भारतीय संस्कृति में पीपल को देववृक्ष माना जाता है। हिंदू धर्म में इस वृक्ष का बहुत महत्व है। इसे सभी वृक्षों से शुद्ध और पूजनीय माना जाता है। इसे विश्व वृक्ष, चैत्य वृक्ष और वासुदेव भी कहा जाता है।
पीपल के पत्ते-पत्ते में विष्णु भगवान का वास होता है। इसे पूजने के पीछे कई धार्मिक और वैज्ञानिक कारण भी हैं। तो चलिए जानें इसके पूजन से जुड़े कुछ ऐसे ही कारणों को।
पौराणिक कथा
एक पौराणिक कथा के अनुसार लक्ष्मी और उसकी छोटी बहन दरिद्रा विष्णु भगवान के पास गई और प्रार्थना करने लगी कि हे प्रभो! हम कहां रहें? इस पर विष्णु भगवान ने दरिद्रा और लक्ष्मी को पीपल के वृक्ष पर रहने की अनुमति प्रदान कर दी।
इस तरह वे दोनों पीपल के वृक्ष में रहने लगीं। साथ ही विष्णु भगवान की ओर से उन्हें यह वरदान मिला कि जो व्यक्ति शनिवार को पीपल की पूजा करेगा, उसे शनि ग्रह के प्रभाव से मुक्ति मिलेगी। उस पर लक्ष्मी की अपार कृपा रहेगी।
स्कंद पुराण अनुसार पीपल के मूल (जड़) में विष्णु, तने में केशव, शाखाओं में नारायण, पत्तियों में भगवान हरि और फलों में समस्त देवताओं से युक्त भगवान सदैव निवास करते हैं।
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वैज्ञानिक कारण
वैज्ञानिक दृष्टि से पीपल प्राणवायु का केंद्र है। यानी यह वृक्ष पर्याप्त मात्रा में कार्बन डाई ऑक्साइड ग्रहण करता है और ऑक्सीजन छोड़ता है।
ऑक्सीजन के अतिरिक्त इस वृक्ष में अन्य अनेक विशेषताएं हैं जैसे इसकी छाया सर्दी में गर्मी देती है और गर्मी में शीतलता देती है। इसके अतिरिक्त पीपल के पत्तों से स्पर्श करने से वायु में मिले संक्रामक वायरस नष्ट हो जाते हैं।
आयुर्वेद के अनुसार इसकी छाल, पत्तों और फल आदि से अनेक प्रकार की रोगनाशक दवाएं बनती हैं। इस दृष्टि से भी पीपल पूजनीय हैं इसलिए इसे पूजा जाता है।
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