दुनिया की सबसे छोटी सीईओ

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यह एक सबसे छोटी सीईओ बच्ची की योग्यता के बारे में है. इस बच्ची ने विभिन्न प्रकार की वेबसाइटों को डिजाइन करना 6 वर्ष की आयु में शुरू कर दिया था, और 11 वर्ष की आयु तक उसने खुद की कंपनी बना ली थी. इसी तरह वह दुनिया की सबसे छोटी सीईओ बन गई. यह लड़की श्रीलक्ष्मी सुरेश एक मध्यम वर्गीय परिवार में पैदा हुई थी. उसकी कंप्यूटर के साथ हस्तक्षेप करने की जिज्ञासा ने उसके माता-पिता को उसे कंप्यूटर सीखाने पर मजबूर कर दिया था. 3 साल की उम्र में उसने कंप्यूटर सीख लीया, और 6 साल की उम्र में वह अपनी पहली वेबसाइट डिजाइन कर सकती थी। उसे कई पुरस्कारों के साथ मान्यता मिली है और उसने 11 वर्ष की उम्र में दो कंपनियां TinyLogo और eDesign को शुरू करी है ताकि उसे दुनिया के सबसे छोटे सीईओ के रूप में पहचाना जा सके.

श्रीलक्ष्मी सुरेश का जन्म 1998 में केरल राज्य में कोझिकोड (कालीकट) में श्री सुरेश मेनन और श्रीमती विजू सुरेश की बेटी के रूप में हुआ था. 3 साल की उम्र में श्रीलक्ष्मी ने कंप्यूटर के साथ हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया और 4 साल की उम्र में डिजाइन करना शुरू कर दिया था. श्री ने 6 साल की उम्र में अपनी पहली वेबसाइट बना ली थी. यह लड़की Presentation Higher Secondary School नामक एक विद्यालय में जाती है जिसका उद्घाटन वर्ष 2007 में हुआ था.  इस स्कूल की एक उचित वेबसाइट नहीं है, श्रीलक्ष्मी ने अपने स्कूल में एक वेब पोर्टल तैयार करने की पहल की और बहुत ही अच्छे डिजाइन की एक वेबसाइट तैयार की.

श्रीलक्ष्मी के जुनून ने वर्ष 2006 तक दुनिया भर में अपनी व्यापक मान्यता प्राप्त कर ली थी। उन्हें 6 साल की उम्र में सबसे कम उम्र के वेब डिजाइनर और 11 वर्ष की उम्र में सबसे छोटी सीईओ (कंपनियों की शुरुआत के लिए) हर्ली जॉर्डन जैसे कई युवाओं के साथ जो की “8 साल की आयु में World’s Youngest CEO” और अजय पुरी 3 वर्ष की उम्र में “World’s Youngest Web Designer” के रूप में माना जाता हैं। इस उपलब्धि को हासिल करने वाली श्री सबसे पहली नौजवान है, उसने लगभग 20 तरह के वेबसाइटों को डिजाइन किया है अपनी कंपनि TinyLogo और eDesign के तहत.

उन्हें महिला और बाल विकास मंत्रालय (भारत) द्वारा सम्मानित किया गया.

श्रीलक्ष्मी सुरेश को कई पुरस्कार प्राप्त हुए हैं:

  • The National Child Award for Exceptional Achievement in 2008
  • The Won the Golden Web Award (U.S.A)
  • The Sixty Plus Education Award (Canada),
  • The Feeblemind’s Award of Excellence (UK),
  • The Webmasters Ink Award (U.S.A.) and Penmarric Bronze Award (Canada).
  • The Global Internet Directories Gold Award (USA),
  • The WM8C Stamp of Excellence Award (USA),
  • The 37th Texa’s Web Award (USA)
  • The American Association of Webmasters Merit Award
  • The Thomas Sims Greves Award of Excellence (UK)
  • The Moms Global Award for inspirational Website 2006-07 (UK)
  • The ProFish-N-Sea Charters World Class Website Award (Brazil)
  • The Wadeshi Science Movement Excellence Award 2007 (India)                                                                                                                                                                    श्री लक्ष्मी की सफलता के विभिन्न कारक है जैसे कि स्व-अनुशासन, दृढ़ता, क्रिया और समर्पण. श्रीलक्ष्मी सुरेश अपने जीवन में उच्च ऊंचाइयों को प्राप्त करने के लिए कई युवाओं के लिए आदर्श मॉडल है।                                                                                                                                                                 यहां है श्री लक्ष्मी की वेबसाइट:-  http://www.sreekutty.com/

विश्व के सर्वाधिक दर्शनीय स्थल

पर्यटन के शौकीन लोगों के लिए कुछ दर्शनीय स्थल जहाँ वे पनी छुट्टियों का आनंद ले सकते है. यहाँ विश्व भर के कुछ ऐसे पर्यटन स्थलों के बारे में बताया जा रहा है. जिनका भ्रमण करना आपके लिए एक अविस्मरनीय अनुभव होगा.

