल होने का कारण एक प्रकार का शैवाल (alga) है।शैवाल नामक यह कवक पेड़ों की गीली शाखाओं और चट्टानों पर बढ़ता है।
इसके छोटे छोटे छिद्र जो आँखों से नहीं देखे जा सकते, हवा में उड़ते रहते हैं। बारिश के दौरान वे एक लाल रंग छोड़ देते हैं जिससे पूरा वातावरण लाल हो जाता है।
इस संबंध में वर्ष 2013 में फिजियो जेनेटिक्स एंड इवोल्यूशनरी बायोलॉजी में एक विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की गई थी। जिसमें यह कहा गया था कि यह कवक मध्य यूरोप और ऑस्ट्रिया में बड़ी संख्या में पाया जाता है। यह केरल और श्रीलंका के वर्षा वनों में भी बड़े पैमाने पर देखा गया है।
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