आपने अक्सर सर्दी के मौसम में देखा होगा कि रेल की पटरी पर कहीं-कहीं बटन के जैसी कोई चीज लगी होती है, इसे ‘डेटोनेटर‘ कहते हैं। दरअसल जब भी सर्दी का मौसम आता है तो सर्दी के साथ कोहरे का आगमन भी हो जाता है।
कोहरे के साथ ही ट्रेन के लेट होने का सिलसिला भी शुरू हो जाता है। इस मौसम में रेलवे ट्रैक पर डेटोनेटर का इस्तेमाल भी शुरू हो जाता है, जिससे लोको पायलट को काफी मदद मिलती है। आज हम इस पोस्ट में जानेगें डेटोनेटर क्या होते हैं और इसका क्या इस्तेमाल होता है, तो आइए जानते हैं :-
क्या होते हैं डेटोनेटर?
डेटोनेटर एक तरह के विस्फोटक होते हैं और इन्हें ट्रेन के लिए इस्तेमाल होने वाली माइंस भी कहा जाता है। यह एक छोटे बटन की तरह होते हैं और जैसे ही उस पर से ट्रेन गुजरती है तो यह जोर से आवाज़ करते हैं। एक तरह से इनमें विस्फोट होता है, लेकिन सिर्फ आवाज़ ही होती है।
अब सवाल यह है कि आखिर रेलवे इन विस्फोटक का इस्तेमाल क्यों करती है और क्या इससे ट्रेन को कोई नुकसान नहीं होता? इसका जवाब ये है कि रेलवे यात्रियों की सुरक्षा के लिए इसका इस्तेमाल करता है और यह दुर्घटना से बचने के लिए या फिर कोहरे आदि में इस्तेमाल किया जाता है।
कैसे होता है उपयोग
जैसे ही रेलवे कर्मचारियों को रेलवे ट्रैक में कुछ खराबी का पता चलता है और ट्रेन को रोकना जरूरी हो जाता है, ऐसे में डेटोनेटर का उपयोग किया जाता है और खराब ट्रैक से कुछ मीटर पहले ही इसे लगा दिया जाता है।
ये डेटोनेटर्स माइंस की तरह काम करते हैं और जैसे ही ट्रेन का पहिया इससे गुजरता है तो आवाज़ होती है, जैसे माइंस में ब्लास्ट होता है।
इस आवाज को सुनकर ट्रेन का ड्राइवर समझ जाता है कि आगे कुछ खतरा है और ट्रेन के ब्रेक लगा देता है। इस स्थिति में एक के बाद दो-तीन डेटोनेटर्स लगाए जाते हैं, जिससे लोको पायलट पहले से सतर्क हो जाता है और ट्रेन की स्पीड को कम कर देता है। इस तरह खराब टैक से पहले गाड़ी रोक दी जाती है। आम स्थिति में इसे 600 मीटर पहले ही लगा दिया जाता है।
जब ज़्यादा कोहरा होता है तब भी इसका उपयोग किया जाता है। क्योंकि ज्यादा कोहरे में लोकोपायलट को बोर्ड आदि देखने में दिक्कत होती है। ऐसी स्थिति में जब भी कोई स्टेशन आता है तो इससे पहले ये डेटोनेटर्स लगा दिए जाते हैं।
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