आइजल आफ स्काई(स्कॉटलैंड)


स्कॉटलैंड का क्लाउड आइलैंड अपने समुद्र तट, बड़े बड़े महलों तथा प्राग एतिहासिक स्थलों के चलते आपको अपने जादू के पाश में बांघ लेगा. यहाँ के नगरों तथा गावों में शानदार पबों और बारों में आप स्थानीय भोजन का आनंद ले सकते है. यहाँ का मूंगे के रंग वाला पानी, शानदार द्रिश्य्वलियों वाले पर्वत तथा आश्चर्यजनक लैंडस्केप इस क्षेत्र की ख़ास पहचान है.

अटाकामा डेजर्ट (चिली)


यदि आपको भारत में लेह-लदाख बहुत पसंद है तो विश्व के सर्वाधिक सूखे स्थल ऐटाकामा मरुस्थल का भ्रमण आपके लिए शानदार रहेगा. यहाँ चाहे कोई वनस्पति नही है और शहर भी बहुत कम दिखाई देते है परन्तु यहाँ प्रदुषण बिलकुल नही है.

यहाँ आप ल्ग्ज़ुरियस कैंप में ठहर सकते है. कुछ वर्षों के अंतराल पर इस क्षेत्र में वर्षा ऋतू आती है. यदि आप खुशकिस्मत है तो यहाँ मौजूद कुछ हरे-भरे खेतों में आप शानदार गुलाबी फूलों का नज़ारा देख सकते है.

ग्रेट ब्लू होल ( बेलिज़)


प्लेसैन्सिया ताड़ के वृक्षों वाला एक बीच रिसोर्ट है जो कैरेबियन तट पर स्थित है. यह विश्व की सर्वाधिक पसंद की जाने वाली हनीमून डेस्टिनेशन है. इसका निर्माण हिम युग के दौरान हुआ था.

ग्रेट ब्लू होल विश्व में सबसे बड़ा चक्रकार समुद्री छिद्र है. यदि आप इसमें गोता न लगाना चाहते हों तो भी इसे मिस न करें. एक चार्टर्ड हेलीकाप्टर किराए पर लें और आकाश से प्रकृति के इस आश्रय का नजारा ले.

फारेस्ट ऑफ़ वाइव्स (मेडागास्कर)


यहाँ स्थित सिंजी लाइमस्टोन से बनी आकृतियाँ प्राकृतिक विभिन्नता वाले वन्य जीवों की शरणस्थली है. यहाँ आपको जीव जन्तुओं की कई प्रजातियाँ देखने को मिलेंगी. आपको यह देखकर भी आश्चर्य होगा कि किस तरह तीखे, नुकीले नाइव्ज यानी चाकू वनस्पति के मध्य इतनी ख़ूबसूरती से अस्तित्वमान है.

यहाँ का नजारा अधिक तब मिलता है जब आपके साथ कोई प्रमाणिक गाइड हो. यह नुकीले चाकुओं वाला जंगल युनैस्को द्वारा विश्व विरासत स्थल घोषित किया गया है. इसे अक्सर 8वा महाद्वीप भी कहा जाता है. यहाँ का भ्रमण पर्यटन प्रेमियों के लिए एक अविस्मर्णीय अनुभव सिद्ध होगा.

लोफोटेन आइलैंड (नॉर्वे)


लोफोटेन आइलैंड जाने की योजना बनाएं और वहां पर एल्पाइन का आनंद लें और आर्कटिक में सांस लेने का अनुभव संजो लें. इस काम के लिए आपको ध्रुवीय चक्र पर पांव रखने की ज़रूरत नही. प्राकृतिक भूमि तथा ढलवा चट्टानों के पीछे रंग-रश्मियाँ लोफोटेन द्वीप को यादगार बनाती है.

यहाँ पर नार्दर्न लाइट्स की आँखों को चौंधियां देने वाला लाइट शो बहुत ही यादगार है. आप यहाँ पर रोरबुएर (मछुआरों के पुराने मकान) में रह सकते है. यदि आपको स्कीइंग या सपोर्ट फिशिंग अच्छी नही लगती तो आप इस शानदार द्वीप का नज़ारा नोर्वेजीयन क्रूज द्वारा भी ले सकते है.

मोआब (उटाह)


यहाँ स्थित ग्रैंड कैनयन 6 मिलियन वर्ष पुराना है जो आपके दिल को अपने जादू में बाँध लेगा. यहाँ की शानदार चट्टानों प्रकृति का एक अदभुत नजारा पेश करती है. यहाँ के अपने सफ़र को यादगार बनाने के लिए आप काईबाब ट्रेल से सेडार रिज तक का भ्रमण कर सकते है.

कैपाडोसिया (तुर्की)

इस स्थान की अति अर्थातवादी लैंडस्केप तुर्की के एनाटोलियन क्षेत्र में एक भौगोलिक आशर्य की तरह है. यहाँ स्थित भूमिगत शहर तथा घरों के ऊपर शानदार चिमनियाँ आपको फ्लिंट्स्टोन की याद दिला देगी.

यहाँ पर आप 21 वीं शताब्दी के केव यानी गुफा होटल में रहने का आनंद ले सकते है या सुबह के समय हॉट एयर बैलून की सवारी के माध्यम से कैपाडोसियान का विहंगम दृश्य अपनी यादों में संजो सकते है.

