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लाखों बांसों से बनी है ये भूल-भुलैया, एक बार खो गये तो समझो…

उत्तरी इटली में पार्मा शहर के पास एक भूल-भुलैया है। यूं तो हर कहीं जगह -जगह पर मक्के के खेतों में भूल-भुलैया बनी मिल जाती हैं लेकिन बांसों से बनी इस भूल-भुलैया के रास्ते 3 किलोमीटर में फैले हैं और इसका क्षेत्रफल 70000 वर्ग मीटर है।

इस लिहाज से यह ‘लाबिरिंतो डेला मासोने’ यूरोप की सबसे बड़ी भूल-भुलैया है। पेशे से प्रकाशक रहे फ्रांको मारियो रिची ने इस भूलभुलैया का सपना 30 साल पहले देखा था जब वह नौजवान थे।

दरअसल पार्मा शहर के बाहर उनका एक वीक एंड हाउस हुआ करता था । वहां उनके दोस्त और उनके प्रकाशन गृह से जुड़े लेखक अर्जेटीना के खॉर्गे लुइस बोर्गेस भी आकर रहा करते थे।

बोर्गेस की रचनाओं का एक विषय लेवरिंथ भी था। 1899 में जन्मे बोर्गेस की 55 साल के होते होते आंखों की रोशनी पूरी तरह चली गई थी।

फोंटानेलाटो में अपने वीकेंड हाउस में उनका हाथ पकड़ इधर-उधर ले जाते रिकी को इस बात का अहसास हुआ कि जीवन में अनिश्चितआएं कितनी महत्वपूर्ण होती हैं, जब आप चीजों को देख ना सके या उनका आभास ना कर सके और इसी एहसास से फ्रांको मारियो रिची के उस अपने का जन्म हुआ जिसे उन्होंने बाद में अपनी जमीन पर साकार किया ।

हकीकत में बदला एक सपना

फ्रांको मारियो रिची अपने अनुभवों को दुनिया के बहुत से दूसरे लोगों के साथ सांझा करना चाहते थे, उन्हें जिंदगी की भूल भुलैया की याद दिलाने के लिए एक कृत्रिम भूल भुलैया में ले जाना चाहते थे तो अपनी जमीन पर उन्होंने बांस के लगभग 2 लाख पेड़ लगाए।

बाँस हमेशा हरे भरे रहते हैं और 15 मीटर तक बढ़ सकते हैं। जो लोग गांव में रहते हैं और उनके पास बांस के बगीचे हैं उन्हें पता है कि बांस के पेड़ बहुत तेजी से बढ़ते हैं, और बांस के पेड़ अगर बड़े इलाके में फैले तो उनके झुरमुट में कोई भी रास्ता भूल सकता है।

फ्रांको की भूल-भुलैया में घुसने का एक ही रास्ता है और निकलने का भी लेकिन उनके बीच इतने सारे रास्ते हैं कि आदमी उनमें खो ही जाता है।

सारे रास्ते एक जैसे लगते हैं और लोगों को लगता है कि उन्हें तो यह रास्ता पता है और फिर लगता है कि यह तो बिल्कुल ही अलग है जगह है। पता ही नहीं चलता कि वह कहां है और वहां से बाहर कैसे निकले ।

लबिरिंनतो डेला मासोने एक ज्योमैट्रिक डिजाइन पर आधारित है और रोमन दौर की याद दिलाती है। सीधे-सीधे रास्ते हैं जो 90 डिग्री के कोण पर मुड़ते हैं इसलिए उन्हें याद रखना और मुश्किल हो जाता है लेकिन यह भूल भुलैया इतनी भी बड़ी नहीं है कि उससे बाहर न निकाला जा सके और वह घबराने लगें। लोग यहां इतनी कंफ्यूज होते हैं उतने ही मंत्र मुग्ध भी।

इमरजेंसी की स्थिति में वे मदद मांग सकते हैं। भूलभुलैया में जगह-जगह पर पहचान के लिए पोजीशन मार्क लगे हैं। फोन करके खोये हुए लोग अपनी पोजीशन बताते हैं और उसके बाद भूल भुलैया के डायरेक्टर और एदुआर्दो पेपिनो उन्हें खुद लेने पहुंचते हैं और बाहर लेकर आते हैं।

वहां बताते हैं की इस “भूलभुलैया” का मूल अर्थ बहुत ही गंभीर और महत्वपूर्ण है, यह हमारे जीवन का प्रतीक है ऐसी ही मुश्किल चीजों से हमारा वास्ता अपने जीवन में पड़ता है और ऐसी ही मुश्किलों रास्तों से हम गुजरते हैं और आखिर में हमें अपनी मुक्ति का रास्ता मिल ही जाता है ।

भूल-भुलैया बीच है एक “संग्रहालय”

भूल भुलैया के केंद्र में एक इमारत है या यूं कहें नियो क्लासिकल इमारतें । इनमें एक म्यूजियम है जहां वह कलाकृतियां प्रदर्शित हैं जो फ्रेंको ने अपने जीवन में इकठ्ठी कीं। इसके अलावा उनका किताबों का संग्रह और वे सारी किताबें जो उनके प्रकाशन ने 50 सालों में छापीं,वहां देखी जा सकती हैं।

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