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एंटीबायोटिक्स जितना कम उतना बेहतर

एंटीबायोटिक ड्रग्स के मामले में खूब सोच-विचार की जरूरत होती है। कई अध्ययन हमें बताते हैं कि हल्के संक्रमण, विशेषकर गले के रोगी एंटीबायोटिक्स के बगैर भी ठीक हो जाते हैं। भारत के अधिकतर हिस्सों में रोगी इस आधार पर अपनी पसंद से एंटीबायोटिक्स खरीदते हैं कि पूर्व में कौन-सी एंटीबायोटिक दवा से उन्हें आराम आया था। ऐसा माना जाता है की एंटीबायोटिक का जितना कम इस्तेमाल करेंगे उतना बेहतर होगा।

अथवा वे ‘सैरोगेट डॉक्टर’ यानी कैमिस्ट से सलाह लेते हैं। डॉक्टर भी तुरंत फोन पर सलाह देते हैं ताकि उन्हें रोगियों से न निपटना पड़े। इस संबंध में कोई आदर्श मापदंड नहीं है कि व्यक्ति को एंटीबायोटिक का सेवन कितनी देर करना चाहिए परंतु डॉक्टरों को लगता है कि इन्हें 3 से 5 दिन लेना चाहिए या जब तक कि इनफ़ेक्शन पूरी तरह से खत्म नहीं हो जाता है। लेकिन क्या यह सही है?

कितनी में देर लें ‘एंटीबायोटिक्स’

कई डॉक्टर जोर देते हैं कि रोगी कई दिनों के एंटीबायोटिक कोर्स को पूरा करें। जर्नल ऑफ द अमेरिकन मैडीकल एसोसिएशन में प्रकाशित स्पैलबर्ग के एक लेख के अनुसार एंटीबायोटिक्स सेवन का नया मंत्र ‘जितना कम, उतना बेहतर होना चाहिए। एंटीबायोटिक्स के छोटे कोर्स बैक्टीरिया में प्रतिरोधी क्षमता पैदा होने से रोकते हैं। वास्तव में लम्बे कोर्स से शरीर में मौजूद साधारण सूक्ष्मजीव भी एंटीबायोटिक्स के प्रतिरोधी बन सकते हैं और वे भी शरीर पर हमले शुरू कर सकते हैं।

‘साइडल’ बनाम ‘स्टेटिक’

एंटीबायोटिक्स दो तरह के होते हैं। एक वे जो बैक्टीरिया को मारते हैं उन्हें ‘साइडल एंटीबायोटिक्स’ कहते हैं, और दूसरे जो बैक्टीरिया को मारे बिना फैलने से रोकते हैं और उन्हें ‘स्टेटिक एंटीबायोटिक्स’ कहते हैं। यह आम धारणा है कि ‘साइडल एंटीबायोटिक्स’ बेहतर होते हैं परन्तु चिकित्सकीय अध्ययन हमें कुछ और ही बताते हैं। 128 शोधकर्ताओं का एक अध्ययन ‘स्टेटिक एंटीबायोटिक्स’ पर ‘साइडल एंटीबायोटिक्स’ की श्रेष्ठता साबित करने में नाकाम रहा है।

डी.एन.ए. से चिपके रहते हैं एंटीबायोटिक्स

एंटीबायोटिक्स के तत्व हमारी कोशिकाओं के डी.एन.ए. के साथ चिपक जाते हैं और लम्बे वक्त तक वहां रहते हैं। इसके दीर्घकालीन दुष्प्रभावों पर विस्तार से विश्लेषण अभी होना है। जोसफ किंग तथा उनके सहयोगियों का शुरूआती शोध दर्शाता है कि कोशिकाओं में इसी तरह चिपकने वाली आम इस्तेमाल होने वाली एंटीबायोटिक’ फ्लूओनोक्विनोल्यूज’ कई अन्य बीमारियों की वजह हो सकती है जिनमें ‘गल्फ वार सिंड्रोम’ भी एक हो सकती है।

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