75 का हुआ हावड़ा ब्रिज

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‘ गेटवे ऑफ़ कोलकाता’ के नाम से मशहूर हावड़ा ब्रिज को रबिन्द्र नाथ टैगोर के नाम रबिन्द्र सेतु कहा जाता है. देश विदेश के पर्यटकों के अलावा यह मशहूर फिल्मकारों को भी लुभाता रहा है. हाल ही में ब्रिज के 75 साल पूरे होने के मौके पर उसे रंग बिरंगी रौशनी से सजाया गया.वर्ष 1937 से 1942 के बीच बने इस ब्रिज को आम लगों के लिए 3 फरवरी, 1943 को खोला गया था लेकिन जापानी सेना की बमबारी के डर से उस दिन कोई बड़ा समारोह आयोजित नहीं किया गया था.

14 जून,1965 को इस ब्रिज का नाम बदलकर रबिन्द्र सेतु कर दिया गया था. 18वीं सदी में हुगली नदी पार करने के लिए कोई ब्रिज नहीं था. तब नावें ही नदी पार करने का एक मात्र जरिया था. बंगाल सरकार ने 1862 में ईस्ट इंडिया रेलवे कम्पनी इंजिनियर जार्ज टर्नबुल को हुगली नदी पर ब्रिज बनाने की संभावनाओं को पता लगाने का काम सौंपा था. वर्ष 1874 में 22 लाख रूपए की लागत से नदी पर पीपे का पुल बनाया गया जिसकी लम्बाई 1528 फुट और चौड़ाई 62 फुट थी.

वर्ष 1906 में हावड़ा स्टेशन बनने के बाद धीरे धीरे ट्रैफिक और लोगों की आवाजाही बढने पर इस पुल की जगह एक फ्लोटिंग ब्रिज बनाने का फ़ैसला हुआ लेकिन तब तक पहला विश्वयुद्ध शुरू हो गया था. नतीजतन काम ठप्प हो गया. वर्ष 1922 में न्यू हावड़ा ब्रिज कमीशन का गठन करने के कुछ वर्ष बाद इसके लिए निविदाएँ आमंत्रित की गई. बाद में इसके निर्माण का ज़िम्मा ब्रेथवेट, बर्न एंड जोसेफ कंस्ट्रक्शन कम्पनी को सौंपा गया.

इस कैंटरलीवर पुल को बनाने में 26 हज़ार 500 टन स्टील का इस्तेमाल किया गया. इसमें से 23 हजार 500 टन स्टील की सप्लाई टाटा स्टील ने की थी. बन कर तैयार होने के बाद यह दुनिया में अपनी तरह का तीसरा सबसे लंबा पुल था. पूरा पुल महज नदी के दोनों किनारों पर बने 280 फुट ऊँचे दो पायों पर टिका है. 2150 फुट लंबा यह पुल इंजीनियरिंग का एक नायाब नमूना है. इसके दोनों पायों के बीच की दूरी 1500 फुट है.

इसकी खासियत है कि इसके निर्माण में स्टील की प्लेटों को जोड़ने के लिए नट बोल्ट की बजाय धातु की बनी किलों यानी रिवेट्स का इस्तेमाल किया गया.अब इससे रोजाना लगभग सवा लाख वाहन और 5 लाख से ज्यादा पैदल यात्री गुजरते है. ब्रिज बनने के बाद इस पर पहली बार एक ट्रेन गुजरी थी परन्तु वर्ष 1993 में ट्रैफिक बड जाने के बाद  ट्रेनों की आवाजाही बंद कर दी गई.द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जापानी सेना ने इसे नष्ट करने के लिए भारी बमबारी की लेकिन संयोग से इसे कोई नुक्सान नही पहुंचा.

कोल्कता पोर्ट ट्रस्ट इस पुल कि देखरेख करने के साथ ही नियमित रूप से मुरम्मत भी करता है. इसके अलावा समय समय पर ब्रिज की स्थिति का पता लगाने के लिए विभिन्न शोध संस्थानों की ओर से अध्ययन भी कराए जाते है.

 

हमारे दिमाग में छुपा है सच्ची दोस्ती का राज

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शोध मैं वैज्ञानिकों को पता चला है कि मित्रों के दिमाग की गतिविधियां अनजान लोगों की तुलना में अधिक समान होती है. विशेषकर दिमाग के उन हिस्सों की गतिविधि एक जैसी थी जो ध्यान केन्द्रण, भावनाओं तथा भाषा से जुड़े थे.न्यू हेम्पशायर  के डार्टमाउथ कॉलेज के वैज्ञानिकों ने इस शोध के लिए 279 ग्रेजुएट छात्रों की दोस्ती तथा सामाजिक संबंधों का अध्ययन किया. उन्होंने उनके सामाजिक संबंधों का अध्ययन किया.उन्होंने उनके सामाजिक संबंधों के बारे में जाना. उनमे से 42 छात्रों को राजनीति , विज्ञानं, हास्य, संगीत आदि विविध विषयों से जुड़े वीडियो दिखाते हुए रक्त प्रवाह के आधार पर दिमागी गतिविधि को मापने वाले ‘फंक्शनल एम.आर.आई.’ स्कैनर से उनके मस्तिष्क की गतिविधियों पर नज़र रखी गई.

