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डाक भी अब मशीनों के हवाले

एक जमाना था जब डाक सेवा के बारे में सोचते ही मन में पत्रों से भरे बोरों में से चिट्ठियों को हाथों से छांटने वाले डाक कर्मि तथा पत्रों को साइकिल पर घर-घर पहुंचाने वाले डाकियों की तस्वीर उभर आती थी। हालांकि, विज्ञान की तरक्की डाक विभाग के कामकाज में भी दिखाई देने लगी है। कई देशों में तो डाकघरों में रोबोटिक सिस्टम्स तक का इस्तेमाल खूब हो रहा है। पत्रों की छंटाई का काम अब चतुर मशीनें कर रही हैं और कुछ इंसान ही काम पर नजर रखने के लिए वहां होते हैं।

जर्मनी का डाक विभाग भी इनमें से एक है। फ्रैंकफर्ट स्थित ड्यूश पोस्ट्स (जर्मन डाक सेवा) के मुख्य डाकखाने में कन्वेयर बैल्ट्स की तथा मशीनों की आवाजें खूब सुनाई देती हैं। यहां लगभग सारा काम मशीनों को सौंप दिया गया है । पत्रों से लदी बड़ी-बड़ी क्रेट्स यांत्रिक पट्टियों पर एक से दूसरे स्थान तक पहुंचती हैं। जी.एस.ए. नामक यह मशीन सिस्टम प्रति घंटे में 40 हजार पत्रों की सही-सही छंटाई करता है।

बिग बॉस के नाम से मशहूर हो चुका जी.एस.ए. इतनाचतुर मशीनी सिस्टम है कि इसे पत्रों पर बारकोड्स की भी जरूरत नहीं पड़ती। मशीन बस पत्रों पर लिखे पतों को स्कैन करती है, फिर चाहे वे हाथों से ही क्यों न लिखे हों।

यह एक तरह से चेहरों की पहचान करने वाले सिस्टम जैसा है जिसके तहत एक पत्र की पहचान हो जाने के बाद सिस्टम उसे हर प्रोसैसिंग प्वाइंट पर स्वतः पहचान कर आगे पहुंचाता रहता है जब तक कि वह अपनी मंजिल पर न पहुंच जाए। इसके बाद स्कैन की सूचना अपने आप सिस्टम से डिलीट हो जाती है।

फ्रैंकफर्ट डिपो में 26 वर्ष से कार्यरत नादर अफशारी अब मेन हॉल के सामने पत्रों को क्रेट्स में डालने का काम करते हैं। वह बताते हैं, गत 20 वर्षों के दौरान हुआ सबसे बड़ा बदलाव यह आधुनिकीकरण ही हैं। पहले यहां 20 लोग काम करते थे, अब केवल 3 हैं।

नादर के करियर के दौरान इस डाकघर के मेन हॉल में नाटकीय बदलाव आ चुका है। अब हर चरण में मशीनों का प्रयोग हो रहा है।

डाकियों को सभी पत्र उसी क्रम में सहेजे हुए मिलते हैं जिसके हिसाब से उन्हें घरों तक पहुंचाना होता है। इससे सभी का वक्त, मेहनत और पैसा भी बचता है। डाक घर से पत्र निकलने पर उस पर लागत बढ़ने लगती है इसलिए पहले ही ज्यादा से ज्यादा तैयारी करने पर जोर दिया जाता है।

https://fundabook.com/mobile-phones-badly-effects-children/

 

 

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