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क्यों मनाया जाता है लोहड़ी का त्यौहार, जानिए कुछ रोचक तथ्य

हर वर्ष जनवरी माह में लोहड़ी का त्यौहार हर्षोउल्लास के साथ मनाया जाता है। सिख समुदाय के लिए यह दिन विशेष होता है। फसल के तैयार होने की खुशी में यह पर्व मनाया जाता है। यह पर्व  विशेष रूप से पंजाब और हरियाणा में बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है।

लोहड़ी एवं मकर संक्रांति एक-दूसरे से जुड़े रहने के कारण सांस्कृतिक उत्सव और धार्मिक पर्व का एक अद्भुत त्यौहार है। लोहड़ी को नई फसल की कटाई तथा सर्दी के समापन का प्रतीक भी माना जाता है।

इस दिन से सर्दी कम होने लगती है, वातावरण का तापमान बढ़ने लगता है। लोहड़ी के दिन लोग नए कपड़े पहनते हैं। एक दूसरे को बधाइयां एवं शुभकामनाएं देते हैं।

लोहड़ी की तिथि

ज्योतिषियों की मानें तो मकर संक्रांति तिथि से एक दिन पूर्व लोहड़ी पर्व मनाया जाता है। साल 2024 में लोहड़ी 13 जनवरी के बदले 14 जनवरी को है। लोहड़ी के दिन संक्रांति तिथि संध्याकाल 08 बजकर 57 मिनट पर है।

लोहड़ी का अर्थ

लोहड़ी को पहले तिलोड़ी कहा जाता था। यह शब्द तिल और रोड़ी (गुड़ की रोड़ी) शब्दों को मिलाकर बना है, जो समय के साथ बदल कर लोहड़ी के नाम से जाना जाता हैं।

मकर संक्रांति के दिन तिल-गुड़ खाने और बांटने का महत्व है। पंजाब के कई इलाकों में इसे लोही या लोई भी कहा जाता है।

क्यों मनाई जाती है लोहड़ी?

यह त्यौहार फसलों कीकटाई और बुआई से जुड़ा है। सिखों के लिए लोहड़ी खास मायने रखती है। त्यौहार के कुछ दिन पहले से ही इसकी तैयारी शुरू हो जाती है।

विशेष रूप से शरद ऋतु के समापन पर इस त्यौहार को मनाने का प्रचलन है। पंजाब में यह त्यौहार नए साल की शुरुआत में फसलों की कटाई के उपलक्ष्य के तौर पर मनाया जाता है।