उन छात्रों के मस्तिष्क में हुए ‘न्यूरल रिस्पांस’ से पता चला कि उनमे से मित्रों की दिमागी गतिविधियां काफी हद तक एक समान थी जबकि अनजान लोगों की दिमागी गतिविधियां काफी अलग थी. एक समान गतिविधियों को दिमाग के विभिन्न हिस्सों में पाया गया जिनमे भावनात्मक प्रतिक्रिया, ध्यान केंद्रण से लेकर उच्च स्तर के तर्क-वितर्क से सम्बंधित दिमाग के हिस्से विशेष रूप से शामिल थे. वैज्ञानिकों को यह भी पता चला है कि फंक्शनल एम.आर.आई के नतीजों में समानता के आधार पर केवल दो लोगों के मित्र होने का ही पता नहीं लगाया जा सकता है, बल्कि यह भी बताया जा सकता है कि सामाजिक स्तर पर वे एक दुसरे से कितने जुदा है.

एक वैज्ञानिक थालिया व्हिट्ले बताती है,” इंसान एक सामाजिक प्राणी है जिनकी जिंदगियां अन्य सभी से जुडी रहती है. अगर हम समझना चाहते है कि इंसानी मस्तिष्क किस तरह से काम करता है तो हमें यह भी समझना होगा कि हमारे मस्तिष्क जोड़ों में किस तरह से काम करते है अर्थात किस तरह से वे एक दुसरे को आकार देते है”इससे पहले वैज्ञानिकों की इसी टीम ने पता लगाया था कि किसी परिचित को देखते ही दिमाग हमें बताता है कि वे कितने महत्वपूर्ण या प्रभावशाली है तथा हमारी सामाजिक मण्डली में उनकी क्या हैसियत है.

आगे यह टीम पता लगाना चाहती है कि दुनिया को एक जैसी नज़र से देखने वाले क्या स्वाभाविक या कुदरती तौर पर एक – दुसरे की और खींचे चले जाते है ? वे यह भी जानेंगे कि क्या एक दुसरे से अपने अनुभव साँझा करने के बाद मित्रों में ज्यादा समानताएं दिखने लगती है ?

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अजीबोगरीब – इस लड़की को लगातार सात बार काट चुके हैं सांप

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आज के युग में यह यकीन करना मुश्किल हो जाता है लेकिन कोई विश्वास करे या नहीं यह बिलकुल सच है कि बी.बी.एन. कालेज चकमोह में बी.ए. द्वितीय वर्ष में पढ़ने वाली प्रियंका को पिछले साल अप्रैल माह से लेकर बीते वीरवार तक अर्थात 6 माह में 7 बार सांप दंश का शिकार होना पड़ा है।

अप्रैल में काटा पहली बार

जी हां, सर्पदंश की पीड़िता प्रियंका व उसकी मौसी गायत्री देवी ने बताया कि प्रियंका को पिछले साल यानि 2017 में अप्रैल माह में सांप ने काटा. इस पर उसके परिवार ने हमीरपुर जिला के अंतर्गत बिझड़ी विकास खंड की पंचायत दलचेहड़ा, वाहल अर्जुन गांव के निवासी बालक राम को फोन किया। बालक राम ने फोन पर ही प्रियंका के शरीर में फैला सर्पविष तांत्रिक विद्या से निकाल दिया।

तूरकाल गाँव की रहने वाली है प्रियंका

प्रियंका पुत्री बलबीर सिंह निवासी तूरकाल पी.ओ. बुधान तहसील बंगाणा जिला ऊना की रहने वाली है तथा वर्तमान में वह अपनी मौसी गायत्री देवी के घर झबोला में रहती है तथा यहीं से बाबा बालक नाथ डिग्री कालेज चकमोह में बी.ए. द्वितीय वर्ष की पढ़ाई कर रही है।

स्कूल वाली गली में घेरा था 4 सांपों ने

सर्पदंश की सबसे ताजा घटना की जानकारी देते हुए प्रियंका ने बताया कि बीते 5 अक्तूबर को वह चकमोह कालेज से मौसी के घर झबोला आ रही थी। जब वह तलाई में पहुंचकर मौसी को दवाई लाने सी.एच.सी. अस्पताल गई तो अस्पताल के पास स्कूल वाली गली में उसको 4 सांपों ने घेर लिया। जब उसने भागने की कोशिश की तो 2 सांपों ने उसे काट लिया। सर्पदंश के साथ ही वह बस में घर के लिए बैठी तथा झबोला में उतर गई लेकिन उसके बाद उसे कुछ पता नहीं चला।

गाड़ी चालक ने पहुँचाया था तांत्रिक के पास

जब झबोला सहकारी सभा के पास सड़क पर कुछ महिलाएं एकत्रित थीं तो वहां से कार (एच.पी. 01बी-0456) लेकर गुजर रहे प्रदीप उर्फ  लक्की ने गाड़ी रोकी और प्रियंका से पूछा तो उसने धीरे से बताया कि उसे सांप ने काटा है। प्रियंका की बात सुनकर प्रदीप उसे सीधे सर्वविष तांत्रिक विद्या प्राप्त बालक राम निवासी वाहल अर्जुन के पास ले गया तथा उसकी मौसी गायत्री को घटना की जानकारी दी। प्रदीप ने बताया कि जब उसने प्रियंका को देखा तो उसके मुंह से सफेद झाग निकल रहा था। अब प्रियंका बिलकुल ठीक है और उसका सारा विष निकल गया है।

