भारतीय हॉकी में मेजर ध्यानचंद का योगदान अतुलनीय है। मेजर ध्यानचंद भारतीय हॉकी के भूतपूर्व खिलाड़ी एवं कप्तान थे। मेजर ध्यानचंद को सर्वकालिक सर्वश्रेष्ठ हॉकी खिलाड़ियों में से एक माना जाता है।
उनमें गोल करने की असाधारण प्रतिभा थी, जिसके कारण भारत ने 1928, 1932 और 1936 के ओलंपिक खेलों में हॉकी स्वर्ण पदक जीते। उनके युग को भारतीय हॉकी का “स्वर्ण काल” कहा जाता है। उनकी जन्मतिथि को भारत में “राष्ट्रीय खेल दिवस” के रूप में मनाया जाता है।
गेंद पर उनके उत्कृष्ट नियंत्रण के कारण उन्हें “हॉकी का जादूगर” भी कहा जाता है। उन्होंने 1000 से अधिक गोल दागे थे। जब वो मैदान में खेलने को उतरते थे तो गेंद मानों उनकी हॉकी स्टिक से चिपक सी जाती थी। मेजर ध्यानचंद ने वर्ष 1948 में हॉकी से संन्यास की घोषणा की थी।
इस पोस्ट में हम मेजर ध्यानचंद के बारे में कुछ अनसुने तथ्यों के बारे में जानेंगे, तो चलिए शुरू करते हैं
- मेजर ध्यानचंद का जन्म 29 अगस्त 1905 को उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद में हुआ था। उनका जन्म ध्यान सिंह के रूप में श्रद्धा सिंह और समेश्वर सिंह के घर हुआ था। उनके पिता ब्रिटिश भारतीय सेना में एक सैनिक थे।
- मेजर ध्यानचंद के छोटे भाई रूप सिंह भी हॉकी खिलाड़ी थे। ध्यानचंद ने वर्ष 1932 में ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई पूरी की। बचपन के दिनों में ध्यानचंद को कुश्ती में रुचि थी।
- 1922 में, बहुत कम उम्र में ध्यानचंद भारतीय सेना में शामिल हो गए और एक सैनिक के रूप में काम किया। ध्यान सिंह अपनी ड्यूटी करने के बाद रात में अभ्यास करते थे, इसलिए उनके साथी खिलाड़ी उन्हें “चाँद” उपनाम से संबोधित करने लगे।
- ध्यानचंद हॉकी के इस कदर दीवाने थे कि वह पेड़ से हॉकी के आकार की लकड़ी काटकर उससे खेलना शुरू कर देते थे। रात भर वह हॉकी खेलते रहते थे। उनको हॉकी के आगे कुछ याद नहीं रहता था। हॉकी के सामने वह पढ़ाई को भी भूल जाते थे।
- एक बार मैच खेलते समय ध्यानचंद विपक्षी टीम के खिलाफ एक भी गोल नहीं कर पाए। कई बार असफल होने के बाद उन्होंने मैच रेफरी से गोलपोस्ट की माप के बारे में शिकायत की और आश्चर्यजनक रूप से यह पाया गया कि गोलपोस्ट की आधिकारिक चौड़ाई अंतरराष्ट्रीय नियमों के अनुरूप नहीं थी।
- 1936 के बर्लिन ओलंपिक में भारत के पहले मैच के बाद लोग ध्यानचंद की जादुई हॉकी देखने के लिए हॉकी मैदान पर इकट्ठा हुए थे। एक जर्मन अखबार का शीर्षक था: ‘ओलंपिक परिसर में अब एक जादू का शो है।’ अगले दिन बर्लिन की सड़कें पोस्टरों से भर गईं, जिन पर लिखा था, “हॉकी स्टेडियम जाएं और भारतीय जादूगर का जादू देखें“।
- एक किंवदंती के अनुसार जब हिटलर ने जर्मनी के खिलाफ ध्यानचंद का जादुई खेल देखा तो उसने उन्हें जर्मनी में बसने को कहा और उन्हें अपनी सेना में कर्नल का पद देने की पेशकश की, लेकिन ध्यानचंद ने मुस्कुराते हुए इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया।
