आज देशभर में शिक्षक दिवस धूमधाम से मनाया जा रहा है। शिक्षकों को समर्पित यह दिन खासतौर पर डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के सम्मान में मनाया जाता है। उनका जन्म 5 सितंबर साल 1888 में हुआ था।
उन्होंने अपने जीवन के 40 साल एक शिक्षक के रूप में देश को समर्पित किए थे। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन भारत के पहले उपराष्ट्रपति और दूसरे राष्ट्रपति होने के साथ ही एक महान विद्वान, दार्शनिक और भारत-रत्न प्राप्तकर्ता थे। भारतीय शिक्षा के क्षेत्र में डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन का बहुत बड़ा योगदान रहा है।
एक बार डॉ. राधाकृष्णन के कुछ छात्रों और दोस्तों ने उनसे कहा कि वो उनके जन्मदिन को सेलिब्रेट करना चाहते हैं। इसके जवाब में डॉ. राधा कृष्णन ने कहा कि मेरा जन्मदिन अलग से मनाने की बजाए इसे टीचर्स डे के रूप में मनाया जाएगा तो मुझे गर्व महसूस होगा। इसके बाद से राधाकृष्णन का जन्मदिन शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।
इस दिन हम महान शिक्षाविद् को याद करते हैं और अपने सभी शिक्षकों का सम्मानपूर्ण शुक्रिया कहते हैं जिन्होंने हमारी जिंदगी में ज्ञान के दीपक को जलाया है। राधाकृष्णन एक शिक्षक के साथ दर्शनशास्त्र के प्रोफेसर भी थे।
शिक्षक दिवस आधुनिक भारत के महान शिक्षक और दार्शनिक डॉ. सर्वपल्ली राधा कृष्णन एक गरीब ब्राह्मण परिवार में 5 सितंबर को 1888 में पैदा हुए थे। वह बचपन से ही बहुत समझदार और मेहनती बच्चे थे। जब वो कलकत्ता में एक प्रोफेसर के तौर पर पढ़ाने के लिए जा रहे थे तो उनके छात्र उनका सामान और फूल लेकर उन्हें मैसूर यूनिवर्सिटी से लेकर रेलवे स्टेशन तक छोड़ने गए थे।
सभी लोग उनका बहुत सम्मान करते थे। देश की सेवा के साथ भारत के शिक्षा क्षेत्र को कैसे बढ़ाया जाए इस पर सर्वपल्ली ने कार्य किया। उन्होंने अपने मूल कार्य को पहचाना तभी आज उनके जन्मदिवस पर शिक्षक दिवस मनाया जाता है।
शिक्षक दिवस को स्कूल और कॉलेज में बहुत ही धूम-धाम से मनाया जाता है और बच्चों को शिक्षा के जमीनी स्तर से जोड़ने की कोशिश की जाती है।
इस दिन कई शिक्षा संस्थान शिक्षकों को आराम देते हैं और उनके लिए अलग-अलग कार्यक्रम आयोजित करते हैं। राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षक दिवस मना कर उनके महत्व को समाज में और बढ़ाया जाता है।
एक शिक्षक ही एक बच्चे को विद्यार्थी में बदलता है और वही विद्यार्थी आगे चलकर देश का भविष्य बनता है। डॉ. राधाकृष्णन ने समाज में शिक्षकों और शिक्षा दोनों कि महत्वता को समझा है इसलिए उनके जन्मदिन को शिक्षक दिवस के रूप में 1962 के बाद से मनाया जा रहा है।
शिक्षा के क्षेत्र में योगदान
डॉ. राधाकृष्णन के विचारों का भारतीय शिक्षा व्यवस्था पर गहरा प्रभाव पड़ा। उन्होंने आदर्शवाद के दर्शन की वकालत की, जिसमें शिक्षा में मूल्यों, नैतिकता और चरित्र विकास के महत्व पर जोर दिया गया।
राधाकृष्णन एक प्रतिष्ठित शिक्षक और विद्वान थे। उन्होंने एक प्रोफेसर के रूप में और बाद में आंध्र विश्वविद्यालय एवं बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में कार्य किया, जहां उन्होंने शिक्षा प्रणाली में महत्वपूर्ण सुधार किए।
डॉ. राधाकृष्णन ने पूर्वी और पश्चिमी शिक्षा को बढ़ावा दिया।
सर्वपल्ली राधाकृष्णन के बारे में कुछ रोचक तथ्य
- जब वे भारत के राष्ट्रपति बने, तो उन्होंने 10,000 रुपये के मासिक वेतन में से केवल 2500 रुपये स्वीकार किए, शेष प्रधानमंत्री राष्ट्रीय राहत कोष में जा रहे थे।
- राधाकृष्णन शेवनिंग स्कॉलरशिप और राधाकृष्णन मेमोरियल अवार्ड की स्थापना ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी द्वारा की गई थी।
- हेल्पेज इंडिया, वृद्धों और गरीबों के लिए एक गैर-लाभकारी संगठन, उनके द्वारा बनाया गया था।
- राष्ट्रपति बनने से पहले, राधाकृष्णन ने 1947 से 1952 तक संयुक्त राष्ट्र में भारत के राजदूत के रूप में कार्य किया।
- 1954 में उन्हें भारत रत्न और 1961 में जर्मन पुस्तक व्यापार शांति पुरस्कार दिया गया।
- सर्वपल्ली राधाकृष्णन को 1954 में भारत रत्न और 1961 में जर्मन बुक ट्रेड के शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। 1963 में उन्हें ऑर्डर ऑफ मेरिट और 1975 में टेम्पलटन पुरस्कार दिया गया।
- उन्हें 1931 में नाइट की उपाधि दी गई थी और 1947 में भारत की स्वतंत्रता तक उन्हें सर सर्वपल्ली राधाकृष्णन के नाम से जाना जाता था। देश को आजादी मिलने के बाद उनका नाम बदलकर डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन कर दिया गया।
- उन्हें 1936 में ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय में पूर्वी धर्मों और नैतिकता के स्पैल्डिंग प्रोफेसर नियुक्त किया गया था। इसके अलावा, उन्हें ऑल सोल्स कॉलेज के फेलो के रूप में चुना गया था।