74 सर्पदंश पीड़ितों का विष निकाल चुके हैं बालकराम

उधर, इस बारे बालक राम से जब बात की गई तो उन्होंने बताया कि उसने वर्षों पूर्व सर्वविष अर्थात किसी भी जीव का विष निकालने की सिद्धि की हुई है तथा अकेले इस साल ही 5 अक्तूबर तक फोन और सीधे पीड़ित को सामने बिठाकर 74 सर्पदंश पीड़ितों का विष निकाल चुके हैं। उन्होंने बताया कि पी.जी.आई. चंडीगढ़ में दाखिल मरीजों का भी फोन पर सर्पविष उतारा है।

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दिल चुरा लेंगे ये दिल जैसे आकर वाले स्थान

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दिल चुरा लेंगे ये दिल जैसे आकर वाले स्थान

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दुनिया के उन सथानों की सैर करें जहां प्रकृति ने सबसे ज्यादा प्यार बरसाया है. ये कुछ ऐसे ख़ास दिल को छु लेने वाले स्थान है जिन्हें प्रकृति ने दिल जैसा आकार दे रखा है.

ग्लासेन्सुनजाक टापू (क्रोएशिया)

‘आईलैंड ऑफ लव’ तथा ‘लवर्स आइलैंड’ के नाम से मशहूर यह टापू प्राकृतिक रूप से दिल के खूबसूरत आकार है. एड्रियाटिक सागर में पासमन चैनल में स्थित यह टापू 2009 में चर्चा में आया था. हालांकि, इस टापू के दिल के आकार को निहारने का आनंद आकाश से ही लिया जा सकता है. टापू पर पर्यटकों के रहने आदि के लिए कोई विशेष बंदोबस्त भी नही है.

ब्लू होल(गुआम)

इस स्थान का आनंद लेने के लिए आपको गोताखोरी करनी पड़ेगी. हालांकि, इस स्थान को देखने के लिए गोताखोरी में महारत होना ज़रूरी नहीं है. इलाके में पर्यटकों के लिए कई गोताखोरी स्कूल है जहां के माहिर गोताखोर पर्यटकों को दिल के आकार के इस विशाल छिद्र तक सुरक्षित ले जाते है.चूना पत्थरों के बीच दिल के आकार का यह विशाल छिद्र है. इससे होकर नीचे मौजूद मूंगा चट्टानों तक रास्ता जाता है. यहाँ तरह तरह की मूंगा, मछलियों तथा अन्य सुंदर समुद्री जीवों को देखा जा सकता है.

विल्सन स्टंप (याकूशिमा, जापान)

कुछ लोगों को यह स्थान परिकथाओं जैसा प्रतीत होता है. जादुई अहसास वाला यह स्थान अनेक प्राकृतिक नजारों से भरपूर है. हालांकि, मोहब्बत में डूबे रहने वालों के लिए यहाँ का विलसन स्टम्प ही सबसे अधिक आकर्षित करता है. यह एक गिरे हुए सूगी वृक्ष की विशालका्य जड़ है जिसने दिल का आकार ले लियाहै. 44 मीटर ऊँचा यह वृक्ष करीब 400 वर्ष पूर्व गिरा था. इस शानदार स्थान तक पहुँचने में होने वाली थकान इसे देखते ही गायब हो जाती है.

हार्ट रीफ (ऑस्ट्रेलिया)

गोताखोरी, तैराकी तथा पानी के नीचे की दुनिया में रुचि रखने वालों के लिए यह एक अहम स्थान है. ग्रेट बैरियर रीफ जैसा नजारा कुदरत कहीं-कहीं ही दिखाती है. इनमे से एक मूंगा चटटान आश्चर्यजनक रूप से हुबहू दिल के आकार की है.मूंगा ने इसमें एकदम दिल का आकार बनाया है जिसके बीच शार्क,मंटा रे तथा हर रंग की मछलियों तैरती है. आमतौर पर इस चटटान को समुद्री जहाज में सवार होकर आकाश से निहारा जाता है. इस टूर के दौरान पर्यटकों को विश्व के सबसे खूबसूरत समुद्र तटो में से एक व्हाईट हैवन बीच तथा हार्डी लैगून की सैर भी करवाई जाती है.

हार्ट रॉक (ओशिमागुन, जापान)

पत्थर से बनी इस रोमांटिक आकृति को बसंत, सर्दियों तथा पतझड के मौसम में निम्न ज्वार के वक्त दिन में कुछ समय के दौरान ही देखा जा सकता है.जापान के कागोशिमा के पूर्वी तातसूगोचो तट पर स्थित पत्थरों के बीच दिल का सुंदर आकार बना हुआ है. अपनी अनूठी आकृति के कारण यह स्थान प्यार करने वालों के बीच पवित्र स्थान जैसी अहमियत हासिल कर चूका है. कहा जाता है कि जो भी इसे देख लेता है प्यार में उसका भाग्य चमक उठता है.

अनफि देल मर (स्पेन)

 

जो लोग अपने बच्चों के साथ वैलेंटाइन्स डे मनाना चाहते है उनके लिए यह स्थान एकदम उपयुक्त है. स्पेन में ग्रैन कनेरिया के दक्षिण में स्थित एन्फी देल मार एक खूबसूरत तट है, जहाँ की महीन रेत तथा शांत पानी किसी को भी तरोताजा कर देते है. यहाँ दिल के आकार का एक छोटा टापू है जहाँ बच्चों के साथ सैर के लिए सुंदर बगीचे भी बने है.

