“विजय दिवस” 16 दिसम्बर को 1971 के युद्ध में भारत की पाकिस्तान पर जीत के उपलक्ष पर मनाया जाता है। इस युद्ध के अंत के बाद 93,000 पाकिस्तानी सेना ने आत्मसमर्पण कर दिया था। 1971 के युद्ध में भारत ने पाकिस्तान को हराया था। जिसके बाद पूर्वी पाकिस्तान आजाद हो गया था। जिसे आज बांग्लादेश के नाम से जाना जाता है।
1971 में भारत एवं पाकिस्तान के बीच एक सैन्य संघर्ष हुआ था। इस युद्ध की शुरआत पूर्वी पाकिस्तान के स्वतंत्रता संग्राम के चलते 3 दिसंबर, 1971 को हो गई थी। यह युद्ध 14 दिसम्बर, 1971 तक चला। यह युद्ध 13 दिन तक चलने वाला सबसे छोटा युद्ध था। 16 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी सेना ने आत्मसमर्पण किया था।
- इस युद्ध की शुरुआत 1971 में हो गई थी। पाकिस्तान के सैनिक तानाशाह याहिया ख़ां ने 25 मार्च 1971 को पूर्वी पाकिस्तान की जनता को सैनिक ताकत से कुचलने का आदेश दे दिया था। इसके बाद शेख मुजीब को गिरफ्तार कर लिया गया। जब भारत में पाकिस्तानी सेना के दुर्व्यवहार की खबरें आने लगीं, तब भारत पर यह दबाव पड़ने लगा कि वह वहां पर सेना के जरिए हस्तक्षेप करे।
- उस वक्त भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी थीं। वह चाहती थीं कि अप्रैल में पाकिस्तान पर आक्रमण किया जाए। इस बारे में इंदिरा गांधी ने थल सेना अध्यक्ष जनरल मानेकशॉ से सलाह ली। मानेकशॉ ने इंदिरा गांधी से स्पष्ट रूप से मना कर दिया और कहा की, कि वे पूरी तैयारी के साथ युद्ध के मैदान में उतरना चाहते हैं।
- उस वक्त भारत के पास सिर्फ एक पर्वतीय डिवीज़न था और इस डिवीज़न के पास पुल बनाने की योग्यता नहीं थी। उस समय मानसून की शुरुआत होने वाली थी और ऐसे समय में पूर्वी पाकिस्तान में प्रवेश करना मुसीबत बन सकता था।
- इसके बाद 3 दिसंबर, 1971 को इंदिरा गांधी कलकत्ता में एक जनसभा को संबोधित कर रहीं थीं, उसी समय पाकिस्तानी वायुसेना के विमानों ने भारतीय वायुसीमा को पार कर पठानकोट, श्रीनगर, अमृतसर, जोधपुर, आगरा आदि सैनिक हवाई अड्डों पर बम गिराने शुरु कर दिए।
- इंदिरा गांधी ने उसी वक्त दिल्ली लौटकर मंत्रिमंडल की आपात बैठक की। और उसके पश्चात युद्ध शुरु हो गया। भारतीय सेना पूर्व में तेजी से आगे बढ़ते हुए जेसोर और खुलना पर अपना कब्जा किया।
- 14 दिसंबर को भारतीय सेना को एक गुप्त संदेश मिला कि ढाका के गवर्नमेंट हाउस में एक महत्वपूर्ण बैठक होने वाली है, जिसमें पाकिस्तानी प्रशासन के बड़े अधिकारी जैसे गवर्नर मलिक, नियाज़ी भाग लेने वाले हैं। भारतीय सेना ने तय किया और बैठक के दौरान ही मिग 21 विमानों से भवन पर बम गिरा कर मुख्य हॉल की छत उड़ा दी।
- 16 दिसंबर की सुबह जनरल जैकब जो की भारत के पूर्व सैन्य अधिकारी लेफ्टिनेंट जनरल थे को मानेकशॉ का संदेश मिला। जिसमें लिखा था कि आत्मसमर्पण की तैयारी के लिए तुरंत ढाका पहुंचें। उस समय नियाज़ी के पास ढाका में 26400 सैनिक थे, जबकि भारत के पास सिर्फ 3000 सैनिक थे।
- जनरल जैकब पाकिस्तानी लेफ़्टिनेंट जनरल अमीर अब्दुल्ला ख़ाँ नियाज़ी के कमरे में घुसे तो वहां सन्नाटा छाया हुआ था। आत्म-समर्पण का दस्तावेज़ मेज़ पर रखा हुआ था। गवर्नर मलिक ने लगभग कांपते हाथों से अपना इस्तीफा लिखा।
- पूर्वी सैन्य कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा और नियाज़ी एक मेज के सामने बैठे और दोनों ने आत्म-समर्पण के दस्तवेज पर हस्ताक्षर किए। नियाज़ी ने नम आंखों से अपना रिवॉल्वर जनरल अरोड़ा के हवाले कर दिया। स्थानीय लोग नियाजी की हत्या पर उतारू थे। भारतीय सेना के वरिष्ठ अफसरों ने नियाज़ी के चारों तरफ एक सुरक्षित घेरा बनाकर बाद में नियाजी को बाहर निकाला गया।
- इंदिरा गांधी संसद भवन में एक टीवी इंटरव्यू दे रही थीं। तभी जनरल मानेक शॉ ने उन्हें बांग्लादेश में मिली शानदार जीत की खबर दी। इंदिरा गांधी ने लोकसभा में शोर-शराबे के बीच घोषणा की, कि युद्ध में भारत को विजय मिली है। इंदिरा गांधी के बयान के बाद पूरा सदन जश्न में डूब गया।