प्राचीन काल से ही भारत में बहने वाली पवित्र नदियों में गंगा का स्थान सबसे ऊपर माना गया है। इसके बाद सिंधु, सरस्वती, यमुना, नर्मदा, कावेरी, कृष्णा, गोदावरी, महानदी, ताप्ती, सरयू, शिप्रा, झेलम, ब्रह्मपुत्र आदि का नाम आता है। आखिकार गंगा नदी की उत्पत्ति कब और कहां हुई थी जाने इससे जुड़े कुछ खास तथ्य:
- गंगा का उद्गम दक्षिणी हिमालय में तिब्बत सीमा के भारतीय हिस्से से होता है। गंगोत्री को गंगा का उद्गम माना गया है। परन्तु वास्तव में गंगा का उद्गम श्रीमुख नामक पर्वत से हुआ है। वहां गोमुख के आकार का एक कुंड है जिसमें से गंगा की धारा नकलती है। 4,023 मीटर ऊंचा गौमुख गंगा का उद्गम स्थल माना जाता है।
- गोमुख से निकलकर गंगा कई धाराओं में विभाजित होकर कई नामों से जानी जाती है। प्रारंभ में यह हिमालय से निकलकर 12 धाराओं में विभक्त होती है। इसमें मंदाकिनी, भगीरथी, ऋषिगंगा, धौलीगंगा, गौरीगंगा और अलकनंदा प्रमुख है। यह नदी प्रारंभ में 3 धाराओं में बंटती है– मंदाकिनी, अलकनंदा और भगीरथी। गंगोत्री में गंगाजी को समर्पित एक मंदिर भी है।
- माना जाता है ब्रह्मा से लगभग 23वीं पीढ़ी बाद और राम से लगभग 14वीं पीढ़ी पूर्व भगीरथ हुए। भगीरथ ही गंगा को पृथ्वी पर लेकर आये थे।
- पौराणिक मान्यता के अनुसार गंगा के पिता का नाम हिमालय है जो पार्वती के पिता भी हैं। गंगा ने अपने दूसरे जन्म में ऋषि जह्नु के यहां जन्म लिया था। एक अन्य कथा के अनुसार गंगा पर्वतों के राजा हिमवान और उनकी पत्नी मीना की पुत्री है, इस प्रकार वे देवी पार्वती की बहन भी है। कुछ जगहों पर उन्हें ब्रह्मा के कुल का बताया गया है।
- देवप्रयाग में अलकनंदा और भगीरथी का संगम होने के बाद यह गंगा के रूप में दक्षिण हिमालय से ऋषिकेश के निकट बाहर आती है और हरिद्वार के बाद मैदानी इलाकों में प्रवेश करती है।
- हरिद्वार को गंगा का द्वार भी कहा जाता है। यहां से निकलकर गंगा आगे बढ़ती है। इस बीच इसमें कई नदियां मिलती हैं जिसमें प्रमुख हैं– सरयू, यमुना, सोन, रामगंगा, गोमती, घाघरा, गंडक, बूढ़ी गंडक, कोसी, घुघरी, महानंदा, हुगली, पद्मा, दामोदर, रूपनारायण, ब्रह्मपुत्र और अंत में मेघना। फिर यहां से निकलकर गंगा पश्चिम बंगाल के गंगासागर बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है।
- यह नदी 3 देशों के क्षेत्र का उद्धार करती है – भारत, नेपाल और बांग्लादेश। नेपाल, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल और फिर दूसरी ओर से बांग्लादेश में प्रवेश कर बंगाल की खाड़ी में समा जाती है।
गंगा नदी के किनारे बसे शहर
जल से ही जीवन का आरम्भ हुआ। जल ही जीवन का आधार है। इसलिए प्राचीन काल में लोगों का निवास स्थान नदी के किनारे हुआ करता था। गंगा नदी भारत के पांच राज्यों से होकर गुजरती है उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड व पश्चिम बंगाल। सरकार के अनुसार 97 नगर गंगा नदी के किनारे बसे हैं।
उत्तराखंड में बसे मुख्य शहर जैसे हरिद्वार, ऋषिकेश, तपोवन, श्री नगर, उत्तरकाशी, जोशीमठ, उत्तारप्रयाग, गौचर, कीर्तिनगर व बद्रीनाथ।
उत्तर प्रदेश में – कानपुर, वाराणसी, इलाहाबाद, मिर्जापुर, फर्रुखाबाद, मुगलसराय, बलिया, बिजनौर, कन्नौज, गंगाघाट, राम नगर, चुनार, हस्तिनापुर, व बिठूर।
बिहार में – पटना, भागलपुर, मुंगेर, छपरा, दानापुर, हाजीपुर, बक्सर, जमालपुर, बेगूसराय, मोकामा, सुल्तानगंज, बख्तियारपुर, बड़हिया प्रखण्ड, सोनपुर, कहलगांव व बरौनी।
झारखंड में – साहेबगंज व राजमहल।
