अगर आजादी से पहले भारत के राजा, महाराजाओं के किस्सों की बात की जाए तो वे बेहद गजब-गजब थे। वे कभी कभी ऐसे काम कर डालते थे जिससे हरकोई चकित रह जाता था। ऐसा ही एक काम महाराजा कपूरथला ने किया था। वो अपनी सबसे सुंदर रानी को विदेश एक पुरुष बनाकर ले गए थे।
दरअसल यह उस समय की बात है जब ब्रिटिश राज का जमाना था। देश में वायसराय सबसे बड़ा अधिकारी होता था जिसकी बात राजा, महाराजाओं को भी माननी पड़ती थी। उस समय लार्ड कर्जन वायसराय थे।
महाराजा कपूरथला जगजीत सिंह ने जब विदेश जाने के लिए लार्ड कर्जन से की इजाजत मांगी तो उन्हें एक शर्त पर इजाजत मिली कि वो अपने साथ केवल कुछ सहायक लेकर यूरोप जा सकते हैं, लेकिन किसी महारानी को नहीं,
परन्तु वे अपनी रानी को साथ ले जाना चाहते थे जिसके लिए उन्होंने एक योजना बनाई। जिस रानी को राजा अपने साथ ले जाना चाहते थे उसका पूरा नाम रानी कनारी साहिबा था।
महारानी कनारी को महाराजा बहत प्यार करता था। चूंकि कनारी महाराजा के साथ महारानी के तौर पर यूरोप नहीं जा सकती थी, इसलिए वह अचकन, पाजामा और पगड़ी पहन कर एक सिख लड़के की वेशभूषा में साथ गई थी।
क्यूंकि उन दिनों पासपोर्ट नहीं लेना पड़ता था इसलिए वह लड़के के वेश में भारत तथा यूरोप के सरकारी कर्मचारियों की नजरों से बच कर यूरोप जा पहुंची।
युरोप प्रवास में महाराजा और महारानी ने खूब मौज की। जिस समय उसके सामने कोई और व्यक्ति न होता तब महारानी औरतों के कपड़े पहन लेती थी।
फ्रांस के शाही खानदानों के मेहमानों के तौर पर महाराजा और महारानी को खास होटलों में ठहराया जाता था। वे लोग महाराज के इस रहस्य से परिचित थे। महारानी कनारी परम सुंदरी थी, वह कांगड़ा के राजपूत परिवार से सम्बन्ध रखती थी।
उसके गर्भ से एक पुत्र तथा एक पुत्री का जन्म हुआ। पुत्र का नाम था महाराज कुमार करमजीत सिंह, जो एक सुंदर और सुसंस्कृत राजकुमार था तथा पुत्री का नाम था महाराज कुमारी अमृतकौर जिसकी शादी हिमाचल प्रदेश की एक महत्वपूर्ण रियासत मंडी के राजा जोगिंद्र सेन से हुई।
भारत की स्वतंत्रता के बाद जब रियासतों को भारत गणराज्य में शामिल कर लिया गया तब मंडी के इसी राजा को भारत के राजदूत के रूप में नियुक्त करके ब्राजील भेजा गया।
मंडी के राजा जोगिंद्र सेन के साथ फरवरी, 1923 को महाराज कुमारी अमृतकौर की शादी हुई। शादी की रस्में पूरे ठाट-बाट के साथ पूरी की गईं।
पंजाब के गवर्नर तथा उसकी पत्नी लेडी मैक्लेगन कई राजे-महाराजे, महारानियां राजकुमारियां, रियासतों के मंत्री आदि इस शादी में शामिल हुए।
दूल्हे राजा को एक सजे हुए हाथी पर बैठा कर कपूरथला स्टेशन से एक महल तक लाया गया था। आतिशबाजी छोड़ी गई और रोशनी की गई। कपूरथला के राजमहल में शानदार दावतों के दौर भी चले। हजारों गरीबों को खाना भी खिलाया गया और ईनाम भी बांटा गया।
आगे महाराज कुमारी अमृतकौर के गर्भ से एक पुत्र का जन्म हुआ जिसका प्यार का नाम टीबू था। इसे ही बड़े होकर कपूरथला रियासत का महाराजा बनना था। यही सुंदर राजकुमार पढ़-लिख कर जवान हो गया मगर उस समय तक उसकी मां पुरे तौर पर शराबी बन चुकी थी।
शराब पीने की लत उसे अपनी मां महारानी कनारी से लगी थी। फिर महाराज कुमारी अमृतकौर अमरीका चली गई और बरसों तक वहां अकेली रही। उसने अपने पति से कानूनी तौर पर संबंध विच्छेद कर लिया था। उसके पति मंडी के राजा ने बाद में राजपिपला के महाराज के एक निकट संबंधी सरदार पिंकी की लड़की से शादी की।
अमृतकौर की मृत्यु अमरीका में बड़ी दर्दनाक स्थितियों में हुई। यह था उस नाजोंपली राजकुमारी का दुखद अंत जिसकी बुद्धि को पाश्चात्य शिक्षा ने भ्रष्ट कर डाला था।
यूरोप की राजधानियों में कई महीने बिताने के बाद जब महाराजा और महारानी कनारी भारत लौटे और उनका हवाई जहाज बम्बई में उतरा तो बम्बई के गवर्नर के सैनिक सचिव ने वाइसराय की ओर से उनका स्वागत किया था।
इस स्वागत समारोह में भी महारानी को कोई नहीं पहचान पाया क्योंकि इस समय भी वह सिख लड़के की वेशभूषा में ही थी। इससे पता चलता है कि उस समय के महाराजा लोग कितने चालाक थे और अपनी सनकें पूरी करने की खातिर वे वाइसराय तथा अन्य सरकारी अफसरों की आंखों में किस तरह धूल झोंका करते थे।
पंजाब केसरी से साभार
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