अंतरराष्ट्रीय अल्पसंख्यक अधिकार दिवस विश्वभर में हर वर्ष 18 दिसंबर को मनाया जाता है। यह दिन 1992 को सयुंक्त राष्ट्र संघ द्वारा अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों की रक्षा के लिए बनाया गया था।
शुरुआत एवं उद्देश्य
अंतरराष्ट्रीय अल्पसंख्यक अधिकार दिवस की शुरुआत 18 दिसंबर 1992 को संयुक्त राष्ट्र द्वारा की गई थी। इसका मुख्य उदेश्य अल्पसंख्यकों के राष्ट्र निर्माण में योगदान के रूप में चिह्न्ति करना था। जिसमें अल्पसंख्यकों की भाषा, जाति, धर्म, संस्कृति, परंपरा आदि की सुरक्षा की जा सके।
भारतीय में अल्पसंख्यक अधिकार दिवस
भारत के संविधान में अल्पसंख्यक होने का आधार धर्म और भाषा को माना गया है।
भारत की कुल जनसंख्या का अनुमानत 19 प्रतिशत अल्पसंख्यक समुदायों का है। इसमें मुसलिम, सिख, ईसाई, बौद्ध और पारसी शामिल हैं। जैन, बहाई और यहूदी अल्पसंख्यक तो हैं, लेकिन इन्हें संबंधित संवैधानिक अधिकार प्राप्त नहीं हैं।
भारत में अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय अल्पसंख्यकों से संबंधित मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करता है। मंत्रालय का लक्ष्य अल्पसंख्यकों का विकास करना होता है। भारत में अल्पसंख्यकों के विकास और वृद्धि के लिए अल्पसंख्यक कार्य मंत्रालय निम्नलिखित कार्यों को सुनिश्चित करता है:-
- शिक्षा का अधिकार
- संवैधानिक अधिकार
- आर्थिक सशक्तिकरण
- महिलाओं का सशक्तिकरण
- समान अवसर
- कानून के तहत सुरक्षा और संरक्षण
- कीमती परिसम्पत्तियों की सुरक्षा जैसे कि वक्फ़ परिसम्पतियां
- आयोजना प्रक्रिया में सहभागिता
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग
- भारत सरकार ने अल्पसंख्यक अधिकारों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए 1978 में अल्पसंख्यक आयोग का गठन किया था। इसे बाद में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग अधिनियम-1992 के तहत कानून के रूप में 1992 में पारित किया गया।
- राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग को वर्ष 2006 जनवरी में यूपीए सरकार ने अल्पसंख्यक मामलों के मंत्रालय के अधीन कर दिया था। जिससे की वे सारे संवैधानिक अधिकार प्राप्त कर सके, जो दीवानी अदालतों को हैं।
- इस आयोग का गठन भारत के लिए इसलिए भी महत्व रखता है, क्योंकि पूरे यूरोप के किसी भी राष्ट्र में ऐसा कोई आयोग नहीं है। आज भारत के कई अन्य राज्यों में भी राज्य अल्पसंख्यक आयोग हैं l
- वर्तमान समय (18 दिसंबर 2013) में राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष वजाहत हबीबुल्लाह है।