Tuesday, December 5, 2023
15.8 C
Chandigarh

क्या आपने कभी देखें है समुद्र में तैरने वालें ऊंट

ऊंट को ‘ रेगिस्तान के जहाज़’ के नाम से विख्यात किया जाता हैं. क्योंकि, ऊंट रेगिस्तान की रेत पर बेहद आराम से चल सकते हैं, और वह पानी के बिना भी कई दिन आसानी से गुज़ार सकते हैं। ऊंटों की एक प्रजाति ‘खाराई’ ऐसी प्रजाति है, जो समुद्र में तैरने के लिए भी माहिर है।

‘खाराई’ ऊंट सप्ताह में एक बार समुद्र को तैर कर मैंग्रोव पेड़ों वाले टापू पर पहुंचते हैं, जहां ये ऊंट इन पेड़ों की पत्तियों को जम कर खाते हैं, और दो से तीन दिन आसानी से गुज़ार लेते  हैं।

ये ऊंट अपने रखवालों के साथ समुद्र में 10 किलोमीटर की दूरी को तैर कर गुजरात के कच्छ जिले में खाड़ी के साथ लगते टापुओं पर पहुंचते हैं। ये ऊंट गहरे पानी में तैर कर समुद्र पार करते हैं। खाराई ऊंट मैंग्रोव वनस्पति चरने के लिए काफी मेहनत करते हैं। उथले समुद्री पानी में उगने वाले मैंग्रोव के पेड़ ही इन ऊंटों के मुख्य आहार होते हैं।

इसी लिए खास हैं ये ऊंट

इन ऊंटों के बाल बहुत लम्बे होते हैं। जिनका इस्तेमाल स्टोल, बैग तथा दरियां बनाने में किया जा सकता है। ऐसे ही इन ऊंटों को पालने वाला एक स्थानीय इस्माइल जाट कहता है कि , “ये ऊंट बेहद अनूठे हैं, और इनका दूध पीने से डायबिटीज ठीक हो जाती है।”

खाराई ऊंट के दूध के भी अनेक लाभ हैं, और हाल के दिनों में तो इनके दूध की लोकप्रियता दुनिया भर में बहुत बढ़ती जा रही है। इसी के चलते खाराई ऊंट के दूध के दाम भी आसमान छूने लगे हैं।

समुद्र में इतना लंबा सफर तय करने की क्षमता रखने वाले ये ऊंट भारत में एकमात्र गुजरात के कच्छ जिले में ही पाए जाते हैं। कच्छ में मुंद्र के टुंडावांढ, अबसाडा के मोहाडी, लैयारी और भचाऊ के जंगी गांव में ये ऊंट देखे जा सकते हैं, और भावनगर के अलियाबेट में भी इनकी थोड़ी-बहुत संख्या पाई जाती है।

मानसून में तीन महीने टापू पर रहते हैं ये ऊंट

इन ऊंटों के चरने का इलाका मौसम के अनुसार बदलता रहता है | क्योंकि ये ऊंट अक्सर ही सफर करते रहते हैं, इन्हें पालने वाले इनके लिए कोई पक्का ठिकाना नहीं बनाते | मानसून के मौसम में तो इन ऊंटों को तीन महीने तक टापुओं पर ही छोड़ दिया जाता है | वहां खाई में बारिश का पानी जमा होने से इन ऊंटों के लिए पानी का बंदोबस्त भी हो जाता है| एक ऊंट को प्रतिदिन 20 से 40 लीटर पानी की जरूरत होती है | गर्मियों तथा सर्दियों के दिनों में टापुओं पर ये ऊंट एक साथ 3 दिन से ज्यादा नहीं रहते |

घटती संख्या

गुजरात के 6 तटवर्ती जिलों में इन ऊंटों की संख्या कम होकर 5 हज़ार रह गई है | इन ऊंटों को दो अलग समुदाय पालते हैं- फकीरानी जाट जो इन्हें सम्भालते हैं, और राबरी जो इनके मालिक होते हैं |

इन ऊंटों को पलने वालों को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ता है | मैंग्रोव के पेड़ भी कम होते जा रहे हैं , जिससे इन ऊंटों के पारम्परिक चराई मार्ग खत्म हो रहे हैं | इसके अलावा इन ऊंटों की कम हो रही बिक्री और इनके दूध का रख-रखाव करना भी बहुत मुश्किल है |

ये भी जरूर पढ़े -: दुनिया में मनाए जाते हैं 70 से अधिक नववर्ष

Related Articles

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Stay Connected

15,988FansLike
110FollowersFollow
- Advertisement -

MOST POPULAR