श्री गुरु नानक देव जी का 550 वां पर्व 27 नवंबर को मनाया जा रहा है। सिख संप्रदाय के इस पर्व को मनाने की तैयारियां ज़ोर-शोर से चल रही है। श्री गुरु नानक देव जी के प्रकाश पर्व को देखते हुए पूरे उत्साह के साथ समाज, संगत के लोग भव्य तैयारियों में लग गए हैं। सिख धर्म में यह त्यौहार बहुत ही श्रद्धा व ख़ुशी के साथ मनाया जाता है । इस मौके पर शब्द कीर्तन, अटूट लंगर एवं गुरु की जीवनी पर प्रकाश डाला जाएगा।
गुरु नानक देव जी का बचपन
गुरु नानक देव के चेहरे पर बचपन से ही अजीब सा तेज दिखाई देता था। उनका जन्म लाहौर के पास तलवंडी नामक गांव में कार्तिक पूर्णिमा के दिन हुआ। उनका परिवार कृषि करके अपना गुजरा करता था। गुरु नानक देव जी का जन्म जहां हुआ था, वह स्थान आज उन्हीं के नाम से जाना जाता है। जिसे अब ननकाना साहिब कहा जाता है। ननकाना अब पाकिस्तान में है। बचपन से तीव्र बुद्धिवाले नानक देव जी सिख धर्म के संस्थापक रहे हैं। शादी के 16वें वर्ष के बाद नानक देव जी अपनी पत्नी और दोनों पुत्रों को छोड़कर धर्म के मार्ग पर निकल पड़ें। बचपन से ही उनका मन धर्म और अध्यात्म में लगता था।
गुरु नानक देव जी के आध्यात्म एवं बुद्धिमता की कुछ किस्से
गुरु देव जी की महानता के दर्शन उनके बचपन से ही होने लगे थे। कहा जाता है, की जब बचपन में उनका जनेऊ संस्कार किया जाने लगा और पंडितजी नानक देव जी के गले में जनेऊ धारण करवाने लगे तब गुरु देव जी ने उनका हाथ पकड़कर कहा- ‘पंडितजी, जनेऊ पहनने से हम लोगों का दूसरा जन्म होता है, जिसको आप आध्यात्मिक जन्म कहते हैं l तो इसके लिए जनेऊ भी किसी और किस्म का होना चाहिए, जो हमारी आत्मा को बांध सके। क्यूंकि आप जो जनेऊ मुझे दे रहे हो वह तो कपास के धागे का है, जो कि मैला हो जाएगा, टूट जाएगा, मरते समय शरीर के साथ चिता में जल जाएगा। तो फिर यह जनेऊ आत्मिक जन्म के लिए कैसे सहायक होगा? बालक नानक का यह जवाब सुनकर पंडितजी कुछ नहीं कह पाए और नानक जी ने जनेऊ धारण करने से इनकार कर दिया।
सच्चा सौदा
जब गुरु नानक देव जी बड़े हुए तो एक दिन नानक देव जी के पिता ने व्यापार करने के लिए उन्हें 20 रुपए दिए और कहा- ‘इन 20 रुपए से सच्चा सौदा करके आओ। जब नानक देव जी सौदा करने के लिए निकले तो रास्ते में उन्हें साधु-संतों की मंडली मिली। नानकदेव जी ने उस साधु मंडली को 20 रुपए का भोजन करवाया और घर वापस लौट आए। जब घर आ कर पिताजी ने पूछा- क्या सौदा करके आए? उन्होंने कहा- ‘साधुओं को भोजन करवाया। यही तो सच्चा सौदा है।’
गुरु नानक देव जी दवारा प्रसिद्ध दोहे
अंतर मैल जे तीर्थ नावे तिसु बैकुंठ न जाना।
लोग पतीणे कछु ना होई नाही राम अजाना।।
इसका अर्थ यह है कि अगर मन के अंदर मैल हो तो तीर्थ नाहाने , वैकुंड जाने का क्या फायदा है ? सिर्फ तीर्थ नाहाने से मन साफ नहीं हो सकता। तीर्थयात्रा की महानता चाहे कितनी भी क्यों न हो। यह तीर्थयात्रा सफल हुई है या नहीं, इसका निर्णय हमारे कर्मो पर निर्भर करता है। इसके लिए प्रत्येक मनुष्य को अपने अंदर झांककर देखना चाहिए कि, तीर्थ सनान करने के बाद भी मन में निंदा, ईर्ष्या, धन-लालसा, काम, क्रोध आदि कितने कम हुए हैं।
भेद भाव की भावना
गुरु नानक देव जी किसी भी व्यक्ति में फर्क नहीं करते थे। वे कहते हैं कि एक बार कुछ लोगों ने नानक देव जी से पूछा- आप हमें यह बताइए कि आपके मत अनुसार हिन्दू बड़ा है या मुसलमान। उन्होंने उत्तर दिया-
अवल अल्लाह नूर उपाइया कुदरत के सब बंदे।
एक नूर से सब जग उपजया को भले को मंदे।।
इसका मतलब यह है कि ईश्वर के सामने सभी एक समान है। न तो हिन्दू कहलाने वाला ईश्वर की नज़र में बड़ा है, न मुसलमान कहलाने वाला। ईश्वर की नज़र में वही इंसान बड़ा है जिसका मन सच्चा और नेक ईमान हो।