अगर आप एक भारतीय हैं तो गंगा नदी का नाम आते है दिमाग़ में एक ही विचार सबसे पहले आता है, “पवित्र”। गंगा के नाम पर”गंगा जैसी पवित्र” और “गंगा माँ की क़सम” जैसी कहावतें और क़समें ही नहीं बनी बल्कि कई सारी फ़िल्में भी बनी।
क्या है गंगा के पवित्र होने का रहस्य? यह हम जानेंगे लेकिन उससे पहले गंगा नदी के बारे में कुछ आधारभूत तथ्य :
गंगा नदी हिमालय में स्थित गंगोत्री नामक स्थान से निकलती है। हिमालय की बर्फ पिघलकर इसमें आती रहती है। गंगा जल करोड़ों लोगों की प्यास बुझाती है। इसके जल से लाखों एकड़ जमीन सिंचित होती है। गंगा नदी मछलियों की 140 से अधिक प्रजातियों और उभयचरों की 90 प्रजातियों का घर है।
गंगा भारत के अंदर बहने वाली सबसे लम्बी नदी मानी जाती है। हिमालय के गंगोत्री से शुरू होकर जब यह बंगाल की खड़ी में गिरती है तो लगभग 2525 किलोमीटर का सफ़र पूरा करती है।
यह नदी भारत, नेपाल, बांग्लादेश में बहती है। इसकी आठ उपनदियां है- महाकाली, करनाली, कोसी, गंडक, घाघरा, युमना, सोन, महानंदा आदि।
क्या है गंगा के पवित्र होने का रहस्य?
गंगा की पवित्रता के दो पक्ष हैं, धार्मिक पक्ष और वैज्ञानिक पक्ष। हम इन दोनों पक्षों पर विस्तार से चर्चा करेंगे, तो चलिए शुरू करते हैं :
धार्मिक पक्ष
धार्मिक मान्यता के अनुसार वेद, पुराण, रामायण, महाभारत और कई धार्मिक ग्रंथों में गंगा की महिमा का वर्णन मिलता है। यही कारण है कि गंगा को देवनदी भी कहा गया है। हिंदू धर्म में होने वाले विभिन्न धार्मिक कार्यक्रम जैसे कि पूजा-अर्चना, अभिषेक, शुद्धिकरण गंगाजल के बिना अधूरे माने जाते हैं।
माना जाता है कि इस नदी में स्नान करके पापों से मुक्ति पाई जाती है, इसीलिए इस नदी को भारतीय धर्मग्रंथों में पवित्र नदी के रूप में माना गया है। भारतियों के लिए गंगा केवल नदी ही नहीं, बल्कि एक संस्कृति भी है। गंगा नदी के तट पर अनेक पवित्र तीर्थों का भी निवास है। जिनमें शामिल हैं :
- उत्तराखंड में गंगोत्री धाम,उत्तरकाशी,देवप्रयाग,ऋषिकेश,हरिद्वार
- उत्तर प्रदेश में प्रयागराज (इलाहाबाद),वाराणसी,ज़मानिया
- बिहार में बक्सर,पटना,सिमरिया घाट (बेगूसराय),सुल्तानगंज
- झारखंड में साहिबगंज,गंगासागर
पौराणिक कथाएं
इनमें सबसे प्रचलित और पौराणिक कथा के अनुसार राजा सगर (भगवान राम के कुल में एक राजा) को कठोर तपस्या के बाद साठ हजार पुत्रों की प्राप्ति हुई थी। एक दिन राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ कराने का निश्चय किया। यज्ञ के लिए राजा को घोड़े की आवश्यक थी, जिसे इंद्र ने चुरा लिया था। राजा सगर ने अपने सभी पुत्रों को घोड़े की खोज में भेज दिया।
जब सगर पुत्र उन्हें ढूंढते हुए पाताल लोक पहुंचे तो उन्होंने घोड़े को ऋषि कपिल मुनि के समीप बंधा हुआ पाया। यह देखकर सगर के पुत्रों ने सोचा कि ऋषि ने ही घोड़े को चुराया था और उनका अपमान कर दिया।
तपस्या कर रहे ऋषि ने हजारों वर्ष बाद अपनी आँखें खोली और उनके क्रोध से सगर के सभी साठ हजार पुत्र जल कर वहीं भस्म हो गए। सगर के पुत्रों की आत्माओं को मुक्ति नहीं मिली, क्योंकि उनका अंतिम संस्कार नहीं किया गया था।
इन्हीं के वंशज भगीरथ ने पूर्वजों के उद्धार के लिए गंगा को धरती पर लाने के लिए कठोर तपस्या की। ताकि गंगा को पृथ्वी पर लाया जा सके। उनकी तपस्या से भगवान ब्रह्मा प्रसन्न हुए और गंगा को पृथ्वी पर भेजने के लिए तैयार हो गए। उन्होंने गंगा को पृथ्वी पर जाने का आदेश दिया ताकि सगर के पुत्रों की आत्माओं की मुक्ति मिल सके।
