कोरोना वायरस के कारण दुनिया भर के ज़्यादातर देशों में लॉकडाउन चल रहा है। इस लॉकडाउन के चलते सड़कें खाली पड़ी हैं, हर दिन धुंआ उगलने वाली फैक्ट्रियां बंद पड़ी हैं, जिसका सकारात्मक परिणाम धरती पर अब साफ नज़र आने लगा हैं। लॉकडाउन से पहले धरती में बहुत अधिक कंपन थी परन्तु जब से लॉकडाउन शुरू हुआ है धरती में पहले से बहुत कम कंपन हो रही हैं। इन दिनों में हमारी धरती पहले से कहीं अधिक स्थिर हो गई हैं। सड़कों पर जानवरों को देखने से लेकर ताजी स्वच्छ हवा में सांस लेने तक पर्यावरण पर लॉकडाउन का सकारात्मक प्रभाव पड़ा है l
स्वच्छ वायु
लॉकडाउन का सबसे बड़ा सकारात्मक प्रभाव वायु पर हो रहा है। दुनिया भर के शहरों में प्रदूषण के स्तर में गिरावट देखी जा रही है क्योंकि लोगों ने वाहनों, कार्यालयों और कारखानों में कम समय और घर पर अधिक समय बिताया है। हवा में मौजूद हानिकारक कण पदार्थ और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड में कमी पूरे ब्रिटेन के इलाकों में दर्ज की गई है, लंदन और कई अन्य प्रमुख शहरों में वायु में पाए जाने वाले सभी हानिकारक पदार्थों में कमी देखी गई हैं। पिछले साल की तुलना में 14-25 मार्च तक नाइट्रोजन डाइऑक्साइड का औसत स्तर घटा है।
साफ पानी
वेनिस घुमावदार नहरों के लिए जाना जाता है। कोरोनावायरस लॉकडाउन के चलते इटली में पानी की गुणवत्ता में काफी सुधार हुआ है। शहर के निवासियों का मानना है कि हर साल आने वाले पर्यटकों की भीड़ द्वारा लाए जाने वाले नाव यातायात की कमी से जलमार्गों को फायदा हो रहा है।
मुक्त वन्यजीव
सार्वजनिक रूप से जिन जंगली जानवरों को जंगलों में देखा जाता था वे अब सड़कों पर देखे जा रहे है। यह परिवर्तन ज्यादातर शहरों में शांति के कारण हुआ है, जिसने जानवरों को आवासीय क्षेत्रों की ओर आकर्षित किया है। भारत के विभिन्न हिस्सों में हिरण, नीलगाय और तेंदुए जैसे जानवरों को सड़को पर देखा गया है।
ओजोन परत पर सकारात्मक प्रभाव
दुनिया भर में प्रदूषण के स्तर में अचानक गिरावट से ओजोन परत पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है। सड़कों पर कम वाहनों और लोगों द्वारा अपनी गतिविधियों के बारे में सतर्कता के साथ, ओजोन परत को आखिरकार कुछ सांस लेने की जगह मिल गई है। एक वैज्ञानिक पत्र में प्रकाशित लेख के आधार पर पर्यावरण में आई गिरावट में अचानक सुधार हुआ है।
ध्वनि प्रदूषण में कमी
बेल्जियम में वैज्ञानिकों ने लॉकडाउन शुरू होने के बाद से व्यापक मानवीय शोर की मात्रा में कम से कम 30 प्रतिशत की कमी दर्ज की है। जिससे शोर के बराबर वाली उच्च तरंगों की ध्वनि क्षमता का पता लगाने में सुधार हुआ है। धरती की सतह पर मौजूद साउंड वाइब्रेशन में कमी भी महसूस की गई है। इसे सीसमिक नॉइज भी कहा जाता है। ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि लॉकडाउन के कारण मानव गतिविधियां कम हो गई है। सभी बड़े शहरों में लोगों का आना-जाना, मिलना-जुलना बंद है।
भूकंपीय गतिविधियों को मापने में सहायता
ब्रिटिश जियोलॉजिकल सर्वे ने सिस्मोमीटर जोकि एक भूकंप मापने वाला यंत्र है की मदद से जो डाटा एकत्रित किया गया है उसमे देखा गया कि इंसानी गतिविधियां कम होने के कारण पृथ्वी से आने वाली आवाज़ों में भी कमी आई है। विशेषज्ञों का मानना है कि पृथ्वी से आने वाली कंपन की आवाज़ में कमी आने का सीधा कारण लॉकडाउन की वजह से लोगो का घर पर रहना है। वास्तव में लॉकडाउन होने के कारण भूकंप वैज्ञानिकों ने बताया कि धरती पर 24 घंटे होने वाली गतिविधियां बंद हो गई हैं। पूरी दुनिया इस समय ठहरी हुई है। इस समय दुनिया भर में कम हुए ध्वनि प्रदूषण के चलते उन्हें बहुत छोटे छोटे भूकंप को मांपने में भी कोई कठिनाई नहीं हो रही हैं, जबकि इससे पहले ये बड़ी मुश्किल से संभव हो पाता था ।