कहा जाता है कि बाल गंगाधर तिलक, गोपाल कृष्ण गोखले और महात्मा गांधी ने प्रखर राष्ट्रवादी दादा भाई नौरोजी से ही राजनीति का पहला पाठ सीखा था। वह न केवल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के संस्थापक सदस्यों में से एक थे, बल्कि ब्रिटिश हुकूमत को चुनौती देने और विदेशों में भारत के हितों की लगातार रक्षा करते रहने वाले एक प्रमुख व्यक्ति भी थे।
उन्होंने भारत के लिए सबसे पहले स्वराज की मांग की थी। 1906 में कांग्रेस के कलकता अधिवेशन में दादाभाई नौरोजी ने स्वराज यानी ‘इंडिया का राज‘ को कांग्रेस का लक्ष्य घोषित कर दिया था। यह उस समय अपनी तरह की पहली घोषणा थी।
अंग्रेज भारत का शोषण कर रहे थे। अंग्रेजी शासन के खिलाफ भारतीयों को जागरूक करने के लिए उन्होंने बहुत सारे आलेख लिखे, भाषण दिए और धीरे-धीरे राजनीति में बहुत ज्यादा सक्रिय हो गए।
उनका राजनीति में शामिल होना भारत के लिए फायदेमंद साबित हुआ क्योंकि यहां से एक नए युग का सूत्रपात हुआ। इतना ही नहीं, दादा भाई नौरोजी को दुनिया भर में जातिवाद और साम्राज्यवाद के विरोध की तरह भी जाना जाता था।
4 सितम्बर, 1825 को एक गरीब पारसी परिवार में जन्मे नौरोजी का प्रगतिशील विचारों की तरफ झुकाव कम उम्र में ही हो गया था।
यही कारण है कि उन्होंने लड़कियों की पढ़ाई पर जोर दिया और 1840 के दशक में लड़कियों के लिए स्कूल खोला। इस कारण उन्हें रूढ़िवादी पुरुषों के विरोध का सामना करना पड़ा लेकिन वह ज़रा भी डिगे नहीं।
5 साल के अंदर ही मुम्बई में लड़कियों का स्कूल भरा नजर आने लगा जिससे उनके इरादे और मजबूत हो गए। वह लैंगिक समानता की मांग करने लगे और उन्होंने महिलाओं और पुरुषों के लिए एकसमान कानूनों का समर्थन किया।
नौरोजी का कहना था कि भारतीय एक दिन यह समझेंगे कि “महिलाओं को दुनिया में अपने अधिकारों का इस्तेमाल, सुविधाओं और कर्तव्यों का पालन करने का उतना ही अधिकार है, जितना एक पुरुष को।”
आजादी के 6 दशक से ज्यादा समय बाद ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ‘ जैसी पहल नौरोजी की तब की कही बात को ही सच साबित करती है।
कार्यस्थल पर सुरक्षा-बराबरी का मामला हो या फिर उनके खिलाफ अपराध करने वालों के लिए सख्त कानून बनाने का, बेटियों को पहली बार वे अधिकार मिले हैं जिनकी बान नौरोजी उस समय करते थे।
दादा भाई नौरोजी की स्वतंत्रता संग्राम में अहमियत का पता 1894 को महात्मा गांधी द्वारा लिखी गई उस चिट्ठी से चलता है जिसमें उन्होंने लिखा था, “हिंदुस्तानी आपकी तरफ ऐसे देखते हैं जैसे बच्चे अपने पिता की ओर। यहां आपको लेकर कुछ इस तरह का अहसास है।” यही कारण है कि कृतज्ञ भारतीय राष्ट्र आज भी उन्हें श्रद्धापूर्वक याद करता है।
पंजाब केसरी से साभार
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