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जानिए किसने बनाई ‘इलैक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन’ और क्या है इसकी कहानी!!

एक समय था जब लोकसभा और विधानसभा चुनाव करवाने के लिए कागज के मत पत्र, मतपेटियां और मुहरें लेकर सरकारी कर्मचारी दूर-दराज तक जाते थे। मतगणना करने और परिणाम घोषित करने में 3 दिन लग जाते थे। पूरा देश और करोड़ों वोटर रिजल्ट जानने के लिए बेचैन रहते थे। अब इलैक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ई.वी.एम.) ने भारतीय चुनाव व्यवस्था को न केवल आसान बल्कि बहुत तेज़ बना दिया है। मतगणना वाले दिन दोपहर 12 बजे तक 90 प्रतिशत परिणाम आ जाते हैं।

क्या होती है ई.वी.एम.

ई.वी.एम. वोट रिकॉर्ड करने के लिए एक इलैक्ट्रॉनिक उपकरण है। वोटिंग मशीन के दो मुख्य हिस्से होते हैं – एक कंट्रोल यूनिट और एक बैलेटिंग यूनिट होती है जो एक तार से जुड़ी होती हैं।

इनमें से एक में उम्मीदवारों के नाम लिखे होते हैं जिसे बैलेट यूनिट कहते हैं। उसे मतदान कक्ष के अंदर रखा जाता है जबकि कंट्रोल यूनिट को मतदान अधिकारी के पास रखा जाता है और मतपत्र जारी करने की बजाय कंट्रोल यूनिट के प्रभारी मतदान अधिकारी अपनी यूनिट पर बैलेट बटन दबाकर मतपत्र जारी करते हैं।

इससे मतदाता अपनी पसंद के उम्मीदवार और चुनाव चिह्न के सामने बैलेट यूनिट पर नीले बटन को दबाकर अपना वोट डाल देता है।

पहली बार प्रयोग

ई.वी.एम. का इस्तेमाल पहली बार केरल के पारूर विधानसभा क्षेत्र में वर्ष 1982 में किया गया था।

कितने की आती है ई.वी.एम.

चुनाव आयोग की आधिकारिक वैबसाइट पर दी गई जानकारी के अनुसार एक एम2 ई.वी.एम. (2006-10) होती है जिसमें अधिकतम 64 उम्मीदवारों के चुनाव कराए जा सकते हैं यानी इसमें 4 वोटिंग मशीन तक जोड़ी जा सकती है।

इसके अलावा एक ‘एम3 ई.वी.एम.’ होती है जिसमें ई.वी.एम. से 24 बैलेटिंग इकाइयों को जोड़कर अधिकतम 384 उम्मीदवारों के लिए निर्वाचन कराया जा सकता है।

‘एम2 ई.वी.एम.'(2006-10 के बीच निर्मित) की लागत 8670 रुपए प्रति ई.वी.एम. (बैलेटिंग यूनिट और कंट्रोल यूनिट) थी।

इन दिनों काम में आने वाली एम3 ई.वी.एम.’ की लागत लगभग 17,000 रुपए प्रति यूनिट है। वैसे शुरूआती निवेश कुछ अधिक प्रतीत होता है, लेकिन मतपत्र से होने वाली वोटिंग से इसका खर्चा कम ही आता है।

अब चुनाव ई.वी.एम. से होते हैं

पत्रों की प्रिंटिंग, उनके परिवहन, भंडारण आदि से संबंधित बचत और मतगणना स्टाफ में होने वाले फायदे से इस कीमत की भरपाई हो जाती है।

ई.वी.एम. कैसे चलती है

ई.वी.एम. बैटरी पर काम करती है, इससे बिजली जाने की स्थिति में भी वोटिंग प्रक्रिया को जारी रखा जा सकता है। साथ ही मशीन को लेकर यह भरोसा दिया जा सकता है कि ‘नीले बटन‘ को दबाने या ई.वी.एम. को सम्भालते समय किसी भी मतदाता या कर्मचारी को बिजली का झटका लगने की कोई संभावना नहीं है।

कितने दिन स्टोर रहता है डेटा

कंट्रोल यूनिट अपनी मैमोरी में परिणाम को तब तक स्टोर कर सकती है जब तक कि डेटा को ‘क्लीयर’ न कर दिया जाए।

किसने बनाई

ई.वी.एम. को दो सार्वजनिक क्षेत्र की कम्पनियों ‘भारत इलैक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड बेंगलूर‘ और ‘इलैक्ट्रॉनिक कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड हैदराबाद‘ के सहयोग से चुनाव आयोग की तकनीकी विशेषज्ञ समिति ने तैयार और डिजाइन किया है। ई.वी.एम.का निर्माण इन दो कम्पनियों द्वारा ही किया जाता है।

पंजाब केसरी से साभार

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