वाटकिंस ग्लेन स्टेट पार्क (अमेरिका)

न्यूयॉर्क राज्य में स्थित इस पार्क में प्यार में गिरफ्त लोगों के लिए एक आश्चर्य है- एक छोटा प्राकृतिक रूप से बना दिल के आकार का तलाब, जो इस स्थान पर मौजूद 19 जलप्रपातों के आकर्षण में चार चाँद लगाता है. इस स्थान पर अपने साथी के साथ स्नान किसी के लिए भी यादगार बन सकता है.

कैमरे ने बदली कूड़ा बीनने वाले लड़के की ज़िन्दगी

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क्या आपने कभी सोचा है कि एक कैमरे ने किसी की ज़िन्दगी बदल दी. 1999 में 11 वर्षीय एक लड़का पश्चिम बंगाल के पुरूलिया में अपने घर से भाग कर नई दिल्ली पहुंचा, जहाँ पेट भरने की मजबूरी में रेलवे स्टेशन पर कूडा बीनने का काम करने लगा. कुछ दिन पूर्व वही कॉन्फ़ेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री द्वारा आयोजित एक सम्मलेन में मेहमान वक्ता के रूप में उपस्थित था. वहां मौजूद उद्योगपतियों कॉर्पोरेट घरानों के दिग्गजों तथा अन्य प्रमुख लोगों के बीच उसने जीवन की अपनी अनूठी कहानी सुनाई.

एक वक्त ट्रेनों की पैंट्री कारों से बचा बचा खाना चुराने तथा बेघरों के लिए बने आश्रय स्थलों के ठंडे फर्श पर सोकर दिन गुजारने वाला वह लड़का विक्की रॉय आज अंतराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त डाक्यूमेन्ट्री फोटोग्राफर है. दिसम्बर में ही दिल्ली में उसकी फ़ोटोज़ की ताजा प्रदर्शनी लगी थी. इस प्रदर्शनी में पेश की गई उसकी फ़ोटोज़ दिखा रही थी कि किस तरह से विकास के नाम पर खूबसूरत पहाड़ों, नदियों तथा हिमाचल की वादियों को बर्बाद किया जा रहा है.

विक्की के पिता एक दर्जी थे जिनके लिए अपनी नाममात्र आय से 7 बच्चों को पालना संभव नहीं था. वह मुश्किल से ढाई वर्ष का था, जब उसे नाना नानी के घर भेज दिया गया था.29 वर्षीय विक्की बताता है,”मेरे नाना तथा मामा बोकारो स्टील प्लांट में काम करते थे. मेरे माता पिता ने सोचा कि उनके पास रह कर कम से कम मै स्कूल की पढाई तो पूरी कर ही लूँगा.” परंतु नए घर में अक्सर होने वाली पिटाई से वह बेहद परेशान रहने लगा. उसके अनुसार “एक रात उसने कुछ पैसे चुराए और दिल्ली को जाने वाली ट्रेन में चढ़ गया.

मैंने कुछ फ़िल्में देखी थी जिनके प्रभाव में मैंने सोचा कि एक बड़े शहर में जाने पर मेरी ज़िन्दगी बदल जाएगी.”नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर कूड़ा बीनने वालों के समूह के साथ उसने 6 महीने गुजारे. कुछ महीने बाद अजमेर गेट के एक ढाबे पर वह छोटे मोटे काम करने लगा क्यूंकि रेलवे स्टेशन पर बड़े खतरे थे. वह कहते है,”स्थानीय ठग और पुलिस अक्सर हमे पीटाकरते थे. हम बच्चों में आपस में मार पिटाई भी आम बात थी, जो छोटी सी बात पर भी ब्लेड से हमला कर देते थे.”

सन 2000 में एक सामाजिक कार्यकर्ता ने ढाबे पर विक्की को देखा उसे सलाम बालक ट्रस्ट के पास ले गया. 10वीं कक्षा की परीक्षा देने के बाद कैमरे ने उसे नई ज़िन्दगी दी.उसके टीचर ने उसे वोकेशनल कोर्स करने की सलाह दी क्यूंकि उसे केवल 48 प्रतिशत अंक मिले थे. उन्होंने उसे टी.वी मैकेनिक बनने को कहा परन्तु उसने फोटोग्राफी को चुना. उसका पहला कैमरा था, कोडक केबी 10 जिसकी उस वक़्त कीमत 500 रुपये से कम थी. 18 वर्ष का होने पर स्वंयसेवी संस्था ने उसे पोर्ट्रेट फोटोग्राफर अनय मान के असिस्टेंट की नौकरी दिलवा दी. विक्की के अनुसार अनय की देखरेख में फोटोग्राफी सीखना उसके साथ होने वाली सबसे अच्छी बात रही.

