सावन आते ही शुरू हो जाती है कांवड़ यात्रा। सैकड़ों कांवड़िये कांवड़ में जल भर करके मीलों की दूरी तय करके शिव धाम पहुंचकर शिवलिंग का जलाभिषेक करते हैं।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि कांवड़ यात्रा की शुरुआत कैसे हुई या फिर किसने शुरू की यह प्रथा? साथ ही सबसे पहले कांवड़ से जल भर करके शिवलिंग का जलाभिषेक किसने किया?
कांवड़ियों के लिए बागपत के पुरा महादेव मंदिर का इतना महत्व क्यों है? कांवड़ यात्रा की शुरुआत कैसे हुई, इसके बारे में अलग- अलग मान्यताएं प्रचलित हैं। आइए जानते हैं कांवड़ यात्रा के बारे में प्रचलित मान्यताएं।
- कुछ विद्वानों का मानना है कि त्रेता युग में श्रवण कुमार हिमाचल के उना क्षेत्र से अपने माता-पिता को कांवड़ में बैठाकर हरिद्वार लाए और उन्हें गंगा स्नान कराया था। वापसी में वे अपने साथ गंगाजल भी ले गए और इसे ही कावड़ यात्रा की शुरुआत माना जाता है।
- कुछ अन्य मान्यताओं के अनुसार सबसे पहले प्रभु श्री राम ने शिव का जलाभिषेक किया। श्रीराम ने बिहार के सुल्तानगंज से कांवड़ में गंगाजल भरकर, बाबाधाम में शिवलिंग का जलाभिषेक किया था।
- पुराणों के अनुसार समुद्र मंथन से निकले विष को पी लेने के कारण भगवान शिव का कंठ नीला हो गया और वे नीलकंठ कहलाए। विष के प्रभाव को खत्म करने के लिए लंका के राजा रावण ने कांवड़ में जल भरकर बागपत स्थित पुरा महादेव में भगवान शिव का जलाभिषेक किया था।
- यह भी मान्यता है कि विष के प्रभावों को दूर करने के लिए देवताओं ने सावन में शिव पर मां गंगा का जल चढ़ाया था और तब कांवड़ यात्रा का प्रारंभ हुआ।
- कांवड़ यात्रा को लेकर प्रचलित मान्यताओं में से एक वेस्ट यूपी से भी जुड़ी हैं। मान्यता है कि सबसे पहले भगवान परशुराम ने बागपत के पास स्थित पुरा महादेव मंदिर में कावड़ से गंगाजल लाकर जलाभिषेक किया था। जलाभिषेक करने के लिए भगवान परशुराम गढ़मुक्तेश्वर से गंगाजल लेकर आए थे।
बागपत-मेरठ जिला सीमा पर हिंडन के तट पर स्थित इस मंदिर के बारे में माना जाता है कि इसे भगवान परशुराम ने स्थापित किया था। यही वजह है कि कांवड़ियों के लिए महादेव के मंदिर का खास महत्व है। बागपत के पुरा महादेव मंदिर में हर साल लाखों कांवड़िये पहुंचते हैं।
कांवड़ यात्रा के प्रमुख नियम
- कांवड़ यात्रा के दौरान किसी भी तरह का नशा, मांस मदिरा या तामसिक भोजन नहीं करना चाहिए। कांवड़ यात्रा पूरी तरह पैदल की जाती है। यात्रा प्रारंभ होने से लेकर पूर्ण होने तक सफर पैदल ही किया जाता है। यात्रा में वाहन का प्रयोग नहीं किया जाता।
- कांवड़ में गंगा या किसी पवित्र नदी का ही जल ही रखा जाता है, किसी कुंवे या तालाब का नहीं। कावड़ को हमेशा स्नान करने के बाद ही स्पर्श करना चाहिए और ध्यान रखना चाहिए कि यात्रा के समय कांवड़ या आपसे चमड़ा स्पर्श ना हो। कावड़ियों को हमेशा जत्थे के साथ ही रहना चाहिए।
- कांवड़ यात्रा के दौरान ध्यान रखना चाहिए कि अगर आप कहीं रुक रहे हैं तो कांवड़ को भूमि या किसी चबूतरे पर ना खें। कांवड़ को हमेशा स्टैंड या डाली पर ही लटकाकर रखें। अगर गलती से जमीन पर कांवड़ को रख दिया है तो फिर से कांवड़ में पवित्र जल भरना होता है।
- कांवड़ यात्रा करते समय पूरे रास्ते बम बम भोले या जय जय शिव शंकर का उच्चारण करते रहना चाहिए। साथ ही यह भी ध्यान रखना चाहिए कि कांवड़ को किसी के ऊपर से लेकर ना जाएं।
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