डसॉल्ट मिराज 2000 लड़ाकू विमान 29 जून, 1985 में भारतीय वायुसेना की नंबर- 7 स्क्वाड्रन में औपचारिक रूप से शामिल किया गया था। करगिल युद्ध में दुश्मनों के दांत खट्टे करने वाला मिराज लड़ाकू विमान अब और ज्यादा ताकतवर और घातक बन चुका है।
पुलवामा आतंकी हमले के 12 दिन बाद भारतीय वायुसेना ने मिराज 2000 से सुबह साढ़े 3 बजे जैश ए मोहम्मद के ठिकानों को बमबारी कर तबाह कर दिया। इस लड़ाकू विमान की खासियत यह है कि ये किसी भी देश की सीमा के अंदर जाकर मार कर सकता है।
यह बड़ी सटीकता के साथ सीमा के अंदर धुसकर अपने टारगेट को ध्वस्त करने का दमखम रखता है। आइए जानते है कितना घातक और पावरफुल है डसॉल्ट मीराज 2000 –
- इस लड़ाकू विमान का निर्माण फ्रांसीसी कंपनी दसॉल्ट ने किया है। भारतीय वायु सेना ने इस विमान को वज्र नाम दिया है। दसॉल्ट वही कंपनी है, जिसने राफेल को बनाया है।
- इस सिंगल इंजन फाइटर प्लेन विमान की लंबाई36 मीटर और पंखों का फैलाव 91.3 मीटर है।
- इसका वजन 7500 किलो है।
- यह विमान 6000 किलोग्राम वजन की मिसाइल के साथ 2495 किमी प्रतिघंटा की अधिकतम स्पीड से उड़ान भर सकता है।
- यह एक बार में टैंक फुल होने पर 1550 किमी तक का सफर कर सकता है।
- यह लड़ाकू विमान 59 हजार फीट की ऊंचाई तक उड़ सकता है।
- यह विमान लेजर गाइडेड बम, एयर-टू-एयर और एयर-टू-सरफेस मिसाइल को कैरी कर सकता है।
- यह लड़ाकू विमान 125 राउंड गोलियां प्रति मिनट दागता है और 68 मिमी के 18 रॉकेट प्रति मिनट दागता है।
- वैसे तो यह लड़ाकू विमान सिंगल फाइटर पायलट के लिए उपयुक्त है, लेकिन जरूरत पड़ने पर दो पायलट भी इसमें सवार हो सकते हैं।
- राडार की पकड़ में न आने वाला मिराज-2000 एक साथ हवा से जमीन और हवा से हवा में भी मार करने में सक्षम है।
- पहली बार 1970 में उड़ान भरने वाला मिराज 2000 फ्रेंच मल्टीरोल, सिंगल इंजन चौथी पीढ़ी का फाइटर जेट है। ये फाइटर जेट नौ देशों में सेवा दे रहा है। इसमें फ्रांस, इजिप्ट, यूएई, पीरू, ताइवान, ग्रीस और ब्राजील शामिल हैं, हालांकि ब्राजील अब मिराज-2000 को रिटायर कर चुका है।
- 1999 में हुए कारगिल युद्ध में मिराज-2000 ने अहम रोल निभाते हुए भारतीय सेना को जीत दिलाई थी।
- 2004 में भारत ने 10 और मिराज-2000 ऑर्डर किए, इसके बाद भारत के पास कुल 50 लड़ाकू विमान हो गए।
- 2011 में सरकार ने मौजूदा मिराज 2000 को अपग्रेड करने का कॉन्ट्रैक्ट साइन किया, इसके बाद अब यह जेट 2030 तक इस्तेमाल करने के लिए तैयार हैं।
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