भारत का इतिहास राजाओं, महाराजाओं और उनके किलों से बहुत मशहूर है। यहां बहुत ऐसे किले मौजूद है जिनका इतिहास बहुत रोचक और डरावना है। इन में से एक किला है मेहरानगढ़ किला ( Mehrangarh Fort )। यह किला जोधपुर के सबसे बड़े किलों में से एक है। सबसे ज़्यादा लोग इस किले को देखने आते हैं। यह किला डेढ़ सौ मीटर ऊंची एक पहाड़ी पर स्थित है। यह किला दिल्ली के कुतुब मीनार से 73 मीटर की ऊंचाई पर मौजूद है।
इतिहास
इस किले को राव जोधा ने बनवाया था। जोधपुर के राजा रणमल की 24 संतानें थी, उनमें से एक थे राव जोधा, जो जोधपुर के 15वें राजा बने थे। राजा बनने के बाद राव जोधा ने एक वर्ष तक शासन की बागडोर संभाली। उसके बाद उनको लगा कि मंडोर का किला उनके लिए सुरक्षित नहीं है। इसलिए उन्होंने मंडोर किले से 9 कि.मी. दूर एक पहाड़ी पर नया किला बनवाया।
इस पहाड़ी पर पक्षियों का रहन बसेरा था, इसलिए इस पहाड़ी का नाम भोर चिड़िया पड़ा हुआ था। इस किले की नींव राव जोधा ने 12 मई 1459 को रखी थी। लेकिन इसे महाराज जसवंत सिंह ने 1638 -1678 में पूरा करवाया था। यह किला रानियों और राजकुमारियों की कुर्बानियों के लिए मशहूर हैं। रानियों और राजकुमारियों ने क़ुरबानी दे कर यह संदेश दिया कि, वे अपने पतियों के लिए कुछ भी कर सकतीं हैं।
आइए जानते है इस किले के बारे में और कुछ रोचक बातें:
- 1818 में महाराजा मान सिंह इस किले के राजा बने। 1843 में महाराजा मान सिंह के निधन होने के बाद उनकी पत्नी रानी पद्मावती ने अग्नि कुण्ड में खुद को कुर्बान कर दिया था। उनकी स्मृति में किले के परिसर में सती माता का मंदिर बनवाया गया था ।
- इस किले की दीवारों ने 10 किलोमीटर तक जगह घेरी हुई है। इन दीवारों की ऊंचाई 20 फुट से 120 फुट और चौड़ाई 12 फुट से 70 फुट तक है।
- इस किले के मुख्य चार दरवाजें हैं। किले के अंदर भव्य महल, अद्भुत नक्काशीदार दरवाजें , जालीदार खिड़कियां हैं।
- मेहरानगढ किले में 7 दरवाजें और भी हैं। हर एक दरवाजा अपनी एक अलग कहानी को दर्शाता है।
- किले का अंतिम दरवाजा लोह पोल है, जो किले के परिसर के मुख्य भाग में बना हुआ है। जिन औरतों ने अपने पति को युद्ध में खोया था, उन्होंने भी खुद को रानी पद्मावती के साथ अग्नि कुण्ड में कुर्बान कर दिया था, इस दरवाजे के बायीं तरफ उनके हाथों के निशान है।
- 1965 में जब भारत-पाक का युद्ध हुआ तो उस युद्ध में मेहरानगढ़ के किले को भी निशाना बनाया गया था, लेकिन माना जाता है कि माता की कृपा से यहां किसी का कोई भी नुकशान नहीं हुआ था। इस किले की चोटी से पाकिस्तान की सीमा देखी जा सकती है।
- किले के अंदर एक म्यूजियम भी है। इस म्यूजियम को देखने के लिए इस किले में बहुत लोग आतें हैं। इस म्यूजियम में अलग- अलग आकार की शाही पालकियों के अलावा राठौर की सेना, पोशाक, चित्र और साज-सज्जा के सामान को संभाल कर रखा गया है।
- इस किले के अंदर बहुत सारे सजे हुए महल भी है, जिनमें मोती महल, फूल महल, शीश महल, सिलेह खान और दौलत खान आदि महल है। साथ ही किले के म्यूजियम में पालकियों , पोशाकों , संगीत वाद्य, शाही पालनों और फर्नीचर को रखा हुआ है। किले की दीवारों पर रखी तोपे इसकी सुन्दरता को चार चाँद लगाती है।
- यह किला रोज सुबह 9:00 से शाम 5:00 बजे तक खुला रहता है। भारतीय पर्यटकों के लिए प्रवेश करने के 60 रुपये है और विदेशी पर्यटकों के लिए यह 400 रुपये है। कैमरा फीस 100 रुपये है।
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