गणेश चतुर्थी भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को देश भर में धूमधाम से मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान गणेशजी का जन्म हुआ था, इस उपलक्ष्य में पूरे देश में धूमधाम से गणेश चतुर्थी का उत्सव मनाया जाता है।
क्यों मनाते हैं गणेश चतुर्थी का त्यौहार
गणेश चतुर्थी का त्योहार पूरे देश में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है और इसके पीछे एक मुख्य वजह छिपी हुई है। पौराणिक कथाओं के अनुसार,एक बार माता पार्वती ने स्न्नान के लिए जाने से पूर्व अपने शरीर के मैल से एक सुंदर बालक को उत्पन्न किया और उसे गणेश नाम दिया।
पार्वतीजी ने उस बालक को आदेश दिया कि वह किसी को भी अंदर न आने दे, ऐसा कहकर पार्वती जी अंदर नहाने चली गई। जब भगवान शिव वहां आए ,तो बालक ने उन्हें अंदर आने से रोका और बोले अन्दर मेरी माँ नहा रही है, आप अन्दर नहीं जा सकते।
शिवजी ने गणेशजी को बहुत समझाया, कि पार्वती मेरी पत्नी है लेकिन गणेशजी नहीं माने तब शिवजी को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने गणेशजी की गर्दन अपने त्रिशूल से काट दी और अन्दर चले गये, जब पार्वतीजी ने शिवजी को अन्दर देखा तो बोली कि आप अन्दर कैसे आ गये।
मैं तो बाहर गणेश को बिठाकर आई थी। तब शिवजी ने कहा कि मैंने उसको मार दिया। तब पार्वती जी रौद्र रूप धारण क्र लिया और कहा कि जब आप मेरे पुत्र को वापिस जीवित करेंगे तब ही मैं यहाँ से चलूंगी अन्यथा नहीं।
अन्य कथा
इसके पीछे कई पौराणिक कथाएं हैं। उनमें से एक आज हम आपको बताने जा रहे हैं। कहा जाता है कि पौराणिक काल में एक बार महर्षि वेदव्यास ने महाभारत की रचना के लिए गणेशजी का आह्वान किया और उनसे महाभारत को लिपिबद्ध करने की प्रार्थना की।
गणेश जी ने कहा कि मैं जब लिखना प्रारंभ करूंगा तो कलम को रोकूंगा नहीं, यदि कलम रुक गई तो लिखना बंद कर दूंगा। तब व्यास जी ने कहा प्रभु आप विद्वानों में अग्रणी हैं और मैं एक साधारण ऋषि किसी श्लोक में त्रुटि हो सकती है, अतः आप निवारण करके ही श्लोक को लिपिबद्ध करना और तब व्यास जी ने श्लोक बोलना और गणेशजी ने महाभारत को लिपिबद्ध करना प्रारंभ किया।
उसके 10 दिन के पश्चात अनंत चतुर्दशी को लेखन कार्य समाप्त हुआ। इन 10 दिनों में गणेशजी एक ही आसन पर बैठकर महाभारत को लिपिबद्ध करते रहे, इस कारण 10 दिनों में उनका शरीर जड़वत हो गया और शरीर पर धूल, मिट्टी की परत जमा हो गई, तब 10 दिन बाद गणेशजी ने सरस्वती नदी में स्नान कर अपने शरीर पर जमी धूल और मिट्टी को साफ किया।
जिस दिन गणेशजी ने लिखना आरंभ किया उस दिन भाद्रमास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि थी। इसी उपलक्ष्य में हर साल इसी तिथि को गणेशजी को स्थापित किया जाता है और दस दिन मन, वचन कर्म और भक्ति भाव से उनकी उपासना करके अनन्त चतुर्दशी पर विसर्जित कर दिया जाता है।
आध्यात्मिक महत्व
इसका आध्यात्मिक महत्व यह है कि हम दस दिन संयम से जीवन व्यतीत करें और दस दिन पश्चात अपने मन और आत्मा पर जमी हुई वासनाओं की धूल और मिट्टी को प्रतिमा के साथ ही विसर्जित कर एक निर्मल मन और आत्मा के रूप को प्राप्त करें।