भारत का शायद ही कोई ऐसा कोना होगा जहां कोई मंदिर या कोई अन्य धार्मिक स्थल न हो। भारत में रहने वाले लोग किसी एक धर्म के नहीं बल्कि अनेक संप्रदाय हैं।
यही कारण हैं कि देश में मंदिर, मस्जिद आदि बहुत अधिक है। राजस्थान में स्थित विष्णु भगवान को समर्पित यह मंदिर अपनी भव्यता के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध है।
दिलवाड़ा जैन मंदिर
वैसे तो राजस्थान में अनेको सुंदर और प्राचीन मंदिर स्थित है परंतु माउंट आबू के दिलवाड़ा जैन मंदिर की बात ही अलग है।
इस मंदिर की शिल्प कला अपने आप में ही अनोखी है। यही कारण है कि इस मंदिर में विदेशी पर्यटकों की विशेष रुचि रहती है। यहां के पांच मंदिरों के समूह में विमल वसाही सबसे प्राचीन मंदिर है जिसे 1031 ईसवी में तैयार किया गया।
1231 में वस्तुपाल और तेजपाल दो भाईयों ने इसका निर्माण करवाया था। यह कुल पांच मंदिरों का समूह है लेकिन मुख्य रूप से तीन मंदिर खास हैं। दिलवाड़ा का ये मंदिर 48 खंभों पर टिका हुआ है।
इसकी खूबसूरती और नक्काशी के कारण इसे राजस्थान का ताजमहल भी कहा जाता है। इस मंदिर की एक-एक दीवार पर बेहद सुंदर कालाकारी और नक्काशी की गई है, जो अपना इतिहास बताती हैं।
इस मंदिर से जुड़ी कई कहानियां और कई मान्यताएं हैं, जो अपने आप में अनोखी है। इस मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा के अनुसार यहाँ भगवान विष्णु ने बालमरसिया के रूप में अवतार लिया था।
कहा जाता है कि भगवान विष्णु का ये अवतार गुजरात के पाटन में एक साधारण परिवार के घर में हुआ था। विष्णु भगवान के जन्म के बाद ही पाटन के महाराजा उनके मंत्री वस्तुपाल और तेजपाल ने माउंट आबू में इस मंदिर के निमार्ण की इच्छा जागी।
जब भगवान विष्णु के अवतार बालमरसिया ने महाराज की यह बात सुनी तो वो वस्तुपाल और तेजपाल के पास इस मंदिर की रुपरेखा लेकर पहुंच गए।
तब वस्तुपाल ने कहा कि अगर ऐसा ही मंदिर तैयार हो गया तब वो अपनी पुत्री की शादी बालमरसिया से कर देंगे। भगवान विष्णु के अवतार बालमरसिया ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और बेहद सुंदर मंदिर का निर्माण किया।
1 घंटे में ही बदल दिया मैदान को झील में
परन्तु बालमरसिया की होने वाली दादीसास ने छल पूर्वक एक और शर्त रख दी कि अगर वे एक ही रात में सूरज निकलने से पहले अपने नाखूनों से खुदाई कर मैदान को झील में बदल दे तभी वे अपनी पोती की शादी बालमरसिया से करेंगी ।
उन्होंने केवल 1 घंटे में ही मैदान को झील में बदल दिया। फिर भी बालमरसिया की होने वाली दादीसास ने अपनी पोती का विवाह उनसे करने से मना कर दिया। इस बात को लेकर भगवान विष्णु कोध्रित हो उठे और उन्होंने अपनी होने वाली दादीसास का वध कर दिया।
आपको जानकर हैरानी होगी कि उस वक्त इस मंदिर को तैयार करने में 1500 कारीगरों ने काम किया था। वो भी कोई एक या दो साल तक नहीं पूरे 14 सालों तक। इस मंदिर के निर्माण में उस वक्त करीब 12 करोड़ 53 लाख रूपए खर्च हुए थे।
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