Sunday, December 22, 2024
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यहाँ चलता है औरतों का राज!

तो आप मानते हैं कि हमारा समाज पुरुष-प्रधान है. हो भी क्यों नहीं, यहाँ MIGHT IS RIGHT चलता है. यहाँ “पढ़े-लिखों” का जोर चलता है.

हम मानते हैं कि प्राचीन भारतीय समाज ने औरतों को सदा  ही एक सम्मानजनक दर्जा दिया है. और इसका प्रमाण चाहे रामायण हो महाभारत हो या अन्य कोई भी प्राचीन ग्रन्थ. लेकिन कलयुग के आते-आते महिलाओं प्रति सोच या यूं कहें तो इंसानियत के स्तर में गिरावट ही देखी गयी है.

लेकिन लगता है मेघालय की खासी जनजाति कुछ ज्यादा ही “अनपढ़” हैं. ये लोग मानते हैं कि औरतें ही परिवार और परम्परा को बेहतर तरीके से चला सकती हैं.

यह जनजाति महिला प्रधान है. यहाँ पूरी सम्पति परिवार की वरिष्ठ यानी सीनियर महिला के नाम पर रहती है. वरिष्ठ महिला के गुजरने के बाद यह सम्पति उसकी बेटी या परिवार की किसी वरिष्ठ महिला के नाम कर दी जाती है.

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खासी औरतें आइसक्रीम खाते हहुए

जरुरत पड़ने पर इस कबीले की महिला एक से ज्यादा पुरुषों के साथ विवाह कर सकती है. पुरुषों को अपने ससुराल में रहना पड़ता है. हाल ही में यहाँ के कई पुरुषों ने इस प्रथा में बदलाव की मांग की है. वे मानते हैं, कि वह महिलाओं को नीचा नहीं दीखाना चाहते बल्कि वे अपना बराबरी का हक मांग रहे हैं.

यहाँ बेटी के जन्म पर भारी जश्न मनाया जाता है जबकि बेटे के जन्म पर ख़ास उत्साह नहीं होता. यहाँ के बाज़ार और व्यवसाय पर अधिकतर महिलाओं का ही वर्चस्व होता है.

खासी समुदाय में परिवार की सबसे छोटी बेटी को विरासत में सबसे ज्यादा हिस्सा मिलता है. इसका कारण यह है कि सबसे छोटी बेटी को अपने माता-पिता,  बेगार और अन-व्याहे भाई-बहनों और सम्पति की देखभाल की जिम्मेवारी निभानी पड़ती है. छोटी  बेटी को खातदुह यानी “निभाने वाली” कहा जाता है.

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