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जानिए गोदावरी नदी के अनेक नामों की विशेषता के बारे में

आज हम आपको भारत के दक्षिण की सबसे महत्वपूर्ण मानी जाने वाली गोदावरी नदी के बारे में बताने जा रहे हैं।आपको बता दें कि गोदावरी नदी भी भारत की सबसे लंबी नदियों में से एक है, और यह नदी महाराष्ट्र के नासिक नगर से 30 कि.मी.की दूरी पर पश्चिम में ब्रह्मगिरि पर्वत के एक कुंड से निकलक लगभग 1,450 कि.मी. तक की दूरी तय करती है। इसके बाद वह बंगाल की खाड़ी में विसर्जित हो जाती है।

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गोदावरी के अनेक नाम

कुछ विशेषजों के अनुसार, इसका नामकरण तेलुगु भाषा के शब्द ‘गोद’ से हुआ है, जिसका अर्थ मर्यादा होता है। एक बार महर्षि गौतम ने घोर तप किया था। इससे रूद्र प्रसन्न हो गए थे और उन्होंने एक बाल के प्रभाव से गंगा को प्रवाहित किया था। गंगाजल के स्पर्श से एक म्रत गाय पुनर्जीवित हो गयी थी।

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इसी कारण इसका नाम गोदावरी पड़ा था। गौतम से संबंध जुड़े जाने के कारण इसे गौतमी के नाम से भी जाना जाता हैं। इस नदी में नहाने से सारे पाप धुल जाते हैं, इसी लिए इसको “वृद्ध गंगा” या “प्राचीन गंगा” के नाम से भी जाना जाता है।

गोदावरी की सात धारा वसिष्ठा, कौशिकी, वृद्ध गौतमी, भारद्वाजी, आत्रेयी और तुल्या अतीव प्रसिद्ध है। सात भागों में विभाजित होने के कारण इसे सप्त गोदावरी भी कहते हैं।

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भारत के चार प्रदेशों से गुज़रती है गोदावरी

आपको बता दें कि गोदावरी नदी भारत के चार राज्य महाराष्ट्र, तेलंगाना, छत्तीसगढ़ और आन्ध्र प्रदेश में बहती है। इसके अलावा गोदावरी नदी केन्द्र शासित प्रदेश पुड्डुचेरी के गांव यनम से होकर भी गुज़रती है।

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गोदावरी नदी कृष्णा नदी के साथ मिलकर आन्ध्र प्रदेश में भारत के दूसरे सबसे बड़े डेल्टा कृष्णा-गोदावरी का निर्माण करती हैं। इस डेल्टा को बहुधा केजी डेल्टा भी कहा जाता है।

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गोदावरी की तीन शाखाएं

धवलेश्वर डैम के आगे गोदावरी तीन शाखा में विभाजित होती है, पूरब की शाखा को “वशिष्ठ गोदावरी” कहते है और बिज के शाखा को “वैष्णवी गोदावरी” कहते है। यह तीनों शाखाएं मिलके एक त्रिभुज क्षेत्र का निर्माण करती है।

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कुम्भकर्ण का मेला

आपको बता दें कि गोदावरी के तट पर  “पुष्करम” एक प्रमुख स्थान है, यहां पर हर बारह सालों बाद काफी संख्या में लोग नहाने के लिए आते है, इस त्यौहार को ‘कुम्भकर्ण का मेला’ भी कहते हैं।

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