सन 2008 में अमेरिका की मेबैक फाउंडेशनने वर्ल्ड ट्रेड टावर के पुन्रनिर्माण की डॉक्यूमेंटेशन करने के लिए विक्की का चयन किया. इसके बाद सन 2014 में उसे एम.आई.टी इंडिया लैब फेलोशिप प्रदान किया. अपनी प्रदर्शनियों के बीच विक्की विश्व स्वस्थ्य संगठन तथा unicef के साथ मिल कर काम करने के अलावा बतौर पैशेवर फोटोग्राफर भी काम करता है. वक़्त मिलने पर वह परिवार से मिलने पुरूलिया जाता है. विक्की खुद को बचाने वाली स्वंयसेवी संस्था की फंड जुटाने में भी मदद करता है. उसने कहा,”मुझे अच्छे लोग मिले जिनकी वजह से सब अपने आप होता गया”

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सेहत के लिए खतरनाक हो सकती है “वाटर डाइटिंग”

 

सेहत के लिए खतरनाक हो सकती है “वाटर डाइटिंग”

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एक नई प्रकार की डाइट “वाटर डाइटिंग” आजकल बहुत प्रसिद्ध है. इस डाइट में केवल पानी, चाय तथा कॉफ़ी ली जाती है, और इसमें कुछ खाया पीया नहीं जाता.इस डाइट की मदद से कई युवा पतले होने की कोशिश करने लगे है. हालांकि “वाटर डाइटिंग” के नाम से पुकारी जाने वाली इस डाइट को जानकार वजन कम करने का बेहद खतरनाक तरीका बता रहे है.

“वाटर फास्टिंग” में वजन कम करने के लिए किसी भी तरह का भोजन नहीं किया जाता है और केवल तीन प्रकार के पेय ही पिए जाते है. हाल के दिनों में यह सोशल मीडिया पर ख़ासा लोकप्रिय हुआ है. कई लोगों ने तो हेश्ताग #waterfast के साथ वजन कम करने की अपनी प्रगति के बारे में जानकारी तथा फोटोज पोस्ट करनी शुरू कर दी ताकि अन्य लोग भी इसे आजमानी के लिए प्रेरित हो.

परंतु जानकारों ने चेतावनी दी है कि यह स्वस्थ के लिए बेहद खतरनाक है. इसकी तुलना “एनोरैक्सिया” (वजन बढने के भय से भोजन न करना) जैसी स्थिति से करते हुए वे इससे बचने की सलाह दे रहे है. एक विशेषज्ञ जोआन लैबिनेर कहते है,”यह’वाटर फास्टिंग’ शरीर के अंगों के लिए बेहद बुरा है. एनोरैक्सिया से ग्रस्त लोगों को हार्ट अटैक भी हो सकता है क्यूंकि उनका शरीर दिल से अपनी ज़रूरतें पूरी करने लगता है. शरीर को लगता है कि यह आपात स्थिति है और वह फैट जमा करने पर रोक लगा देता है तथा मांसपेशियों का इस्तेमाल जिंदा रहने के लिए करने लगता है.”

‘वाटर फास्टिंग’ ट्विटर पर भी खासा लोकप्रिय हुआ और कई लोगों ने दावा किया कि केवल पानी के सहारे जिंदा रहने से उनकी त्वचा पर गजब का असर हुआ है और वे कमाल के लगने लगे है. कुछ अन्य ने दावा किया कि उन्हें इससे पहले इतनी अच्छी नींद कभी नहीं आती थी.

हालांकि, एक डाइटर ने इसके विपरीत अपने अनुभव सांझे करते हुए बताया कि “वाटर फास्टिंग” छोड़ने\ पर उसे मजबूर होना पड़ा क्यूंकिकमजोरी की वजह से उसके लिए बिस्तर से उठना भी कठिन हो गया था.अमेरिकी शहर टोरंटो के एक गुर्दा विशेषज्ञ जासन फंग के अनुसार “वाटर फास्टिंग” केवल उन लोगों के लिए उपयुक्त हो सकता है जो बहुत मोटे हों अथवा टाइप-2 डायबिटीज से ग्रस्त हों अथवा टाइप-2 डायबिटीज़ से ग्रस्त हों, वह भी किसी डॉक्टर की निगरानी में.

उनके अनुसार,”यह किया जा सकता है, लोग इसे कर रहे है परन्तु इसे सुरक्षित ढंग से करना चाहिए.  मुझे नहीं लगता कि यह सुरक्षित है. हाँ यदि आप बहुत ज्यादा मोटे है तो यह सबसे खतरनाक काम नहीं है लेकिन पतले या सुडौल शरीर वालों के लिए यह ज्यादा खतरनाक है”

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एनेस्थीसिया से पौधे भी हो जाते है बेहोश

एनेस्थीसिया से पौधे भी हो जाते है बेहोश

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एनेस्थीसिया लेकर पौधे भी जानवरों तथा इंसानों जैसी ही प्रतिक्रिया करते है. एक शोध में इस बात का पता चला है और भविष्य में एनैस्थटिक्स प्रभावों के बारे में जानने के लिए पौधों पर ही प्रयोग करने की संभावनाएं भी देखी जाने लगी है.

ईथर गैस सूंघने के बाद ऑपरेशन के दौरान रोगियों को दर्द का एहसास ना होने की खोज के बाद 19वीं सदी में सर्वप्रथम एनेस्थीसिया का इस्तेमाल शुरू हुआ था. तब से एनेस्थीसिया में सहायक कई प्रकार के रसायनों का पता लगाया जा चूका है.

