पुराने किले, मौत, हादसों, अतीत और रूहों का अपना एक अलग ही सबंध और संयोग होता है। ऐसी कोई जगह जहां मौत का साया बनकर रूहें घुमती हो, उन जगहों पर इंसान अपने डर पर काबू नहीं कर पाता है। दुनिया भर में कई ऐसे पुराने किले है जिनका अपना एक अलग ही काला अतीत है और वहां आज भी रूहों का वास है। भानगढ़ का किला भारत में सबसे प्रेतवाधित स्थान के रूप में जाना जाता है, और शायद सबसे बड़ा अनसुलझा रहस्य है। आइए जानते है इस भुतहा किले की कहानी:
इतिहास
भानगढ़ किला 16वीं शताब्दी में बनवाया गया था। इस क़िले को आमेर के राजा भगवंत दास ने 1573 में बनवाया था। यह किला बसने के बाद लगभग 300 वर्षों तक यहां आबाद रहा। बाद में भगवंत दास के छोटे बेटे व अम्बर(आमेर ) के महान मुगल सेनापति, मानसिंह के छोटे भाई राजा माधो सिंह ने (1613) इसे अपनी रिहाइश बना लिया।
राजा माधो सिंह उस समय अकबर के सेना में जनरल के पद पर तैनात थे। उस समय भानगड़ की जनसंख्या तकरीबन 10,000 थी। भानगढ़ का किला अपने बर्बाद होने के इतिहास और रहस्यमयी घटनाओं के कारण मशहूर है। इस किले के उजाड़ होने के बारे में दो कहानियाँ प्रचलित है।
पहली कहानी
पहली कहानी के अनुसार जहाँ भानगढ़ किले का निर्माण करवाया गया, वह स्थान योगी बालूनाथ का तपस्थल था। उसने इस वचन के साथ महाराजा भगवंतदास को भानगढ़ किले के निर्माण की अनुमति दी थी कि किले की परछाई किसी भी कीमत पर उसके तपस्थल पर नहीं पड़नी चाहिए।
महाराजा भगवंतदास ने तो अपने वचन का मान रखा, किंतु उसके वंशज माधोसिंह इस वचन की अवहेलना करते हुए किले की ऊपरी मंज़िलों का निर्माण करवाने लगे। ऊपरी मंज़िलों के निर्माण के कारण योगी बालूनाथ के तपस्थल पर भानगढ़ किले की परछाई पड़ गई।
ऐसा होने पर योगी बालूनाथ ने क्रोधित होकर श्राप दे दिया कि यह किला आबाद नहीं रहेगा। उनके श्राप के कारण यह किला उजाड़ हो गया।
दूसरी कहानी
कहते है कि भानगढ़ की राजकुमारी रत्नावती बेहद खुबसुरत थी। उस समय उनके रूप की चर्चा पूरे राज्य में थी और साथ देश कोने कोने के राजकुमार उनसे विवाह करने के इच्छुक थे। उस समय उनकी उम्र महज 18 वर्ष ही थी और उनका यौवन उनके रूप में और निखार ला चुका था।
एक दिन वह अपनी सखियों के साथ इत्र की दुकान पर गई। वो इत्रों को हाथों में लेकर उसकी खुशबू ले रही थी। उसी समय उस दुकान से कुछ ही दूरी एक सिंधु सेवड़ा नाम का व्यक्ति खड़ा होकर उन्हे बहुत ही गौर से देख रहा था। सिंधु सेवड़ा उसी राज्य में रहता था और वो काले जादू का महारथी था।
कहते है वह राजकुमारी को पागलों की तरह मन ही मन में प्रेम करने लगा था। वो हर हालत में राजकुमारी को पाना चाहता था। इसलिए उसने उस दुकान के पास आकर एक इत्र के बोतल जिसे रानी पसंद कर रही थी,उसने उस बोतल पर काला जादू कर दिया जो राजकुमारी के वशीकरण के लिए किया था। लेकिन इस बात का पता राजकुमारी को लग गया।
राजकुमारी रत्नाकवती ने उस इत्र की शीशी को उठाया, और वही पास के एक बड़े पत्थर पर ज़ोर से पटक दिया। जिससे वो शीशी टूट गयी और सारा इत्र उस पत्थर पर फ़ैल गया। कहते है की काले जादू के असर के कारण वह पत्थर तांत्रिक सिंधु सेवड़ा के पीछे चल पड़ा और तांत्रिक को कुचल दिया, जिससे कारण तांत्रिक की मौत हो गयी।
मरने से पहले तांत्रिक ने श्राप दिया कि इस किले में रहने वालें सभी लोग जल्द ही मर जायेंगे और वो दोबारा जन्म नहीं ले सकेंगे और उनकी आत्माएं इस किले में भटकती रहेंगी। कहा जाता है की तांत्रिक के मृत्यु के कुछ समय के बाद ही भानगढ़ और अजबगढ़ के बीच लड़ाई हुई।
उस युद्ध में सभी लोग मारे गये। साथ ही राजकुमारी रत्नाचवती भी उस श्राप से नहीं बच पाई और उनकी भी मृत्यु हो गयी। लोगों का मानना है की भानगढ़ के किले में उनकी रूहें आज भी घुमती हैं।
रात को किले के अंदर जाना है वर्जित
लोगों की माने तो इस किले में रात में किसी के रोने और चिल्लाने की तेज़ आवाजें आती हैं। कई बार यहाँ एक साये को भी भटकते हुए देखने की बात कही गई है। इन बातों में कितनी सच्चाई है, ये कोई नहीं जानता। रहस्यमयी घटनाओं के कारण पुरातत्व विभाग द्वारा भानगढ़ किले को भुतहा घोषित कर दिया है। किले के प्रवेश द्वार पर उनके द्वारा बोर्ड लगाया गया है, जिसके अनुसार सूर्योदय से पहले और सूर्यास्त के उपरांत किले में प्रवेश वर्जित है।
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