पश्चिम बंगाल में – बैद्याबती, बंसबेरिया, बारानगर, बरहामपुर, भद्रेश्वर, भतपारा, बज बज, चकदाह, चांपदनी, धूलिया, गरुलिया, हल्दिया, हालीसहर, हुगली चिनसराह, हावड़ा एमसी, जंगीपुर, जियागंज–अजीमगंज, कल्याणी, कमरहती, कांचरापाड़ा, कोलकाता एमसी, कृष्णनगर, मुर्शिदाबाद, नैहाटी, उत्तरी बैरकपुर, पानीहती, रिसरा, शांतिपुर, श्रीरामपुर, टीटागढ़ व उत्तरपाराकोतरूंग यह बसे प्रमुख नगर है।
गंगा किनारे बसे लोगों की आजीविका का एक मुख्य स्त्रोत
भारत का करीब सैंतालीस प्रतिशत उपजाऊ क्षेत्र गंगा बेसिन में है। करीब चालीस करोड़ लोग आजीविका के लिए किसी न किसी रूप में गंगा पर निर्भर रहते हैं, इसमें विशेषकर सिंचाई, उद्योगों के लिए पानी की उपलब्धता, मछली व्यापार, गंगा आरती, नौकायन, रिवर राफ्टिंग, टूरिस्ट गाइड, पर्यटन, नियंत्रित रेत खनन, मूर्ति एवं कुम्हार व्यवसाय हेतु चिकनी बलुई मिट्टी, स्नान पर्व, कुम्भ–अर्धकुम्भ आयोजन, प्रयाग में प्रति वर्ष माघ माह में कल्पवास, काशी में देव दीपावली महोत्सव, गंगा महोत्सव, घाटों की साफ़ सफाई, दर्शन–पूजा–पाठ, पुरोहित, अंतिम संस्कार आदि आते हैं।
आज भी ऐसे परिवारों की बड़ी संख्या है जो अपने धार्मिक संस्कार मुंडन, कर्ण छेदन, उपनयन, विवाहोपरांत गंगा पुजैया आदि गंगा किनारे करते हैं जिससे घाटों के किनारे पूजन सामग्री बेचने वालों, पुजारियों, नाविकों आदि को आजीविका प्राप्त होती है।
गंगा नदी से जुड़े कुछ रोचक तथ्य
- गंगाजल कभी अशुद्ध नहीं होता है और न ही यह कभी सड़ता है। लोग गंगाजल को सालों तक अपने घर में रखते हैं।
- गंगा नदी को सदाबहार नदी भी कहा जाता है क्योंकि यह नदी सबसे ख़राब सूखे मौसम में भी बहती है व् इस नदी के पानी का बहाव तक़रीबन 1400 से 1600 m3/s रहता है।
- गंगा के तटीय क्षेत्रों में दलदल तथा झीलों के कारण यहाँ लेग्यूम, मिर्च, सरसो, तिल, गन्ना और जूट की बहुत फसल होती है।
- पौराणिक मान्यताओं के अनुसार गंगा का स्वर्ग से धरती पर आगमन हुआ था। गंगा के किनारे ही रहकर महर्षि वाल्मीकि ने महाग्रंथ रामायण की रचना की थी।
- जियोलॉजिक सर्वे ऑफ इंडिया के सर्वेक्षण के अनुसार, गत पचास वर्षों में गंगा का गोमुख ग्लैशियर प्रतिवर्ष 10 से 30 मीटर की गति से सिकुड़ता जा रहा है।
- भारतीय धर्म शास्त्रों की मान्यता के अनुसार यदि गंगाजल (गंगा नदी) का वर्णन किया जाए तो एक ´गंगा पुराण´ की रचना हो सकती है।
- ‘आइने अकबरी‘ में लिखा है कि बादशाह अकबर पीने के लिए गंगाजल ही प्रयोग में लाते थे। इस जल को वह अमृत कहते थे।
- वैज्ञानिक परीक्षणों से पता चला है कि गंगाजल से स्नान करने तथा गंगाजल को पीने से हैजा प्लेग, मलेरिया आदि रोगों के कीटाणु नष्ट हो जाते हैं। इस बात की पुष्टि के लिए एक बार डॉ. हैकिन्स, ब्रिटिश सरकार की ओर से गंगाजल से दूर होने वाले रोगों के परीक्षण के लिए आए थे।
- डॉ. हैकिन्स ने गंगाजल के परिक्षण के लिए गंगाजल में हैजे (कालरा) के कीटाणु डाले,लेकिन हैजे के कीटाणु मात्र 6 घंटें में ही मर गए और जब उन कीटाणुओं को साधारण पानी में रखा गया तो वह जीवित होकर असंख्य हो गए। इस तरह देखा गया कि गंगाजल विभिन्न रोगों को दूर करने वाला जल है।
- गंगा नदी को पापमोचनी और मोक्षदायिनी कहा गया है। भागीरथ के पूर्वजों को मुक्ति गंगाजल के स्पर्श से ही मिली थी। मान्यता है कि यदि मृत्यु के समय व्यक्ति के मुंह में गंगाजल डाल दिया जाए तो उसके पापकर्म नष्ट हो जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है।