- 1936 के ओलंपिक में जर्मनी के साथ एक मैच के दौरान जर्मनी के तेजतर्रार गोलकीपर “टीटो वर्नहोल्ट” से टकराने पर ध्यानचंद का दांत टूट गया था। प्राथमिक उपचार के बाद मैदान पर लौटने पर, ध्यानचंद ने जर्मन खिलाड़ियों को सबक सिखाने के लिए भारतीय खिलाड़ियों को गोल न करने की सलाह दी। भारतीय खिलाड़ी बार-बार गेंद को जर्मनी के गोलपोस्ट तक ले गए और फिर से गेंद को वापस अपने पाले में ले आए।
- 1935 में जब भारतीय हॉकी टीम ऑस्ट्रेलिया में थी तो महान क्रिकेट खिलाड़ी डॉन ब्रैडमैन और महानतम हॉकी खिलाड़ी ध्यानचंद एडिलेड (एडिलेड ऑस्ट्रेलिया का एक प्रमुख नगर है) में एक दूसरे से मिले। ध्यानचंद का खेल देखने के बाद डॉन ब्रैडमैन ने कहा था, “वह हॉकी में उसी तरह गोल करते हैं जैसे क्रिकेट में रन बनते हैं।“
- वियना (ऑस्ट्रिया) के निवासियों ने उनकी चार हाथों और चार हॉकी स्टिक वाली एक मूर्ति स्थापित की थी जो गेंद पर उनके नियंत्रण और महारत को दर्शाती है। हालाँकि यह अतिशयोक्ति भी हो सकती है क्योंकि वर्तमान में न तो ऐसी कोई मूर्ति है और न ही उससे जुड़े दस्तावेज़।
- एक बार नीदरलैंड में अधिकारियों ने ध्यानचंद की हॉकी स्टिक के अंदर चुंबक होने की आशंका के कारण उसकी हॉकी स्टिक तोड़ दी थी।
- वैसे तो ध्यानचंद ने कई यादगार मैच खेले, लेकिन उन्होंने 1933 के “बीटन कप” के फाइनल मैच को अपना सर्वश्रेष्ठ मैच माना जो “कलकत्ता कस्टम” और “झांसी हीरोज” के बीच खेला गया था।
- 1932 के ग्रीष्मकालीन ओलंपिक में भारत ने संयुक्त राज्य अमेरिका और जापान को क्रमशः 24-1 और 11-1 से हराया। इन 35 गोलों में से ध्यानचंद ने 12 गोल किये जबकि उनके भाई रूप सिंह ने 13 गोल किये। इस शानदार प्रदर्शन के कारण दोनों भाइयों को “हॉकी ट्विन्स” के नाम से जाना जाने लगा।
- अपने पूरे करियर में उन्होंने लगभग 185 मैच खेले और 400 से अधिक गोल किये।
- भारत सरकार ने उन्हें वर्ष 1956 में तीसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म भूषण से सम्मानित किया। उनके जन्मदिन 29 अगस्त को भारत में राष्ट्रीय खेल दिवस के रूप में मनाया जाता है और इस दिन राष्ट्रपति द्वारा कई पुरस्कार प्रदान किए जाते हैं।
- हॉकी के जादूगर ध्यानचंद की आत्मकथा “गोल” 1952 में प्रकाशित हुई थी। अपनी आत्मकथा ‘गोल’ में उन्होंने लिखा था “आपको मालूम होना चाहिए कि मैं बहुत साधारण आदमी हूँ”।
- मेजर ध्यानचंद ने 3 दिसंबर 1979 को अंतिम सांस ली।
- मेजर ध्यानचंद को श्रद्धांजलि देने के लिए भारतीय डाक विभाग ने 1979 में दिल्ली के नेशनल स्टेडियम का नाम बदलकर मेजर ध्यानचंद स्टेडियम, दिल्ली कर दिया।
- 2021 में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की कि राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार का नाम बदलकर मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार कर दिया जाएगा।