Wednesday, April 17, 2024
35.4 C
Chandigarh

जानिए कैसी होती थी मुगल बादशाहों की “दिवाली”

दीपावली का अर्थ होता है ‘दीपों की माला’ यानी दीपकों द्वारा की गई रोशनी। बनारस में देव दीपावली जैसे दीपोत्सव में यही देखने को मिलता है। दीपावली का उल्लेख स्कन्द पुराण में भी मिलता है।

इसके अतिरिक्त 7वीं सदी में राजा हर्षवर्धन के नाटकों में दीपोत्सव का उल्लेख है और 10वीं शताब्दी में राजशेखर के ‘काव्यमीमांसा‘ में भी इसका जिक्र किया गया है। हालांकि, दीपावली केवल हिन्दुओं का ही त्यौहार नहीं है बल्कि अन्य धर्मों द्वारा भी इसे मनाया जाता रहा है।

इसका इतिहास भी काफी दिलचस्प है। इतिहासकारों की मानें तो आज जिस धूमधाम से देश भर में दिवाली मनाई जाती है उसकी शुरूआत मुगलों के शासनकाल में हुई थी। तो चलिए जानते हैं :-

मोहम्मद बिन तुगलक की दिवाली

मुस्लिम बादशाहों द्वारा दीवाली को धूमधाम से मनाने का उल्लेख इतिहास में दर्ज हैं। 14वीं सदी में मोहम्मद बिन तुगलक अपने अंतरमहल में दीवाली मानता था और काफी बड़ा भोज रखता था। जश्न भी होता था लेकिन आतिशबाजी का उल्लेख उसके शासनकाल में कहीं नहीं मिलता है।

बादशाह अकबर की दिवाली

16वीं सदी में अकबर ने धूमधाम से दीवाली मनाने की शुरूआत की। उसके शासनकाल में दीवाली के दिन दरबार को शानदार ढंग से सजाया जाता था।

अकबर ने रामायण का फारसी में अनुवाद कराया था जिसका पाठ भी किया जाता था और इसके बाद श्रीराम की अयोध्या वापसी का नाट्य मंचन होता था।

इसके अलावा अपने मित्र राजाओं के यहां दीवाली के अवसर पर मिठाइयों का वितरण भी करवाते थे। आतिशबाजी की हल्की-फुल्की शुरूआत हो चुकी थी।

शाहजहां की दिवाली

अकबर के बाद 17वीं सदी में शाहजहां ने दिवाली के रूप में और परिवर्तन किया। वह दिवाली के इस अवसर पर 56 राज्यों से अलग-अलग मिठाई मंगाकर 56 प्रकार के थाल सजाते थे। साथ ही शहीदों को याद करते हुए सूरजक्रांत नामक पत्थर पर सूर्य किरण लगाकर उसे पुनः रोशन किया जाता जो साल भर जलता था।

इसके अलावा एक 40 फुट का आकाश दीया जलाया जाता जिसमें 40 मन कपास के बीज का तेल डाला जाता था। शाहजहां के शासनकाल में भव्य आतिशबाजी होती थी जिसमें महिलाओं के लिए अलग तरह से आतिशबाजियां होती थीं।

तब दिल्ली में आतिशबाजियों की धूम हुआ करती थी। इस पर्व को पूरी तरह हिन्दू तौर-तरीकों से मनाया जाता था। भोज भी एकदम सात्विक होता था।

मोहम्मद शाह की दिवाली

मोहम्मद शाह का शासन 1719 से 1748 तक रहा। वह संगीत और साहित्य प्रेमी था और उसे मोहम्मद शाह ‘रंगीला‘ के नाम से भी जाना जाता था। ‘रंगीला’ नाम से ही समझ आ रहा है कि वह काफी शौकीन मिजाज बादशाह था।

दिवाली पर वह अपनी तस्वीर बनवाता और अकबर तथा शाहजहां से भी दोगुने चौगुने अंदाज में दिवाली का जश्न मनाता था। उसने दिवाली के त्यौहार को और ज्यादा भव्यता दी। उसके शासनकाल में लाल किले को शानदार तरीके से सजाया जाता था।

अलग-अलग तरह के पकवान बनते थे जो केवल महल में ही नहीं बल्कि आम जनता में भी बांटे जाते थे।
इतिहासकारों का कहना है कि दीवाली की जो परम्परा मोहम्मद शाह ‘रंगीला’ ने शुरू की उसी का निर्वाह हम आज भी कर रहे हैं।

मुग़लों के बाद यहां तक कि अंग्रेजों के देश पर कब्जे और उनके द्वारा मुगलों को नाममात्र के शासक तक सीमित कर दिया गया, तब भी दिवाली भव्य बनी रही।

बहादुर शाह जफर अक्सर लाल किले में दीवाली की थीम पर आधारित नाटकों का आयोजन करते थे जिसे आम जनता भी देख सकती थी। मुगलकाल के बाद अंग्रेजों के आने पर भी दिवाली पर आतिशबाजी की जाती थी और अंग्रेज भी उसका आनंद उठाते थे।

 

Related Articles

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

15,988FansLike
0FollowersFollow
110FollowersFollow
- Advertisement -

MOST POPULAR

RSS18
Follow by Email
Facebook0
X (Twitter)21
Pinterest
LinkedIn
Share
Instagram20
WhatsApp