रोचक तथ्य

  • लोहड़ी को विशेष रूप से पंजाब और हरयाणा में मनाया जाता है। लोहड़ी शब्द इसकी पूजा में इस्तेमाल होने वाली वस्तुओं से मिलकर बना है। इसमें ल (लकड़ी) +ओह (गोहा = सूखे उपले) + ड़ी (रेवड़ी) = ‘लोहड़ी‘ के प्रतीक हैं।
  • साल की सभी ऋतुओं पतझड़, सावन और बसंत में कई तरह के छोटे-बड़े त्यौहार मनाए जाते हैं, जिनमें से एक प्रमुख त्यौहार लोहड़ी भी है। लोहड़ी को पौष के आखिरी दिन और माघ की शुरुआत में सर्दियों का अंत होता है जो ठीक उसी समय होता है जब सूरज अपना रास्ता बदलता है। ऐसा माना जाता है कि लोहड़ी की रात सर्दियों की सबसे ठंडी रात होती है।
  • लोहड़ी की संध्या को लोग लकड़ी जलाकर अग्नि के चारों ओर चक्कर काटते हुए नाचते-गाते हैं और आग में रेवड़ी, मूंगफली, खील, मक्के के दानों की आहुति देते हैं। अग्नि की परिक्रमा करते हैं और आग के चारों ओर बैठकर लोग आग सेंकते हैं।
  • लोहड़ी उत्सव उस घर में और भी खास होता है, जिस घर में नई शादी हुई हो या बच्चा हुआ हो। इन घरों में लोहड़ी विशेष उत्साह के साथ मनाई जाती है। लोहड़ी के दिन बहन और बेटियों को मायके बुलाया जाता है।
  • लोहड़ी को फसल त्यौहार के रूप में भी मनाया जाता है। जैसा कि पारंपरिक रूप से जनवरी गन्ने की फ़सल काटने का समय होता है, और गन्ने से बने उत्पाद जैसे गुड़ और गज्जक लोहड़ी के उत्सव के लिए आवश्यक हैं।
  • लोहड़ी के दिन विशेष पकवान बनते हैं जिसमें गज्जक, रेवड़ी, मूंगफली, तिल-गुड़ के लड्डू, मक्का की रोटी और सरसों का साग प्रमुख होते हैं। इस दिन नववधू किचन में पहली बार सबके लिए खाना बनाती है। लोहड़ी से कुछ दिन पहले से ही छोटे बच्चे लोहड़ी के गीत गाकर लोहड़ी हेतु लकड़ियां, मेवे, रेवडियां, मूंगफली इकट्ठा करने लग जाते हैं।
  • भारत के अलग-अलग राज्यों में मकर संक्रांति के दिन या आसपास कई त्यौहार मनाएं जाते हैं, जो कि मकर संक्रांति के ही दूसरे रूप हैं। जैसे दक्षिण भारत में पोंगल, असम में बिहू और ऐसे ही पंजाब में लोहड़ी मनाई जाती है।
  • इस त्यौहार का महत्वपूर्ण होने का एक और कारण यह भी है कि पंजाबी किसान लोहड़ी के अगले दिन को वित्तीय नया साल मानते हैं, जो सिख समुदाय के लिए भी बहुत महत्व रखता है।
  • वास्तव में लोहड़ी पर गाए जाने वाले लोक गीतों का कारण सूर्य देव को धन्यवाद देना और आने वाले वर्ष के लिए उनकी निरंतर सुरक्षा की कामना करना है। नृत्य और गिद्दा के अलावा, लोहड़ी पर पतंग उड़ाना भी बहुत लोकप्रिय है।
  • लोहड़ी से कई ऐतिहासिक गाथाएं भी जुड़ी हुई हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार सती के त्याग के रूप में यह त्यौहार मनाया जाता है। कथानुसार जब प्रजापति दक्ष के यज्ञ की आग में कूदकर शिव की पत्नीं सती ने आत्मदाह कर लिया था तो उसी दिन की याद में यह पर्व मनाया जाता है।
  • दूसरी मान्यता है कि मुगलकाल में दुल्ला भट्टी नाम का एक लुटेरा था। वह हिन्दू लड़कियों को गुलाम के तौर पर बेचने का ​विरोध करता था। वह उनको आजाद कराकर हिन्दू युवकों से विवाह करा देता था। लोहड़ी के दिन उसके इस नेक काम के लिए गीतों के माध्यम से उसका आभार जताया जाता है।
  • यह भी कहा जाता है कि संत कबीर की पत्नी लोई की याद में यह पर्व मनाया जाता है। यह भी मान्यता है कि सुंदरी और मुंदरी नाम की लड़कियों को राजा से बचाकर एक दुल्ला भट्टी नामक डाकू ने किसी अच्छे लड़कों से उनकी शा‍दी करवा दी थी।
  • ईरान में भी नववर्ष का त्यौहार इसी तरह मनाते हैं। आग जलाकर मेवे अर्पित किए जाते हैं। पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में मनाई जाने वाली लोहड़ी और ईरान का चहार-शंबे सूरी बिल्कुल एक जैसे त्यौहार हैं। इसे ईरानी पारसियों या प्राचीन ईरान का उत्सव मानते हैं।

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