इस पर गंगा ने कहा कि मैं इतनी ऊँचाई से जब पृथ्वी पर अवतरित होऊँगी तो पृथ्वी इतना वेग कैसे सह पाएगी? यह सुनने के बाद भगीरथ ने भगवान शिव से निवेदन किया और भगवाब शिव ने अपनी जटाओं में गंगा के वेग को रोककर, एक लट खोल दी, जिससे गंगा की अविरल धारा पृथ्वी पर प्रवाहित हुई। वह धारा भगीरथ के पीछे-पीछे गंगा-सागर संगम तक गई, जहाँ सगर-पुत्रों का उद्धार हुआ। आपको बता दें कि गंगा का भागीरथी नाम राजा भगीरथ के नाम से ही पड़ा था।
वैज्ञानिक कारण
लखनऊ के नेशनल बोटैनिकल रिसर्च इंस्टिट्यूट ने एक अनुसंधान के माध्यम से यह प्रमाणित किया है कि गंगा के पानी में किसी भी रोग को जन्म देने वाले कोलाई नामक बैक्टेरिया को मारने की क्षमता मौजूद है।
- वैज्ञानिक कहते हैं कि गंगा के पानी में बैक्टीरिया को खाने वाले बैक्टीरियोफैज वायरस होते हैं। ये वायरस बैक्टीरिया की तादाद बढ़ते ही सक्रिय होते हैं और उन्हें नष्ट कर देते हैं।
- वैज्ञानिकों को कहना है कि गंगा का पानी जब हिमालय से आता है तो कई तरह की मिट्टी, खनिज और जड़ी- बूटियों का असर इस पर होता है।
- इसी वजह से गंगा का पानी लंबे समय तक खराब नहीं होता और इसके औषधीय गुण बने रहते हैं।
- वैज्ञानिकों ने अपने शोध में ये भी पाया कि गंगा जल में वातावरण से ऑक्सीजन सोखने की अद्भुत क्षमता है।
- गंगा के पानी में प्रचूर मात्रा में गंधक भी होता है, इसलिए यह लंबे समय तक खराब नहीं होता और इसमें कीड़े नहीं पैदा होते। यही कारण है कि गंगा जल को हिंदू धर्म में इतना पवित्र माना गया है।
- ‘आइने अकबरी‘ में लिखा है कि बादशाह अकबर पीने के लिए गंगाजल ही प्रयोग में लाते थे। इस जल को वह अमृत कहते थे।
गंगा किनारे बसे लोगों की आजीविका का एक मुख्य स्त्रोत
भारत का करीब सैंतालीस प्रतिशत उपजाऊ क्षेत्र गंगा बेसिन में है। करीब चालीस करोड़ लोग आजीविका के लिए किसी न किसी रूप में गंगा पर निर्भर रहते हैं, इसमें विशेषकर सिंचाई, उद्योगों के लिए पानी की उपलब्धता, मछली व्यापार, गंगा आरती, नौकायन, रिवर राफ्टिंग, टूरिस्ट गाइड, पर्यटन, नियंत्रित रेत खनन, मूर्ति एवं कुम्हार व्यवसाय हेतु चिकनी बलुई मिट्टी, स्नान पर्व, कुम्भ–अर्धकुम्भ आयोजन, प्रयाग में प्रति वर्ष माघ माह में कल्पवास, काशी में देव दीपावली महोत्सव, गंगा महोत्सव, घाटों की साफ़ सफाई, दर्शन–पूजा–पाठ, पुरोहित, अंतिम संस्कार आदि आते हैं।
आज भी ऐसे परिवारों की बड़ी संख्या है जो अपने धार्मिक संस्कार मुंडन, कर्ण छेदन, उपनयन, विवाहोपरांत गंगा पुजैया आदि गंगा किनारे करते हैं जिससे घाटों के किनारे पूजन सामग्री बेचने वालों, पुजारियों, नाविकों आदि को आजीविका प्राप्त होती है।
दूषित हो चुकी है पवित्र गंगा
गंगा नदी चूंकि लोगों की धार्मिक आस्थाओं से जुड़ी है इस कारण और अन्य नदियों का पानी जिस तरह प्रदूषित हुआ है उससे दोगुनी तेजी से गंगा नदी का पानी प्रदूषित हो रहा है। अब गंगा नदी के पानी में सिर्फ 25 प्रतिशत ही ऑक्सीजन है।
शवों को बहाना, अस्थियों का बड़ी संख्या में विसर्जन, विशेष अवसरों पर गंगा में बड़ी संख्या में स्नान आदि क्रियाओं ने गंगा को प्रदूषित किया है। इस कारण गंगा विश्व की पांचवी सबसे प्रदूषित नदियों में शामिल हो गई ।
इसके बाद सन 1985 से लगातार सरकार के द्वारा गंगा विकास प्राधिकरण, गंगा एक्शन प्लान, नेशनल रिवर कन्जर्वेशन एक्ट, नमामि गंगे परियोजना, स्वच्छ गंगा अभियान के तहत गंगा को साफ करने की ओर अधिक ध्यान दिया गया तथा यह सुनिश्चित किया गया कि औद्योगिक कचरे को गंगा में प्रवाहित न किया जाए।
एक बात यहाँ फिर ध्यान देने योग्य है कि इतना प्रदूषण होने के बाद भी गंगा नदी का जल कभी खराब नहीं हुआ। इसकी विशेषता ज्यों की त्यों रही।