ताजा शोध को जर्मनी की यूनिवर्सिटी ऑफ बोन के विशेषज्ञ फ्रेंटीसेक बालुस्का के नेतृत्व में किया गया है. इसमें देखने को मिला है कि एनैस्थटिक्स के सम्पर्क में आने के बाद छुईमुई व् मटर के पौधे छूने पर होने वाली हरकतें नहीं कर सके.

कीटों को तुरंत पकड़ने में सक्षम “वीनस फ्लाई ट्रैप्स” पौधे एनैस्थटिक्स के प्रभाव में आने के बाद अपने इलेक्ट्रिकल सिग्नल पैदा करने में अक्षम हो गए तथा मखियों को पकड़ने के लिए वे अपने ढक्कन जैसे पत्तों को बंद नहीं कर सके.

“वीनस फ्लाई ट्रैप्स” में ऐसा होने की वजह डाईथील ईथर एनेस्थीसिया दिए जाने से किसी भी तरह की हरकत करने की क्षमता खो देना पाया गया.

इसी तरह के एनेस्थीसिया के कारण मटर के छोटे छोटे पौधों में स्वत: होने वाली गतिविधियाँ भी बंद हो गई. इस शोध से साबित होता है कि पौधों पर भी एनैस्थटिक्स का असर ठीक जानवरों तथा इंसानों जैसा ही होता है यानी वह भी इसके प्रभाव से बेहोश हो जाते है.

हमारा दिमाग हो रहा है गोल

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वैज्ञानिकों ने होमो सेपियन्स के जीवाश्म के 20 नमूनों का विश्लेषण करने के बाद कुछ नतीजे निकले है. कार्बन डेटिंग के आधार पर इन नमूनों की आयु3 लाख वर्ष बताई गई है. दिमाग का आकार तो लगभग उतना ही है लेकिन उसकी आकृति बदल गई है. गत 1 साल से लेकर 35000 वर्ष के बीच के दौर में बदलाव हुए जिसके नतीजे में इंसान का दिमाग धीरे धीरे बदलते हुए मौजूदा आकृति तक पहुंचा है.

जर्मनी के मार्क्स प्लांक इंस्टिट्यूट ऑफ़ एवाल्युशनरी एंथ्रोपोलाजी की मानवविज्ञानी सिमोन नायबावर का कहना है कि दिमाग के गोल होने की वजह है पार्शिवक हिस्से और अनुमस्तिष्क यानी सेरिबैलम का उभरना. मशहूर जर्नल साइंस एडवांसेज में इसके बारे में एक रिसर्च का नतीजा छपा है. इस रिसर्च का नेतृत्व  प्रोफेसर सिमोन ने ही किया है. सिमोन बताते है,”पार्शीवक हिस्सा एक महत्वपूर्ण धुरी है जहां मस्तिष्क के अलग अलग हिस्से मिलते है और यह अनुकूलन, ध्यान जैसे अन्य कई अहम् कामों से जुडा है.”

सेरिबैलम का संबंध संचालन से जुड़े कामों जैसे गतिविधियों का संयोजन और संतुलन के साथ ही सक्रिय याददाश्त, भाषा, सामाजिक अनुभूति और भावनात्मक प्रक्रियाओं से है. सिमोन का कहना है कि दिमाग आज के इंसान में जन्म के बाद के कुछ महीनों में गोलाकार रूप से विकसित होता दिखता है.इंसान के दिमाग का मौजूदा आकार में परिवर्तन पुरातात्विक प्रमाणो से जो परिवर्तन के संकेत मिलते है उसके अनुरूप ही है. इसके अनुसार यह परिवर्तन 40 से 50 हज़ार वर्ष पहले हुए. इन्हें इंसानी बर्तावके आधुनिकीकरण का सम्पूर्ण समूह कहा जाता है. इंसान के दिमाग में ठीक उस वक्त परिवर्तन शुरू हुआ जब वह नए परिवेश में नई चीज़ें सीख रहा था.

इनमे जोड़ तोड़ करना और काल्पनिक विचार जैसे कि कला, रचना, सजावट, रंगों का इस्तेमाल,मृत लोगोंका अंतिम संस्कार, कई उपकरणों वाले जटिल यंत्र बनाना, हड्डियों किकलाकृतियां आदी शामिल थे. वैज्ञानिक बताते है कि अल्ज़ाइमर्स या इसके जैसी दूसरी दिमेंसिया वाली बीमारियाँ होने से दशकों पहले ही दिमाग में खतरनाक बदलाव आने लगते है. तभी लोगों के पास अपने दिमाग की सेहत सुधारने का मौका होता है.

इससे पहले होमो सेपियन्स का सबसे पुराना जीवाश्म मोरक्को में मिला था और उसकी उम्र 3 लाख वर्ष बताई गई. इसके साथ ही इथियोपिया से भी एक जीवाश्म मिला जिसकी उम्र 1,95,000 वर्ष थी.इन सबके दिमाग लम्बे थे,निएंडरथाल मानव की तरह. निएंडरथाल हमारे सबसे नजदीकी पूर्वज है जो करीब 10 हज़ार वर्ष पहले लुप्त हो गए. इसके बाद के इंसान का दिमाग गोल होता चला गया. रिसर्च दिखाती है कि होमो सेपियन्स एक विकासशील जीव है जिसकी अफ्रीकी जड़ें काफी गहरी है और जिसमे लम्बे समय से लगातार परिवर्तन h रहे है.

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